Book Title: Alankar Dharna Vikas aur Vishleshan
Author(s): Shobhakant Mishra
Publisher: Bihar Hindi Granth Academy

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ [ ख ] प्रयोग किया जाता है। उन समग्र अलङ्कारों के साङ्गोपाङ्ग निरूपण की उपादेयता असन्दिग्ध है। प्रस्तुत ग्रन्थ में अलङ्कार-तत्त्व के सर्वाङ्गीण विवेचन का प्रयास किया गया है। __ प्रथम अध्याय में अलङ्कार के सामान्य स्वरूप का निर्धारण कर काव्य में उसके स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मतों की परीक्षा की गयी है। एक सम्प्रदाय के आचार्यों ने अलङ्कार को काव्य का अन्तरङ्ग धर्म माना तो दूसरे सम्प्रदाय के आचार्यों ने बहिरङ्ग धर्म ! कुछ आचार्यों ने अलङ्कार को काव्य-सौन्दर्य से अभिन्न माना तो दूसरे आचार्यों ने उसे काव्य-सौन्दर्य की वृद्धि में यदा-कदा सहायता करने वाला अनित्य तत्त्व मान लिया । अलङ्कार • को अलङ कृत भाषा में लौकिक हार आदि आभूषण के समान कहने से भी कुछ भ्रान्त धारणा उत्पन्न हो गयी। कुछ लोगों ने यह समझ लिया कि जैसे 'हार आदि आभूषण कभी गले में डाल लिये जाते हैं और स्वेच्छा से गले से निकाल दिये जाते हैं उसी तरह उक्ति से अलङ्कार को जोड़ा या हटाया जा सकता है। किन्तु तथ्य यह है कि उक्ति अपने आप में पूर्ण, अखण्ड अभिव्यञ्जना होती है। यदि उक्ति अलङ कृत है तो अलङ्कार उसका अन्तरङ्ग घटक होगा, जिसे निकाल देने पर उस उक्ति का अस्तित्व ही मिट जायगा। इसी प्रकार किसी उक्ति में नये अलङ्कार को जोड़ देने से भी उस उक्ति का अपना अस्तित्व मिट जायगा और जो उक्ति-रूप बनेगा वह पहली उक्ति के रूप से सर्वथा भिन्न होगा। इस तथ्य को दृष्टि में रख कर हमने इस अध्याय में "काव्य में अलङ्कार के स्थान के सम्बन्ध में विभिन्न मान्यताओं की परीक्षा कर स्वस्थ निर्णय पर पहुँचने का प्रयास किया है। इसी प्रसङ्ग में अलङ्कार और अलङ्कार्य के भेदाभेद के प्रश्न पर भी विचार किया गया है । प्रश्न यह है कि यदि अलङ्कार अलङ कृत करने वाले धर्म हैं तो वे अलङ कृत "किसे करते हैं ? दूसरे शब्दों में, उनसे अलङ कृत होने वाला अलङ्कार्य क्या है ? अलङ्कार और अलङ्कार्य का पारसरिक सम्बन्ध कैसा होता है ? "भारतीय साहित्यशास्त्र में इन प्रश्नों का बड़ा ही सूक्ष्म, यौक्तिक समाधान प्रस्तुत किया गया है। तत्त्वतः उक्ति अखण्ड होती है। उसमें अलङ्कारअलङ्कार्य का तात्त्विक भेद नहीं। पर वैज्ञानिक विश्लेषण के लिए उस अखण्ड की खण्ड-कल्पना की जाती है-अलङ्कार और अलङ्कार्य के बीच कल्पित भेद किया जाता है। अलङ्कार और अलङ्कार्य के भेदाभेद के प्रश्न पर विचार करने के क्रम में हमने भारतीय मनीषियों के चिन्तन के

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 856