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विषय-सूची
प्रथम अध्याय अलङ्कार का स्वरूप और काव्य में उसका स्थान
१-२७ अलङ्कार का स्वरूप १, काव्य में अलङ्कार का स्थान ७, अलङ्कार
और अलङ्कार्य १६ द्वितीय अध्याय अलङ्कार-धारणा का विकास
२८-३०३ भरत से भामह तक २८-५८; दण्डी ५८-६३; उद्भट ६४.११८%, वामन ११८-१३२, रुद्रट १३३-१७०; कुन्तक १७१-१८०; भोज १८०-२०२; अग्निपुराणकार २०२-५; मम्मट २०५-१४; रुय्यक २१५-२४; हेमचन्द्र २२४-२६; वाग्भट २२९-३४; शोभाकर २३४-५१, जयदेव २५१-७२; अलङ्कारोदाहरणकार २७२-३; विश्वनाथ २७३-७; विद्यानाथ २७७-८०, वाग्भट (द्वितीय) २८०-१; भावदेव सूरि २८१; केशव मिश्र २८१-३; अप्पय्य दीक्षित २८३-६०; जगन्नाथ २६१-३; विश्वेश्वर २६३-४; अच्युतराय २६४-६ ।
निष्कर्ष २९५-३०३ तृतीय अध्याय हिन्दी-रीति-साहित्य में अलङ्कार-विषयक उद्भावनाएं और उनका स्रोत
३०४-५७ सामान्य परिचय ३०४-५; केशव दास ३०५-१३; जसवन्त सिंह ३१३-२१; मतिराम ३२१-२४; भूषण ३२४-२७; देव ३२७-३२; दूलह ३३२-३३; भिखारीदास ३३४-३८ ।