Book Title: Agam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 196
________________ अध्ययनं -४- [नि. १२९६] १९३ नि.(१२९६) अनुकंपा वेयड्डो मणिकंचन वासुदेव पुच्छाय।। सीमंधरजुगबाहू जुगंधरेचेव महबाहू ।। वृ-गाथा द्वितयम्, अस्य व्याख्या-सोरियपुरे समुद्दविजओ जया राया आसि तया जन्नजसो तावसो आसी, तस्स भज्जा सोमित्ता, तीसे पुत्तो जन्नदत्तो, सोमजसा सुण्हा, ताण पुत्तो नारदो, तानिउंछवित्तीणि, एगदिवसं जेमेति एगदिवसंउववासं करेंति, ताणितंनारदंअसोगरुक्खहेतुपुव्वण्हे ठविऊण दिवसं उंछंति, इओ य वेयड्डाए वेसमणकाइया देवा जंभगा तेनं २ वीतीवयंति, पेच्छंति दारगं, ओहिणा आभोअंति, सो ताणंदेवनिकायाओचुओ तोतं अनुकंपाएतंछाहिं थंभेति-दुक्खं उण्हे अच्छइत्ति, पडिनियत्तेहिं नीसीहिओ सिक्खाविओ य-प्रद्युम्नवत्, केइ भणंति-एसा असोगपुच्छा, नारदुप्पत्ती य, सो उम्मुक्कबालभावो तेहिं देवेहिं पुव्वभवपिययाए विज्जाजभएहि पन्नत्तिमादियाओ सिक्खाविओ, सो मणिपाउआहिं कंचणकुंडियाए आगासेण हिंडइ, जन्नया बारवइमागओ, वासुदेवेणपुच्छिओ-किंशौचंइति?,सोन तरति निव्वेढेउं, वक्खेवो कओ, अन्नाए कहाए उडेत्ता पुव्वविदेहे सीमंधरसामि जुगबाहूवासुदेवो पुच्छइ-किं शौचं?, तित्थगरो भणइ-सचं सोयंति, तेन एगेण पएणसच्चंपज्जाएहि ओवहारियं, पुणो अवरविदेहंगओ, जुगंधरतित्थगरं महाबाह नाम वासुदेवो पुच्छइतं चेव, तस्सवि सक्खं उवगयं, पच्छा बारवइमागओ वासुदेवं भणइ-किं ते तया पुछियं ?, ताहे सो तंभणइ-सोयंति, भणइ-सचंति, पुच्छिओ किं सच्चं?, पुणो ओहासइ, वासुदेवेण भणियं-जहिं ते एवं पुच्छियं तहिं एयंपि पुच्छियं होतंति खिंसिओ, तेन भणियं-सच्चं भट्टारओ न पुच्छिओ, विचिंतेउमारद्धो, जा सरिया, पच्छा अतीव सोयवंतो पत्तेयबुद्धो जाओ, पढममज्झयणं सो चेव वदइ, एवं सोएण जोगा समाहिया भवंति ११ । सोएत्ति गयं, इदानिं सम्मद्दिहित्ति, संमइंसणविसुद्धीएवि किल योगाः सङ्गृह्यन्ते, तत्थ उदाहरणगाहानि. (१२९७) सागेयम्मि महाबल विमलपहे चेव चित्तकम्मे य । निप्फत्ति छट्ठमासे भुमीकम्भस्स करणंच ।। वृ-अस्या व्याख्या कथानकादवसेया, साएए महब्बलो राया, अत्थाणीए दूओ पुच्छिओ-किं नत्थि मम जं अन्नेसिं रायाणं अत्थित्ति ?, चित्तसभत्ति, कारिया, तत्थ दोवि चित्तकरावप्रतिमौ विख्यातौ विमलः प्रभाकरश्च, तेसिं अद्धद्धेणं अप्पिया, जवणियंतरिया चित्तेइ, एगेन निम्मवियं, एगेणभूमी कया, राया तस्स तुट्ठो, पूइयो य पुच्छिओय,-प्रभाकरो पुच्छिओ भणइ-भूमी कया, न ताव चित्तेमित्ति, राया भणइ-केरिसया भूमी कयत्ति ?, जवणिया अवणीया, इयरं चित्तकम्म निम्मलयरंदीसइ, राया कुविओ, विन्नविओ-पभा एत्थ संकंतत्ति, तं छाइयं, नवरं कुटुं, तुद्वेण एवं चेव अच्छउत्ति भणिओ, एवं संमत्तं विसुद्धं कायव्वं, तेनैव योगाः सङ्ग्रहीता भवन्ति १२ । सम्यग्दृष्टिरिति गतं, इदानिसमाहित्ति समाधानं, तत्थोदाहरणगाहानि. (१२९८) नयरं सुदंसनपुरं सुसुणाए सुजस सुव्वए चेव । पव्वज्ज सिक्खमादी एगविहारे यफासणया ।। वृ-कथानकादवसेया, तच्चेदम्-सुदंसनपुरे सुसुनागो गावहा, सुजसा से भज्जा, सुड्ढाणि, ताण पुत्तोसुव्वओ नाम सुहेणगब्भे अच्छिओ सुहेण वड्डिओ एवं जाव जोववणत्थोसंबुद्धो आपुच्छित्ता 25130 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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