Book Title: Agam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 210
________________ अध्ययनं -४- [नि. १३२०/२] २०७ देह आसायणा सेहस्स २१, 'किंति'त्ति सेहे राइनिएणआहूण किंति वत्ता भवइआसायणा सेहस्स, किंति-किं भणसित्ति भणइ, मत्थएणवंदामोत्तिभणियव्वं २२, _ 'तुम'तिसेहेराइनियंतुमंतिवत्ताभवइआसयणा सेहस्स, को तुमंतिचोएत्तए, २३ 'तज्जाए'त्ति सेहे राइनियं तज्जाएणं पडिहणित्ता भवति आसायणा सेहस्स, 'तज्जाएणं ति कीस अज्जो! गिलाणस्सन करेसि?,भणइ-तुमं कीस न करेसि?, आयरिओभणइ-तुमंआलसिओ, सोभणइतुमं चेव आलसिओ इत्यादि २४, ‘नो सुमणो'त्ति सेहे राइनियस्स कहं कहेमाणस्स नो सुमनसो भवइ आसायणा सेहस्स, इह नो सुमनसेत्ति ओहयमनसंकप्पे अच्छइन अनुबूहइ कहं अहो सोहणं कहियंति २५, ‘नोसरसि'त्ति सेहेराइनियस्स कहं कहेमाणस्स नो समरसित्तिवत्ताभवइआसायणा सेहस्स, इह च 'नो सुमरसित्ति न सुमरसि तुमं एवं अत्थं, न एस एवं भवइ २६, कह छेत्त'त्ति रायनियस्स कहं कहेमाणस्स तं कहं अच्छिंदित्ता भवइ आसायणा सेहस्स, अच्छिंदित्ता भवइत्ति भणइ अहं कहेमि २७, ‘परिसंभेत्ते'तिरायनियस्स कहं कहेमाणस्स परिसं भेत्ता भवति आसायणा सेहस्स, इह च परिसं भेत्तत्ति एवं भणइ-भिक्खावेला समुद्दिसणवेला सुत्तत्थपोरिसिवेला, भिंदइ वा परिसं २८, अनुट्टियाए कहेइ' राइनियस्स कहं कहेमाणस्स तीए परिसाए अनुट्टियाए अव्वोच्छिन्नाए अव्वोगडाए दोच्चंपि तच्चंपिकहं कहेत्ता भवइ आसायणा सेहस्स, इह तीसे परिसाए अनुट्टियाएत्तिनिविट्ठाए चेव अवोच्छिन्नाएत्ति-जावेगोवि अच्छइ अब्बोगडाएत्ति अविसंसारियत्ति भणियं होइ, दोच्चंपि तचंपि-बिहिं तिहिं चउहिं तमेवत्ति जो आयरिएण कहिओ अत्थो तमेवाहिगारं विगप्पइ, अयमविपगारोअयमविपगारो तस्सेवेगस्ससुत्तस्स २९, 'संथारपावघट्टण'त्तिसेज्जासंथारगंपाएण संध?त्ता हत्थेण न अनुन्नवित्ता भवइ आसायणा सेहस्स, इह च सेज्जा-सव्वंगिया संथारोअड्डारज्जहत्थो जत्थ वा ठाणे अच्छइ संथारो बिदलकट्ठमओ वा, अहवा सेज्जा एव संथारओ तं पाएणसंघट्टेइ, नाणुजाणावेइ-नखामेइ, भणियंच-'संघट्टेत्ताण काएणे' त्यादि ३०, 'चेट्ट'त्ति सेहे राइनियस्स सेज्जाए संथारे वा चिट्टित्ता वा निसिइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवइ आसायणा सेहस्स ३१, 'उच्च'त्तिसेहेराइनियस्स उच्चासणंचिद्वित्ता वा निसिइत्ता वा भवइआसायणासेहस्स ३२, 'समासणे यावि'त्ति सेहेराइणियस्ससमासणं चिट्ठित्ता वा निसीइत्ता वा तुयट्टित्ता वा भवइआसायणा सेहस्सत्ति ३३ गाथात्रितयार्थः ।। सूत्रोक्ताशातनासम्बन्धाभिधित्सयाह सङ्गहणिकारः अहवा-अरहंताणं आसायणादिसज्झाए किंचिणाहीयं । - जा कंठसमुद्दिवा तेत्तीसासायणा एया ।। प्रतिक्रमणसङ्ग्रहणी समाप्ता ।। वृ- अथवा-अयमन्यः प्रकारः, ‘अर्हतां' तीर्थकृतामाशातना, आदिशब्दात्सिद्धादिग्रहः यावत्स्वाध्याये किञ्चिन्नाधीतं सज्झाएनसज्झाइयंतिवुत्तं भवइ,' एताः कण्ठसिद्धाः' निगदसिद्धा एवेत्यर्थः, त्रयस्त्रिंशदाशातनाइति गाथार्थः । ।साम्प्रतंसूत्रोक्ता एव त्रयस्त्रिंशद्व्याख्यायन्ते, तत्र मू. (२८) अरिहंताणं आसायणाए सिद्धाणंआसायणाए आयरियाणंआसायणाए उवज्झायाणं आसायणाए साहूणमासायणाए साहुणीणं आसायणाए सावगाणं आसायणाए सावियाणं आसायणाए देवाणं आसायणाए देवीणं आसायणाए इहलोगस्सासायणाए परलोगस्स आसायणाए Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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