Book Title: Agam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan

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Page 271
________________ २६८ आवश्यक मूलसूत्रम् -२- ५/५७ वृ- ‘सुकयं आणत्तिंपिव लोए काऊणं' ति जहा रन्नो मनुस्सा आनत्तिगाए पेसिया पणामं काऊण गच्छंति, तं च काऊण पुणो पणामपुव्वगं निवेदेंति, एव साहुणोऽवि सामाइयगुरुवंदनपुव्वगं चरित्तादिविसोहिं काऊण पुणो सुकयकितिकम्मा संतो गुरुणो निवेदंति-भगवं ! कयं ते पेसणं आयविसोहिकारगंति, वंदणं च काऊण पुणो उक्कुडुया आयरियाभिमुहा विनयरतियंजलिपुडा चिट्ठति, जाव गुरू थुइगहणं करेंति, ततो पच्छा समत्ताए पढमधुतीए थुई कड्ढित विनउत्ति, तओ थुई वहू॑तियाओ कड्डेति तिन्नि, अहवा वतिया थुइओ गुरुधुतिगहणे कए तिन्नित्ति गाथार्थः ॥ तओ पाउसियं करेंति, एवं ताव देवसियं करेंति, गतं देवसियं, राइयं इदानिं, तत्थिमा विही, पढमं चिय सामाइयं कड्डिऊण चरित्तविसुद्धिनिमित्तं पणुवीसुस्सासमित्तं काउस्सग्गं करेंति, तओ नमोक्कारेण पारित्ता दंसणविसुद्धीनिमित्तं चउवीसत्थयं पढंति, पणुवीसुस्सासमेत्तमेव काउस्सग्गं करेंति, एत्थवि नमोक्कारेण पारेत्ता सुयणाणविसुद्धीनिमित्तं सुयणाणत्थयं, कहेंति, काउस्सग्गं च तस्सुद्धिनिमित्तं, करेंति, तत्थ य पाओसियथुइमादीयं अधिकयकाउस्सग्गपज्जंतमइयारं चिंतेइ, आह- किंनिमित्तं पढमकाउस्सग्गे एव राइयाइयारं न चिंतेति ?, उच्यते, नि. ( १५२५) निद्दामत्तो न सरइ अइआरं मा य घट्टणं ऽणोऽन्नं । किइअकरणदोसा वा गोसाई तिन्नि उस्सग्गा ॥ वृ- निद्दामत्तो- निद्दाभिमूओ न सरइ-न संभरइ सुष्ठु अइयारं मा घट्टणं ऽणोऽन्नं अंधयारे वंदंतयाणं, कितिअकरणदोसा वा, अंधयारे अदंसणाओ मंदसद्धा न वंदंति, एएण कारणेणं गोस-पच्चसे आइए तिन्नि काउस्सग्गा भवन्ति, न पुन पाओसिए जहा एक्कोत्ति | एत्थ पढमो चरित्ते दंसणसुद्धीऍ बीयओ होइ । सुयनाणस्स य ततिओ नवरं चिंतंति तत्थ इमं ॥ नि. (१५२७) तइए निसाइयारं चिंतइ चरमंमि किं तवं काहं ? | छम्मासा एगदिणाइहाणि जा पोरिसि नमो वा ॥ नि. (१५२६) नि. (१५२८ ) अहमवि भे खामेमी तुमेहिं समं अहं च वंदामि । आयरियसंतियं नित्थारगा उ गुरुणो अ वयणाई || वृ- ततो चिंतिऊण अइयारं नमोक्कारेण पारेत्ता सिद्धाण थुई काऊण पुव्वभणिएण विहिणा वंदित्ता आलोएति, तओ सामाइयपुव्वयं पडिक्कंमंति, तओ वंदणापुव्वयं खामेति, वंदणं काऊण तओ सामाइयपुव्वयं काउस्सग्गं करेंति, तत्थ चिंतयंति - कम्मि य निउत्ता वयं गुरूहिं ?, तो तारिसयं तवं पवज्जामो जारिसेण तस्स हाणि न भवति, तओ चिंतेति - छम्मासखमणं करेमो ?, न सक्केमो, एगदिवसेण ऊणं ?, तहवि न सक्केमो, एवं जाव पंच मासा, तओ चत्तारि तओ तिन्नि तओ दोन्नि, ततो एक्कं ततो अद्धमासं चउत्थं एगठाणयं पुरिमडुं निव्विगइयं, नमोक्कारसहियं वत्ति, उक्तं च- 'चरिमे किं तवं काहं' ति, चरिमे काउस्सग्गे छम्मासमेगूण ( दिनादि) हानी जाव पोरिस नमो वा, एवं जं समत्था काउं तमसढभावा हिअए करेंति, पच्छा वंदित्ता गुरुसक्खयं पवज्रंति, सव्वे य नमोकारइत्तगा समगं उट्ठेति वोसिरावेंति निसीयंति य, एवं पोरिसिमादिसु विभासा, तओ तिन्निा थुई जहा पुव्वं; नवरमप्पसद्दगं देति जहा घरकोइलादी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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