Book Title: Agam Suttani Satikam Part 25 Aavashyaka
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Shrut Prakashan
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२७०
आवश्यक मूलसूत्रम् -२-५/६०
परिहीनो विभागे खेत्तं काऊण विहरति, नवविमप्पविहारी पुन उउबद्धे अट्ठ मासा मासकप्पेण विहरति, एए अट्ठ विगप्पा, वासावासं एगमि चेव ठाणे करेंति, एस नवविगप्पो, अत्राचार्यो भणति-मत्थएण वंदामि अहंपि तेसिंति, अन्ने भणंति-अहमवि वंदावेमित्ति, तओ अप्पगं गुरूणं निवेदंति चउत्थखामणासुत्तेणं, तच्चेदं
मू. (६१) इच्छामि खमासमणो ! उवट्ठिओमि तुब्भण्हं संतियं अहा कप्पं वा वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुच्छणं वा (रयहरणं वा) अक्खरं वा पयं वा गाहं वा सिलोगं वा (सिलोगद्धं वा) अटुं वा हेउं वा पसिणं वा वागरणं वा तुब्भेहिं (सम्म) चियत्तेण दिन्नं मए अविणएण पडिच्छियं तस्स मिच्छामि दुक्कडं
वृ-निगदसिद्धं, आयरिओ भणंति-'आयरियसंतियं'त्ति य अहंकारवजणत्थं, किं ममात्रेति, तओ जं विणइया तमणुसद्धिं बहु मन्नंति पंचमखामणासुत्तेण, तच्चेदं___ मू.(६२) इच्छामि खमासमणो ! कयाइंच मे कितिमम्माइं आयारमंतरे विनयमंतर सेहिओ सेहाविओ संगहिओ उवगहिओ सारिओ वारिओ चोइओ पडिचोइओ अब्भुडिओऽहं तुब्भण्हं तवतेयसिरीए इमाओ चातुरंतसंसारकंताराओ साहट्ट नित्थरिस्सामित्तिक? सिरसा मणसा मत्थएण वंदामि।
वृ-निगदसिद्धं, संगहिओ-नाणादीहिं सारिआ-हिए पवत्तिओ वारिओ-अहियाओ निवत्तिओ चोइओ-खलणाए पडिचोइओ-पुणो २ अवत्थं उवट्ठिउत्ति, पच्छा आयरिओ भणइ-'नित्थारगपारग'त्ति नित्थारगपारगा होहत्ति, गुरुणोत्ति, एयाई वणयाइंति वक्कसेसमयं गाथार्थः ।। एवं सेसाणवि साहणं खामणावंदणं करेंति, अह वियालो वाघाओ वा ताहे सत्तण्हं पंचण्हं तिण्हं वा, पच्छा देवसियं पडिकांति, केइ भणंति-सामण्णेणं, अन्ने भणंति-खामणाइयं, अन्ने चरित्तुस्सग्गाइयं, सेजदेवयाए य उस्सग्गं करेंति, पडिकंताणं गुरूसु वंदिएसु वड्डमाणीओ तिन्नि थुइओ आयरिया भणंति, इमेवि अंजलिमउलियग्गहत्था समत्तीए नमोक्कारं करेंति, पच्छा सेसगावि भणंति, तद्दिवसं नवि सुत्तपोरिसी नवि अत्थपोरुसी थुईओ भणंति जस्स जत्तियाओ एंति, एसा पक्खियपडिक्कमणविही मूलटीकाकारेण भणिया, अन्ने पुन आयरणाणुसारेण भणंति-देवसिए पडिकंते खामिए य तओ पढमं गुरू चेव उद्वित्ता पक्खियं खामेति जहाराइणियाए, तओ उवविसंति, एवं सेसगावि जहाराइणिया खामेत्ता उवविसंति, पच्छा वंदित्ता भणंति-देवसियं पडिकंतं पक्खियं पडिक्कमावेह, इत्यादि पूर्ववत्, एवं चाउमासियंपि, नवरं काउस्सग्गे पंचुस्साससयाणि, एवं संवच्छरियंपि नवरं काउस्सम्मो अट्ठसहस्सं उस्सासाणं, चाउमासियसंवच्छरिएस सव्वेवि मूलगुणउत्तरगुणाणं आलोयणं दाउं पडिक्कमंति, खेत्तदेवयाए उस्सग्गं करेंति, केई पुन चाउमासिगे सिज्जदेवयाएवि उस्सग्गं करेंति, पभाए य आवस्सए कए पंचकल्लाणगं गिण्हंति, पुव्वगहिए य अभिग्गहे निवेदेति, अभिग्रहा जइ संमं णाणुपालिया तो कुइयकक्कराइयस्स उस्सग्गं करेंति, पुणोऽवि अन्ने गिण्हंति, निरभिग्गहाण न वट्टइ अच्छिउं, संवच्छरिए य आवस्सए कए पाओसिए पज्जोसवणा कप्पो कट्ठिजति, सो पुन पुवि च अनागयं पंचरत्तं कहिज्जइ य, एसा सामायारित्ति, एनामेव कालतः उपसंहरन्नाह भाष्यकार:[भा.२३२] चाउम्मासियवरिसे आलोअण नियमसो हु दायव्वा ।
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