Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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卐 crossing innumerable islands and oceans 12,000 yojans downwards. 5 Their description should be understood similar to that of capital city 5 Vijaya.
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devas namely Krityamalak and Nrityamalak reside on two koots and 卐 each of them has a life-span of one palyopam. Their capital cities are in another Jambu continent in the south of Mandar mountain after
5 वैताढ्य पर्वत नाम क्यों ? VAITADHYA MOUNTAIN : WHY SO NAMED ?
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२१. [ प्र. ] से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चइ वेअड्डे पव्वए ?
[उ.] गोयमा ! वेअड्डे णं पव्वए भरहं वासं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्ठइ,
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5 तं जहा - दाहिणड्डूभरहं च उत्तरड्डभरहं च । वेअड्डगिरिकुमारे अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव पनि ओवमट्ठिइए
परिवसइ । से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ-वेअड्डे पव्वए २ ।
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अदुत्तरं च णं गोयमा ! वेअड्डस्स पव्वयस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते, जं ण कयाइ ण आसि, ण
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5 कयाइ ण अत्थि, ण कयाइ ण भविस्सइ, भुविं च भवइ अ, भविस्सइ अ, धुवे, णिअए, सासए,
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अक्खए, अव्वए, अवट्ठिए, णिच्चे ।
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गौतम ! इसके अतिरिक्त वैताढ्य पर्वत का नाम शाश्वत है। यह नाम कभी नहीं था, ऐसा नहीं है,
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5 यह कभी नहीं है, ऐसा भी नहीं है और यह कभी नहीं होगा, ऐसा भी नहीं है। यह था, यह है, यह
होगा, यह ध्रुव, नियत, शाश्वत, अक्षय, अव्यय, अवस्थित एवं नित्य है।
21. [Q.] Reverend Sir ! Why is Vaitadhya mountain so called ?
[Ans.] Gautam ! Vaitadhya mountain divides Bharat area in two
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parts namely southern Bharat and northern Bharat. A prosperous deva 卐 whose name is Vaitadhya-giri Kumar resides there. His life-span is one palyopam. So it is called Vaitadhya mountain.
२१. [.] भगवन् ! वैताढ्य पर्वत को 'वैताढ्य पर्वत' क्यों कहते हैं ?
[उ. ] गौतम ! वैताढ्य पर्वत भरत क्षेत्र को दक्षिणार्ध भरत तथा उत्तरार्ध भरत नामक दो भागों में
विभक्त करता है। उस पर वैताढ्य गिरिकुमार नामक परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम स्थिति वाला देव 5
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निवास करता है। इन कारणों से वह वैताढ्य पर्वत कहा जाता है।
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5 जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Further, the name of Vaitadhya mountain is eternal. There was never
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a period when this name did, does and will not exist, in the past, in the f present and in the future. It was in the past, it is at present and it shall always be in future also. It is permanent, unaltered everlasting, imperishable stable and unchangeable.
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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