Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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संवत्सर-भेद YEAR-THEIR TYPES
१८४. [प्र. १ ] कति णं भन्ते ! संवच्छरा पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! पंच संवच्छरा पण्णत्ता, तं जहा-णक्खत्तसंवच्छरे, जुगसंवच्छरे, पमाणसंवच्छरे, लक्खणसंवच्छरे, सणिच्छरसंवच्छरे।
[प्र. २ ] णक्खत्तसंवच्छरे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! दुवालसविहे पण्णत्ते, तं जहा-सावणे, भद्दवए, आसोए (कत्तिए, मियसिरे, पोसे, माहे, फग्गुणे, चइत्ते, वेसाहे, जेट्टे) आसाढे। जं वा विहप्फई महग्गहे दुवालसेहिं संवच्छरेहिं सव्वणक्खत्तमंडलं समाणेइ, सेत्तं णक्खत्तसंवच्छरे।
[प्र. ३ ] जुगसंवच्छरे णं भन्ते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-चंदे, चंदे, अभिवद्धिए, चंदे, अभिवद्धिए चेवेति। [प्र. ४ ] पढमस्स णं भन्ते चन्द-संवच्छरस्स कइ पब्बा पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! चोव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। [प्र. ५ ] बितिअस्स णं भन्ते ! चंद-संवच्छरस्स कइ पव्वा पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! चउव्वीसं पव्वा पण्णत्ता। एवं पुच्छा ततिअस्स ? गोयमा ! छब्बीसं पव्वा पण्णत्ता। चउत्थस्स चन्द-संवच्छरस्स चोव्वीसं पव्वा, पंचमस्स णं अहिवद्धिअस्स छब्बीसं पव्वा य पण्णत्ता। एवामेव सपुवावरेणं पंचम-संवच्छरिए जुए एगे चउव्वीसे पव्वसए पण्णत्ते। सेत्तं जुगसंवच्छरे। [प्र. ६ ] पमाणसंवच्छरे णं भन्ते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
[उ. ] गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-णक्खत्ते, चन्दे, उऊ, आइच्चे, अभिवद्धिए, सेत्तं पमाणसंवच्छरे इति।
[प्र. ७ ] लक्खणसंवच्छरे णं भन्ते ! कतिविहे पण्णत्ते ? [उ. ] गोयमा ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा
समयं नक्खत्ता जोगं, जोअंति १ समयं उउं परिणामंति। णच्चुण्ह णाइसीओ, बहूदओ होइ णक्खत्ते॥१॥ ससि समग-पुण्णमासिं, जोएंति विसमचारि-णक्खत्ता। कडुओ बहूदओ आ, तमाहु संवच्छरं २ चन्दं ॥२॥
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सप्तम वक्षस्कार
(519)
Seventh Chapter
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