Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 663
________________ B55555555555555555555555555555 3 [उ. ] गौतम ! चन्द्र और सूर्य दोनों तुल्य-समान हैं। वे सबसे स्तोक-कम हैं। उनकी अपेक्षा नक्षत्र 5 संख्येय गुणे-२८ गुणे अधिक हैं। नक्षत्रों की अपेक्षा ग्रह संख्येय गुने कुछ अधिक तीन गुने-८८ गुने 5 अधिक हैं। ग्रहों की अपेक्षा तारे संख्येय गुने-६६,९७५ कोडाकोड गुने अधिक हैं। [विशेष स्पष्टीकरण हेतु देखें-श्री जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र, शान्तिवन्द्रीया वृत्ति, पत्रांक ५३६। जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र हिन्दी अनुवाद, श्री अमोलक ऋषि, पृष्ठ ६१७] 207.[Q.] Reverend Sir! Out of moon, sun, planets, constellations and stars which are less than whom, who more than whom, who are equal and who are less than double the others ? (Ans.) Gautam ! Moons and suns are equal in number and their number is the least of all. Constellation are numerable times—28 times more than moons and suns. Planets are numerable times the constellations of more than three times namely eighty eight times more. Stars are numerable times more-6,69,750 million crore times more. (For detailed account see commentary by Shanti Chandra as Jambudveep Prajnapti, page 536. Hindi Translation of Jambudveep Prajnapti by Shri Amolak Rishi, page 617) तीर्थंकरादि-संख्या NUMBER OF TIRTHANKARS AND OTHERS २०८. [प्र. १] जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे जहण्णपए वा उक्कोसपए वा केवइआ तित्थयरा सबग्गेणं पण्णत्ता ? [ उ. ] गोयमा ! जहण्णपए चत्तारि उक्कोसपए चोत्तीसं तित्थयरा सव्वग्गेणं पण्णत्ता। है [प्र. २ ] जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे केवइआ जहण्णपए वा उक्कोसपए वा चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? __ [उ. ] गोयमा ! जहण्णपदे चत्तारि उक्कोसपदे तीसं चक्कवट्टी सव्वग्गेणं पण्णत्ता इति, बलदेवा म तत्तिआ चेव जत्तिआ चक्कवट्टी, वासुदेवावि तत्तिया चेवत्ति। [प्र. ३ ] जम्बुद्दीवे दीवे केवइआ निहिरयणा सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! तिण्णि छलुत्तरा णिहिरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता। __ [प्र. ४ ] जम्बुद्दीवे दीवे केवइआ णिहिरयणसया परिभोगताए हव्वमागच्छंति ? [उ. ] गोयमा ! जहण्णपए छत्तीसं उक्कोसपए दोण्णि सत्तरा णिहिरयणसया परिभोगत्ताए ॐ हव्वमागच्छंति। [प्र. ५ ] जम्बुद्दीवे णं भन्ते ! दीवे केवइआ पंचिंदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता ? है [उ. ] गोयमा ! दो दसुत्तरा पंचिंदिअरयणसया सव्वग्गेणं पण्णत्ता। 55555555558 3555555555555555555555555555555555555555 सप्तम वक्षस्कार (595) Seventh Chapter 55555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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