Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 637
________________ ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ55555555555555555558 步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步步另% According to the above description, the shadow increases by one angul (finger) in a week, two anguls in a fortnight and four anguls in a month. From Shravan to Paush (Southern half year) it gradually increases while from Magha of Ashadh (Uttarayan-Northern half year) it gradually decreases. (Uttaradhyayan Tika) अणुत्वादि-परिवार ATOM AND THE LIKE-FAMILY १९६. हिटि ससि-परिवारो, मन्दरऽबाधा तहेव लोगंते। धरणितलाओ अबाधा, अंतो बाहिं च उद्धमुहे॥१॥ संठाणं च पमाणं, वहंति सीहगई इद्धिमन्ता य। तारंतरऽग्गमहिसी, तुडिअ पहु ठिई अ अप्पबहू ॥२॥ [प्र. ] अस्थि णं भन्ते ! चंदिम-सूरिआणं हिट्टि पि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, समेवि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि, उप्पिंपि तारारूवा अणुंपि तुल्लावि ? [उ. ] हंता गोयमा ! तं चेव उच्चारेअव्वं । [प्र. ] से केणठेणं भन्ते ! म [उ. ] एवं बुच्चइ-अत्थि णं. जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तव-नियम-बंभचेराणि ऊसिआई भवंति ॐ तहा-तहा णं तेसि णं देवाणं एवं पण्णायए, तं जहा-अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा, जहा-जहा णं तेसिं देवाणं तव-नियम-बंभचेराणि णो ऊसिआई भवंति तहा-तहा णं तेसिं देवाणं एवं (णो) पण्णायए, तं ॐ जहा-अणुत्ते वा तुल्लत्ते वा। १९६. सोलह द्वार : पहला द्वार-इसमें चन्द्र तथा सूर्य के (१) अधस्तनप्रदेशवर्ती, ॐ (२) समपंक्तिवर्ती, तथा (३) उपरितनप्रदेशवर्ती तारकमण्डल के-तारा विमानों के अधिष्ठातृ देवों का + वर्णन है। दूसरा बार-इसमें चन्द्र-परिवार का वर्णन है। तीसरा द्वार-इसमें मेरु से ज्योतिश्चक्र के अन्तर-दूरी का वर्णन है। चौथा बार-इसमें लोकान्त से ज्योतिश्चक्र के अन्तर का वर्णन है। पाँचवाँ द्वार-इसमें भूतल से ज्योतिश्चक्र के अन्तर का वर्णन है। छठा द्वार-क्या नक्षत्र अपने चार क्षेत्र के भीतर चलते हैं, बाहर चलते हैं या ऊपर चलते हैं ? इस ॐ सम्बन्ध में इस द्वार में वर्णन है। सातवाँ द्वार-इसमें ज्योतिष्क देवों के विमानों के संस्थान-आकार का वर्णन है। आठवाँ द्वार-इसमें ज्योतिष्क देवों की संख्या का वर्णन है। 555555555555555555555555))))))))))))) सप्तम वक्षस्कार (571) Seventh Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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