Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 635
________________ फ्रकाब 255555559555555595555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55556592 2955 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5555 5 5 5 5 55555555595 卐 फ्र फ्र The sun is thin round like a ball. It is then like a banyan tree round and expended for above and have bright attractive shape (Samachaturas shape) while narrow from below. Its shadow at this time of its movement is like the skeleton of the things on which it sheds light. On the last of that month, at the end of the quarter of this days, the shadow is two pads. : दो अर्थ होते हैं - पुरुषशरीर और शंकु - ( खूँटी, जिससे सूर्य या दीपक की छाया मापी जाती है) । फलितार्थ यह कि पुरुषशरीर या शंकु से जिस काल का माप होता हो, वह पौरुषी है। हुआ विवेचन पौरुषी शब्द का विश्लेषण और कालमान 'पौरुषी' शब्द पुरुष शब्द से निष्पन्न है। पुरुष शब्द के भी The meaning of the final verse is as under The description of yog, master gods, stars, family status (gotra), 5 shape, connection of moon and sun, Kul (family), full moon Amavasya and the shadow may be understood as mentioned. days, वर्ष में दो अयन होते हैं- दक्षिणायन और उत्तरायण। दक्षिणायन श्रावण मास से प्रारम्भ होता है और उत्तरायण माघ मास से । दक्षिणायन में छाया बढ़ती है और उत्तरायण में कम होती है । यन्त्र इस प्रकार है पौरुषी- छाया का प्रमाण अंगुल १. २. ३. ४. ५. ६. ७. ८. ९. 5 वर्ष पुरुषशरीर में पैर से जानु (घुटने) तक का और शंकु का प्रमाण २४-२४ अंगुल होता है जिस दिन किसी वस्तु की छाया वस्तु के प्रमाण के अनुसार होती है, वह दिन दक्षिणायन का प्रथम दिन होता है। युग के प्रथम फ्र (सूर्य - वर्ष) में श्रावण कृष्णा १ को शंकु और जानु की छाया अपने ही प्रमाण के अनुसार २४ अंगुल पड़ती है । १२ अंगुल की छाया को एक पाद (पैर) माना गया है। अतः शंकु और जानु की २४ अंगुल की छाया को दो पाद माना गया है। फलितार्थ यह हुआ कि पुरुष अपने दाहिने कान के सम्मुख सूर्यमण्डल को रखकर खड़ा रहे, फिर आषाढ़ी पूर्णिमा को अपने घुटने तक की छाया दो पाद प्रमाण हो, तब एक प्रहर होता है। यों सर्वत्र समझ लेना चाहिए। १०. ११. १२. सप्तम वक्षस्कार फ्र Jain Education International मास आषाढ़ पूर्णिमा श्रावण पूर्णिमा भाद्रपद पूर्णिमा आश्विन पूर्णिमा कार्तिक पूर्णिमा मृगसिर पूर्णिमा पौष पूर्णिमा माघ पूर्णिमा फाल्गुन पूर्णिमा चैत्र पूर्णिमा वैशाख पूर्णिमा ज्येष्ठ पूर्णिमा पाद २ २ २ ३- ३ ३ ४- ३ ३ ३ २ २ (569) ८ ४ ४ ८ ८ ४ ० ८ ४ For Private & Personal Use Only कुल २-० २-४ २-८ ३-४ ३-४ ३-८ ४-० ३-८ ३-४ ३-० 卐 २-८ २-४ फ्र Seventh Chapter 6 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 ! 卐 फ्र फ्र फ फ्र 卐 5 5959595555 5 555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 952 卐 卐 卐 फ्र 卐 फ्र www.jainelibrary.org

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