Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 591
________________ 2 55 5 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 5 5 55 55 595– 卐 卐 दे भ ज तुच्छे पुणे पक्खस्स पंचमी । पुणरवि-गंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स दसमी। पुणरवि-गंदे भद्दे जए तुच्छे पुण्णे पक्खस्स पण्णरसी, एवं ते तिगुणा तिहीओ सव्वेसिं दिवसाणंति । [प्र. ६ ] एगमेगस्स णं भंते! पक्खस्स कइ राईओ पण्णत्ताणो ? [ उ. ] गोयमा ! पण्णरस राईओ पण्णत्ताओ, तं जहा- पडिवाराई, जाव पण्णरसी - राई । [प्र. ७ ] एआसि णं भंते पण्णरसण्हं राईणं कइ णामधेज्जा पण्णत्ता ? [ उ. ] गोयमा ! पण्णरस णामधेज्जा पण्णत्ता, तं जहा [प्र. ८ ] एयासि णं भंते! पण्णरसण्हं राईणं कइ तिही पण्णत्ता ? उत्तमा य सुणक्खत्ता, एलावच्चा जसोहरा । सोमणसा चेव तहा, सिरिसंभूआ य बोद्धव्वा ॥ १ ॥ विजया य वेजयन्ति, जयन्ति अपराजिआ य इच्छा य । समाहारा चेव तहा, तेआ य तहा अईतेआ ॥ २ ॥ देवानंदा णिरई, रयणी णामधिज्जाई । [उ. ] गोयमा ! पण्णरस तिही पण्णत्ता, तं जहा - उग्गवई, भोगवई, जसवई, सव्वसिद्धा, सुहणामा, पुणरवि- उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा; पुणरवि उग्गवई भोगवई जसवई सव्वसिद्धा सुहणामा । एवं तिगुणा एते तिहीओ सव्वेसिं राईणं । [प्र. ९ ] एगमेगस्स णं भंते ! अहोरत्तस्स कइ मुहुत्ता पण्णत्ता ? तं जहा [ उ. ] गोयमा ! तीसं मुहुत्ता पण्णत्ता, (१२) 555 सप्तम वक्षस्कार रुहे सेअ मित्ते, वाउ सुवीए तहेव अभिचंदे । माहिंद - बलव- बंभे, बहुसच्चे चेव ईसाणे ॥१ ॥ तट्ठे अ भाविअप्पा, वेसमणे वारुणे अ आणंदे । विजए अ वीससेणे, पायावच्चे उवसमे अ॥ २ ॥ गंधव्व-अग्गिवेसे, सयवसहे आयवे य अममे अ अणवं भोमे वसहे, सव्बट्ठे रक्खसे चेव ॥३ ॥ १८५. [ प्र. १ ] भगवन् ! प्रत्येक संवत्सर के कितने महीने होते हैं ? फ्र [ उ. ] गौतम ! प्रत्येक संवत्सर के बारह महीने होते हैं। उनके दो प्रकार के नाम हैं, जैसे - लौकिक एवं लोकोत्तर लौकिक नाम इस प्रकार हैं, जैसे- (१) श्रावण, (२) भाद्रपद, यावत् आषाढ़ । लोकोत्तर नाम इस प्रकार हैं जैसे Jain Education International (525) நிதிமிதிததமிமிமிமிமிமிமிதிமிதிததமிமிமிமிததமிதிமிதிததமி*தமிழமிழி For Private & Personal Use Only Seventh Chapter ***************** फ्र फ्र फ्र फ्र फ्र फ्र फ्र फ्र फ्र 4 फ्र फ्र पु फ्र फ्र www.jainelibrary.org

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