Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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9 (24) Atapavaan, (25) Amam, (26) Rinavaan, (27) Bhaum, (28) Vrishabh, 11 (29) Sarvarth, and (30) Rakshas. क करणाधिकार KARNA
१८६. [प्र. १ ] कति णं भंते ! करणा पण्णत्ता ?
[उ. ] गोयमा ! एक्कारस करणा पण्णत्ता, तं जहा-बवं, बालवं, कोलवं, थीविलोअणं, गराइ, वणिज्जं, विट्ठी, सउणी, चउप्पयं, नागं, किंत्थुग्घं।
[प्र. २.] एतेसि णं भंते ! एक्कारसण्हं करणाणं कति करणा चरा, कति करणा थिरा पण्णत्ता ? _[उ. ] गोयमा ! सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता। तं जहा-बवं, बालवं, कोलवं, थीविलोअणं, गरादि, वणिजं, विट्ठी, एते णं सत्त करणा चरा, चत्तारि करणा थिरा पण्णत्ता, तं जहा-सउणी, चउप्पयं, णागं, किंत्थुग्धं।
[प्र. ३ ] एते णं भंते ! चरा थिरा वा कया भवन्ति ?
[उ. ] गोयमा ! सुक्कपक्खस्स पडिवाए राओ बवे करणे भवइ, बितियाए दिवा बालवे करणे भवइ, ॐ राओ कोलवे करणे भवइ, ततिआए दिवा थीविलोअं करणं भवइ, राओ गराइ करणं भवइ, चउत्थीए
दिवा वणिज राओ विट्ठी, पंचमीए दिवा बवं राओ बालवं, छट्ठीए दिवा कोलवं राओ थीविलोअणं,
सत्तमीए दिवा गराइ राओ वणिज्जं, अट्ठमीए दिवा विट्ठी राओ बवं, नवमीए दिवा बालवं राओ कोलवं, म दसमीए दिवा थीविलोअणं राओ गराइं, एक्कारसीए दिवा वणिज्जं राओ विट्ठी, बारसीए दिवा बंब राओ
बालवं, तेरसीए दिवा कोलवं राओ थीविलोअणं, चउद्दसीए दिवा गरादि करणं राओ वणिज्जं, पुण्णिमाए दिवा विट्ठीकरणं राओ बवं करणं भवइ।
बहुलपक्खस्स पडिवाए दिवा बालवं राओ कोलवं, बितिआए दिवा थीविलोअणं राओ गरादि, म ततिआए दिवा वणिज्जं राओ विट्ठी, चउत्थीए दिवा बवं राओ बालवं, पंचमीए दिवा कोलवं राओ
थीविलोअणं, छट्ठीए दिवा गराइं राओ वणिज्जं, सत्तमीए दिवा विट्ठी राओ बवं, अट्ठमीए दिवा बालवं 卐 राओ कोलवं, णवमीए दिवा थीविलोअणं राओ गराइं, दसमीए दिवा वणिज्जं राओ विट्ठी, एक्कारसीए
दिवा बवं राओ बालवं, बारसीए दिवा कोलवं राओ थीविलोअणं, तेरसीए दिवा गराई राओ वणिज्जं, + चउहसीए दिवा विट्ठी राओ सउणई, अमावासाए दिवा चउप्पयं राओ णागं।
सुक्कपक्खस्स पाडिवए दिवा किंत्थुग्धं करणं भवइ।
१८६.[प्र.१] भगवन् ! करण कितने होते हैं? __ [उ.] गौतम ! ग्यारह करण होते हैं, जैसे-(१) बव, (२) बालव, (३) कौलव, (४) स्त्रीविलोचनतैतिल, (५) गरादि-गर, (६) वणिज, (७) विष्टि, (८) शकुनि, (९) चतुष्पद, (१०) नाग, तथा
(११) किंस्तुघ्न। म [प्र. २.] भगवन् ! इन ग्यारह करणों में कितने करण चर तथा कितने स्थिर हैं ?
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सप्तम वक्षस्कार
(629)
Seventh Chapter
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