Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 485
________________ ת ת ת ת ת ת תבש hhhhhh נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ת ו נ נ נ ת # to the ears, provides peace to the mind and fills the environment with y fi loveable sound. It is extremely charming. In the north-west of that seat, in the north and in the north-east, there are 84,000 seats meant for 84,000 co-chiefs of Indra. In the east there are eight seats for eight chief goddesses. In the south-east there fi are 14,000 seats of 12,000 member gods of the inner assembly in the 9 south there are 12,000 seats of member gods of central assembly and in the south-west there are 16,000 seats of gods of outer assembly. In the west there are seats of seven army chiefs. In each of the four directions, fi there are 84,000 seats of 84,000 body guards totaling 3,36,000 seats. The fi entire description is like that of divine vehicle of Suryabh deva. After 1 building all this with fluid process, god Palak informs Shakrendra that the needful has been done. शक्रेन्द्र का उत्सवार्थ प्रयाण DEPARTURE OF SHAKRENDRA FOR CELEBRATION ॥ १५०. [१] तए णं से सक्के (दविंदे, देवराया) हट्ठहिअए दिव्वं जिणेदाभिगमणजुग्गं सव्वालंकारविभूसिअं उत्तरवेउव्विअं रूवं विउव्वइ विउव्वित्ता अट्ठहिं अग्गमहिसीहिं सपरिवाराहिं, # णट्टाणीएणं गन्धव्वाणीएण य सद्धिं तं विमाणं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे २ पुबिल्लेणं तिसोवाणेणं दुरूहइ २ । त्तिा सीहासणंसि पुरत्याभिमुहे सण्णिसण्णेत्ति, एवं चेव सामाणिआवि उत्तरेणं तिसोवाणेणं दुरूहित्ता पत्तेअं । # २ पुषण्णत्थेसु भद्दासणेसु णिसीअंति। अवसेसा य देवा देवीओ अ दाहिणिल्लेणं तिसोवाणेणं दुरूहित्ता । म तहेव णिसीअंति। तए णं तस्स सक्कस्स तंसि दुरूढस्स इमे अट्ठमंगलगा पुरओ अहाणुपुब्बीए संपढिआ, तयणंतरं च णं पुण्णकलसभिंगारं दिव्वा य छत्तपडागा सचामरा य दंसणरइअ-आलोअ-दरिसणिज्जा बाउ अविजयवेजयन्ती अ समूसिआ गगणतलमणुलिहंती पुरओ अहाणुपुब्बीए संपत्थिआ। तयणन्तरं छत्तभिंगारं, तयणंतर च णं वइरामय-वट्ट-लट्ठ-संठिअ-सुसिलिट्ठ-परिघट्ठ-मट्ठसुपइट्ठिए विसिट्टे, अणेगवरपंचवण्णकुडभी-सहस्सपरिमण्डिआभिरामे, वाउडुअ-विजयवेजयन्तीपडागा-छत्ताइच्छत्तकलिए, तुंगे, गयणतलमणुलिहंतसिहरे, जोअणसहस्समूसिए, महइमहालए महिंदज्झए म पुरओ अहाणुपुब्बीए संपत्थिएत्ति, तयणन्तरं च णं सरूवनेवत्थ-परिअच्छिअसुसज्जा, । सव्वालंकारविभूसिआ पंच अणिआ पंच अणिआहिवइणो (अण्णे देवा य) संपट्ठिआ। म तयणन्तरं च णं बहवे आभिओगिआ देवा य देवीओ अ सएहिं सएहिं रूवेहिं (सयेहिं सयेहिं विहवेहिं) #णिओगेहिं सक्कं देविंदं देवरायं पुरओ अ मग्गओ अ अहापुबीए। तयणन्तरं च णं बहवे सोहम्मकप्पवासी देवा य देवीओ अ सब्बिड्डीए जाव दुरूढा समाणा मग्गओ अ सपंडिआ। - तए णं से सक्के तेणं पंचाणिअपरिक्खित्तेणं जाव महिंदज्झएणं पुरओ पकडिजमाणेणं, चउरासीए נ ת נ ת ת נ ת נ ת נ ת ת ת ת ת ת ת ת ת נ ת ת נ נ ת נ ת נ ת ת ת ת पंचम वक्षस्कार (421) Fifth Chapter ת 155) ))))555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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