Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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8555555555555555555555555555555555555 [ [उ. ] गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई दोण्णि अ एगावण्णे जोअणसए सेआलीसं च सहिभागेश
जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स सीआलीसाए जोअणसहस्सेहिं 5 # एगूणासीए जोअणसए सत्तावण्णाए अ सट्ठिभाएहिं जोअणस्स सद्विभागं च एगसद्विधा छेत्ता एगूणवीसाए म चुण्णिआभागेहिं सूरिए चक्षुप्फासं हव्वमागच्छइ। से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि * अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
[प्र. ३ ] जया णं भंते ! सूरिए अभंतरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं । मुहुत्तेणं केवइअं खेत्तं गच्छइ ?
[उ. ] गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साइं दोण्णि अ बावण्णे जोअणसए पंच य सद्विभाए जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स सीआलीसाए जोअणसहस्सेहिं छण्णउइए जोअणेहिं
तेत्तीसाए सट्ठिभागेहिं जोअणस्स सट्ठिभागं च एगसद्विधा छेत्ता दोहिं चुण्णिआभागेहिं सूरिए चक्खुप्फास है । हबमागच्छति।
एवं खलु एतेणं उवाएणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ मंडलाओ तयाणंतरं मंडलं संकममाणे + संकमाणे अट्ठारस २ सट्ठिभागे जोअणस्स एगमेगे मंडले मुहुत्तगई अभिवुड्डेमाणे अभिवुढेमाणे चुलसीइं २ सीआई जोअणाई पुरिसच्छायं णिबुडेमाणे २ सबबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
[प्र. ४ ] जया णं भंते ! सूरिए सम्बबाहिरमंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं. ॐ केवइअं खेत्तं गच्छइ ?
__ [उ. ] गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई तिण्णि अ पंचुत्तरे जोअणसए पण्णरस य सविभाए 3 जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स एगतीसाए जोअणसहस्सेहिं अट्ठहि अॐ
एगत्तीसेहिं जोअणसएहि तीसाए अ सद्विभाएहिं जोअणस्स सूरिए चक्षुप्फासं हव्वमागच्छइ त्ति एस णं, * पढमे छम्मासे। एस णं पढमस्स छम्मासस्स पज्जवसाणे। से सूरिए दोच्चे छम्मासे अयमाणे पढमंसि
__ अहोरत्तंसि बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ। ॐ [प्र. ५ ] जया णं भंते ! सूरिए बाहिराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहत्तेणं
केवइअं खेत्तं गच्छइ ? 卐 [उ. ] गोयमा ! पंच पंच जोअणसहस्साई तिण्णि अ चउरुत्तरे जोअणसए सत्तावण्णं च सद्विभाए 5 है जोअणस्स एगमेगेणं मुहुत्तेणं गच्छइ। तया णं इहगयस्स मणुसस्स एगत्तीसाए जोअणसहस्सेहिं णवहि अ ॐ सोलसुत्तरेहिं जोअणसएहिं इगुणालीसाए अ सद्विभाएहिं जोअणस्स सद्विभागं च एगसद्विधा छेत्ता सहिए
चुण्णिआभागेहिं सूरिए चक्खुप्फासं हव्यमागच्छइ ति। से पविसमाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि बाहिरतच्वं ॐ मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ।
[प्र. ६ ] जया णं भंते ! सूरिए बाहिरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं एगमेगेणं मुहुत्तेणं केवइअं खेत्तं गच्छइ ?
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सप्तम वक्षस्कार
(479)
Seventh Chapter
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