Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 564
________________ ) )) ) नागा )) प्रदक्षिणावर्त मण्डल-सब दिशाओं तथा विदिशाओं में परिभ्रमण करते हुए चन्द्र आदि के जिस मण्डलपरिभ्रमण रूप आवर्तन में मेरु दक्षिण में रहता है, वह प्रदक्षिणावर्त मण्डल कहा जाता है। Elaboration—Manushottar mountain-The human beings can take birth, stay and later die only upto Manushottar mountain. They cannot y do so beyond this mountain. So this mountain is called Manushottar mountain. Without special expertise and special powers human beings y cannot cross it. Due to this fact also, it is called Manushottar mountain. 9 Pradakshinavart round (Mandal)-During the movement of moon and others in circles in various directions and sub-directions, the round in which Meru is in the south, is called pradakshinavart round. תו ) ))) )) ) ))) )) 卐55555555555555))))))) ॥ इन्द्रच्यवन : अन्तरिम व्यवस्था DEATH OF INDRA-INTERIM STATE १७४. [प्र. ] तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए भवइ, से कहमियाणिं पकरेंति ? [उ. ] गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिआ देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव तत्थ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ। [प्र. ] इंदट्ठाणे णं भंते ! केवइअं कालं उववाएणं विरहिए ? __[उ. ] गोयमा ! जहण्णेणं एगं समयं उक्कोसेणं छम्मासे उववाएणं विरहिए। [प्र. ] बहिआ णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिम-(सूरिअ-गहगण-णक्खत्त-) तारारूवा तं चेव अव्वं णाणत्तं विमाणोववण्णगा णो चारोववण्णगा, चारठिईआ णो गइरइआ णा गइसमावण्णगा। 3 [उ.] पक्किट्ठग-संटाण-संठिएहिं जोअण-सय-साहस्सिएहिं तावखित्तेहिं सय-साहस्सिआहिं वेउविआहिं बाहिराहिं परिसाहिं महया हयणट्ट भुंजमाणा सुहलेसा मंदलेसा मंदातवलेसा चित्तंतरलेसा ॐ अण्णोण्णसमोगाढाहिं लेसाहिं कूडाविव ठाणठिआ सवओ समन्ता ते पएसे ओभासंति उज्जोवेति के पभासेंतित्ति। [प्र. ] तेसि णं भंते ! देवाणं जाहे इंदे चुए से कहमियाणिं पकरेन्ति ? [उ. ] गोयमा ! ताहे चत्तारि पंच वा सामाणिआ देवा तं ठाणं उवसंपज्जित्ता णं विहरंति जाव तत्थ ऊ अण्णे इंदे उववण्णे भवइ। [प्र. ] इंदट्ठाणे णं भंते ! केवइअं कालं उववाएणं विरहिए ? [उ. ] गोयमा ! जहण्णेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं छम्मासा इति। १७४. [प्र. ] भगवन् ! उन ज्योतिष्क देवों का इन्द्र जब च्युत (मृत) हो जाता है, तब फ़ इन्द्रविरहकाल में देव किस प्रकार काम चलाते हैं ? [उ. ] गौतम ! जब तक दूसरा इन्द्र उत्पन्न नहीं होता, तब तक चार या पाँच सामानिक देव + मिलकर इन्द्र के स्थानापन्न के रूप में कार्य-संचालन करते हैं। जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (498) Jambudveep Prajnapti Sutra 355555555555555;)))))) ))))58 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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