Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 496
________________ ததததததததததததி*******ழ*தமிழ்***தமிதமி**தமிழி फफफफफफफफफ gods. The only difference is that they have 4,000 co-chiefs, four chief 5 goddesses, 16,000 body-guards celestial beings, the Viman is 1,000 yojans and flag-staff of 25 yojans. The divine bell of the south is ५ Manjuswara and of the north is Manju-ghosha, Abhiyogik celestial beings build their Vimans with fluid process. The divine bells of master Y stellar gods moons is Suswara and of suns is Suswar Nirghosha. They y came to Mandar mountain up to that they worship the Tirthankar. अभिषेक- द्रव्य : उपस्थापन MATERIAL FOR CORONATION Y 4 5 y Y १५३. तए णं से अच्चुए देविन्दे देवराया महं देवाहिवे आभिओगे देवे सद्दावेइ २ त्ता एवं ५ वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! महत्थं, महग्घं, महारिहं, विउलं तित्थयराभिसेअं उवट्ठवेह | Y तणं आभिओगा देवा हट्ठतुट्ठ जाव पडिसुणित्ता उत्तरपुरत्थिमं दिसीभागं अवक्कमन्ति २ ता वेव्वसमुग्धाणं ( समोहणंति) समोहणित्ता अट्ठसहस्सं सोवण्णिअकलसाणं एवं रुप्पमयाणं, ५ मणिमयाणं, सुवण्णरुप्पमयाणं, सुवण्णमणिमयाणं, रुप्पमणिमयाणं, सुवण्णरुप्पमणियाणं, अट्ठसहस्सं y भोमिज्जाणं, अट्ठसहस्सं चन्दणकलसाणं, एवं भिंगाराणं, आयंसाणं, थालाणं, पाईणं, सुपइट्ठगाणं, ५ चित्ताणं रयणकरंडगाणं, वायकरंडगाणं, पुष्फचंगेरीणं, एवं जहा सूरिआभस्स सव्वचंगेरीओ सव्वपडलगाई 5 विसेसिअतराई भाणिअव्वाई, सीहासणछत्रचामरतेल्लसमुग्ग सरिसवसमुग्गा, तालिअंटा अट्ठसहस्सं १५३. देवेन्द्र, देवराज, महान् देवाधिप अच्युत अपने आभियोगिक देवों को बुलाता है, उनसे कहता है - देवानुप्रियो ! शीघ्र ही महार्थ - जिसमें मणि, स्वर्ण, रत्न आदि का उपयोग हो, महार्घ - जिसमें भक्ति - स्तवनादि का एवं बहुमूल्य सामग्री का प्रयोग हो, महार्ह - विराट् उत्सवमय विपुल - विशाल तीर्थंकराभिषेक के अनुकूल सामग्री आदि की व्यवस्था करो । Y छुगाणं विव्वंति, विउब्बित्ता साहाविए विउब्बिए अ कलसे जाव कडुच्छुए अ गिण्हित्ता जेणेव खीरोदए समुद्दे, तेणेव आगम्म खीरोदगं गिण्हन्ति २ गिण्हि जाई तत्थ उप्पलाई पउमाई जाव सहस्सपत्ताई ताई हिन्ति, एवं पुक्खरोदाओ, (समय - खित्ते) भरहेरवयाणं मागहाइतित्थाणं उदगं मट्टिअं च गिण्हन्ति २-५ त्ता एवं गंगाईणं महाणईणं (उदगं मट्टिअं च गिण्हन्ति), चुल्लहिमवन्ताओ सव्वतुअरे, सब्बपुष्फे, y सव्वगन्धे, सव्वमल्ले, सव्वोसहीओ सिद्धत्थए य गिण्हन्ति २ त्ता पउमद्दहाओ दहोअंग उप्पलादीणि अ । एवं ५ सव्वकुलपव्वएसु, वट्टवेअद्धेसु सव्यमहद्दहेसु, सव्ववासेसु, सव्वचक्कवट्टिविजएसु, वक्खारपव्वसु, ५ अंतरणईसु विभासिज्जा । (देवकुरुसु) उत्तरकुरुसु जाव सुदंसणभद्दसालवणे सव्वतुअरे सिद्धत्थए य गिण्हन्ति, एवं णन्दणवणाओ सव्वतुअरे जाव सिद्धत्थए य सरसं च गोसीसचन्दणं दिव्वं च सुमणदामं हन्ति, एवं सोमणस - पंडगवणाओ अ सव्वतुअरे सुमणदामं दद्दरमलयसुगन्धे य गिण्हन्ति २ त्ता एगओ ५ मिति २त्ता जेणेव सामी तेणेव उवागच्छन्ति २ त्ता महत्थं तित्थयराभिसेअं उवद्ववेंतित्ति । यह सुनकर वे आभियोगिक देव हर्षित एवं परितुष्ट होते हैं। वे उत्तर-पूर्व दिशाभाग में ईशान कोण में जाते हैं। वैक्रिय समुद्घात द्वारा अपने शरीर से आत्म- प्रदेश बाहर निकालते हैं। आत्म- प्रदेश बाहर Jambudveep Prajnapti Sutra Y Y जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र (432) Jain Education International Y y For Private & Personal Use Only 卐 फ्र நித**ததததததததி**********************தமிழில் 卐 www.jainelibrary.org

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