Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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4 words that help in getting rich, words that remove all ills, words that
touch the very core of the heart and which are easily intelligible, words that remove the feelings of anger sorrow and the like and create feeling of happiness, words that provide solace to the ears and to the mind, words that are free from fault of repetition, words that have hundreds of interpretations, words that help in successfully completing hundreds of projects. They were singing
“You are in ecstatic mood with the wealth of renunciation. You are Jagannand-you are going to provide ecstatic pleasure to the world, you are welfare seeker for the world. May you always be conqueror. May you always be successful in your mission. In view of your religious conduct, may you always remain courageous and fearless at the time of listurbances. May your courageously face any disturbance caused by untoward dangerous situation, ferocious beasts like lion, or any dreadful situation causing extremely fearful state. May your religious practice continue undisturbed."
३७. [३] तए णं उसभे अरहा कोसलिए णयणमालासहस्सेहिं पिच्छिज्जमाणे २ एवं (हिययमालासहस्सेहिं अभिणंदिज्जमाणे अभिणंदिज्जमाणे, उन्नइज्जमाणे मणोरहमालासहस्सेहिं के
विच्छिप्पमाणे विच्छिप्पमाणे, वयणमालासहस्सेहिं अभिथुबमाणे अभिथुबमाणे, कंति-सोहग्गगुणेहिं . ॐ पत्थिज्जमाणे पत्थिज्जमाणे, बहणं नरनारिसहस्साणं दाहिणहत्थेणं अंजलिमालासहस्साई पडिच्छमाणे,
पडिच्छमाणे, मंजुमंजुणा घोसेणं पडिबुज्झमाणे पडिबुज्झमाणे, भवणपंतिसहस्साइं समइच्छमाणे ॐ समइच्छमाणे) आउलबोलबहुलं णभं करते विणीआए रायहाणीए मझमझेणं णिग्गच्छइ।
___आसिअ-संमज्जि-असित्त-सुइक-पुप्फोवयारकलिअं सिद्धत्थवणविउलरायमगं करेमाणे हय-गयम रह-पहकरेण पाइक्कचडकरेण य मंदं २ उद्भूयरेणुयं करेमाणे २ जेणेव सिद्धत्थवणे उज्जाणे, जेणेव : असोगवरपायवे, तेणेव उवागच्छइ। उवागच्छित्ता असोगवरपायवस्स अहे सीअं ठावेइ, ठावित्ता सीआओ * पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता सयमेवाभरणालंकारं ओमुअइ, ओमुइत्ता सयमेव चाहिं अट्टाहिं लोअं करइ,
करित्ता छठेणं भत्तेणं अपाणएणं आसाढाहिं णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं उग्गाणं, भोगाणं, राइनाणं, खत्तिआणं चाहिं सहस्सेहिं सद्धिं एगं देवदूसमादाय मुडे भवित्ता आगाराओ अणगारियं पव्वइए।
३७.[३] उन पौरजनों के शब्दों से आकाश गूंज रहा था। इस स्थिति में भगवान ऋषभ राजधानी के बीचोंबीच होते हुए निकले। सहस्रों नर-नारी अपने नेत्रों से बार-बार उनके दर्शन कर रहे थे, 卐 (सहस्रों नर-नारी अपने हृदय से उनका बार-बार अभिनन्दन कर रहे थे, सहस्रों नर-नारी अपने शुभ
मनोरथ-हम इनकी सन्निधि में रह पायें इत्यादि उत्सुकतापूर्ण मनोकामनाएँ लिए हुए थे। सहस्रों नरॐ नारी अपनी वाणी द्वारा उनका बार-बार अभिस्तवन-गुण-संकीर्तन कर रहे थे। सहस्रों नर-नारी 卐 उनकी कांति-देह-दीप्ति, उत्तम सौभाग्य आदि गुणों के कारण-ये स्वामी हमें सदा प्राप्त रहें, बार-बार | जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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