Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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5555555555555555555555555555555555 ॐ परिनिर्वाण SALVATION (PARI-NIRAVAN)
४०. उसभे णं अरहा कोसलिए वज-रिसह-नाराय-संघयणे, समचउरंस-संठाण-संठिए, # पंचधणुसयाइं उद्धं उच्चत्तेणं होता।
___उसभे णं अरहा वीसं पुबसयसहस्साई कुमारवासमझे वसित्ता, तेवढि पुब्बसयसहस्साई + महारज्जवासमझे वसित्ता, तेसीइं पुबसयसहस्साई अगारवासमझे वसित्ता, मुंडे भवित्ता अगाराओ
अणगारियं पबइए। उसभे णं अरहा एगं वाससहस्सं छउमत्थपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुबसयसहस्सं ॐ वाससहस्सूणं केवलिपरिआयं पाउणित्ता, एगं पुबसहस्सं बहुपडिपुण्णं सामण्णपरिआयं पाउणित्ता, ॐ
चउरासीइं पुव्वसयसहस्साइं सवाउअं पालइत्ता जे से हेमंताणं तच्चे मासे पंचमे पक्खे माहबहुले, तस्स णं माहबहुलस्स तेरसीपक्खेणं दसहिं अणगारसहस्सेहिं सद्धिं संपरिवुडे अट्ठावय-सेलसिहरंसि चोइसमेणं भत्तेणं अपाणएणं संपलिअंकणिसण्णे पुवण्हकालसमयंसि अभीइणा णक्खत्तेणं जोगमुवागएणं सुसमदूसमाए समाए एगूणणवउईहिं पक्खेहिं सेसेहिं कालगए वीइक्कते, समुज्जाए छिण्ण-जाइ-जरामरण-बंधणे, सिद्धे, बुद्धे, मुत्ते, अंतगडे, परिणिबुडे सब्बदुक्खप्पहीणे।
४०. कौशलिक भगवान ऋषभ वज्र-ऋषभ-नाराच संहननयुक्त, सम-चौरस-संस्थान-संस्थित है तथा पाँच सौ धनुष दैहिक ऊँचाई युक्त थे। ॐ वे बीस लाख पूर्व तक कुमारावस्था में तथा तिरेसठ लाख पूर्व महाराजावस्था में रहे। यों तिरासी 5 लाख पूर्व गृहवास में रहे। तत्पश्चात् मुण्डित होकर अगार-वास से अनगार-धर्म में प्रव्रजित हुए। वे
एक हजार वर्ष छद्मस्थ-पर्याय में रहे। एक हजार वर्ष कम एक लाख पूर्व वे केवलि-पर्याय में रहे। इस ॐ प्रकार परिपूर्ण एक लाख पूर्व तक श्रामण्य-पर्याय का पालन कर-चौरासी लाख पूर्व का परिपूर्ण ॐ + आयुष्य भोगकर हेमन्त के तीसरे मास में, पाँचवें पक्ष में-माघ मास कृष्ण पक्ष में तेरस के दिन दस 5 हजार साधुओं से संपरिवृत्त अष्टापद पर्वत के शिखर पर छह दिनों के निर्जल उपवास में पूर्वाह्न-काल में 卐 पर्यंकासन में अवस्थित, चन्द्रयोगयुक्त अभिजित नक्षत्र में, जब सुषम-दुषमा आरक के नवासी पक्ष-तीन 9
वर्ष साढ़े आठ मास बाकी थे, वे जन्म, जरा एवं मृत्यु के बन्धन छिन्नकर सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, अंतकृत् परिनिर्वृत्त सर्व-दुःखरहित हुए। ____40. Kaushalik Bhagavan Rishabh had extremely strong bone- 5 structure (Vajra Rishabh Narach Sanhanan). His figure was properly proportioned and his height was 500 dhanush.
He remained as non-ruler, in a state of childlike freedom (kumar state) for twenty lakh poorva, and as a king for 63 lakh poorva. Thus, he spent a period of 83 lakh poorva as householder. Thereafter, he shaved his head, discarded householder state and adopted monkhood. He spent 1,000 years of monkhood in practices as a lay monk and for a period of one lakh poorva reduced by one thousand years in the state of omniscience. Thus his total period of monkhood was one lakh poorva.
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| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
(94)
Jambudveep Prajnapti Sutra
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