Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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[उ.] गोयमा ! चुल्लहिमवन्ते णामं देवे महिड्डिए जाव परिवसइ ।
[प्र. ] कहि णं भन्ते ! चुल्लहिमवन्तगिरिकुमारस्स देवस्स चुल्लहिमवन्ता णामं रायहाणी पण्णत्ता ? [उ. ] गोयमा ! चुल्लहिमवन्तकूडस्स दक्खिणेणं तिरियमसंखेज्जे दीवसमुद्दे बीइवइत्ता अण्णं जम्बुद्दीवं २ दक्खिणेणं बारस जोअण- सहस्साइं ओगाहित्ता इत्थ णं चुल्लहिमवन्तस्स गिरिकुमारस्स देवस्स चुल्लहिमवन्ता णामं रायहाणी पण्णत्ता, बारस जोअणसहस्साइं आयामविक्खंभेणं, एवं विजयरायहाणीसरिसा भाणिअव्वा । एवं अवसेसाणवि कूडाणं वत्तव्वया णेअव्वा, आयाम - विक्खंभपरिक्खेव - पासायदेवयाओ सीहासणपरिवारो अट्ठो अ देवाण य देवीण य रायहाणीओ णेअव्वाओ, चउसु देवा १. चुल्लहिमवन्त २. भरह ३. हेमवय ४. वेसमणकूडेसु, सेसेसु देवयाओ।
[प्र. ] से केणट्टेणं भन्ते ! एवं बुच्चइ चुल्लहिमवन्ते वासहरपव्यए ?
[ उ. ] गोयमा ! महाहिमवंत - वासहर - पव्वयं पणिहाय आयामुच्चत्तुव्वेह - विक्खंभपरिक्खेवं पडुच्च ईसिं खुडतराए चेव हस्सतराए चेव णीअतराए चेव, चुल्लहिमवंते अ इत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवसइ, से एएणट्टेणं गोयमा ! एवं बुच्चइ - चुल्लहिमवंते वासहरपव्वए २, अदुत्तरं च गोमा ! चुल्लहिमवंतस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते जं ण कयाइ णासि० ।
९२. [ प्र. २ ] भगवन् ! वह चुल्लहिमवान्कूट क्यों कहलाता है ?
[ उ. ] गौतम ! उस पर परम ऋद्धिशाली चुल्लहिमवान् नामक देव निवास करता है, इसलिए वह चुल्लहिमवानुकूट कहा जाता है।
[प्र.] भगवन् ! चुल्लहिमवान् गिरिकुमार देव की चुल्लहिमवन्ता नामक राजधानी कहाँ है ?
[ उ. ] गौतम ! चुल्लहिमवान्कूट के दक्षिण में तिर्यक्लोक में असंख्य द्वीपों, समुद्रों को पार कर अन्य जम्बूद्वीप में दक्षिण में बारह हजार योजन पार करने पर चुल्लहिमवान् गिरिकुमार देव की चुल्लहिमवन्ता नामक राजधानी आती है। उसका आयाम - विस्तार बारह हजार योजन है। उसका विस्तृत वर्णन विजय - राजधानी के सदृश जानना चाहिए। बाकी के कूटों का आयाम - विस्तार, परिधि, प्रासाद, देव, सिंहासन, तत्सम्बद्ध सामग्री, देवों एवं देवियों की राजधानियों आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। इन कूटों में से- (१) चुल्लहिमवान्, (२) भरत, (३) हैमवत, तथा (४) वैश्रवण, इन चार कूटों देव निवास करते हैं और उनके अतिरिक्त शेष कूटों में देवियाँ निवास करती हैं।
[प्र. ] भगवन् ! वह पर्वत चुल्लहिमवान् वर्षधर किस कारण कहा जाता है ?
[ उ. ] गौतम ! महाहिमवान् वर्षधर पर्वत की अपेक्षा चुल्ल लघु हिमवान् वर्षधर पर्वत लम्बाई, ऊँचाई, जमीन में गहराई, चौड़ाई तथा परिधि या घेरा- इनमें छोटा, लघु तथा न्यूनतर है, कम है। इसके अतिरिक्त वहाँ परम ऋद्धिशाली, एक पल्योपम आयुष्य वाला चुल्लहिमवान् नामक देव निवास करता है। गौतम ! इस कारण वह चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत कहा जाता है । है गौतम ! चुल्लहिमवान् वर्षधर पर्वत - यह नाम शाश्वत कहा गया है, जो न कभी नष्ट हुआ, न कभी नष्ट होगा।
चतुर्थ वक्षस्कार
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Fourth Chapter
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