Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

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Page 482
________________ நிதிமிதிததமி**************************தமிதிதி 2 55 5 5 5 5 5 5 5 5 55555 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 5 5 559555555559555555952 卐 फ्र फ्र अग्रमहिषी परिवार - प्रत्येक अग्रमहिषी - प्रमुख इन्द्राणी के परिवार में पाँच हजार देवियाँ होती हैं। यों इन्द्र के अन्तःपुर में चालीस हजार देवियों का परिवार होता है । सेनाएँ हाथी, घोड़े, बैल, रथ तथा पैदल-ये पाँच सेनाएँ होती हैं तथा दो सेनाएँ - गन्धर्वानीक - गाने-बजाने वालों का दल और नाट्यानीक - नाटक करने वालों का दल आमोद-प्रमोदपूर्वक रणोत्साह बढ़ाने हेतु होती हैं। फ्र Elaboration-The details regarding the family of Shakrendra and the adjectives mentioned in this Sutra is as under Shakrendra, the ruling god of Saudharma heaven has three assemblies--(1) the inner assembly (Shamita ), ( 2 ) the central assembly (Chanda), and ( 3 ) the outer assembly (Jaata). The inner assembly consists of 12,000 gods and 700 goddesses the central assembly is of 14,000 gods and 600 goddesses, while the outer assembly has 16,000 gods and 500 goddesses. Family of chief goddesses (Agra-mahishi), every chief-goddess has 5,000 goddesses in her family. Thus in the harem of Indra there are 40,000 goddesses. The armies are five namely of elephants, horses, bullocks, chariots and pedestrians. Two army units are of musicians and dancers, whose duty is to inspire the warriors for fighting courageously. पालकदेव द्वारा विमानविकुर्वणा PREPARATION OF DIVINE VEHICLE BY PALAK तस्स णं जाणविमाणस्स अंतो बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव दीवि अचम्मेइ वा अणेगसंकु - कीलक- सहस्सवितते आवड - पच्चावड - सेढि - पसेढि - सुत्थि अ - सोवत्थिअ वद्धमाणपूसमाणव-मच्छंडग - मगरंडग - जार-मार - फुल्लावली - पउमपत्त - सागर - तरंग - वसंतलयपउमलय-भत्तिचित्तेहिं सच्छाएहिं सप्पभेहिं समरीइएहिं सउज्जोएहिं णाणाविहपंचवण्णेहिं मणीहिं उसोभए २, तेसि णं मणीणं वण्णे गन्धे फासे अ भाणिअव्वे जहा रायप्पसेणइज्जे । तस्स णं भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए पिच्छाघरमण्डवे अणेगखम्भसय-सण्णिविट्टे, वण्णओ जाव पडरूवे, तस्स उल्लोए पउमलयभत्तिचित्ते जाव सव्वतवणिज्जमए जाव पडिरूवे । तस्स णं मण्डवस्स बहुसमरमंणिज्जस्त भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभागंसि महं एग मणिपेढिआ, अट्ठ फ जोअणाई आयामविक्खम्भेणं, चत्तारि जोअणाई बाहल्लेणं, सव्वमणिमयी वण्णओ । तीए उवरिं महं एगे सीहासणे वण्णओ, तस्स मज्झदेसभाए एगे वइरामए अंकुसे, एत्थ णं महं एगे कुम्भिक्के मुत्तादामे, सेणं १४९. तए णं से पालयदेवे सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ट जाव वेउव्विअ- 5 समुग्धाणं समोहणित्ता तहेव करेइ इति, तस्स णं दिव्वस्स जाणविमाणस्स तिदिसिं तिसोवाणपडिरूवगा, वणओ, तेसि णं पडिवगाणं पुरओ पत्तेअं २ तोरणा, वण्णओ जाव पडिरूवा । अन्नेहिं तदधुच्चत्तप्पमाणमित्तेहिं चउहिं अद्धकुम्भिक्केहिं मुत्तादामेहिं सव्यओ समन्ता संपरिक्खित्ते, ते णं जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र फ्र (418) Jain Education International फफफफफफ For Private & Personal Use Only 卐 卐 फ्र 455595 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 59 卐 卐 卐 Jambudveep Prajnapti Sutra फ्र 卐 www.jainelibrary.org

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