Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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ॐ चक्ररत्न को प्रणाम किया, प्रणाम कर आयुधशाला से निकला, निकलकर जहाँ बाहरी उपस्थापनशाला में 卐 राजा भरत था, आया। आकर उसने हाथ जोड़ते हुए राजा को 'आपकी जय हो, आपकी विजय हो'-इन
शब्दों द्वारा वर्धापित किया। वर्धापित कर वह बोला- "देवानुप्रिय की-(आपकी) आयुधशाला में दिव्य चक्ररत्न उत्पन्न हुआ है, आपकी प्रियतार्थ यह प्रिय संवाद निवेदित करता हूँ। आपका प्रिय-शुभ हो। ___ तब राजा भरत आयुधशाला के अधिकारी से यह सुनकर अत्यन्त हर्षित हुआ, अत्यन्त सौम्य ॐ मनोभाव तथा हर्षातिरेक से उसका हृदय खिल उठा। उसके श्रेष्ठ कमल जैसे नेत्र एवं मुख विकसित हो ॥ + गये। उसके हाथों में पहने हुए उत्तम कटक, त्रुटित, केयूर, मस्तक पर धारण किया हुआ मुकुट, कानों
के कुंडल हिल उठे, हर्षातिरेकवश हिलते हुए हार से उसका वक्षःस्थल अत्यन्त शोभित प्रतीत होने लगा। 卐 उसके गले में लटकती हुई लम्बी पुष्पमालाएँ चंचल हो उठीं। राजा उत्कण्ठित होता हुआ बड़ी शीघ्रता से
सिंहासन से उठा, उठकर पादपीठ पर पैर रखकर नीचे उतरा, नीचे उतरकर पादुकाएँ उतारी, एक
वस्त्र का उत्तरासंग किया, हाथों को अंजलिबद्ध किये हुए चक्ररत्न के सम्मुख सात-आठ कदम चला, म चलकर बायें घुटने को ऊँचा किया, ऊँचा कर दायें घुटने को भूमि पर टिकाया, हाथ जोड़ते हुए, उन्हें 5
मस्तक के चारों ओर घुमाते हुए अंजलि बाँध चक्ररत्न को प्रणाम किया। वैसा कर आयुधशाला के
अधिपति को अपने मुकुट के अतिरिक्त सारे आभूषण दान में दे दिये। उसे जीविकोपयोगी विपुल । प्रीतिदान दिया-[जीवन पर्यन्त उसके लिए भरण-पोषणानुरूप आजीविका की व्यवस्था बाँधी] उसका
सत्कार-सम्मान किया। उसे सत्कृत, सम्मानित कर वहाँ से विदा किया। फिर वह पूर्वाभिमुख हो ॐ सिंहासन पर बैठा।
53. One day the divine Chakra Ratna appeared in the armoury of king Bharat.
The officer-in-charge of ordnance store of king Bharat saw the appearance of divine Chakra Ratna there in the store. He was pleased to see it. He experienced ecstatic pleasure. He got up with an immense mental satisfaction and great happiness. He came near the divine Chakra Ratna, went round it three times (with clasped hands and rotating them around his head in that state), he bowed to it. He then came out of the ordnance store and arrived at the main hall where king Bharat was present. He then clasped his hands in respect, and exclaimed, 'May you be victorious.' Honouring him in this manner, he
said, 'Beloved of gods ! In (your) ordnance store, a divine Chakra Ratna 5 has appeared. I present to you this loveable message for your information. May it be beneficial and meritorious for you.'
King Bharat became very happy to hear it from the officer-in-charge 45 of ordnance store. His joy knew no bounds. His lotus like eyes
brightened, the ornaments that he was wearing, namely high class katak 卐 in his hands, trutit, keyur, ear-rings and the crown on his head started
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तृतीय वक्षस्कार
(131)
Third Chapter
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