Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 263
________________ RSSWER ७९. (चुल्ल हिमवान् पर्वत पर विजय प्राप्त कर लेने के पश्चात्) राजा भरत ने अपने रथ के घोड़ों के को नियन्त्रित किया-रथ को वापस मोड़ा। वापस मोड़कर जहाँ ऋषभकूट पर्वत था, वहाँ आया। वहाँ आकर रथ के अग्र भाग (शिखर) से तीन बार ऋषभकूट पर्वत का स्पर्श किया। तीन बार स्पर्श कर फिर उसने घोडों को खड़ा किया, रथ को ठहराया। रथ को ठहराकर काकणी रत्न का स्पर्श किया। वह ॥ (काकणी) रत्न चार दिशाओं तथा ऊपर, नीचे छह तलयुक्त था। ऊपर, नीचे एवं तिरछे प्रत्येक ओर वह चार-चार कोटियों से युक्त था, यों बारह कोटियुक्त था। उसकी आठ कर्णिकाएँ थीं। स्वर्णकार के । एरण के आकार वाला था, उसका अष्ट स्वर्णमान परिमाण था। भरत राजा ने काकणी रत्न का स्पर्श कर ऋषभकूट पर्वत के पूर्वीय कटक में-मध्य भाग में इस प्रकार नामांकन किया इस अवसर्पिणी काल के तीसरे आरक के पश्चिम भाग में-तीसरे भाग में मैं भरत नामक चक्रवर्ती हुआ हूँ॥१॥ मैं भरत क्षेत्र का प्रथम राजा-प्रधान राजा हूँ, भरत क्षेत्र का अधिपति हूँ, नरवरेन्द्र हूँ। मेरा कोई प्रतिशत्रु-प्रतिपक्षी नहीं है। मैंने भरत क्षेत्र को जीत लिया है॥२॥ इस प्रकार राजा भरत ने अपना नाम एवं परिचय लिखा। नाम लिखकर अपने रथ को वापस मोड़ा। वापस मोड़कर, जहाँ अपना सैन्य शिविर था, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। यावत् पूर्व की है ओर मुँह कर सिंहासन पर बैठा। फिर आदेश दिया-क्षुद्र हिमवान्-गिरिकुमार देव को विजय करने के । उपलक्ष्य में अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित किया जाये।चुल्ल हिमवान्-गिरिकुमार देव को विजय करने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्ट दिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से 5 बाहर निकला। बाहर निकलकर उसने दक्षिण दिशा में वैताठ्य पर्वत की ओर प्रयाण किया। ____79. After conquering smaller Himavan mountain, king Bharat फ़ controlled his horse and turned back the chariot. He then came to Rishabhakoot mountain. He then touched three time Rishabhakoot mountain with the top of his chariot. Then he stopped his horse and halted his chariot. Thereafter, he touched the Kakani Ratna. That 5 Kakani Ratna had six surfaces--four sides, the top and the bottom. It had four Kotis (corners) on each side-the upper, the bottom and the oblique side. Thus it had in all twelve corners. It had eight petals (Karnikas). It had the shape of the iron bar of (ayron) the goldsmith. Its measure was eight Swarnaman (a unit of measure of gold). After touching Kakani Ratna, king Bharat inscribed his name on the eastern central part of Rishabhakoot mountain in this manner Bharat Chakravarti happened to be at the later part of the third aeon of Avasarpini period. I am the first king of Bharat area. I am the ruler of Bharat Kshetra. I am the king emperor. I have no opponent. I have conquered Bharat Kshetra. AF555555555555555555555$$$$$$55FFFFFFFFFFFFF555555a 非所所朱乐听听听听hhhhh तृतीय वक्षस्कार (211) Third Chapter Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 261 262 263 264 265 266 267 268 269 270 271 272 273 274 275 276 277 278 279 280 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669 670 671 672 673 674 675 676 677 678 679 680 681 682 683 684