Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana
Publisher: Padma Prakashan
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cucumber, tumbak, bijaura, katahal, mango, tamarind and suchlike all types of fruits and vegetables just by sowing. All the people were well acquainted with its these qualities.
That grand gathapati offered to king Bharat thousands of pitchers full of well thrashed and well cleaned foodgrains that were soon refined and thrashed and cleaned on that very day. During that rainy period king Bharat got on Charma Ratna, remained protected from rain by Chhatra Ratna and spent the period of seven full days happily in the light produced by Mani Ratna.
During this period hunger did not cause any trouble to king Bharat 4 and his armed forces. They did not experience any scarcity. They did not
feel terrified or troubled. ॐ देवों द्वारा मेघमुख देवों की तर्जना WARNING BY DEVAS TO MEGHAMUKH DEMI-GODS
७७. [१] तए णं तस्स भरहस्स रण्णो सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि इमेआरूवे अन्भत्थिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था केस णं भो ! अपत्थिअपत्थए दुरंतपंतलक्खणे जाव परिवज्जिए जेणं
ममं इमाए एआणुरूवाए जाव अभिसमण्णागयाए उपिं विजयखंधावारस्स जुगमुसलमुट्ठि जाव वासं वासइ।। + तए णं तस्स भरहस्स रण्णो इमेआसवं अन्भत्थिों चिंतियं पत्थिों मणोगयं संकप्पं समुप्पण्णं
जाणित्ता सोलस देवसहस्सा सण्णज्झिउं पवत्ता यावि होत्था। तए णं ते देवा सण्णद्ध-बद्ध-वम्मिअ-कवया 卐 जाव (सूत्र संख्या ५७ अनुसार) गहिआउह-प्पहरणा जेणेव ते मेहमुहा णागकुमारा देवा तेणेव + उवागच्छंति २ ता मेहमुहे णागकुमारे देवे एवं वयासी-"हं भो ! मेहमुहा णागकुमारा ! देवा 9 अप्पत्थिअपत्थगा जाव परिवज्जिआ किण्णं तुब्भि ण याणह भरहं रायं चाउरंतचक्कवहि महिड्डिअं जाव म उवद्दवित्तए वा पडिसेहित्तए वा तहावि णं तुम्भे भरहस्स रण्णो विजयखंधावारस्स उपिं जुगमुसल फ़ मुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं वासं वासह, तं एवमवि गते इत्तो खिप्पामेव अवक्कमह अहव कणं अज्ज पासह चित्तं जीवलोग।
७७. [१] जब राजा भरत को इस रूप में रहते हुए सात दिन-रात व्यतीत हो गये तो उसके मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ-वह सोचने लगा-जिसे कोई नहीं चाहता, उस मृत्यु को के चाहने वाला, दुःखद अन्त एवं अशुभ लक्षण वाला कौन ऐसा है, जो मेरी दिव्य ऋद्धि तथा दिव्य द्युति
की विद्यमानता में भी मेरी सेना पर युग, मूसल एवं मुष्टिका जैसी जलधारा द्वारा भारी वर्षा करता जा
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रहा है।
राजा भरत के मन में ऐसा विचार, भाव, संकल्प उत्पन्न हुआ जानकर सोलह हजार देव-(चौदह ॐ रत्नों के रक्षक चौदह हजार देव तथा दो हजार राजा भरत के अंगरक्षक देव) युद्ध करने को तैयार हो 卐 गये। उन्होंने लोहे के कवच अपने शरीर पर कस लिये, शस्त्रास्त्र धारण किये, जहाँ मेघमुख नागकुमार फ़
| जम्बूद्वीप प्रज्ञप्ति सूत्र
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Jambudveep Prajnapti Sutra
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