Book Title: Agam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ यह स्पष्ट उल्लेख है कि 'संवच्छरेण भिक्खा लद्धा उसहेण लोगनाहेण / " इससे यह स्पष्ट है कि भगवान ऋषभदेव को दीक्षा ग्रहण करने के पश्चात् एक वर्ष से अधिक समय व्यतीत होने पर भिक्षा मिली थी। किस तिथि को भिक्षा प्राप्त हुई थी, इसका उल्लेख 'वसुदेवहिण्डी""" और हरिवंशपुराण 13 में नहीं हुया है। वहाँ पर केवल संवत्सर का ही उल्लेख है / पर खरतरगच्छबृहद्गुर्वावली 14, त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित'१४ और महाकवि पुष्पदन्त 16 के महापुराण में यह स्पष्ट उल्लेख है कि अक्षय तृतीया के दिन पारणा हुमा / श्वेताम्बर ग्रन्थों के अनुसार ऋषभदेव ने बेले का तप धारण किया था और दिगम्बर ग्रन्थों के अनुसार उन्होंने छह महीनों का तप धारण किया था, पर भिक्षा देने की विधि से लोग अपरिचित थे। अतः अपने-माप ही प्राचीर्ण तप उत्तरोत्तर बढ़ता चला गया और एक वर्ष से अधिक अवधि व्यतीत होने पर उनका पारणा हमा। श्रेयांसकुमार ने उन्हें इक्षुरस प्रदान किया। तृतीय प्रारे के तीन वर्ष साढ़े आठ मास शेष रहने पर भगवान् ऋषभदेव दस हजार श्रमणों के साथ / मष्टापद पर्वत पर आरूढ हुए और उन्होंने अजर-अमर पद को प्राप्त किया, जिसे जैनपरिभाषा में निर्वाण या परिनिर्वाण कहा गया है। शिवपुराण में प्रष्टापद पर्वत के स्थान पर कैलाशपर्वत का उल्लेख है। १६जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति,१६ कल्पसूत्र,१२० त्रिषष्टिशलाका पुरुषचरित'२१ के अनुसार ऋषभदेव की निर्वाणतिथि माघ कृष्णा त्रयोदशी है। तिलोयपणत्ति"एवं महापुराण के अनुसार माघ कृष्णा चतुर्दशी है। विज्ञों का मानना है कि भगवान ऋषभदेव की स्मृति में श्रमणों ने उस दिन उपवास रखा और वे रातभर धर्मजागरण करते रहे / इसलिये वह रात्रि शिवरात्रि के रूप में जानी गई। ईशान संहिता 24 में उल्लेख है कि माघ कृष्णा चतुर्दशी की महानिशा में कोटिसूर्य-प्रभोपम भगवान् प्रादिदेव शिवगति प्राप्त हो जाने से शिव-इस लिंग से प्रकट हुए / जो निर्वाण के पूर्व आदिदेव थे, वे शिवपद प्राप्त हो जाने से शिव कहलाने लगे। 111. समवायांगसूत्र 157 112. भयवं पियामहो निराहारो....पडिलाहेइ सामि खोयरसेणं / 113. हरिवंशपुराण, सर्ग 9, श्लोक 180-191 114. श्री यूगादिदेव पारणकपवित्रितायां वैशाख शुक्लपक्षततीयायां स्वपदे महाविस्तरेण स्थापिताः। 115. विषष्टिशलाका . च. 113 / 301 116. महापुराण, संधि 9, पृ. 148-149 117. प्रावश्यकचूर्णि, 221 118. शिवपुराण, 59 119. जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति, 48191 120. कल्पसूत्र, 199 / 59 121. त्रिषष्टि श. पु. च. 126 122. माधस्स किण्हि चोदृसि पुठवण्हे णिययजम्मणखत्ते अशावम्मि उसहो अजूदेण समं गओज्जोभि / -तिलोयपण्णत्ति 123. महापुराण 3713 124. माघे कृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि। शिवलिगतयोभृतः कोटिसूर्यसमप्रभः। तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिवते तिथिः। -ईशानसंहिता [32] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org