Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
५६२
भुट्टा अभिवंदा
ओ० २१. ०८. जी० ३।४४३ -- अब्भुट्ठेति अभिणिसिह [ अभिनिसृष्ट ] रा० १३२ जी० रा० २७७ जी० ३।४५४ अब्भुट्ठेमि रा० ६६५ अभुट्ठाण [ अभ्युत्थान] ओ० ४० अभुट्टिय [ अभ्युत्थित ] ओ० २६ अब्भुट्ठेता [ अभ्युत्थाय ] ओ० २१ रा० ८. जी० ३।४४३ ।
अभुण्णय [ अभ्युन्नत] रा० १३३. जी० ३/३०३,
૬ ૨૭
अम्भु [ अद्भुत ] रा० ७
अभयवय | अभयदय ] ओ० १६,२१,५४. रा० ८, २६२. जी० ३।४५७
अभवसिद्धिय [ अभवसिद्धिक ] रा० ६२. जी० ६ १०६ से ११२
अभाग [ अभाषक ] जी० ६ ५६, ६०, ६१ अभास [ अभावक | जी० ६५८ अभि [ अभिजित् ] जी० ३१८३८/३२,१००७ अभिक्खणं [ अभीक्ष्णम् ] रा० १७३. जी० ३ २८५ afreeera [ अभिक्षाला भिक] ओ० ३४ अभिगच्छ [ अभि + गम् ] -- अभिगच्छइ ओ० ६६. ० ७१६-- अभिगच्छति ओ० ७०. - - अभिगच्छामो रा० ७३५ अभिछणा [ अभिगमन ] ओ०४० अभिगम [ अभिगम ] ओ० ६६, ७० ८० ७७८ अभिगमण [ अभिगमन ] ओ० ५२. रा० ६, १२, ४७,६८७. जी० ३।८४१
अभिगमणिज्ज | अभिगमनीय] रा० ७०३, ७३५ अभि [ अभिगत ] ओ० १२०,१६२. रा० ६६८, ७५२,७८६
अभिगिन [ अभिगृह्य ] जी० ३।५६२ अभिघट्टिज्जमाण | अभिघट्यमान | रा० १७३. जी० ३।२८५
अभिगवंत [ अभिनन्दत् ] ओ० ६८
अभिणं दिज्ज माण | अभिनन्द्यमान | ओ० ६६ अभिनय [ अभिनय ] रा० ११७, २८१. जी० ३१४४७
अभिविट्टित्ताणं [ अभिनिर्ययं ] रा० ७७०
Jain Education International
३।३०२
अभिस्सिव [ अभि + निर् + स्रु ]
-- अभिणिस्स वंति, रा० १७३. जी० ३।२८३ / अभिणी | अभि + नी ] - अभिणयति रा० २८१जी० ३।४४७ - अभिणिज्जइ रा० ७८३अभिर्णेति रा० ११७
अभित | अभिष्टवत् ] ओ० ६८ अभिवमाण [ अभिष्ट्यमान | ओ० ६६ अभि | अभिद्रुत ] जी० ३।१२६.७ अभिनव | अभिनिर्+ स्रु ] - अभिनिस्सदति रा० ३०
अभि | अभिमुख ] ओ० ४७, ५२,६६,७०,८३. २० ६०, ६८७,६६२,७१४,७१६
अभिराम [ अभिराम ] ओ० २,५५,५७,६३. रा०
६,१२,१७,१८,२०,३२,३७,५२, ५६, १२६, १३२,२३१,२३६,२४७, २८६. जी० ३।२८८, ३००,३०२, ३११,३७२, ३६३, ३६८, ४४७, ५८६
अभिव | अभिरूप ] ओ० १,७,८,१० से १३,१५, ७२,१६४. १० १,१६ से २३,३२,३४, ३६ से ३८, १२४,१३०,१३३, १३६, १३७, १४५, १५७, १७४,१७५,२२८,२३१,२३३, २४५,२४७, २४६, ६६८,६७०, ६७२, ६७६,७००,७०२. जी० ३।२३२,२६१,२६६,२६६, २७६,२५६ से २८८,२१०, ३३०, ३०३, ३०६, ३०७, ३११, ३८७, ३६३, ४०७,४१०,५८१, ५८४, ५८५, ५६६,५६७,६३९, ६७२,८५७,८६३, ११२१, ११२२
अभिलस [ अभि + लब् ] – अभिलसइ रा० ७१३ ...अभिलसंति ओ० २०. रा० ७१३
अभिलाव [ अभिलाप ] जी० ३।४, ५,१२,४१,४३, ४४,७७,८८, १२५,२२६,४५१
अभिवंद | अभिवन्दितुम् ] ओ० ५५. रा० १३ अभिवंदा [ अभिवन्दितुम् ] ओ० ६२.
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467 468 469 470 471 472 473 474 475 476 477 478 479 480 481 482 483 484 485 486 487 488 489 490 491 492 493 494 495 496 497 498 499 500 501 502 503 504 505 506 507 508 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639