Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 603
________________ वेरि उज्झिय वेरि | वैरिन् । जो० ३३६१२ afra | वैरिक | जी० ३१६३१ defer | वैडूर्य ] ओ० ६४. २० १०,१२,१८, ३२,५१,६५,१५४,१५६, १६०, १६५, १७४, २२८,२५६.२७६,२ε२. जी० ३१७,३३२, ३३३,३४६,३७२,३८७, ४१७, ४५७, ६७२ doलियमणि [ वंडूर्यमणि | जी० ३१२८६,३२७ वेरुलयमय | वैडूर्यमय | ० १३०,१५३,२७०. २६२. जी० ३/३२२,४३५ वेरुलियामय | वैडूर्यमय | रा० १६,१३२,१७५, ११०,२३६. जी० ३:२६४,२८७,३००, ३०२, ३२६, ३६८, ४५७, ६४३,८७५ वेलंधर | वेलन्धर | जी० ३ ७३४ से ७३६,७४०, ७४२,७४५,७४७,७६१,७८२ वेलंब | वेलम्ब | जी० ३।७२४ ajar | विडम्बक ] ओ० १,२ वेलंबगपेच्छा | विडम्बक प्रेक्षा ] ओ० १०२, १२५. जी० ३०६१६ वेलवास | वेलावासिन् ] ओ० ९४ वेला वेला ] ओ० ४६. जी० ३।७३२ | वेलु [ वेणु ] २४० ७७ वेस | वेष ] ओ० १५,४६,५३, ७०. रा० ७०, १३३,६७२,८०४. जी० ३।३०३,५६७, ११२२ समण [ श्रमण ] ओ० ६५ dear [ श्रमणमह ] रा० ६८८. जी० ३।६१५ साणिय | वैपाणिक ] जी० ३।२१६,२२१ वसायिदीव | पाणिकद्वीप ] जी० ३१२२१, २२५ darfar | वैश्वासिक | ओ० ११७. रा० ७५० से ७५३, ७६६ हाणसिय | वैखानसिक ] ओ० ६० वोच्य व्यवच्छिन्नक ] रा० ७५३ Jain Education International वोस [ उ ] रा० २८५. जी० ३१४५१ वोलट्टमाण | व्यपलोटत् ] जी० ३।७८४,७८७ deमाण [ विपत् ] जी० ३१७८४,७८७ वोसिर | वि + उत् + शृज् ] - बोसिशमि. ओ० ११७. रा० ७९६ अब [ इव] ओ० १६. रा० १३७. जी० ३।३०७ 1 ७४१ स स स ] ओ० २,१२,१५,१६,३०,५४,६० से ६५, ७०,६७,१७०, १६४. रा० ७,८,२१,२४,३२, ३४,३६,३७,४२,४७, ५०, ५१,५६,५८,६७, ६६,७६, १२४, १४५, १५७, १६३, १६४, १६६, १७३, १८६,२०४ से २०६,२१६, २४३,२४५, २५५,२५६.२८०,६७२,६८ १ से ६८३,६६१, ६६२,७००,७०३,७१४ से ७१६,७७१,८१५. जी० ३।३५,३६,४०, ४१, ४३, ४४, ४६, १७४, २६१,२६६, २६६,२७७, २८५,२८८,३००, ३०६, ३०७:३११,३३५,३४०,३५०, ३५२, ३५५, ३५६, ३६६,३७२, ३७४, ३७६, ३८७, ३६५, ४०५, ४०७,४१२, ४१६, ४२५, ४४६ स ४४५, ५५७,५६३,५६२, ५९६,६५८, ६६३, ६७२,६७३, ६८५,७२८, ७३३, ७३७,७४०, ७४२,७४५,७५०,७६२,७६५,७६८,७७०, ८३८१२,१००६, १०३३,१०५४ स [स्व | ओ० ६४, ७१. ० ६,११,१३, ५६, १५४ २८१,६८३,७२३, ७२६,०३२,७३७,७४७, ७७४. जी० ३।३२७,३५६ [स्मृति] ओ० ४३ सइंदिय [सेन्द्रिय ] जी० ६ १५ से १७,६६ सइय [ शतिका ] ओ० १८७. जी० ३,६८१ सण [ शकुन | ओ० ६. रा० १७४. जी० ३३११० ११६,२७५, २६६,६३६ सण [ शकुनरुत] ओ० १४६. रा० ८०६,८० सउणि [ शकुति ] जी० ३१५६८ सउणिज्य [ शकुनिध्वज ] रा० १६२. जी० ३३३३५ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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