Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
सच्च-सह
सच्च [सत्य] ओ० २,२५,७२,११८. रा०६८६ समिच्छर [शनैश्चर] ओ० ५० सच्चमणजोग [ सत्यमनोयोग] ओ० १७८ सण्णव [सन्नद्ध] ओ० ५७. रा० ६६४,६८३ सच्चवइजोग [सत्यवाग्योग] ओ० १७६ सग्णय [सन्नत] ओ० १६. जी० ३३५६६,५६७ सन्चामोसमणजोग (सत्यमृषामनोयोग] मो० १७८ सण्णव [संज्ञापय] --सण्णवेइ. रा० ७६६ सच्चामोसवइजोग [सत्यमृपावाग्योग] ओ० १७६ सण्णा (संज्ञा रा० ७४८ से ७५०,७७३. सच्चोवात [सत्यावपात] ओ० २
ओ० १११४,२०,५६,६६,१०१,११६,१२८, सच्छद [स्वच्छन्द] ओ० ४६
२३६, ३।१२८२ सच्छड [संस्तृत] रा० ७७४
सिण्णाह [सं+नहन-सण्णाहेहि. ओ० ५५ सजोगि [सयोगिन् ] ओ० १८१. जी० ६.२१,४६,
सण्णाहिय [सन्नद्ध] ओ० ६२ ४८,५२
सण्णाहेत्ता [संन ह्य] ओ० ५६ सज्ज [सज्ज] ओ० ६४. रा० १७,१८,१७३,
सणि संज्ञिन्] ओ० १५६,१८२. रा० १११४, ६८१,६८२,६६१. जी० ॥२८५
२४,८६,९६,१०१,११६,१३३,१३६६।१०१, सज्ज [सद्यस्] जी० ३१८७२
१०२,१०५,१०८ सिज्ज [सस्ज्-सज्जावेइ रा०६८०. -सज्जिहिति. ओ० १५०. रा०८११.
सणिकास [सन्निकाश] जी० ३३३३३,३८१,४१७, -सज्जेइ. रा०६६६
८६४,११२२ सन्जावेत्ता [सज्जयित्वा ] रा० ६८०
सणिखित्त [सन्निक्षिप्त जी० ३३१०२५
सणिणाय [सन्निनाद] ओ० ६७. रा० १३, सज्जिय [सज्जित] जी० ३१५६२
६५७. रा० ३।४४६ सज्जीव [सजीव] ओ० १४६. रा०८०६ सज्जेत्ता [सज्जित्वा] रा० ६६६
सणिपंचिबिय [संज्ञिपञ्चेन्द्रिय] ओ० १५६ समाय [स्वाध्याय ] ओ० ३८,४२
सण्णिभ [सन्निभ] रा० १६,४७,६३,६५. सट्ठाण [स्वस्थान] जी० ६।१६६,२०८
जी० ३१५९६
सणिमहिय [सन्निमहित ] ओ० १ सहि षष्टि] ओ० १४०. रा० २३१.
सण्णिवाइय [सन्निपातिक] ओ०७१,११७. जी. ३११८
रा०६१,७६६ सद्वितंत [षष्ठितन्त्र] ओ०६७
सणिविदुः [सन्निविष्ट] ओ० १. रा० १७,१८, सडंगवि षडङ्गविद् ] ओ० ६७
२०. जी. ३।२८८ सङ्घा श्राद्धकिन्] ओ० ६४
सग्णिवेस [सन्निवेश] ओ०६८,८६ से ६३,६५, सण [सन] ओ० १३
६६,१५५,१५८ से १६१,१६३,१६८. सणंकुमार [सनत्कुमार] ओ० ५१,१६०,१९२.
रा०६६७ जी० २६६,१४८,१४६; ३३१०३८,१०४५, मणिमटा सतिसादात १०४६,१०५८,१०६६,१०६८,१०८८,१०६४,
सण्णिसण्ण [सन्निषण्ण] रा०८,४७,६८,२७७, ११०२,११११,११२६
२८३. जी० ३।४४३,४४६,४५२,५५७,८३६ सणप्फई [सनखपदी] जी० २।६।।
सणिहिय [सन्निहित] ओ०२ सणफय [सनखपद] जी० ११०३
सह श्लिक्ष्ण ओ० १२,१६४. रा०२१ से २३, सणिचर (शनैश्चर जी० ३१६३१
३२,३४,३६,३८,१२४,१३०,१३७,१४५,१५७,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639