Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 489
________________ जलत-बहण्ण जलंत ज्वलत् ] ओ० २२,२७. रा० ७२३,७७७, ___ ७७८,७८८,८१३ जलकिडा [जलक्रीडा] रा० २७७. जी. ३१४४३ जलचर [जलचर | जी० ३:१२६:१,१६६ जलज [जलज) जी० ३.१७१ जलणपवेसि [ज्वलनप्रवेशिन् । ओ०६० जलपवेसि [जलप्रवेशिन् ] ओ० ६० जलमज्जण जलमज्जन } रा० २७७. जी० ३४४३ जलय [जलज] ओ०१२. रा० ६,१२,२२. जी० ३।२६० जलयर [जलचर] ओ० १५६. जी० १२९८,६६, १०१,१०३,११२,११३,११६ से ११६,१२१, १२३,१२५, २१२२,६९,७२,७६,६६,१०४, १०५,११३,१२२,१३६,१३८,१४६,१४६; ३११३७ से १४०,१४२,१४४ जलयरी जलचरी] जी० २,३,४,५०,५३,६६, ७२,१४६,१४६ जलरय [जलरजस्] ओ० १५०. रा० ८११ जलरुह [जलरुह ] जी० ११६६ । जलवासि [जलवासिन्] ओ० ६४ जलसमूह [जलसमूह ] ओ० ४६ जलाभिसेय [जलाभिषेक ओ० ६४. रा० २७७ जलावगाह ! जलावगाह] रा० २७७ जलिय [ज्वलित] जी० ३।५६० जल्ल [दे०] ओ० १, २, ८६,६२. जी० ३१५६५ जल्लपेच्छा [जल्ल' प्रेक्षा] ओ० १०२,१२५. जी० ३१६१६ जल्लोसहिपत्त [जल्लोषधिप्राप्त ] ओ० २४ जव [यव] ओ० १. जी० ३।५६७, ६२१, ७८८, जवलिय [यवलित) जी० ३३२६८ जवाकुसुस [जपाकुसुम रा०४५ जस [ यशस्] ओ०८६ से १५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ जसंसि [यशस्विन् ] ओ० २५. रा० ६८६ जसोधरा [ यशोधरा जी० ३,६६६ जह यथा ] ओ० ७४. जी० १७२ जहक्कम [ यथाक्रम ] रा० १७२ जहण | जघन ) जी० ३१५६७ जहण [जघन्य | अं० १८७, १८८, १६५. जी० १२१६, ५२, ५६, ६५, ७४, ७६, ८२, ८६ से १८, ६४, ६६, १०१, १०३, १११, ११२, ११६, ११६, १२१, १२३ से १२५, १३०, १३३, १३५ से १४०, १४२; २१२० से २२, २४ से ५०, ५३ से ६१, ६३, ६५ से ६७, ७३, ७६, ८२ से ८४, ८६ से ८८, 801 से ६३, ६७, १०७ से १११, ११३, ११४, ११६ से १३३, १३६; ३८६, ८६,६१, १०७, १२०, १५६,१६१, १६२, १६५, १७६, १७८, १८०, १८२, १८६ से १६०, २१८, ६२६, ८४४, ८४७, ६६६, १०२१, १०२७ से १०३६,१०८३, १०८४, १०८७, १०८६, ११११, ११३१, ११३२, ११३८ से ११३७; ४।३, ४,६ से ११, १६, १७; १५, ७, ८, १० से १६, २१ से २४, २८ से ३०; ६१२, ३, ६, ८ से ११, ७.३, ५, ६, १०, १२ से १८६२ से ४,२३ से २६, ३१, ३३, ३४, ३६,४०, ४१, ४३, ४७, ४६,५१,५२, ५७ से ६०, ६८ से ७३, ७७, ७८, ८०, ८३, ८५,८६,६०,६२,६३,६६, ६७,१०२, १०३, १०५, १०६, ११४, ११५, ११७, ११८,१२३ से १२८, १३२, १३४, १३६, १३८, १४२, १४४, १४६, १४६, १५०, १५२, १५३,१६० से १६२, १६४, १६५, १७१ से १७३, १७६ से १७८, १८६ से १६१, १६३, १९४, १६८ . से २००, २०२ से २०४, २०६, २०७, २१० जवण [जवन] रा०१०, १२, ५६, २७६. जी० ३३११८ जवमा | यवमध्य ] जी० ३७८८ जयममा [यवमध्या ओ०२४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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