Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

Previous | Next

Page 526
________________ ६६४ निमज्जग-निविसय निमन्जग [निमग्नक ] ओ०६४ इनिरंभ [नि+रुध्] --निरंभइ ओ० १८२ निमित्त | निमित्त] जी० ३३१२९६६ निरंभित्ता | निरुध्य ] ओ० १८२ निमिसिय | निमिषित] जी० ३।११६ निरुत्त [निरुक्त } ओ०६७ निमीलिय | निमीलित] जी० ३६१२६८ निरुवलेव निरुपलेप] ओ० २७. रा. ८१३. निम्मल | निर्मल } ओ०१२,१६,४७. रा० २१, जी० ३।५६८ २३,३२,३४,३६,१२४,१३०,१४५,१४६,१५७. निस्वसग्ग | निरुपसगं] जी० ३१४८८ जी० ३१३२२,५६६,५६७ निरुवहय | निरुपहत] ओ० १६. जी० ३१५९६ निम्माण | निर्माण] ओ० १६८ निरयन [निरेजन ] ओ० १८३,१८४ निम्भाय | निर्माय ओ०१६८ निरोदर | निगेदर जी० ३३५६७ निम्मिय (निर्मित] रा० १७३. जी० ३१२८५ निरोय [निरोग | जी० ३।२७५ निम्मेर | निर्मर । रा०६७१ निरोयय { निसंगक ] ओ०६ नियइपव्वय [नियतिपर्वत ] रा० १८१ निरोह [निरोध ओ० ३७ नियइपवयग | नियतिपर्वतक] रा० १८० निलाड [ललाट | रा०७० नियंस | नि.+वस्]-नियंसेइ. रा०२६१ निल्लेव (निर्लेप । जी० ३.१६६,१६७ --नियंसेति. रा. २८५ नियंसण | निवसन] रा०६६ निल्लेवण | निर्लेपन] जी० ३।१६६ नियंसेत्ता | निवस्य] रा० २८५ निल्लोह | निर्लोभ] ओ० १६८ नियम निजक] रा० १२०.७७४ ‘निवाड नि+पातम्]-निवाडेइ रा० २६२ नियडि [निकृति] रा० ६७१ निवाहित्ता [निपात्य रा० २६२ निवाय [निपात | जी० ३।८६ नियम [नियम ] ओ० २५. रा०६८६,७२३. निवेद | नि ! वेदय। निवेदिज्जासि. ओ० २१ जी० १३०,६५,८७,६६,११६,१३३,१३६; निदेय | निवेदयनिवेएमो. रा०७१३ ३।१०४; १२६१३८३८॥१४,६६६,११०८ निवेस [नि-1-वेशय् ]-निवेसेइ. ओ० २१. नियय [नियत | जी० ३।२७२,७६० रा०८ निरंगण [निरङ्गण] ओ० २७. रा०८१३ निवेसेत्ता निवेश्य-ओ० २१. रा. ८ निरंतर | निरन्तर रा० १२.७५५,७७२ निठवण [निर्बण जी० ३१५६६ निरंतरिय निरन्तरित] रा० १३० ‘निव्वत्त निर्- वर्तम्]-निव्वत्तेज्जासि निरय निरय | जी० ३।१२६,१२७०२ रा० ७५१ निरयभव | निरयभव ] जी० ३।११६, १२६५ निन्वय [ निर्बत ] ० ६७१ निरयवेयणिज्ज | नि रयवेदनीय ] रा० ७५१ निव्याघाइम [नियाधातिन्, निाघातिम] निरयाउय | निरयायुष्क रा० ७५१ __ औ० ३२. जी० ३।१०२२ निरयावास निरयावास | जी० ३।१२, ७७,१२७ निव्वाण निर्वाण | ओ० १६५।१६ निरवसेस [निरवशेष ] जी० ३।१८४, ४१२,४२६, निविइय निविकृतिक ] ओ० ३५ निविग्ण [निविण्ण] रा० ७६५ निरालंबण | निरालम्बन] ओ ० २७. रा० ८१३ । निविण्णाण | निर्विज्ञान ] रा० ७३२,७३७,७६५ निरालय | निरालय] ओ० २७. र। ० ८१३ निवितिमिच्छ निविचिकित्स] ओ० १२०,१६२ निरावरण [नि सवरण | ओ० १५३,१६५,१६६ निविसय [निविषय | रा० ७६७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639