Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
View full book text ________________
पाहण-परिक्खित्त
पाहिण [ प्रदक्षिण | ओ० ४७,५२,६६,७०,७८, ८०, ८१, ८३. रा० ६, १०, १२, ५६, ५८, ६५. ७३,७४, ११८, १२०,६८७,६६२, ६६५.७००, ७१६,७१८७७८
पाणावत | प्रदक्षिणावर्त । ओ० १६. जी० ३५६६,५६७,८३८ १०.११ पयोधर [ पयोवर ] जी० ३१५६७
पर [पर] ओ० १५४, १५५,१६० से १६३, १६५,
१६६. रा० ८१६
परं परम् | जी० ३१८३८२३
परंगमाण | पर्यङ्गन] ८० ८०४
परंपर | परम्पर] जी० ११४३
परंपरगय | परम्परगत | ओ० १६५/२० परंपरसिद्ध [परम्प सिद्ध ] जी० ११७, ६ परक्कम | पराक्रम ] जो० ८६ से ६५, ११४,११७, १५५,१५७ से १६०, १६२,१६७
परग [ परक ] जी० ३१५८७
परघर | परगृह ] रा० ८१६ परच्छंवाणुवत्तिय [परच्छन्दानुवर्तित ] ओ० ४० परपरिवाइय [परपरिवादिक । ओ० १५६ परपरिवाय परपरिवाद । ओ० ७१,११७, १६१. १६३
परपरिवाविवेग | परपरिवादविवेक ओ० ७१ परपुट्ट | परपुष्ट ] रा० २५. जी० ३२७८ परम | परम] ओ० २०, २१, ५३, ५४, ५६, ६२, ६३,७८,८०,८१. ० ८, १०, १२ से १४,१६ से १८, ४७, ६०, ६२, ६३, ७२, ७४, २७७, २७६, २८१,२८८, २६०, ६५५, ६८१,६८३, ६६०, ६६५, ७००, ७०७, ७१०, ७१३,७१४, ७१६,७१, ७२५, ७२६, ७६५, ७७४७७८, ८०२. जी० ३।११६, ४४३, ४४५, ४४७, ४५५ परम किण्ह | परमकृष्ण | जी० ३१८३, ६४ परम किहलेस्सा | परमकृष्ण श्वा | जी० ३ १०२ परभट्ट [ परमार्थ ] ओ० १२० १६२. रा० ६६८, ७५२, ७८६
Jain Education International
६७७
परमण्ण [ परमान्न ] जी० ३।५६२ परमसीय [ परमशीत ] जी० ३१११५ परमसुक्क लेस्सा [ परमशुक्ललेश्या ] जी० ११०४ परमसुक्कल [ परमशुक्ल जी० ३।१०७६, १०६६ परमहंस [ परमहंस ] ओ० ६६ परमाउ | परमायुष्] ओ० ६८
परमाणु | परमाणु ] जी० ७७१. जी० ११५ परलोग [ परलोक ] ओ० २६, ८६ से ६५, ११४, ११७, १५५, १५७ से १६०, १६२, १६७ परवाइ | परवादिन् ] ओ० २६
परवाय [परवाद | ओ० २६ परसु [ परशु ] रा० ७६५ परस्सर [पराशर ] जी० ३।६२० पराइय | पराजित ] ओ० १४. जी० ६७१ परामुस [परा | मृश् ] ---परामुसइ. रा० २६४. जी० ३३४६० --परामुसति. रा० २६८. जी० ३२४५७
परामुसिता [ परामृश्य ] रा० २६४. जी० ३।४५७ परावतं [परा + वृत् ] - परावत्तेइ रा० ७२६ - परावतेहि रा० ७२८
परासर | पराशर ] ओ० ६६ परिकच्छिय | परिकक्षित | रा० ५२ परिकम्म [ परिकर्मन् ] ओ० ३६
परिह | परि + कथय् । - परिकहेइ ओ० ७१. रा० ६१
परिकहेउं [ परिकथयितुम् | ओ० १६५ १६ परिकिलंत [ परिक्लान्त ] रा० ७२८, ७६०,७६१ परिकिलेस | परि + क्लिश् ] – परिकिले संति ओ० ५६
परिकिलेस [ परिक्लेश ] ओ० १६१, १६३ परिकिलेसित्ता | परिक्लिश्य ] ओ० ८६ परिक्खित [ परिक्षिप्त | ओ० १, ५२, ६४, ७०. रा० १७,१८,१३२, १७०, १७४, २३३,६८१, ६८३, ६५७, ६८, ६६२, ७००, ७१६,८०४. जी० ३१२५६, २८६, ३०२, ३५८, ३६५,६३२, ६६१, ६५३, ७६२, ८५७,८८२,६१०,६११
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Loading... Page Navigation 1 ... 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639