Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 551
________________ पुढविसिलापट्टग पुरत्या भिमुह पुढविलापट्ट [ पृथ्वीशिलापट्टक] रा० १८५. जी० ३।२६७,८५७,८६२ पुढविलापट्ट [ पृथ्वी शिलापट्टक ०४ पुढवी [पृथिवी ] रा० १२४,१३३,७५५,७५७. जी० २।१२७, १४८, १४९, ३२ से ६, ११ से ३५, ३७ से ४०, ४२,४४ से ५७,५६ से ६६, ७३ से ८१, ८३ से ६८, १०३,१०४,१०६ से ११२,११६,११७,१२०, १२७, १२८ १६ १५, १८५ से १६१,२३५, २५७,६००,६०१, १००३,१०३८,१०५७ से १०५६, १०६३, १०६५, १०६६,११११: ५।१७ पुढवाइयत [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।१२८ पुढक्काहत्त [ पृथ्वी कायिकत्व ] जी० ३।११२८, ११३० पुढवीसिलापट्टग [ पृथ्वीशिलापट्टक ] जी० ३।५७६ पुढवी सिलापट्ट | पृथ्वीशिलापट्टक ] रा० १३ पुण [पुनर् ] ओ० ५२. रा० ७५० जी० २१५० पुण [ पू] - पुर्णिज्जइ. रा० ७८५ पुणभव [ पुनर्भव] ओ० १६५ पुणो [ पुनर् ] ओ० ६३. जी० ३८३८ । १४ पूण | पूर्ण ] २० १७४, २८८,७६३. जी० ३।११८, ११६, २०६, ४५४,५८६,७८४,७८७,८७८ पुण्ण [पुन्य] ओ० ७१.१२०,१६० रा० ६६८, ७५२,७५३,७७४,७८६ पुण्णकलस [ पूर्णकलश ] ओ० ४८,६४. रा० ५० पुण्णप्पभ [ पूर्णप्रभ ] जी०३८७८ पुण्णरयमाण [ पूर्णप्रमाण ] जी० ३१७८४,७८७ पुष्णभद्द | पूर्णभद्र ] ओ० २,३, १६ से २२, ५२, ५३, ६५,६६,७० पुण्णमासिणी [पौर्णमासी, पूर्णमासी ] ओ० १२०, १६२. रा० ६६८,७५२, ७५६. जी० ३१७२३, ७२६ पुण्णरत्ता [ पूर्णरक्ता] ओ० ७१. रा० ६१ पुण्णा [पुन्दाग ] जी० १/७१ Jain Education International ६८६ पुत [पुत्र ] रा० ६७३, ७६१. जी० ३६११ पुत्ताणुपुत्तिय [ पौत्राणुपुत्रिक ] रा० ७७६ पुप्फ [पुष्प ] ओ० २,६,१६,४७. ५५,६७, ६२, ६४. रा० १२,१३,२६, ३२, १५६, १५७, २५८,२७६ से २८१,२६१,२६३ से २६, ३००,३०५, ३१२,३५१,३५५,५६४,६५७, ६७०, ७७६. जी० ११७१ ३.१७१, २७५, २८२,३२६,३३०, ३७२, ४१९, ४४५ से ४४८, ४५७ से ४६२, ४६५, ४७०, ४७७,५१६, ५२०,५४७,५५४, ५८०,५८१,५८६,५६१,५६६, ५६७,६००, ६०२,८३८/२,१५,८४२८७२ पुप्फग [ पुष्पकः ] ओ० ५१ पुष्पचंगेरिया [ पुष्पचङ्गेरिका रा० १२ पुष्कछज्जिया [ पुष्पछाधिका ] रा० १२ पुष्पदंत [ पुष्पदन्त ] जी० ३३८६३ पुप्फमंत [ पुष्पवत् ] ओ०५.०३।२७४ पुप्फबद्दलय [ पुप्पवादलक] रा० १२ पुष्कासव [ पुष्पाराव ] जी० ३१८६० पुष्काहार [ पुष्पाहार ] ओ० ६४ पुफिय | पुष्पित ] रा० ७८२ पुष्कुतर | पुष्पोत्तर ] जी० ३।६०१ goफोदय [ पुष्पोदक ] ओ० ६३ पुमत | पुंस्त्र ] ० १४१. १०७८६ पुर [ पुर] ओ० २२. रा० ६७४, ६६५, ७६०, ७६१ पुरओ | पुरतम् ] ओ० १६,६४,६६, ७०. रा० २०, १२४,१३६ से १६१, १७६, २११,२२१. जी० ३।३२७,३५६, ३७४, ३७६, ३८०, ३८५, ३६२,३६५,४१६,८७ पुरओकाउं [ पुरस्कृत्य ] ओ० २५,१६४ पुरच्छिम [ पौरस्त्य ] जी० ३१३०० पुरतो | पुरतस् ] रा० ४१ से ५६,२१५,२३३, २५७, २५८,२६१, ८०२. जी० ३२८८,३१६ से ३२६,३६३, ४५७, ६४१, ८३, ८६७, ८६६, ६०१ पुरत्याभिमुह [ पुरस्तादभिमुख ] ओ० २१,५४, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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