Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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पुव्वंग-पेम
जी० ३३२६५, २८५, ३५८, ८४१८८१,६८८, ६८६
पुवंग [ ए ] जी० ३८४१ goaकोड [ पूर्व ] जी० १।१०१. ११६, १२३,
१२४, २ २२,२४,२६ से ३४,४८ से ५०, ५३ से ६१,८३,८४,१०६, ११३, ११४, ११६.१२२ से १२४, ३।१६१,१६२,११३५:६६ ७११२ ६१४१,१४२,१४४,१४६,१६२,२००,२०३,
२१२,२२५,२३८,२७३ पुरुवकोडिय [पूर्वकोटिक ] ओ० १८८ geet [ पूर्वक्रम ] जी० ३३८८० पुणत्थ | पूर्वन्यस्त] रा० ४८. जी० ३।५५८ से
५६०, ५६२
पुवपुरिस | पूर्वपुरुष] ओ० २ पुवभणित | पूर्वभणित ] जी० २००१
पुण्वभव | पूर्वभव ] रा० ६६७ पुव्वरत [ पूर्वरात्र ] रा० १७३
पुव्वविदेह ( पूर्वविदेह | जी० २ २६,५६,६५,७०,
७२,८५,६६,११५१२३, १३२, १३७, १३८, १४७, १४६ ३।४४५, ७६५
युवाणुपुच्ची | पूर्वानुपूर्वी । ओ० १६, २०, ५२, ५३. रा० ६८६, ६८७,७०६,७११, ७१३ पुष्वाभिमु | पुर्वाभिमुख ] रा०८ पुण्यावर | पूर्वापर ] रा० १६३, १६६. जी० ३।१७४, ३३५,३५५ ३५७,६५८, ७२८, ७३३, १००६, १०२३
पुवि [ पूर्व ] ओ० ११७. २०६३, ६५, २७५, २७६,७८१ से ७८७. जी० २१२५०, ३१४४५, ४४२
पहल [ पृथक्त्व | जी० १ १०३, १११, ११२, ११६,
१२४, १२५, २४८ से ५०, ५३, ५४,५६,८२ से ५४,६२,६३,१२२ से १२५, १२८ ३ ११०, ११७,१११५,१११६, ११३५, ११२७, ४ । १५; ५।१३ २६, ६६, ११:६१८६,६३,१०२, १०६,
१२३,१२८,२१२,२१७,२२५,२३८,२४४,
२७३, २५०
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पुराविषक [ कन्वत्रितर्क ] ओ० ४३ पूइकम्म [ पूतिकर्मन् ओ० १३४ see [ पूजयितुम् ] ओ० १३६ पूय ( पूजित ] ओ० १४. २०६७१ gst | प्रतिक ०६, १२ जी० ३६२२ पूय [ पूत ] ओ० ६८
पूयण | पूजन ] ओ० ५२. ० १६,६८७,६८६ व्यणिज्ज [पुजनीय ] ० २. रा० २४०, २७६. जी० ३।४०२, ४४२
६६१
पूयफलिवण (पलीवन ] जी० २०५८१
पूर | पुरय् ]--पूरेड. ओ० १७४ पूरिमरिम, पूर्थ्य ] ओ० १०६,१३२. रा०२८५. जी० ३२४५१,५६१
पूस | पुण्य | जी० ३१८३८३२ समाण | पुष्यमाण ] जी० ३।२७७
समाजय [ पुण्यमानव | ओ० ६८ समाव | यमाणव । रा० २४ पेच्च प्रेत्य ] ओ०प०
पेच्चभव | प्रेत्यभव ] आं० ५२. रा० ६८७ पेणधर [ प्रेक्षण गृह ] जीं ३२६४ पेच्छणिज्ज | प्रेक्षणीय | ओ० १. जो० ३।५६७ पेच्छाघर | प्रेक्षागृह ] जी० ३३५६१,६०४ पेच्छाघरमंडव [ प्रेक्षागृह मण्डप ] १० ६४,२१५,
२१६.२२०.२२१,३०० से ३०४,३३१ से ३३५, ३३८ से ३४२. जी० ३१३७६३७६, ३८०, ४१२, ४६५ से ४६६, ४५६ से ४६०, ५०३ से ५०७,८८६,८६३ पेच्छिज्जमाण | प्रेक्ष्यमाण ] ओ०६६ पच्छित्तए | प्रेक्षितुम् | ओ० १०२,१२५ पेज्ज | प्रेपम् ] ओ० ७१,११७,१६१,१६३. रा० ७६६
पेज्जबंधण [ प्रेयं बंधन | जी० ३।६११ पेज्ज विवेग [क] ओ० ७१ पेढ पीड ] जी० ३१६६८
पेम | प्रेम | ओ० १२०, १६२. ० ६६८,७५२,
७८६
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