Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 589
________________ वट्टभाव-वणस्सतिकाल वट्टभाव [वृत्तभाव ओ० ५,८. जी. ३१२७४ ।। वणमाला [वनमाला ओ० ४७,४८,७२. वट्टमग्ग [वृत्तमार्ग,वर्त्म गार्ग] ओ० ५६ रा०१३६,२१०,२१२. जी० ३१३०६,३५४, वट्टमाण [वर्तमान ] ओ० ४७. रा० २८१,८१५. ३७३,५६१,६४७,६७३,८८६,८८८ जी० ३,४४७ वणराइ | वनराजि] रा०६५४,६५५. जी. वट्टमाल [वृत्तमाल] जी० ३१५८२ ३।२७६,५५४,५५५,५८५,६३१ वट्टलोह पाय] (वृत्तलोहपात्र] ओ० १०५,१२८ वणराति [वनराजि] रा०२६ वट्टलोह [बंधण] वृत्तलोहबन्धन | ओ० १०६, ____ वणलया[वनलता] ओ० ११,१३. रा० १७,१८,२०, १२६ ३२,३७,१२६,१४५. जी० ३३२८८,३००,३११, वट्टवेत [वृत्तवैताढ्य ] जी० ३।४४५ ३७२,५८४ वट्टवेयड्ड [वृत्तवैताढ्य ] रा० २७६. जी० ३।४४५, वलयापविभत्ति [वनलताप्रविभक्ति रा० १०१ वणसंड [वनषण्ड | ओ० ३,४,८. रा० ३,१७०, वट्टि [वत्ति] जी० ११७२,३१५८६ १७१,१७४,१८२,१८४,१८६,१८६,२०१, २३३,२६३,६५४,६५५,७०३,७८१,७८२, वट्टिजमाणचरय [वय॑मानचरक] ओ० ३४ वट्टित्ता । वतित्वा] रा ० ७७६ ७८६,७८७. जी० ३१२१७,२५६,२७३,२७७, २८६,२९४,२६६,२६८,३५८,३५६,३६२, वट्टिय ! वतित ओ० १६.७१. रा० ६१,१३३, २४५,७६८,७७७. जी० ३३१७२,३०३,५६६, ३६५,५५४,६३२,६३६,६६१,६६८,६८१ से ५९७ ६८३,६८८,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२, ७६५,७६८,७६८,८१२,५२३,८३६,८५०, वडभिया [वडभिका] रा०८०४ ८५७,८८२,६१०,६११ वडभी [वडभी ] ओ० ७० वडिसग [अवतुंसक ओ० १० वणस्सइ [वनस्पति जी० ८३ वडिसब [अवतसक] ओ० १२. जी. ३१५८४ वणस्सइकाइय (वनस्पतिकायिक जी० १२१२,६६ वउँसग [अवतंसक] ओ० ५,८,६४. रा० १२५, से ७४, २११३८, ३।१३१,१३५: ५।६१५, १४५. जी० ३।२६८,२७४,२८५,७०२,८०८, ८.१६१८४,२६३ ८२६,१०३६ वणस्सइकाइयत्त [वनस्पतिकायिकत्व } जी० वडेंसय अवतंक] रा० १२५ ३:१२७ १ वडवृ] .. वड्डइ. जी. ३.७३१....वड्ढए. वणस्सइकाल[वनस्पतिकाल ] जी० ११४२ जी० ३:८३८११४.....बड्ढति. जी० ३।७२३ रा६३,६५ से ६७,११७,१२६,१२७,१३०: वण बन] रा० ४५.६५४,६५५,७६५. ४६१२७, ९:११७,१२७,२६४,२७१ जी०३५५४,५८१ वणस्सति [वनस्पति जी०५।१७ वण {लया) [वनलता] जी० ३१२६८ वणस्सतिकाइय [वनस्पतिकायिक] जी० २११०२, वत्यि | वनार्थिन् । रा० ७६५ १२०,१३१,१३६.१३८,१४६.१४६, ३५१३५ वणप्फइकाइय वनस्पतिकायिक जी० ३.१९६ ५६,३,६,१८ से २० , ८,४,५, ६।१८२,२५६, वणप्फति वनस्पति जी० ३.१२३ २५८,२६६ यणप्फतिकाइय [वगालिकायिक] श्री ३।१२६, वणस्सतिकाल वनस्पत्तिकाल] जी० २८६ से ८८,६० से १२,११६,१३१,१३३, ३।११३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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