Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 528
________________ नोपज्जत्तग-मएसघण नोपज्जत्तग [नोपर्याप्तक] जी० ६।८८,६४ पउमजाल [पद्मजाल] रा० १६१. जी. ३।२६५ नोपरित्त [नोपरीत] जी० ७५ पउमद्दह [पद्मद्रह] जी० ३।४४५ नोबायर [नोबादर) जी० ६६५,९८ से १०० पउमपत्त [ पद्मपत्र रा० २४. जी० ३।२७७ नोभवसिद्धिय [नोभवसिद्धिक ] जी० ६।१०६ पउमपम्हगोर पद्मपक्ष्मगौर| ओ०५१, जी० नोसण्णा | नोसंज्ञा] जी० १२१३२ ३१०६४ नोसण्णि [नोसंझिन्] जी० १११६,१३३; ६।१०१, पउमप्पभा [पदरप्रभा जी० ३१६८३ १०४,१०८ पउमरुक्ख [पझरूक्ष ] जी० ३१८२६ नोसुहम [नोसूक्ष्म ] जी० ६१६५.६८ से १०० पउमलया [पघलता ओ०११,१३. रा०१७,१८, २०,३२,३४,३७,१२६,१४५,१८६. जी. ३३२६८,२७७,२८८,३००,३०८,३११,३१५, पइट्ठा प्रतिष्ठा] ओ० १६.२१,५४ ३३७,३५६,३७२,३६०,३६६,५८४,६०४ पइट्ठाण प्रतिष्ठान ] ओ० १६८. रा० १३०, । पउमलयापविभत्ति पद्मलताप्रविभक्ति ] रा० १०१ १३१,१४७,१४८, १६०,२८०. जी० ३ २६४, पउमवण [पनवन] जी० ३१८२६ ३०१,३२१ पउभवरवेइया [पद्मवरवेदिका रा० १७४,१८६ पट्ठिय [प्रतिष्ठित] ओ० १६०१,२. से १६८,२००,२०१,२३३,२६३. जी. जी० ३३१०५७ से १०६४ ३।२१७,२५६,२६४ से २७०,२७२,२७३, पइण्णा [प्रतिज्ञा ] ओ० १४२,१४४. रा० ७४८ से ३६२,३६५,६३२,६३६,६६१,६६८,६७८, ७५०,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ६८३,६८६,७०६,७३६,७५४,७६२७६९, ७६४,७७३,८००,८०२ ८५७ पइभय [प्रतिभय] ओ० ४६ पउमवरवेदिया पिद्मवरवेदिका] जी० ३१२१७, पइरक्खिया | पतिरक्षिता] ओ०६२ २६३,२६६,२८६.२६८,७९८,८१२,८२३, पइरिक्क [दे०] जी० ३३५६४ ८३६८५०,८८२,६११ पइसेज्जा [पति शय्या] ओ० ६२ पउमसंड [पापण्ड] जी० ३१८२६ पईव [प्रदीप रा० ७७२ पउमा [पना] जो० ३।६८३,९२० पउंज प्र+युज]-पउंजइ. रा०६७१. पउमासण पासन रा० १८१,१८३. जी० -पउंजंति ओ०६८. रा० २८२. जी० ३।४४८ ३.२६३,३६६,३७१ पउंजमाण [प्रयुञ्जान ] ओ० ६४ । पउमुत्तर पद्मोत्तर | जी० ३१६०१ पउंजियव प्रयोक्तव्य] रा० ७७६ ।। पउमुप्पल [पोत्पल ] रा० ८११ पउट्ठ [प्रकोष्ठ ओ० १६. जी० ३४५६६ पउर [प्रचुर] ओ० १,१४,४६,७४,१४१. रा० पउत प्रयुत] जी० ३१८४१ ६७१,७६६ पउम | पद्म ओ० १२,१६,१५०. रा० २३,१३१, पउसिया' [बकुलिका ] ओ० ७० १३८,१४७,१४८,१९७,२७६,२८०,२८८, पएस प्रदेश] ओ० १६५.१०. रा० ४०, १३२, ८११. जी. ३।२५६,२६६,२६१,३०१,४४६, १५४. जी० ११५,३३, ३३०२,३६८,५७१, ४५४,५६७,५९८,६४२,६४३,६५२ से ६५४, ७१५,८०८,८१६ ६५७,६५८,८२६,८४१,६३७ पएसघण प्रदेशधन ] ओ० १६॥३ पउमगंध [पगन्ध | जो० ३।६३१ १. बउतियाहिं [ राय० सू० ८०४] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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