Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 469
________________ खव-खुडाय खिव [क्षपय् ]--खवेइ ओ० १५२. खिम्जमाण [खिद्यमान] ओ० १३३. जी० ३।३०३ जी० ३०८३८।१८ खित्त [क्षिप्त जी० ३१६८६ खवयंत [क्षपयत् ] ओ० १८२ खिप्पामेव [क्षिप्रमेव] ओ० ५५. रा० ६. जी. खवेत्ता क्षियित्वा] ओ० १६८ खसर खसर] जी० ३१६२८ खिवित्ता [क्षिप्वा] जी० ३।६८८ खहयर खेचर] ओ० १५६. जो० १६८,११३, खीण [क्षीण] ओ० १६८ ११६,११७,१२५, २।२५,६६,७२,७६,८३, खीर [क्षीर] ओ० ६२,६३,. रा० २६. जी० ८७,६६,१०४,११३,१३१,१३६,१३८,१४६, ३२८२,७७५ १४६; ३.१३७,१४५ से १४७, १६१ खीरधाई [क्षीरधात्री] रा०८०४ खहयरो [खेचरी] जी० २।३,१०,५३,६९,७२, खोरपूर [क्षीरपूर] रा० २६. जी० ३।२८२ १४४,१४६ खीरवर [क्षीरवर] जी० ३८६२,८६३,८६५ खिा [खाद्-खज्जइ. रा० ७८४---खाइ. खीरासव क्षीराश्रव] ओ० २४ खीरोद [क्षीरोद] जी० ३२८६,४४५,८६५,८६६ रा० ७३२ खाइ [दे०] ओ० १६२ ८६८,६५६,६६३ खाइम [खाद्य ] ओ० ११७,१२०,१४७,१६२. खोरोदग [क्षीरोदक] जी० ३।४४५,९६३ खोरोबय [क्षीरोदक] जी० ११६५ रा० ६६८,७०४,७१६,७५२,७६५,७७६, खोरोयग [क्षीरोदक] रा० १७४,२७६ ७८७ से ७८६,७६४,७६६,८०२,८०८ ख क्षुध्] जी० ३।१२७,५६२ खाओवसमिय {क्षायोपमिक] रा० ७४३ खुज्ज [कुब्ज] जी० १६११६ खाणु स्थाणु] जी० ३६२५,६३१ खुज्जा [कुब्जा] ओ० ७०. रा० ८०४ खाम [क्षमय ]-खामेइ. रा० ७७७ खुडू क्षुद्र रा० १७४,१७५,१८०. जी. ३१२६६, खामित्तए [क्षमयितुम् ] रा० ७७७ २८७,२६२,४१०,५७६,६३७,७३८,७४३, खाय [खात] ओ०१ ७६३,८५७,८६३,८६६,८७५,८५१ खायमाण खादत् ] जी० ३।१११ खुडखड्डग [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८० खार [क्षार] जी० ३३६२७,६५५ खुडखुडय [क्षुद्रक्षुद्रक] रा० १८१ खारय [क्षारक] जी० ३१७३१ खुड्डय [क्षुद्रक] रा० २४७. जी० ३।४०६ खारवत्तिय क्षारवतित ] ओ० ६० खुड्डा क्षुद्रक } रा० २४८,२४६. जी० ७११७ खारा [खारा] जी० २६ खुड्डाग [क्षुदक] ओ० २४. रा० ३५४. जी. खारोदय [क्षारोदक ] जी० ११६५ ३१५१६, ७५,६,१०,१२,१५,१६,१८६२ से खिखिणिजाल [किङ्किणीजाल] रा० १६१. जी. ४,४०,५१,१७१,२३६,२३८,२४३,२४४,२४६, ३३२६५,३०२ २७१,२७३,२७६ से २८२ खिखिणी ! किङ्किणी ] ओ० ६४. रा० १३२,१७३, खुड्डापाताल [क्षुद्रकपाताल] जी० ३१७२६,७२८, ६८१. जी० ३१२८५,५६३ ७२६ खिसण [ खिसन ] ओ० ४६ खुड्डापायाल क्षुद्र कपाताल जी० ३१७२६,७२७, खिसणा [खिसना] ओ० १५४,१६५,१६६. रा० ७२६ खुड्डाय [क्षुद्रक] ओ० १७०. जी० ३।८६,२६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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