Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 468
________________ कोहंगक-खलु कोहंगक [कोभङ्गक] ओ०६ कोहकसाइ [क्रोधकधायिन् ] जी० १११३१; ६.१४८,१४६,१५२,१५५ कोहकसाय {क्रोध कषाय ] जी० १११६ कोहविवेग [ क्रोधविवेक ] ओ० ७१ ख [ख] रा० ६५ खइय [क्षायिक] रा० ७६१,८१५ खइय [खचित] जी० ३३३७२ खमोवसम [क्षयोपशम ] ओ० ११६,१५६ खंजण [खञ्जन] ओ०१३. रा० २५. जी० ३१२७८ खंड [खण्ड] जी० ३१५६२,६०१,८६६ खंडरक्स [खण्डरक्ष] ओ० १ खंडिय [खण्डिक] ओ० ६८ खंति [क्षान्ति । ओ० २५,४३. रा०६८६,८१४ संतिखम [क्षान्तिक्षम ओ० १६४ खंवग्गह [स्कन्दग्रह] जी० ३ ६२८ खंदमह [स्कन्दमह] रा०६८८. जी० ३१६१५ खंघ [स्कन्ध] ओ० ५,८,१३,१६. रा० ४,१२, २२७,२२८,७५८,७५६. जी० ११५,७१,७२, ३३२७४,३८६,३८७,५६६,६७२,६७६,७६३ खंषमंत | स्कन्धवत् ] ओ० ५,८. जी० ३.२७४ खंधावारमाण [स्कन्धावारमान] ओ० १४६. रा० ८०६ खंधि [स्कन्धिन् ] जी० ३१२७४ खंभ [स्तम्भ ] रा० १७ से २०,३२,६६,१२६, १३०,१३८,१७५,१६०,१६७,२०६,२११, २७६,२६७,३०२,३२५,३३०,३३५,३४०. जी० ३।२६४,२६६,२८७,२८८,३००,३७२, ३७४,४६२,४६७,४६०,४६५,५००,५०५, ५६७,६४६,६७३,६७४,७५६,५८४,८८७, ११२८,११३० खंभपुडन्तर [स्तम्भपुटान्तर रा० १६७. जी० ३१२६६ खंभबाहा स्तम्भबाहु] स० १६७. जी० ३१२६६ खंभसीस [स्तम्भशीर्ष ] रा० १६७. जो० ३।२६६ खकारपविभत्ति खकारप्रविभक्ति] रा० ६५ खग्ग [खड्ग] ओ० २७,५१,६६. रा० २४६,६६४, ८१३. जी० ३१५६२ खरगपाणि खड्गपाणि] रा०६६४. जी० ३१५६२ खधित [खचित ] जी० ३१४१० खचिय [खपित] रा० ३२,१६०,२५६,२८५. ___ जी० ३३३३३,४५१ खज्जूर (सार) [खर्जू रसार] जी० ३१५८६ खजूरसार खजूरसार] जी० ३।८६० खजूरिवण [खजूरीवन] जी० ३१५८१ खट्टोदय [खट्टोदक ] जी० ११६५ बडहडग [दे० ] जी० ३।२६२ खण |क्षण] रा० ११६,७५१,७५३ खत्तिय क्षत्रिय ] ओ० १४,२३,५२. रा०६७१,६८७ खत्तियपरिब्वाय क्षत्रियपरिव्राजक] ओ०६६ खत्तियपरिसा [क्षत्रियपरिषद् ] रा० ६१,७६७ खन्न | दे० } जी० ३७८१,७८२ खम क्षम] ओ० ५२. रा० २७५,२७६,६८७. जी० ३.४४१,४४२ खध क्षय रा० ७६६ खयर [खदिर] रा० ४५ खर [खर] ओ० १०१,१२४. जी० ११५७,५८%; ३६६६.६१८ खरकंड [खरकाण्ड ] जी० ३,६,७,१४,२३,२६ खरपुढवी [खरपृथ्वी ] जो० ३११८५,१९१ खरमुहिवाय [खरमुखीवादक] रा०७१ खरमही खुरमुखी | ओ० ६७. रा० १३,७१,७७, ६५७. जो० ३।४४६,५८८ खल [खल ] ओ० २८ खलवाड [खलवाट ] रा० ७८१,७८५ से ७८७ खलु खलु] ओ० ५२. रा० ६. जी० १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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