Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 444
________________ ५५२ उदक-उप्पतित्ता उदक [ उदङ्क] जी० ३१५८७ उद्दा(ण) दे०] जी० ३१८७२ उदक [उदक] रा० २६. जी० ३।८१६ उद्दाइत्ता {अवद्राय, अवद्रुत्य ] जी० ३।५७५ उदकजोणिय [उदकयोनिक] जी० ३१७८७ उद्दाल [अवदाल] रा ० २४५. जी० ३१४०७ उदग [उदफा ओ०६३,११७. रा० १५१,२७६, उद्दाल [उद्दाल ] जी० ३१६३१ २८१. जी० ३१४४५,४४७,७२१,७२६,८५४, उद्दालक [उद्दालक] जी० ३१५८२ ८५७,६४६ उद्दिट्ट [उद्दिष्ट] जी० ३१८३८।२५ उदगत्त उदकत्व] जी० ३।७८७ उद्दिट्ठा [दे० उद्दिष्टा] ओ० १२०,१६२. उदगमच्छ [उदकमत्स्य ] जी० ३१६२६,८४१ रा०६९८,७५२.७८६. जी० ३१७२३,७२९ उदगमाल [उदकमाल ] जी० ३७६२ उद्देसिय [औद्देशिक ] ओ० १३४ उदगरस [उदकरस ] रा०२३३. जी. ३१२८६, उद्धसणा [उद्धर्षणा] रा० ७६६ ८१६,८५४,६५६,६५७,६६४ उद्धसित्तए [उद्धर्षितुम् ] रा० ७६६ उदगवारग [उदकवारक] जी० ३.११८ उद्धं मत [उद्धमत् ] जी० ३७३१ उदग्ग [ उदग्र] जी० ३१८३६ उद्धम्ममाण [उद्हन्यमान ] ओ० ४६ उदधि उदधि] जी० ३।१०६,५६७ उद्घायमाण [उद्धावत् ] ओ० ४६ उदय [उदय] ओ० ३७,११६,११७ उद्धार [उद्धार] जी० ३१९७३ उवय [उदक ] ओ० ६,१११ से ११३,११७,१३७, । उद्धारसमय [उद्धारसमय ] जी० ३।६७३ १३८, रा०६,२८०,२८२,२६१,३५१. उद्धारसागरोवम [ उद्धारसागरोपम] जी० ३।६७३ जी० ३१३२४,४४६,४४८,७२६,८६०,८६६, उद्धिय [उद्धृत ] ओ० १४. रा० ६७१ ८७२,८७८,६४६,६५५,६५७,६६१ उड्य [उद्भूत ] ओ० २,५५,६४. रा० ६,१२३२, उदयपत्त उदयप्राप्त] ओ० ३७ ५०,५२.५६,१३२,१३७,२३१,२३६,२४७, उदर [उदर जी० ३।५६६ | २८१. जी० ३१८६,१७६,१७६,१८०,१८२, उदहि [उदधि] मो० ४८ ३०२,३०७,३७२,३६३,३६८,४४५,४४७, उदि [उद्+इ]- उदेति. जी० ३।१७६ उदीण उदीर्चन] रा० १२४. जी० ३१५७७, १०३६ उधुमंत [उद्ध्मायमान] रा०७७ उदोणवाय [उदीचीनवात] जी. ११८१ उधुव्यमाण [ उदयमान ] ओ० ६५ उदीर [उद्+ ईरय]-- उदीरइ. रा० ७७१. उद्ध्य [ उद्धृत] रा० १०,१२,५६,२७६ -उदीरेंति, जी ३६११० उन्नइय [उन्नलिक] जी० ३।११८,११६ उदीरंत [उदीरयत्] रा० ७७१ उन्नय उन्नत ] ओ० १६ जी० ३१५६७,५९८ उदीरण [उदीरण] ओ० ३७ उपप्पुय ! उपप्लुत ] जी० ३।११६ उदीरिय [उदीरित] रा० १७३,७७१. उप्पइत्ता उत्पत्य ] ओ० १६२. जी० ३.१०३८ जी० ३।२८५ उप्पण्ण [उत्पन्न ] ओ० १६६. रा० ७७१ उदु [ऋतु] जी० ३१९४१ उप्पण्णकोऊहल्ल [उत्पन्नकोतूहल्ल] ओ०८३ उद्दडग उदंडक] ओ०६४ उप्पणसंसय [ उत्पन्नसंशय ] ओ०८३ उद्दवणकर [उदवणकर] ओ० ४० उप्पण्णसङ्घ [उत्पन्नश्रद्ध] ओ० ८३ उहवेत्ता उद्त्य] रा०७६१ उप्पतित्ता [उत्पत्य जी० ३।२५७ ४५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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