Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati
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५६२
ओहाडणी-कंदणया
क
ओहाडणी [दे० अवघाटनी] रा० १३०,१६०. कंचणमय [काञ्चनमय] जी० ३१६६१ जी० ३।२६४,३००
कंचणिया [काञ्चनिका ओ० ११७ ओहि [अवधि ] जी० ३११०३, ११११ कंचि [ किञ्चित् ] ओ० ११६,११७. रा० ७६५ ओहि --ओह ओघ] रा० ६,१२
कंची [काञ्ची] जी० ३।५६३ ओहिणाण [अवधिज्ञान ] ओ० ४०. रा० ७३६, कंचुद्द | कञ्चुकिन् ] रा०६८८ से ६६०,८०४ ७४३,७४६
कंचुइज्ज | कञ्चुकीय ] आ० ७० ओहिणाणलखि [अवधिज्ञानलब्धि | ओ० ११६ कंचय | कञ्चुक ! १० ६६,७० ओहिणाणविनय | अवधिज्ञानविनय] ओ०४० कंटक कटक ] जी० ३१६६२ ओहिणाणि [अवधिज्ञानिन् ] ओ० २४. कंटय कण्टक ] ओ०१४. रा०६७१. जी०
जी० ११११६,१३३; ६।१६१,१६५,१६६, ३.८५,६२२ १६७,१९६,२०४,२०८
कंठ कण्ठ | ओ०७१. रा०६१,६६,७६ ओहिदंसणि [अवधिदर्शनिन् ] जी० २२६, ८६; कंठमुरवि | दे० कण्ठमुरवी ] ओ० १०८,१३१. ६।१३१,१३४,१३८,१४०
रा० २८५ ओहिनाणि | अवधिज्ञानिन्] जी० ११६६; ६।१५६
कंठसुत्त [कगटसूत्र ] जी० ३.५६३ ओहिय [औधिक ] जी० २।५१; ५।२४,२६.३०
कंठेगुण [कण्ठेगुण] रा० १३१,१४७,१४८,२८०. ओहीनाण अवधिज्ञान ! जी० ३३११११
जी० ३१३०१,४४६ कठेमालकड [कृतकण्ठेमाल] ओ० ५२. रा० ६८७
से ६८६ क [क] रा० ६५
कंड काण्ड] रा० ६६४. जी० ३१६,७,६,१०,१६, कह [कति] ओ० १७३. रा० ७६६,७७६.
१७,२४,२५,६० से ६३,५६२ जी० ०१५,२१ से २३,२६,२७,६४; ३७६, कंडग | काण्डक] रा० ७५८,७५६ १६६ से १७१,७४८,८०६
कंडय [काण्डक] रा० ७५८,७५६ कइसमइय | कतिसामयिक] ओ० १७४
कंडु [कण्ड ओ०६६ कओ | कुतस् जी० ११५१, ३११५५,१०८२ कंडु [कन्दु] जी० ३१७८ कंक [क] जी. ३३५६८
कंत [कान्त ओ० १५,४६.६८,११७ १४३. कंकड |ङ्कट ओ० ६४. रा० १७३,६८१.
रा० १७,१८,६७२,६७३,७५० से ७५३, जी० ३२२८५
७७४,७६६,८०१. जी. १११३५, ३१५९७, किंख काङ्क्ष ) --कखइ. रा० ७१३.- कखंति. ८७२,१०६०,१०६६ ओ० २०.रा० ७१३
कंततराय [कान्ततरक] रा०२५ से ३१,४५. कंखिय काक्षित रा० ७७४
जी० ३१२७८ से २८४,६०१ कंचण [काञ्चन] ओ० २६,६४. रा० ३२,१५६, कंतारभत्त कान्तारभक्त | ओ० १३४
२६२. जी० ३.३३२,३७२,४५७,४८७,५८६, कतारभयग | कान्तारभृतक) ओ० ६० ५६३,५६७
कति कान्ति ! ओ० २३,६६.७१. रा०६१ कंचणकोसी । काञ्चनकोशी] ओ० ६४
कंद कन्द ओ०६४,१३५. रा०२२८. कंचणग कान्चनक] जी० ३१६६१,६६२,६६४, जी० ११७१, ३४३८७,६४३,६७२
कंबणया [क्रन्दन ओ० ४३
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