Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 447
________________ उवणी-उववण्णपुत्व ५८५ उवयारियालेण [उपकारिकालयन] रा० २०१, २०२ उिवणी उप+नी] ---उवणे इ. रा०६८३ --उवणेति. रा० २८७. जी० ३.४५० --उवणेहि. रा०६८०-उवणेहिइ. रा०८०७ -- उवणेहिति ओ० १४५. रा० ८०५---- उवणेहिति ओ० १४६ उवणीत [उपनीत] जी० ३८५६ उवणीय [उपनीत] रा० ७२०,७२३. जी० ३.५६२,६०१ उवणीयअवगीयचरय उपनीतअपनीतरचरक] ओ० ३४ उवणीयचरय | उपनीतचरक] ओ० ३४ उवणेय [उपनेय ] रा० ७२० उिववंस (उप+दर्शयउवदसिस्सामि. रा. ७७१ -उवदंसेंति. रा० ७९. जी० ३.४४७ ---उवदंसेह. रा० ७३ उदवंसित्तए उपदर्शयितुम् | रा० ६३ उवदंसित्ता [उपदये ] रा० ७३ उववंसेमाण [उपदर्शयत् ] रा० ५६ उवदिट्ठ [उपदिष्ट] ओ० ४६ उवद्दव [उपद्रव ] जी० ३१६२४ उवनच्चिज्जमाण | उपनृत्यमान रा०६८५ उनिमंत [उप + नि- मन्त्रम् --उनिमंतति. रा० ७१३ उवनिविट्ट उपनिविष्ट] रा०२० उपप्पयाण उपप्रदान } रा० ६७५ उवभोगपरिभोगपरिमाण | उपभोगपरिमोग परिमाण ] ओ०७७ उवमा [उपमा ओ०१३,२३,१६५।१६. रा० १५६,७५२,७५४,७५६,७५८,७६०,७६२, ७६४. जी० ३१२७,२३२ उवमा [दे०] खाद्य-विशेष जी० ३१६०१ उवयार | उपचार ०२,१५,५५. ० १२,३२, ७०,२८१,२६१,२६३ से २६६,३००,३०५, ३१२,३५४,६७२,८०६,८१०. जी. ३७२, ४४७,४५७ से ४६२,४६५.४७०,४७७,५१६, ५२०,५५४,५८०,५९१,५६७ उवयारियालयण (उपकारिकालयन ] रा० २०३ उपरि उपरि रा० १३०, जी० ३.२६४ उरि [उरि ओ० १२. रा० ३७. जी० ३१७७ उरिचर | उपरिचर जी० ३।११७ उरिम [उपरितन | आ० १६०. जी० ३१७१,७२, ३१७, ३४६,३५७ उवरिमगेविज्ज [उपरितनर वेय | जी० २०६६ उवरिमगेवेज्ज {उपरितनवेय] जी० २.१४८,१४६ उरिमगेवेज्जग | उपरितनगंवेयक ] जी० ३:१०५६ उवरिल्ल [उपरितन] ओ० १६२,१६५. जी० ३।६० से ७०,७२,६७४,७२५,७२८,१००३ से १००७.११११ उवलंभ [उप+लभ--उबलभेज्जा . जी० ३.११८--उक्लभिस्साम. रा० ७६८ उबलख | उपलब्ध] ओ० १२०,१६२. रा०६६८, ७५२,७८६ उवलालिज्जमाण [उपलाल्यमान ] रा० ६८५, ७१०,७७४,८०४ उलिप उप लिम्-उलिप्पइ. ओ० १५०. स०८११-उलिप्पिहिति.ओ० १५०. ८१२ उवलित्त [उपलिप्त आ० ५५,६० से ६२. रा० २५१,८०२. जी. ३१४४७ उवलेवण | उपलेपन] रा० ७७२ उववज्ज [उप+पद् |-उववज्जइ. ओ० ८७ ....-उववज्जति. ओ० ७३. जी०१.५१ --उववज्जिहिति ओ० १४०---उववजिहिसि रा० ७५० उववण (उपपन्न | ओ० ११७. रा० २७६,७५० से ७५३,७६६. जी. ३१५३,११७,१२६५, ४३६,४४०,४४५,८३८।२१,८४३,८४६ उबवण्णग | उपन्तक रा० २७६ से २७८,२८४, २८७,६६६. जी० ३१४४३ से ४४५,८४२, ८४५ उववण्णपुष्व [उपपन्नपूर्व] जी० ३।५३,६७५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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