Book Title: Agam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Jivajivabhigame Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Mahapragna Acharya
Publisher: Jain Vishva Bharati

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Page 436
________________ आयवणा-आवथ आयावणा [आतापना] ओ०६४ आयाक्य | आतापक] ओ० ३६ आयावाय आत्मबाद ओ० २६ आयावेमाण आतापयत् ] ओं० ११६ आयाहिण आदक्षिण | ओ०४७,५२,६९,७०,७८, ८०,८१. रा०६,१०,१२,५६,५८,६५,७३,७४, ११८,१२०,६८७,६६२,६६५,७००,७१६, ७१८,७७८ आयिण [आजिन जी० ३१६३७ आरंभ आरम्भ | ओ०६१ से ६३,१६१,१६३ आरंभसमारंभ आरम्भसपारम्भ ] ओ०६१ से १३ आरण | आरण] ओ० ५१,१६२. जी० ३।१०३८, १०५४,१०६६,१०६८,१०७६,१०८८,११११ आरबी | आरबी] ओ० ७०. रा०८०४ आरभड [आरभट] रा० १०८,११६,२८१. जी० ३१४४७ आरभडभसोल [आरभटभसोल] रा० ११०,२८१. जी० ३१४४७ आराम | आराम ] ओ० १,३७. रा० १२,६५४, ६५५,७१६. जी. ३१५५४ आराह आ+राध्]--आराहेहिइ रा०८१६ आराहग आराधक | ओ० ८६ से १५,११४,११७, १५५,१५७ से १६०,१६२,१६७ आराहणा आराधना ओ० ७७ आराहय [आराधक ओ०७६,७७. रा० ६२ ।। आराहिता | आराध्य ] ओ० १५४. रा० ८१६ आरिय | आर्य | ओ० ५२,७१. रा० ६६७,६८७. जी० ३१२२६ आरहण आरोहण] रा० २६१,२६४,२६६,३००, ३०५,३१२,३५५. जी० ३१४५७,४५६,४६१, ४६२,४६५,४७०,४७७,५१६,५२०,५४७,५६४ आरोहग आरोहक] ओ०६४ आलंकारिय [आलङ्कारिक] जी० ३१४५० आलंबण [आलम्बन | ओ० ४३. रा० ६७५ आलंबणभूय [आलम्बनभूत] रा० ६७५ आलय [आलय] रा० ८१४ आलवंत आलपत्] रा० ७७ । आलावग [आलापक] जी० ३१६२; १५१,५८ आलिंग | आलिङ्ग] रा० २४,६५,६७,१७१. जी० ३।२१८,२७७,३०६,५७८,५८८,६७०,७५५, ८८३ आलिगक [आलिङ्गक] जी० ३१७८ आलिंगणवट्टिय [आलिङ्गनतिक रा० २४५. जी० ३४०७ आलिघरग [आलिगृहक] रा०१८२,१८३. जी० ३ २६४,८५७ आलिघरय आलिगृहक जो० ३।२६५,८५७ आलिह [आ-+-लिख्]-..आलिहइ रा० २६१. ....आलिखति जी० ३,४५७ आलिहिता [आलिख्य ] रा० २६५. जी. ३१४५७ आलुय [आलुक | जी० ११७३ आलोइय [आलोचित] ओ० ११७.१४०,१५७, १६२,१६४,१६५ रा० ७६६ आलोय आलोक] ओ० ६३,६४. रा० ५०,६८, २९१,३०६. जी० ३।४५७,४७१,५१६ आलोयणारिह [आलोचनाह] ओ० ३६ आवइ [आपत् ! रा० ७५१ आवइकाल [आपत्काल ] ओ० ११७ आवकहिय यावत्कथिक ] ओ० ३२ आवज्जीकरण [आवर्जीकरण] ओ० १७३ आवड आवृत्त] रा० २४. जी. ३१२७७ आवडपच्चावडसेढिपसेढिसोत्थियसोवत्थियप्रसमाणबवद्धमाणगमच्छंडमगरंडाजारामाराफुल्लावलिपउमपत्तसागरतरंगवसंतलतापउमलयभत्तिचित्त [लावृत्तप्रत्यावृत्तश्रेणिप्रवेणिस्वस्तिकसौवस्तिक पूष्यमाण ववर्धमाणकमत्स्याण्डमकराण्डकजारकमारकफुल्लाबलिपद्मपत्रसागरतरङ्गवासन्तीलतापमलताभक्तिचित्र] रा० ८१ आवडिय [आपतित] रा०१४ आवण [आपन] ओ०१,५५. रा०२८१. जी. ३.४४७,५६४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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