Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Shashtam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar

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Page 33
________________ रायगिहस्स नगरस्स आरामेसु य उज्जाणेसु य वावि-पोक्खरणि-दीहिय-गुंजालिय-सर-सरपंतिय सरसरपंतियासु य जिण्णुज्जाणेसु य भग्गकूवेसु य मालुयाकच्छएसु य सुसाणेसु य गिरिकंदरेसु य लेणेसु य उवहाणेस् य बहुजणस्स छिद्देस् य जाव अंतरं च मग्गमामे गवेसमाणे एवं च णं विहरड़ । [४६] तए णं तीसे भद्दाए भारियाए अण्णया कयाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमंयंसि कुडुंबजागारियं जागरमाणीए अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव सम्प्पज्जित्था- अहं धणेणं सत्थवाहेणं सद्धिं बहुणि वासाणि सद्द-फरिस-रस-गंध-रूवाणि माणुस्सगाइं कामभोगाइं पच्चणुब्भवमाणी विहरामि, नो चेव णं अहं दारगं वा दारियं वा पयामि तं धण्णाओ णं ताओ अम्मयाओ जाव सुलद्धे णं माणुस्सए जम्मजीवियफले तासिं अम्मयाणं जासिं मण्णे नियगकुच्छिसंभूयाइं थणदुद्ध-लुद्धयाई महरसमुल्लावगाइं मम्मणपयंपियाई थणमूला कक्खदेसभागं अभिसरमाणाई मुद्धयाइं थणयं पियंति तओ य कोमलकम-लोवमेहिं हत्थेहिं गिण्हिऊणं उच्छंग-निवेसियाणि देति समुल्लावए पिए सुमहुरे पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए, तं णं अहं अधण्णा अपुण्णा अकयलक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता, तं सेयं मम कल्लं पाउप्पभाए रयणीए जाव उहिँमि सूरे सहस्सरस्सिंमि दिणयरे तेयसा जलंते धणं सत्यवाहं आपुच्छित्ता धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणुण्णाया समाणी सुबहं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता सुबह पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लालंकारं गहाय बहुहिं मित्त-नाइ-नियग-सयणसंबंधि-परियण-महिलाहिं सद्धिं संपरिडा जाइं इमाई रायगिहस्स नयरस्स बहिया नागाणि य भूयाणि य जक्खाणि य इंदाणि य खंदाणि य रुद्दाणि य सिवाणि य वेसमणाणि य तत्थ णं बहणं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाणं य महरिहं पप्फच्चणियं करेत्ता जन्नपायपडियाए एवं वइत्तए-- जइ णं अहं देवाणुप्पिया दारगं वा दारियं वा पयायामि तो णं अहं तुब्बं जायं च दायं च भायं च अक्खयनिहिं य अणवड्ढेमि त्ति कट्ट उवाइयं उवाइत्तए, एवं संपेहेइ संपेहेत्ता कल्लं जाव जलंते सयक्खंधो-१, अज्झयणं-२ जेणामेव धणे सत्थवाहे तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता एवं वयासी- एवं खलु अहं देवाणुप्पिया तुब्भेहिं सद्धिं बहूई वासाइं जाव देंति समुल्लावए सुमहुरे पिए पुणो-पुणो मंजुलप्पभणिए तं णं अहं अधण्णा अपुण्णा अकयव-लक्खणा एत्तो एगमवि न पत्ता तं इच्छामि णं देवाणुप्पिया! तुब्बेहिं अब्भणुण्णाया समाणी विपुलं असणं जाव अनुवड्ढेमि उवाइयं करित्तए । तए णं धन्ने सत्थवाहे भदं भारियं एवं वयासी-मम पि य णं देवाणप्पिए एस चेव मनोरहेकहं णं तमं दारगं वा दारियं वा पयाएज्जासि?, भद्दाए सत्थवाहीए एयमटुं अनजाणइ, तए णं सा भद्दा सत्थवाही धणेणं सत्थवाहेणं अब्भणण्णाया समाणी हद्वतुट्ठ-चित्तमाणंदिया जाव हरिसवस-विसप्पमाणहियय विप्लं असण-पाण-खाइम-साइमं उवक्खडावेइ उवक्खडावेत्ता सुबह पुप्फ-वत्थ-गंधमल्लालंकार गेण्हइ गेण्हित्ता सयाओ गिहाओ निग्गच्छद निग्गच्छित्ता रायगिहं नयरं मज्झंमज्झेणं निग्गच्छिइ निग्गच्छित्ता जेणेव पोक्खरिणी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुक्खरिणीए तीरे सुबह पुप्फ-[वत्थ-गंध]मल्लालंकारं ठवेइ ठवेत्ता पुक्खरिणिं ओगाहेइ ओगाहित्ता जलमज्जणं करेइ करेत्ता जलकीडं करेइ करेत्ता ण्हाया कयबलिकम्मा उल्लपडसाडिगा जाइं तत्थ उप्पलाई जाव सहस्सपत्ताइं ताइं गिण्हइ गिण्हित्ता पक्खरिणीओ पच्चोरुहइ पच्चोरुहित्ता तं सुबह पुप्फ-वत्थ-गंध-मल्लं मल्लालंकारं गेण्हइ गेण्हित्ता जेणामेव नागघरए य जाव वेसमणघरए य तेणामेव उवागच्छड उवागच्छित्ता तत्थ णं नागपडिमाण य जाव वेसमणपडिमाण य आलोए पणामं करेइ ईसिं पच्चुण्णमइ पच्चुण्णमित्ता [दीपरत्नसागर संशोधितः] [32] [६-नायाधम्मकहाओ]

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