Book Title: Agam 06 Nayadhammakahao Shashtam Angsuttam Mulam PDF File
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Deepratnasagar
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हं भो मागंदिय-दारगा अपत्थियपत्थिया किण्णं तब्भे जाणह ममं विप्पजहाय सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमदं मज्झंमज्झेणं वीईवयमाणा? तं एवमवि गए जइ णं तुब्भे ममं अवयक्खह तो भे अत्थि जीवियं, अहं णं नावयक्खह तो भे इमेणं नीलप्पलगवल जाव एडेमि, तए णं ते मागंदिय-दारगा रयणदीवदेवयाए अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अभीया अतत्था अनुव्विग्गा अक्खुभिया असंभंता रयणदीवदेवयाए एयमटुं नो आढ़ति नो परियाणंति नो अवयक्खंति अणाढायमाणा अपरियामाणा अणवयक्खमाणा सेलएणं जक्खेणं सद्धिं लवणसमई मज्झंमज्झेणं वीईवयंति ।
तए णं सा रयणदीवदेवया ते मागंदिय-दारए जाहे नो संचाएइ बहुहिं पडिलोमेहि उवसग्गेहि चालित्तए वा लोभित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा ताहे महरेहिं सिंगारेहि य कलुणेहि य उवसग्गेहि उवसग्गेउं पयत्ता यावि होत्था
___ हं भो मागंदिय-दारगा जइ णं तुब्भेहिं देवाणुप्पिया! मए सद्धिं हसियाणि य रमियाणि य ललियाणि य कीलियाणि य हिंडियाणि य मोहियाणि य ताहे णं तुब्भे सव्वाइं अगणेमाणा ममं विप्पजहाय सेलएणं सद्धिं लवणसमुदं मज्झमज्झेणं वीइवयह, तए णं सा रयणदीवदेवया जिणरक्खियस्स मणं ओहिणा आभोएइ आभोएत्ता एवं वयासी- निच्चपि य णं अहं जिणपालियस्स अणिट्ठा अकंता अप्पिया अमणण्णा अमणामा निच्चं ममं जिणपालिए अणिढे अकंते अप्पिए अमणण्णे अमणाणे निच्चंपि य णं अहं जिणरक्खियस्स इट्ठा कंता पिया मणुण्णा मणामा निच्चपि य णं ममं जिणरक्खिए इडे कंते पिए मणण्णे मणामे, जइ णं ममं जिणपालिए रोयमाणिं कंदमाणिं सोयमाणिं तिप्पमाणिं विलवमाणिं नावयक्खड़ किण्णं तमंपि जिणरक्खिया! ममं रोयमाणिं कंदमाणिं सोयमाणिं तिप्पमाणिं विलवमाणिं नावयक्खसि? |
[१२६] सा पवररयणदीवस्स देवया ओहिणा जिणरक्खियस्स नाऊण |
वधनिमित्तं उवरिं मागंदिय-दारगाण दोण्हंपि ।। [१२७] दोसकलिया सललियं नाणाविह-चुण्णवास-मीस दिव्वं ।
धाण-मण-निव्वुइकरंसव्वोउय-सुरभिकुसुम-वुट्ठिपमुंचमाणी ।। नाणामणि-कणग-रयण-घंटियाखिखिणि नेउर-मेहल-भूसणरवेणं ।
दिसाओ विदिसाओ पूरयंती वयणमिणं वेइ सा सकल्सा ।। [१२९] होल वसुल गोल नाह दइत पिय रमण ।
कंत सामिय निग्धिण नित्थक्क थिण्ण निक्किकव अकयण्ण्य सिढिलभाव निल्लज्ज लुक्ख ।
अकलूण जिणरक्खिय मज्झं हिययरक्खगा ॥
[१३०] न हु जुज्जसि एक्कियं अणाहं अबंधवं तुज्झ । सयक्खंधो-१, अज्झयणं-९
[१२८]
चलण-ओवायकारियं उज्झिउं महन्नं ।
गुणसंकर! अहं तुमे विहूणा न समत्थावि जीविठं खणंपि ।। [१३१] इमस्स उ अणेगझस-मगर-विविधसावय- ।
सयाउलधरस्स रयणागरस्स मज्झे ।।
अप्पाणं वहेमि तुज्झ पुरओ एहि नियत्ताहि । [दीपरत्नसागर संशोधितः]
[87]
[६-नायाधम्मकहाओ]
टिपरत्नसागर संशोधितः ।

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