Book Title: Agam 03 Ang 03 Sthanang Sutra Part 05 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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श्री
स्था. भा. ५ वे का शुद्धिपत्र श्रीमान् सुज्ञपाठकगण ___ सविनय निवेदन है कि “गच्छतः स्खलनं कापि" इस कथन के अनुसार यह शास्त्रप्रकाशनमें भी मुफसंबंधी एवं प्रिंटिंग संबंधी गलतियां होना संभवित है सो वाचक गण " नीरक्षीर" न्यायसे सुधार कर पढलेंगे हि तथापि विशेषउल्लेखनीय जो जो अशुद्धियां दृष्टिगोचर हुई हैं उसका यह शुद्धिपत्र देनेमें आता है तो वह सुधार कर पढ लेवें यही विनन्ति, अशुद्ध
शुद्ध
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१ २३ रत्यरत्य कूलमतिकूल- रत्यरत्यनुकूलप्रतिकूल ભૂતકાળણ
ભૂતકાળમાં वेदनासत्राणि
वेदनासूत्राणि चयादीनामर्थस्त्वम् चयादीनामर्थस्त्ययम् છે બંધ પડિ જશે
તે બંધ પડિ જશે. ભયસુક્ત
ભયયુક્ત जो साधु जनसे
जो साधुजन लज्जासे मरणासहणजुत्तो
मरणाराहणजुत्तो माया कृत्वा
मायां कृत्त्वा सुवर्णाक रोवा
सुवर्णकारो वा चिरट्टिएसु
चिरहिइएम अयति में
आयतिमें दवलोगाओ
देवलोगाओ अन्यवाला होताहै अन्यविशेषणो वाला होता है ३५ अहतनाटय गीतवादित तन्त्रा अहतगीतवादिततन्त्री कपुरवा
केयूरवान् અલચિત
આચિત बहुजण बहुजायरूझरययाई बहुजणबहुजायस्वरययाई ४३ પ્રતિક્રમણ આદિ તેઓ. પ્રતિક્રમણ આદિ કરે છે તેઓ ૪૮ અવસર
અસંવર सूत्र
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શ્રી સ્થાનાંગ સૂત્ર : ૦૫