Book Title: Abhinav Vikruti Vigyan
Author(s): Raghuveerprasad Trivedi
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org [ ६ ] भी मेरा मत रहा । इसलिए मैंने अपने सब ग्रन्थों और लेखों में आयुर्वेद के सामने एलोपाथी और एलोपाथी के सामने आयुर्वेद का मत दिया है और जहाँ पर दोनों में अन्तर दिखाई दिया वहाँ पर उसका स्पष्टीकरण करने का प्रयास किया है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभिनव विकृति-विज्ञान मेरे शिष्य आयुर्वेदाचार्य श्रीयुत रघुवीर प्रसाद त्रिवेदी की नयी देन है । आप हिन्दी के सिद्धहस्त लेखक हैं । आपने आज तक अनेक ग्रन्थ लिखे हैं । आपके इस ग्रन्थ की मुझे निम्न विशेषताएँ मालूम पड़ती हैं | हिन्दी आज तक विकृति विज्ञान पर कोई प्रामाणिक ग्रन्थ नहीं था । जहाँ तक मेरा ख्याल है हिन्दी में इस विषय का यह प्रथम ग्रन्थ है । प्रथम होने पर भी यह छोटा नहीं है बल्कि बहुत बड़ा कहा जा सकता है । इसमें पाश्चात्य विकृति विज्ञान के साथ आयुर्वेदीय विकृति-विज्ञान भी विस्तृत और विशद रूप से वर्णन किया गया है । प्रबोधिनी एकादशी संवत् २०१३ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय कई वर्ष पूर्व मेरठ के हिन्दी - साहित्य सम्मेलन के विज्ञान परिषद् के अध्यक्षीय भाषण में मैंने भविष्यवाणी कही थी, 'यदि आज वैद्यक महाविद्यालयों में हिन्दी द्वारा वैद्यक शिक्षा प्रारम्भ की जाय तो उसके पाँच वर्षों के अभ्यासक्रम के साथ-साथ लगभग सब पाठ्य पुस्तकें बनायी जा सकती हैं, इस काम में काशी विश्वविद्यालय के आयुर्वेद महाविद्यालय से प्रावीण्य के साथ उत्तीर्ण हुए वैद्य बहुत कुछ सहायता कर सकते हैं ।' आज इस ग्रन्थ की प्रस्तावना लिखने के समय अपनी भविष्यवाणी की दृष्टि से जब मैं अपने छात्रों द्वारा प्रकाशित और लिखित ग्रन्थों की ओर दृष्टिपात करने लगा तब मुझे प्रसन्नता अवश्य हुई। अपनी इच्छानुसार छात्रों द्वारा काम सम्पन्न होते हुए देखकर किसको आन्तरिक प्रसन्नता नहीं होगी । परन्तु मैं इससे अधिक प्रसन्नता चाहता हूँ । अतः अन्त में मैं सेवानिवृत्ति के समय, आपको हृदय से प्रेमपूर्वक आशीर्वाद देता हूँ कि भगवान् विश्वनाथ आपको शक्ति, बुद्धि और उत्साह दे ताकि आपके द्वारा उत्तरोत्तर अच्छे-अच्छे ग्रन्थों का निर्माण होता रहे । भास्कर गोविन्द घाणेकर For Private and Personal Use Only

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