Book Title: Agam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Author(s): Tulsi Acharya, Nathmalmuni
Publisher: Jain Vishva Bharati
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ.उवासगंढसा ओ.अंतगडदसाझा अणूतरोववाइयदसाओ.पण्हावापरणाई.विवागसूर्य AVANAVAVI VAVAVALAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAVAS वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के उपलक्ष में निगंथं पावयणं अंगसुत्ताणि नायाधम्मकहाओ • उवासगदसाओ . अंतगडदसाओ • अणुत्तरोववाइयदसाओ . पण्हावागरणाई विवागसुयं वाचना प्रमुख आचार्य तुलसी संपादक मुनि नथमल प्रकाशक जैन विश्व भारती लाडनूं (राजस्थान) Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रबंध सम्पादक : श्रीचन्द रामपुरिया, निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन ( जैन विश्व भारती) आर्थिक सहायक श्री रामलाल हंसराज गोलछा विराटनगर (नेपाल) प्रकाशन तिथि : विक्रम संवत् २०३१ कार्तिक कृष्णा १२ (२५०० व निर्वाण दिवस ) पृष्ठांक २५ मूल्य: ८०/ मुद्रक : एस. नारायण एण्ड संस ( प्रिंटिंग प्रेस) ७११७/१८, पहाड़ी धीरज, दिल्ली-६ Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ANGA SUTTĀNI III NAYADHAMMAKAHÃO, UWĀSAGADASÃO. ANTAGADADASÃO. ANUTTAROWAWAIYADASAO. PANHAWAGARANAIN. VIVAGASUYAM. (Original text Critically edited) Väćana PRAMUKHA ACARYA TULASI EDITOR MUNI NATHAMAL Publisher JAIN VISWA BHARATI LADNUN (Rajasthan) Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Managing Editor Shreechand Rampuria Director: Agama and Sahitya Publication Dept. JAIN VISHWA BHARATI, LADNUN Financial Assistance Sri Ramlal Hansraj Golchha Biratnagar (Nepal) V.S. 2031 Kärtic Krishna 13 2500th Nirvana Day Pages 925 Rs. 80/ Printers: S. Narayan & Sons (Printing Press) 7117/18, Pahari Dhiraj, Delhi-6 Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समर्पण पुट्ठो वि पण्णा-पुरिसो सुदक्खो, आणा-पहाणो जणि जस्स निच्चं । सच्चप्पओगे पवरासयस्स, भिक्खुस्स तस्स प्पणिहाणयुटवं ॥ जिसका प्रज्ञा-पुरुष पुष्ट पटु, होकर भी आगम-प्रधान था। सत्य-योग में प्रवर चित्त था, उसी भिक्षु को विमल भाव से । विलोडियं आगमदुद्धमेव, लद्धं सुलद्धं णवणीयमच्छं । सज्झाय - सज्माण - रयस्स निच्चं, जयस्स तस्स पणिहाणपुध्वं ॥ जिसने आगम-दोहन कर कर, पाया प्रवर प्रचुर नवनीत । श्रुत-सध्यान लोन चिर चिन्तन, जयाचार्य को विमल भाव से। पवाहिया जेण सुयस्स धारा, गणे समत्थे मम माणसे वि । जो हेउभुओ स्स पवायणस्स, कालुस्स तस्स प्पणिहाणपुथ्वं ॥ जिसने श्रत की धार बहाई, सकल संघ में मेरे मन में । हेतुभूत श्रुत - सम्पादन में, कालुगणी को विमल भाव से। Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्तस्तोष अन्तस्तोष अनिर्वचनीय होता है उस माली का जो अपने हाथों से उप्त और सिंचित द्रुम-निकुंज को पल्लवित, पुष्पित और फलित हुआ देखता है, उस कलाकार का जो अपनी तूलिका से निराकार को साकार हुआ देखता है और उस कल्पनाकार का जो अपनी कल्पना को अपने प्रयत्नों से प्राणवान् बना देखता है। चिरकाल से मेरा मन इस कल्पना से भरा था कि जैन आगमों का शोध-पूर्ण सम्पादन हो और मेरे जीवन के बहुश्रमी क्षण उसमें लगे । संकल्प फलवान बना और वैसा ही हुआ। मुझे केन्द्र मान मेरा धर्म-परिवार उस कार्य में संलग्न हो गया । अतः मेरे इस अन्तस्तोष में मैं उन सबको समभागी बनाना चाहता हूं, जो इस प्रवृत्ति में संविभागी रहे हैं । संक्षेप में वह संविभाग इस प्रकार है संपादक: सहयोगी : पाठ-संशोधन : मुनि नथमल मुनि दुलहराज मुनि सुदर्शन मुनि मधुकर मुनि हीरालाल संविभाग हमारा धर्म है । जिन-जिनने इस गुरुतर प्रवृत्ति में उन्मुक्त भाव से अपना संविभाग समर्पित किया है, उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूं और कामना करता हूँ कि उनका भविष्य इस महान कार्य का भविष्य बने । आचार्य तुलसी Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रकाशकीय सन् १९६७ की बात है। आचार्यश्री बम्बई में विराज रहे थे। मैंने कलकत्ता से पहुचकर उनके दर्शन किए। उस समय श्री ऋषभदासजी रांका, श्रीमती इन्दु जैन, मोहनलालजी कठौतिया आदि आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित थे और 'जैन विश्व भारती' को बम्बई के आस-पास किसी स्थान पर स्थापित करने पर चिन्तन चल रहा था। मैंने सुझाव रखा कि सरदारशहर में गांधी विद्या-मन्दिर' जैसा विशाल और उत्तम संस्थान है । 'जैन विश्व भारती' उसी के समीप सरदारशहर में ही क्यों न स्थापित की जाये ? दोनों संस्थान एक दूसरे के पूरक होंगे । सुझाव पर विचार हुआ । श्री कन्हैयालालजी दूगड़ (सरदारशहर) को बम्बई बुलाया गया। सारी बातें उनके सामने रखी गई और निर्णय हुआ कि उनके साथ जाकर एक बार इसी दष्टि से 'गांधी विद्या-मन्दिर' संस्थान को देखा जाए। निश्चित तिथि पर पहुंचने के लिए कलकत्ता से थी गोपीचन्दजी चोपड़ा और मैं तथा दिल्ली से श्रीमती इन्दु जैन, लादूलालजी आछा सरदारशहर के लिए रवाना हुए। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ दिल्ली से हम लोगों के साथ हुए। श्री रांकाजी बम्बई से पहुंचे। सरदारशहर में भावभीना स्वागत हुआ। श्री दूगड़जी ने 'गांधी विद्या-मन्दिर' की प्रबन्ध समिति के सदस्यों को भी आमन्त्रित किया । 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित करने के विचार का उनकी ओर से भी हार्दिक स्वागत किया गया । सरदारशहर 'जैन विश्व-भारती' के लिए उपयुक्त स्थान लगा। आगे के कदम इसी ओर बढ़े। __ आचार्यश्री संतगण व साध्वियों के वृन्द सहित कर्नाटक में नंदी पहाड़ी पर आरोहण कर रहे थे । आचार्यश्री ने बीच में पैर थामे और मुझ से कहा “जैन विश्वभारती के लिए प्रकृति की ऐसी सुन्दर गोद उपयुक्त स्थान है । देखो, कैसा सुन्दर शान्त वातावरण है।" 'जैन विश्व भारती' की योजना को कार्य-रूप में आगे बढ़ाने की दृष्टि से समाज के कुछ और विचारशील व्यक्ति भी नंदी पहाड़ी पर आए थे। श्री कन्हैयालालजी दूगड़ भी थे । (सरदारशहर) प्रतिक्रमण के बाद का समय था । पहाड़ी की तलहटी में दीपक और आकाश में तारे जगमगा रहे थे । आचार्यश्री गिरि-शिस्तर पर काँच महल में पूर्वाभिमुख होकर विराजित थे । मैं उनके सामने बैठा था। वचनबद्ध हुआ कि यदि 'जैन विश्व भारती' सरदारशहर में स्थापित होती है, तो उसके लिए मैं अपना जीवन लगाऊंगा । उस समय 'जैन विश्व भारती' की जैन श्वेताम्बर तेरापंथी महासभा के एक विभाग के रूप में परिकल्पना की गई थी। महासभा ने स्वीकार किया और Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं उसका संयोजक चुना गया। सरदारशहर में स्थान के लिए श्री कन्हैयालालजी दूगड़ और मैं प्रयत्नशील हुए । आचार्यश्री ऊटी (उटकमण्ड) पधारे । वहां महासभा के सभापति श्री हनुमानमलजी बैंगाणी तथा अन्य पदाधिकारी भी उपस्थित थे। जैन विश्व भारती की स्थापना प्राकृतिक दष्टि से साधना के अनुकूल रम्य और शान्त स्थान में होने की वात ठहरी। इस तरह नंदी मिरि की मेरी प्रतिज्ञा से मैं मुक्त हुआ, पर मन ने मुझे कभी मुक्त नहीं किया। आखिर 'जैन विश्व भारती' की मात-भूमि बनने का सौभाग्य सरदारशहर से ६६ मील दूर लाडनं (राजस्थान) को प्राप्त हुआ, जो संयोग से आचार्यश्री का जन्म-स्थान भी है। आचार्यश्री ने आगम-संशोधन का कार्य सं० २०११ की चैत्र शुक्ला त्रयोदशी को हाथ में लिया । कुछ समय बाद उज्जैन में दर्शन किए। सं० २०१३ में लाडनूं में आचार्य श्री के दर्शन प्राप्त हए। कुछ ही दिनों बाद सुजानगढ़ में दशवकालिक सूत्र के अपने अनुवाद के दो फार्म अपने ढंग से मुद्रित कराकर सामने रखे । आचार्यश्री मुग्ध हुए। मुनिश्री नथमलजी ने फरमाया-"ऐसा ही प्रकाशन ईप्सित है।" आचार्यश्री की वाचना में प्रस्तुत आगम वैशाली से प्रकाशित हो, इस दिशा में कदम आगे बढ़े। पर अन्त में प्रकाशन कार्य महासभा से प्रारम्भ हुआ। आगम-सम्पादन की रूपरेखा इस प्रकार रही १. आगम-सुत्त ग्रन्थमाला : मूलपाठ, पाठान्तर, शब्दानुक्रम आदि सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण। २. आगम-अनुसन्धान ग्रन्थमाला : मूलपाठ, संस्कृत छाया, अनुवाद, पद्यानुक्रम, सूत्रानुक्रम तथा मौलिक टिप्पणियों सहित आगमों का प्रस्तुतीकरण । ३. आगम-अनुशीलन ग्रन्थमाला : आगमों के समीक्षात्मक अध्ययनों का प्रस्तुतीकरण । ४. आगम-कथा ग्रन्थमाला : आगमों से सम्बन्धित कथाओं का संकलन और अनुवाद । ५. वर्गीकृत-आगम ग्रन्थमाला : आगमों का संक्षिप्त वर्गीकृत रूप में प्रस्तुतीकरण । महासभा की ओर से प्रथम ग्रंथमाला में--(१) दसवेआलियं तह उत्तरज्झयणाणि, (२) आयारो तह आयारचूला, (३) निसीहन्झयणं, (४) उववाइयं और (५) समवाओ प्रकाशित हुए । रायपसेणइयं एवं सूयगडो (प्रथम श्रुतस्कन्ध) का मुद्रण-कार्य तो प्रायः समाप्त हुआ पर वे प्रकाशित नहीं हो पाए। दूसरी ग्रन्थमाला में-(१) दसवेआलियं एवं (२) उत्तरज्झयणाणि (भाग १ और भाग २) प्रकाशित हुए । समवायांग का मुद्रण-कार्य प्रायः समाप्त हुआ पर प्रकाशित नहीं हो पाया। तीसरी ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक : एक समीक्षात्मक अध्ययन और (२) उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन । Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १० चौथी ग्रंथमाला में कोई ग्रंथ प्रकाशित नहीं हुआ। पाँचवीं ग्रंथमाला में दो ग्रंथ निकल चुके हैं : (१) दशवकालिक वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. १) और (२) उत्तराध्ययन वर्गीकृत (धर्म-प्रज्ञप्ति ख. २)। उक्त प्रकाशन कार्य में सरावगी चेरिटेबल फण्ड, कलकत्ता (ट्रस्टी रामकुमारजी सरावगी, गोविदलालजी सरावगी एवं कमलनयनजी सरावगी) का बहुत बड़ा अनुदान महासभा को रहा । अनुदान स्वर्गीय महादेवलालजी सरावगी एवं उनके पुत्र पन्नालालजी सरावगी की स्मृति में प्राप्त आ था। भाई पन्नालालजी के प्रेरणात्मक शब्द तो आज भी कानों में ज्यों-के-त्यों गंज रहे हैं.. "धन देने वाले तो मिल सकते हैं, पर जो इस प्रकाशन-कार्य में जीवन लगाने का उत्तरदायित्व लेने को तैयार हैं, उनकी बराबरी कौन कर सकेगा ?" उन्हीं तथा समाज के अन्य उत्साहवर्धक सदस्यों के स्नेह-प्रदान से कार्य-दीपक जलता रहा । कार्य के द्वितीय चरण में श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा (विराटनगर) ने अपना उदार हाथ प्रसारित किया। आचार्यश्री की वाचना में सम्पादित आगमों के संग्रह और मुद्रण का कार्य अब 'जन विश्व भारती' के अंचल से हो रहा है। प्रथम प्रकाशन के रूप में ११ अंगों को तीन खण्डों में 'अंगसुत्ताणि' के नाम से प्रकाशित किया जा रहा है : प्रथम खण्ड में आचार, सूत्रकृत, स्थान, समवाय--ये प्रथम चार अंग हैं। दूसरे खण्ड में भगवती–पाँचवाँ अंग है। तीसरे खण्ड में ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिकदशा, प्रश्नव्याकरण और विपाक-ये ६ अंग हैं। इस तरह ग्यारह अंगों का तीन खण्डों में प्रकाशन 'आगम-सुत्त ग्रथमाला' की योजना को बहुत आगे बढ़ा देता है। ठाणांग सानुवाद संस्करण का मुद्रण-कार्य भी द्रुतगति से हो रहा है और वह आगमअनुसन्धान ग्रंथमाला के तीसरे ग्रंथ के रूप में प्रस्तुत होगा। केवल हिन्दी अनुवाद के संस्करण के रूप में 'दशवकालिक और उत्तराध्ययन' का प्रकाशन हुआ है जो एक नई योजना के रूप में है। इसमें सभी आगमों का केवल हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने का निर्णय है। दशवकालिक एवं उत्तराध्ययन भूल पाठ मात्र को गुटकों के रूप में दिया जा रहा है। 'जैन विश्व भारती' की इस अंग एवं अन्य आगम प्रकाशन योजना को पूर्ण करने में जिन महानुभावों के उदार अनुदान का हाथ रहा है, उन्हें संस्थान की ओर से हार्दिक धन्यवाद है। Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२ मद्रण-कार्य में एस० नारायण एण्ड संस प्रिटिंग प्रेस के मालिक श्री नारायणसिंह जी का विनय, श्रद्धा, प्रेम और सौजन्य से भरा जो योग रहा उसके लिए हम कृतज्ञता प्रगट किए बिना नहीं रह सकते। मुद्रण-कार्य को द्रुतगति देने में श्री देवीप्रसाद जायसवाल (कलकता) ने रात-दिन सेवा देकर जो सहयोग दिया, उसके लिए वे धन्यवाद के पात्र हैं। इस सम्बन्ध में श्री मन्नालाल जी जैन (भूतपूर्व मुनि) की समर्पित सेवा भी स्मरणीय है। इस अवसर पर मैं आदर्श साहित्य संघ के संचालकों तथा कार्यकर्ताओं को भी नही भूल सकता। उन्होंने प्रारम्भ से ही इस कार्य के लिए सामग्री जुटाने, धारने तथा अन्यान्य व्यवस्थाओं को क्रियान्वित करने में सहयोग दिया है। आदर्श साहित्य संघ के प्रबन्धक श्री कमलेश जी चतुर्वेदी सहयोग में सदा तत्पर रहे हैं, तदर्थ उन्हें धन्यवाद है। 'जैन विश्व भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्दजी सेठिया, मंत्री श्री सम्पत्तरायजी भूतोडिया तथा कार्य समिति के अन्यान्य समस्त बन्धुओं को भी इस अवसर पर धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता, जिनका सतत सहयोग और प्रेम हर कदम पर मुझे बल देता रहा। इस खण्ड के प्रकाशन के लिए विराटनगर (नेपाल) निवासी श्री रामलालजी हंसराजजी गोलछा से उदार आर्थिक अनुदान प्राप्त हआ है, इसके लिए संस्थान उनके प्रति कृतज्ञ है। सन १९७३ में मैं जैन विश्व-भारती के आगम और साहित्य प्रकाशन विभाग का निदेशक चूना गया। तभी से मैं इस कार्य की व्यवस्था में लगा । आचार्यश्री यात्रा में थे। दिल्ली में मद्रण की व्यवस्था बैठाई गई। कार्यारंभ हुआ, पर टाइप आदि की व्यवस्था में विलंब होने से कार्य में द्रुतगति नहीं आई। आचार्यश्री का दिल्ली पधारना हुआ तभी यह कार्य द्रुतगति से आगे बढ़ा । स्वल्प समय में इतना आगमिक साहित्य सामने आ सका उसका सारा श्रेय आगम संपादन के वाचनाप्रमुख आचार्यश्री तुलसी तथा संपादक-विवेचक मुनि श्री नथमलजी को है। उनके सहकर्मी मुनि श्री सुदर्शनजी, मधुकरजी, हीरालालजी तथा दुलहराजजी भी उस कार्य के श्रेयोभागी हैं। ब्रह्मचर्य आश्रम में ब्रह्मचारी का एक कर्तव्य समिधा एकत्रित करना होता है। मैंने इससे अधिक कुछ और नहीं किया। मेरी आत्मा हर्षित है कि आगम के ऐसे सून्दर संस्करण 'जैन विश्व भारती' के प्रारंभिक उपहार के रूप में उस समय जनता के कर-कमलों में आ रहे हैं, जबकि जगत्वंद्य श्रमण भगवान् महावीर की २५००वीं निर्वाण तिथि मनाने के लिए सारा विश्व पुलकित है। ४६८४, अंसारी रोड़ २१, दरियागंज दिल्ली-६ श्रीचन्द रामपुरिया निदेशक आगम और साहित्य प्रकाशन जैन विश्व भारती Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सम्पादकीय ग्रन्थ-बोध--- आगम सूत्रों के मौलिक विभाग दो हैं.–अंग-प्रविष्ट और अंग-बाह्य । अंग-प्रविष्ट सूत्र महावीर के मुख्य शिष्य गणधर द्वारा रचित होने के कारण सर्वाधिक मौलिक और प्रामाणिक माने जाते हैं। उनकी संख्या बारह है-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग ४. समवायांग ५. व्याख्याप्रज्ञप्ति ६. ज्ञाताधर्मकथा ७. उपासकदशा ८. अंतकृतदशा ६. अनुत्तरोपपातिकदसा १०. प्रश्नव्याकरण ११. विपाकश्रुत १२. दृष्टिवाद । बारहवां अंग अभी प्राप्त नहीं है । शेष ग्यारह अंग तीन भागों में प्रकाशित हो रहे हैं। प्रथम भाग में चार अंग हैं-१. आचारांग २. सूत्रकृतांग ३. स्थानांग और ४. समवायांग, दूसरे भाग में केवल व्याख्याप्रज्ञप्ति और तीसरे भाग में शेष छह अंग। प्रस्तुत भाग अंग साहित्य का तीसरा भाग है। इसमें नायाधम्मकहाओ, उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, अणु सरोदवाइयदसाओ, पण्हावागरणाई और विवागसुयं-इन ६ अंगों का पाठान्तर सहित मूल पाठ है । प्रारम्भ में संक्षिप्त भूमिका है । विस्तृत भूमिका और शब्द-सूची इसके साथ सम्बद्ध नहीं है । उनके लिए दो स्वतन्त्र भागों की परिकल्पना है। उसके अनुसार चौथे भाग में ग्यारह अंगों की भूमिका और पांचवें भाग में उनकी शब्द-सूची होगी। प्रस्तुत पाठ और सम्पादन-पद्धति हम पाठ-संशोधन की स्वीकृत पद्धति के अनुसार किसी एक ही प्रति को मुख्य मानकर नहीं चलते, किन्तु अर्थ-मीमांसा, पूर्वापरप्रसंग, पूर्ववर्ती पाठ और अन्य आगम-सूत्रों के पाठ तथा वृत्तिगत व्याख्या को ध्यान में रखकर मूलपाठ का निर्धारण करते हैं। लेखनकार्य में कुछ ऋटियां हई हैं। कुछ त्रटियां मौलिक सिद्धान्त से सम्बद्ध हैं। वे कब हुई यह निश्चय-पूर्वक नहीं कहा जा सकता। पाठ के संक्षेप या विस्तार करने में हई हैं, यह संभावना की जा सकती है। 'नायाधम्मकहाओ' १११५६ में बारह व्रत और पांच महाव्रतों का उल्लेख है। स्थानांग ४११३६, उत्तराध्ययन २३।२३-२८ के अनुसार यह पाठ शुद्ध नहीं है। बाईस तीर्थकरों के युग में चातुर्याम धर्म होता है. पांच महाव्रत और द्वादशव्रत रूप धर्म नहीं होता । ऐसा प्रतीत होता है कि अगार-विनय और अनगारविनय का पाठ ओवाइय सूत्र के अगारधर्म और अनगारधर्म के आधार पर पूरा किया गया है। इसलिए जो वर्णन वहां था वह यहां आ गया। हमने इस पाठ की पूर्ति रायपसेणइय सूत्र के आधार Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १४ पर की है, देखें —नायाधम्मकहाओ पृष्ठ १२२ का सातवां पाद-टिप्पण । इस प्रकार के आलोच्य पाठ नायाधम्मकाओ १।१२/३६, १ १६ २१, १/१६/४६ में भी मिलता है। प्रश्नव्याकरण सूत्र १०/४ में 'कायवर' पाठ मिलता है । वृत्तिकार ने इसका अर्थ 'काचवर' – प्रधान काच दिया है, किन्तु यह पाठ शुद्ध नहीं है । लिपि दोष के कारण मूलपाठ विकृत हो गया । निशीथाध्ययनके ग्यारहवें उद्देशक (सूत्र १ ) में 'कायपायाणिवा और वइरपायाणिवा' दो स्वतन्त्र पाठ हैं। वहां भी पात्र का प्रकरण है और यहां भी पात्र का प्रकरण है। काँचपात्र और वज्रपात्र दोनों मुनि के लिए निषिद्ध हैं । इस आधार पर यहां भी 'वर' के स्थान पर 'वइर' पाठ का स्वीकार औचित्यपूर्ण है । लिपिकाल में इस प्रकार का वर्ण विपर्यय अन्यत्र भी हुआ है । 'जात' के स्थान पर 'जाव' तथा 'पचकमण' के स्थान पर 'एवंक्रमण' पाठ मिलता है। पाठ-संशोधन में इस प्रकार के अनेक विचित्र पाठ मिलते हैं । उनका निर्धारण विभिन्न स्रोतों से किया जाता है । प्रतिपरिचय १. नायाधम्मकहाओ - क. ताडपत्रीय ( फोटोप्रिंट) मूलपाठ -- यह प्रति जेसलमेर भंडार से प्राप्त है । यह अनुमानतः बारहवीं शताब्दी की है। ख. नायाधम्मकहाओ (पंचपाठी) मूल पाठ वृत्ति सहित - यह प्रति गया पुस्तकालय, सरदारशहर की है । पत्र के चारों ओर हासियों (Margin) में वृत्ति लिखी हुई है। इसके पत्र १८६ तथा पृष्ठ ३७२ हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४१ इंच चौड़ा है । पत्र में मूलपाठ की १ से १३ तक पक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति में ३२ से ३८ तक अक्षर हैं। प्रति स्पष्ट और कलात्मक है । बीच में तथा इधर-उधर वापिकाएं हैं। यह अनुमानतः १४-१५ शताब्दी की होनी चाहिए । प्रति के अंत में टीकाकार द्वारा उद्धृत प्रशस्ति के ११ श्लोक हैं । उनमें अन्तिम श्लोक यह है - एकादशसु गतेष्वथ विंशत्यधिकेषु विक्रमसमानां । अणहिलपाटकनगरे भाद्रवद्वितीयां पज्जुसणसिद्धयं ॥ १ ॥ समाप्तेयं ज्ञाताधर्म प्रदेशटीकेति ॥ छ ॥ ४२५५ ग्रंथाग्रं ।। वृत्ति । एवं सूत्र वृत्ति १७५५ ग्रंथाग्रं ॥ १ ॥छ ग. नायाधम्मकहाओ ( मूलपाठ ) यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ११० तथा पृष्ठ २२० हैं । प्रत्येक पत्र १०३ इंच लम्बा तथा ४३ इंच चौड़ा है । प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां हैं और प्रत्येक पंक्ति में ४८ से ५३ तक अक्षर हैं । प्रति जीर्ण-सी है। बीच में बावड़ी है । Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिपि संवत् १५५४ है। अंतिम प्रशस्ति में लिखा है-संवत् १५५४ वर्षे प्रथम श्रावण वदि २ रवी । श्री श्री श्री शीरोही नगरे । राया राउ श्रीजगमालराज्ये ॥ श्रीत पागच्छे गच्छनायकश्रीसमतिसाधरि । तत्पट्टे श्रीहेम विमलसूरिराज्ये । महोपाध्याय श्रीअनंतहंसगणीनां उपदेशेन । साह श्री सूरा लिखापितं ॥ जोसी पोपा लिखितं ॥ भ्राति उज्जल संजुक्त घीआ लिखापितं छाछ॥१॥ इसके आगे १२ श्लोक लिखे हुए हैं। घ. टब्बा यह प्रति १२वें अध्ययन से आगे काम में ली गई है। २. उवासगदसाओक. उवासगदसाओ----मूल पाठ (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) इसकी पत्र संख्या २० व पृष्ठ ४० है। पत्र क्रमांक संख्या १८२ से २०२ तक है । फोटो प्रिंट पत्र संख्या ६ है व एक पत्र में ८ पृष्ठों का फोटो है । इसकी लम्बाई १४ इंच, चौड़ाई इंच है। प्रत्येक पत्र में ४ से ६ तक पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में ४५ के करीव अक्षर हैं। प्रति के अन्त में 'ग्रन्थ ५१२' इतना ही लिखा हुआ है । संवत् वगैरह नहीं है पर विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ है। अतः उसके आधार पर यह ११८६ से पहले की ही मालूम पड़ती है। ख. उवासगदसाओ--टब्बेयुक्त पाठ (हस्तलिखित)-- __यह प्रति गधया पुस्तकालय सरदारशहर की है। इसके पत्र ३६ तथा पष्ठ ७२ हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की आठ पंक्तियां व प्रत्येक पंक्ति में करीब ५२ अक्षर हैं। पाठ के नीचे राजस्थानी में अर्थ लिखा हुआ है। प्रत्येक पृष्ठ १० इंच लम्बा व ४९ इंच चौड़ा है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्न प्रशस्ति है संवत् १७७८ वर्षे मिति माघमासे कृष्णपक्षे पंचमीतिथी बुधवारे मुनिना सिवेनालेखि स्ववाचनाय श्रीमत्फतेपुरमध्ये श्रीरस्तु कल्याणमस्तु लेखकपाठकयोः श्रीः । ३. अंतगडदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २०३ से २२२ तक। विपाक सूत्र के अंत में (पत्र संख्या २८५ में) लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है । अतः क्रमानुसार पत्रों से यह प्रति भी ११८६ से पहले की होनी चाहिए। ख. हस्तलिखित-गधया पुस्तकालय, सरदाशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की संयुक्त प्रति (उवासगदशा, अंतगड, अणुत्तरोववाइय) परिचय-देखें अणुत्तरोववाइय 'ख' प्रति-लेखन. संवत् १४६५ है। Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ग. हस्तलिखित~-गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । यह प्रति पंचपाठी है। इसके पत्र २६ तथा पृष्ठ ५२ हैं। प्रत्येक पष्ठ में १३ पंक्तिया तथा प्रत्येक पंक्ति में ४२ से ४५ तक अक्षर हैं। प्रति की लम्बाई १०१ इच तथा चौड़ाई ४३ इंच है। अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं। प्रति 'तकार' प्रधान तथा अपठित होने के कारण कहीं-कहीं अशुद्धियां भी हैं। प्रति के अंत में लेखन संवत् नहीं है। केवल इतना लिखा है--॥छ।। ग्रंया ८६० 1100 1100 पुण्यत्नसूरीणा।। यह प्रति मात्रैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त है । इसके पत्र २० हैं। प्रत्येक पत्र में पाठ की पांच पंक्तियां हैं। प्रत्येक पंक्ति के बीच में टब्बा लिखा हुआ है। प्रति सुन्दर लिखी हुई है। पत्र की लम्बाई १० इंच व चो०४५ इंच है। प्रति के अंत में तीन दोहे लिखे हुए हैं। थली हमारौ देश है, रिणी हमारो ग्राम । गोत्र वंश है माहातमा, गणेश हमारो नाम ॥१॥ गणेश हमारा है पिता, मैं सुत मुन्नीलाल । अड़ो गच्छ है खरतरो, उजियागर पोसाल ॥२॥ बीकानेर व्रत्मान है, राजपुतानां नाम । जंगलधर बादस्या, गंगासिंहजी नाम ॥३॥ श्रीरस्तु ॥छ।। कल्याणमस्तु ॥छ।। ४. अणुत्तरोववाइयदसाओक. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट)। पत्र संख्या २२३ से २२८ तक । विपाक सूत्र पत्र संख्या २८५ में लिपि संवत् ११८६ आश्विन सुदि ३ है। अतः क्रमानुसार यह प्रति ११८६ से पहले की है। ख. गधया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त तीन सूत्रों की (उपासकदमा, अन्तक्रत और अनूतरोपपातिक) संयुक्त प्रति है। इसके पत्र १५ तथा पृष्ठ ३० हैं। प्रत्येक पत्र १३१ इंच लम्बा तथा ५१ इंच करीब चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में २३ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में करीब ८२ अक्षर हैं। प्रति पठित तथा स्पष्ट लिखी हुई है। प्रति के अन्त में लेखक की निम्नोक्त प्रशस्ति है । उसके अनुसार यह प्रति १४६५ की लिखी हुई है :-- ऊकेशवंशो जयति प्रशंसापदं सुपर्वा बलिदत्तशोभः । डागाभिधा तत्र समस्ति शाखा पात्रावली वारितलोकतापा ॥१॥ मुक्ताफलतुलां बिभ्रत् सद्वत्तः सुगुणास्पदं । तस्यां श्रीशालभद्राख्यः सम्यग्रुचिरजायत ॥२१॥ Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १७ तदन्वयस्याभरणं बभूव वांगाभिधानः सुविशुद्धबुद्धिः । विवेकसत्संगतिलोचनाभ्यां दृष्ट्वा सुमार्ग य उरीचकार ।।३।। तदंगजन्माजनि वाहडाख्यः सद्धर्मकर्मार्जनबद्धकक्षः । वक्षो यदीयं गुरुदेवभक्तिरलंचकाराब्जमिवालिराजी ॥४॥ क्रमेण तवंशविशालकेतु: कर्माविधः श्रावकपुंगवोभूत् । चित्र कलावानपि यः प्रकामं वधप्रमोदार्पणहेतुरुच्चैः ।।५।। तदंगभूरभूत्साधु महणो द्रुहिणोपमः । राजहंसगतिः शश्वच्चतुराननतां दधत् ॥६॥ तस्यार्हदह्रियुगलाब्जमधुव्रतस्य यात्रादिभूरिसुकृतोच्चयकारकस्य ! आसीदसामयशसः किल माव्हणाद्या देविप्रिया प्रणयिनी गिरिजेव शंभोः ॥७॥ तत्कुक्षिप्रभवाबभुवुरभितोप्युद्योतयंत: कुलं, चत्वारस्तनया नयाजितधना नाभ्यर्थना भीरवः । आद्यस्तत्र कुमारपाल इति विख्यातः परो वर्द्धनस्तार्तीयस्त्रिभवाभिधस्तदपरो गेलाह्वयोमा भुवि ।।८।। चत्वारोपि व्यधूरघरितां मर्त्यधात्रीरुहस्ते, स्वौदार्येणातन्धनभृतो बांधवा धर्मकर्म । अन्योन्यं स्पर्द्धयेव प्रतिदिनमनयास्तेषु गेलाख्य भार्या, गंगा देवीति गंगावदमलहदयास्तीह जैनांहिलीना 1811 तत्कुक्षिभूः श्रावक ऊदराज, आधो द्वितीयः किल बूट नामा। द्वादप्यभूतां गुरुदेवभक्तौ मंदोदरी नाम सुता तथास्ति ॥१०॥ ऊदाख्यस्य सभीरीति माऊ बूटस्य च प्रिया । आसधरो मंडनश्व तयो पुत्री यथाक्रमम् ॥११॥ अमुना परिवारेण, सारेण सहिता शुभा। गंगादेवी गुरोर्वक्त्रादुपदेशामृतं पपौ ॥१२॥ आबाल्याद्धर्मकर्माणि तत्वान्यसौ निरतरं। एकादशांगसूत्राणि लेखयामास हर्षत: ॥१३॥ विजयिनि खरतरगच्छे जिनभद्रसूरिसाम्राज्ये । गुण निधि वाद्धौंदु मिते विक्रमभूपाद् व्रजति वर्षे ।।१४।। गंगादेवी सुतोपेता, लेखयित्वांगपुस्तकं । दत्तस्म श्रीतपोरलोपाध्यायेभ्यः प्रमोदतः ।।१। छ। श्रीः ॥ ग, हस्तलिखित प्रति मधैया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त । इसके पत्र तथा पृष्ठ १५ हैं। प्रत्येक पत्र में ११ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ३५ से ४० तक अक्षर हैं। प्रति Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ख. ५. पण्हावागरणाई क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ ---- पत्र संख्या २२० से २५६ ग. घ. च. क्व. की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है | अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं छ। अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है । १८ पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तराधे । यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा वीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह-ग्रंथा १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ लिखा है। लेखन कर्ता तथा लिपि संवत् का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए । त्रिपाठी (हस्तलिखित ) -- ↓ गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं प्रत्येक पत्र १०४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ सेप तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच चीन के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथाग्र १२५० छ।। श्री ।। छ|| || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए । 1 मूलपाठ (सचित्र) - पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र है। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुत है। मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति मध्या पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ८३ । यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आचार्यश्री तुलसी ने सुनियोजित सामूहिक वाचना के लिए प्रयल भी किया था, परन्तु वह पूर्ण नहीं हो सका । अन्ततः हम इसी निष्कर्ष पर पहुंचे कि हमारी वाचना अनुसन्धानपूर्ण, तटस्थदृष्टि-समन्वित तथा सपरिश्रम होगी तो वह अपने आप सामूहिक हो जाएगी। इसी निर्णय के आधार पर हमारा यह आगम-वाचना का कार्य प्रारम्भ हुआ। _हमारी इस वाचना के प्रमुख आचार्यश्री तुलसी हैं। वाचना का अर्थ अध्यापन है। हमारी इस प्रवृत्ति में अध्यापन-कर्म के अनेक अंग हैं--पाठ का अनुसंधान, भाषान्तरण, समीक्षात्मक अध्ययन आदि-आदि। इन सभी प्रवृत्तियों में आचार्यश्री का हमें सक्रिय योग, मार्ग-दर्शन और प्रोत्साहन प्राप्त है । यही हमारा इस गुरुतर कार्य में प्रवृत्त होने का शक्ति-बीज है ! मैं आचार्यश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित कर भार-मुक्त होऊ, उसकी अपेक्षा अच्छा है कि अग्रिम कार्य के लिए उनके आशीर्वाद का शक्ति-संबल पा और अधिक भारी बनू। प्रस्तुत पाठ के सम्पादन में मुनि सुदर्शनजी, मुनि मधुकरजी और मुनि हीरालालजी का पर्याप्त योग रहा है। मुनि बालचन्द्रजी, इस कार्य में क्वचित् संलग्न रहे हैं। प्रति-शोधन में मुनि दुलहराजजी का पूर्ण योग मिला है । इसका ग्रंथ-परिमाण मुनि मोहनलाल (आमेट) ने तैयार किया है। कार्य-निष्पत्ति में इनके योगका मूल्यांकन करते हए मैं इन सबके प्रति आभार व्यक्त करता हूँ। आगमविद् और आगम-संपादन के कार्य में सहयोगी स्व. श्री मदनचन्दजी गोठी को इस अवसर पर विस्म में किया जा सकता । यदि वे आज होते तो इस कार्य पर उन्हें परम हर्ष होता। ___ आगम के प्रबन्ध-सम्पादक श्री श्रीचन्दजी रामपुरिया प्रारम्भ से ही आगम कार्य में संलग्न रहे हैं। आगम साहित्य को जन-जन तक पहुंचाने के लिए वे कृत-संकल्प' और प्रयत्नशील हैं। अपने सुव्यवस्थित वकालत कार्य से पूर्ण निवृत्त होकर अपना अधिकांश समय आगम-सेवा में लगा रहे हैं। 'अंगसुत्ताणि' के इस प्रकाशन में इन्होंने अपनी निष्ठा और तत्परता का परिचय दिया है। जैन विश्व-भारती' के अध्यक्ष श्री खेमचन्द जी सेठिया, 'जैन विश्व-भारती' तथा 'आदर्श साहित्य संघ' के कार्यकर्ताओं ने पाठ-सम्पादन में प्रयुक्त सामग्री के संयोजन में बड़ी तत्परता से कार्य किया है। ___ एक लक्ष्य के लिए समान गति से चलने वालों की समप्रवृत्ति में योगदान की परम्परा का उल्लेख व्यवहारपूति मात्र है। वास्तव में यह हम सब का पवित्र कर्तव्य है और उसी का हम सबने पालन किया है। अणुव्रत विहार नई दिल्ली २५०० वां निर्वाण दिवस। मुनि नथमल Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भूमिका नायाधम्मकहाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशानी का छठा अंग है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्र तस्कन्ध का नाम 'नाया' और दूसरे श्रुतस्कन्ध का नाम 'धम्मकहाओ' है। दोनों श्रुतस्कन्धों का एकीकरण करने पर प्रस्तुत आगम का नाम 'नायाधम्मकहाओं बनता है। 'नाया' (ज्ञात) का अर्थ उदाहरण और 'धम्मकहाओ' का अर्थ धर्म-आख्यायिका है। प्रस्तुत आगम में चरित और कल्पित-दोनों प्रकार के दृष्टान्त और कथाएं हैं।' जयधवला में प्रस्तुत आगम का नाम 'नाहधम्मकहा' नाथधर्मकथा) मिलता है। नाथ का अर्थ है स्वामी। नाथधर्मकथा अर्थात् तीर्थकर द्वारा प्रतिपादित धर्मकथा। कुछ संस्कृत ग्रन्थों में प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' उपलब्ध होता है। आचार्य अकलंक ने प्रस्तुत आगम का नाम 'ज्ञातृधर्मकथा' बतलाया है। आचार्य मलयगिरि और अभयदेवसूरि ने उदाहरण-प्रधान धर्मकथा को ज्ञाताधर्मकथा कहा है। उनके अनुसार प्रथम अध्ययन में 'ज्ञात' और दूसरे अध्ययन में 'धर्म-कथाएं' है। दोनों ने ही ज्ञात पद के दीर्धीकरण का उल्लेख किया है।' श्वेताम्बर साहित्य में भगवान महावीर के वंश का नाम 'ज्ञात' और दिगम्बर साहित्य में 'नाथ' बतलाया गया है। इस आधार पर कुछ विद्वानों ने प्रस्तुत आगम के नाम के साथ भगवान् महावीर का सम्बन्ध जोड़ने का प्रयत्न किया है। उनके अनुसार 'ज्ञातृधर्मकथा' या 'नाथधर्मकथा' १. समवाओ, पइग्णगसमवाप्रो, सून १४ ॥ २. तत्त्वार्थवार्तिक १।२०, पृ० ७२ : ज्ञातृधर्मकथा । ३. (क) नंदीवृत्ति, पत्र २३०,३१ : झातानि-उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथाः, अथवा ज्ञातानि ज्ञाताध्ययनानि प्रथमश्रुतस्कन्धे, धर्मकथा द्वितीयश्रुतस्कन्धे यासु ग्रन्थपद्धतिषु (ता) ज्ञाताधर्मकथाः पृषोदरा. दित्वात्पूर्वपदस्य दीन्तिता। (ख) समवायांगवत्ति, पन १०८ : ज्ञातानि- उदाहरणानि तत्प्रधाना धर्मकथा ज्ञाताधर्मकथा, दीर्घवं संज्ञात्वाद अथवा प्रथमश्रुतस्कंधो ज्ञाताभिघायकत्वात् ज्ञातानि, द्वितीयस्तु तथव धम्मकथाः । Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ का अर्थ है-- भगवान् महावीर की धर्मकथा' । वेवर के अनुसार जिस ग्रंथ में ज्ञातृवंशी महावीर के लिए कथाएं हों उसका नाम 'नायाधम्मकहा' है । किन्तु समवायांग और नंदो में जो अंगों का विवरण प्राप्त हैं उसके आधार पर 'नायाधम्मकहा' का 'ज्ञातृवंशी महावीर की धर्मकथा -- यह अर्थ संगत नहीं लगता । वहां बतलाया गया है कि ज्ञाताधर्मकथा में ज्ञातों (उदाहरणभूत व्यक्तियों) के नगर, उद्यान आदि का निरूपण किया गया है । प्रस्तुत आगम के प्रथम अध्ययन का नाम भी 'उक्खित्तणाए' (उत्क्षिप्त ज्ञात) है । इसके आधार पर 'नाथ' शब्द का अर्थ 'उदाहरण' ही संगत प्रतीत होता है। विषय-वस्तु - प्रस्तुत आगम के दृष्टान्तों और कथाओं के माध्यम से अहिंसा, अस्वाद, श्रद्धा, इन्द्रिय-विजय आदि आध्यात्मिक तत्वों का अत्यन्त सरस शैली में निरूपण किया गया है। कथावस्तु के साथ वर्णन की विशेषता भी है। प्रथम अध्ययन को पढ़ते समय कादम्बरी जैसे गद्य काव्यों की स्मृति हो आती है। नवे अध्ययन में समुद्र में डूबती हुई नौका का वर्णन बहुत सजीव और रोमांचक है। बारहवें अध्ययन में कलुषित जल को निर्मल बनाने की पद्धति वर्तमान जल शोधन की पद्धति की याद दिलाती है। इस पद्धति के द्वारा पुद्गल द्रव्य की परिवर्तनशीलता का प्रतिपादन किया गया है। मुख्य उदाहरणों और कथाओं के साथ कुछ अवान्तर कथाएं भी उपलब्ध होती हैं ! आठवें अध्ययन में कूप मंडूक की कथा बहुत ही सरल शैली में उल्लिखित है । परिव्राजिका चोखा जितशत्रु के पास जाती है। जितशत्रु उसे पूछता है -- तुम बहुत घूमती हो, क्या तुमने मेरे जैसा अन्तःपुर कहीं देखा है ?' चोखा ने मुस्कान भरते हुए कहा- 'तुम कूप मंडूप जैसे हो ।' 'वह कूप मंडूप कौन है ?' जितशत्रु ने पूछा । मैं चोला ने कहा--'कुए में एक मेंढक था वह वहीं जन्मा, वहीं बढ़ा। उसने कोई दूसरा कूप, तालाब और जलाशय नहीं देखा । वह अपने कूप को ही सब कुछ मानता था । एक दिन एक समुद्री मेंढक उस कूप में आ गया। कूप-मंडुक ने कहा- तुम कौन हो ? कहां से आए हो ? उसने कहा--- समुद्र का मेंढक हूँ, वहीं से आया हूँ। कूप-मंडुक ने पूछा- वह समुद्र कितना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा---वह बहुत बड़ा है। कूप मंडूक ने अपने पैर से रेखा खींचकर कहा -- क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा- इससे बहुत बड़ा है। कूप-मंत्रक ने कूप के पूर्वी तट से पश्चिमी तट तक फुदक कर कहा---क्या समुद्र इतना बड़ा है ? समुद्री मेंढक ने कहा- इससे भी बहुत बड़ा है। कूपमंक इस पर विश्वास नहीं कर सका। इसने कूप के सिवाय कुछ देखा ही नहीं था। इस प्रकार नाना कथाओं, अवान्तर-कथाओं, वर्णनों, प्रसंगों और शब्द-प्रयोगों की दृष्टि से प्रस्तुत आगम बहुत महत्वपूर्ण है। इसका विश्व के विभिन्न कथा-ग्रन्थों के साथ तुलनात्मक अध्ययन करने पर कुछ नए तथ्य उपलब्ध हो सकते हैं । १. जैन साहित्य का इतिहासपूर्वक प ६६० २. Stories From the Dharma of NAYA इं० ए० जि० १६, पृष्ठ ६६ । ३. (क) मा व्यसमवा सून १४ 1 सूत्र (ख) नंदी, सूत्र ८५ ४. नाधम्मका १५४, पृ० १०६, १८७३ Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का सातवां अंग है। इसमें दस उपासकों का जीवन वर्णित है इसलिए इसका नाम 'उवासगदसाओ' है । श्रमण परम्परा में श्रमणों की उपासना करने वाले गृहस्थों को श्रमणोपासक या उपासक कहा गया है। भगवान महावीर के अनेक उपासक थे । उनमें से दस मुख्य उपासकों का वर्णन करने वाले दस अध्ययन इसमें संकलित हैं । विषय-वस्तु २३ उवासगदसाओ भगवान् महावीर ने मुनि-धर्म और उपासक धर्म इस द्विविध धर्म का उपदेश दिया था। मुनि के लिए पांच महाव्रतों का विधान किया और उपासक के लिए बारह व्रतों का । प्रथम अध्ययन में उन बारह व्रतों का विशद वर्णन मिलता है। श्रमणोपासक आनन्द भगवान् महावीर के पास उनकी दीक्षा लेता है | व्रतों की यह सूची धार्मिक या नैतिक जीवन की प्रशस्त आचार-संहिता है । इसकी आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी ढाई हजार वर्ष पहले थी। मनुष्य स्वभाव की दुर्बलता जब तक बनी रहेगी तक उसकी उपयोगिता समाप्त नहीं होगी। मुनि का आचारधर्म अनेक आगमों में मिलता है, किन्तु गृहस्थ का आचार धर्म मुख्यतः इसी आगम में मिलता है । इसलिए आचार-शास्त्र में इसका मुख्य स्थान है । इसकी रचना का मुख्य प्रयोजन हो गृह के आवार का वर्णन करता है। प्रसंग इसमें नियतिवाद के पक्ष-विपक्ष की सुन्दर चर्चा हुई है। उपानकों की धार्मिक कसोटी की घटनाएं भी मिलती हैं। भगवान महावीर उपासकों की साधना का कितना ध्यान रखते थे और उन्हें समय-समय पर कैसे प्रोत्साहित करते थे यह भी जानने को मिलता है। १. कसा पाहुड भाग १, पृष्ठ १२६, १३० । जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम उपासकों के ग्यारह प्रकार के धर्म का वर्णन करता है । उपासक-धर्म के ग्यारह अंग ये हैं- दर्शन, व्रत, सामायिक, पौषधोपवास, सचित्तविरति, रात्रिभोजन विरति, ब्रह्मचर्य, आरंभविरति, अनुमति विरति और उद्दिष्ट विरति' । आनन्द आदि श्रावकों ने उक्त ग्यारह प्रतिमाओं का आचरण किया था व्रतों की आराधना स्वतन्त्र रूप में भी की जाती है और प्रतिमाओं के पालन के समय भी की जाती है। व्रत और प्रतिमा- ये दो पद्धतिया हैं । समवायाग और नन्दी 'में व्रत और प्रतिमा दोनों का उल्लेख है। जयधवला में केवल प्रतिमाओं सूत्र का उल्लेख है। -- Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ अंतगडदसाओ नाम-बोध-- प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का आठवां अंग है। इसमें जन्म-मरण की परम्परा का अंत करने वाले व्यक्तियों का वर्णन है, तथा इसके दस अध्ययन हैं इसलिए इसका नाम 'अंतगडदसाओं है। समवायांग में इसके दस अध्ययन और सात वर्ग बतलाए गए हैं। नंदी सूत्र में इसके अध्ययनों का कोई उल्लेख नहीं है, केवल आठ वर्गों का उल्लेख है। अभयदेवसूरि ने दोनों में सामञ्जस्य स्थापित करने का प्रयत्न किया है। उन्होंने लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन हैं इस अपेक्षा से समवायांग सूत्र में दस अध्ययन और अन्य वर्गों की अपेक्षा से सात वर्ग बतलाए गए हैं। नन्दी सूत्र में अध्ययनों का उल्लेख किए बिना केवल आठ वर्ग बतलाए गए हैं। किन्तु इस सामञ्जस्य का अंत तक निर्वाह हो नहीं सकता, क्योंकि समवायांग में प्रस्तुत आगम के शिक्षा-काल (उद्देशनकाल) दस बतलाए गए हैं। नंदीसूत्र में उनकी संख्या आठ है। अभयदेवसूरि ने लिखा है कि उद्देशनकालो के अन्तर का आशय हो ज्ञात नहा । नासूत्र के चूणिकार श्री जिनदास महत्तर और वृत्तिकार श्री हरिभद्रसूरि ने भी यह लिखा है कि प्रथम वर्ग में दस अध्ययन होने के कारण प्रस्तुत आगम का नाम 'अंतगडदसाओ' है । चूर्णिकार ने दसा का अर्थ अवस्था भी किया है। प्रस्तुत आगम का वर्णन करने वाली तीन परम्पराएं हैं---एक समवायांग की, दूसरी तत्त्वार्थवातिक आदि की और तीसरी नंदी की। प्रथम परम्परा के अनुसार प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन हैं। इसकी पुष्टि स्थानांग सूत्र से होती है। स्थानांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययन और उनके नाम निर्दिष्ट हैं, जैसे नाम, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सुदर्शन, जमाली, भगाली, किकष, चिल्वक और फाल अंबडपूत्र'। तत्त्वार्थवार्तिक में कुछ पाठ-भेद के साथ ये दस नाम मिलते हैं, जैसे-नमि, मातंग, सोमिल, रामगुप्त, सदर्शन, यमलीक, बलीक, कंबल, पाल और अंबष्ठपुत्र। समवायांग में दस अध्ययनों का उल्लेख है, किन्तु उनके नाम निर्दिष्ट नहीं हैं। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में प्रत्येक १. समवायो, पइण्णगसमवाओ, सून ६६ :.... 'दस अज्झयणा सत्त दगा। २. नंदी, सूत्र ८६."अट्ठ वगा। ३. समवायांगवत्ति, पत्र ११२ : दस अज्झयण ति प्रथमवर्गापेक्षयेव पटन्ते, नन्द्यां तथैव व्याख्यातत्वात, यच्चेह पठ्यते सत्त बग्ग' ति तत् प्रथमवर्गादन्यवर्गापेक्षया, यतोऽप्यष्ट वर्गाः, नन्द्यामपि तथा पठितत्वात् । ४. समवायांगवृत्ति, पत्र ११२ : ततो भणित-अठ्ठ उद्दसणकाला इत्यादि, इह च दश उद्देशनकाला अधीयन्ते इति नास्याभिप्रायमवगच्छामः ।। ५. (क) नन्दीसूत्र, चूणिसहित पु० ६५: पढमवग्गे दस अज्झयण त्ति तस्सक्खतो अंतकडदस ति। (ख) नन्दीसूत्र, वृतिसहित पृ०६३ : प्रथमवर्गे दशाध्ययनानि इति तत्सङ्ख्यया अन्तकद्दशा इति । ६. नन्दीसूत्र, चूणिसहित पृ०६८: दस त्ति-अवस्था। ७. ठाणं, १०११३ । ८. तत्त्वार्थवार्तिक ११२०, पृ०७३ । Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अंतकृत केवलियों का वर्णन है'। जयधवला में भी तत्त्वार्थवार्तिक के वर्णन का समर्थन मिलता हैं। नंदी सूत्र में दस अध्ययनों का उल्लेख और नाम निर्देश दोनों नहीं हैं । इस आधार पर अनुमान किया जा सकता है कि समवायांग और तत्त्वार्थवार्तिक में प्राचीन परम्परा सुरक्षित है और नंदी सूत्र में प्रस्तुत आगम के वर्तमान स्वरूप का वर्णन है। वर्तमान में उपलब्ध आठ वर्गों में प्रथम वर्ग के दस अध्ययन हैं, किन्तु इनके नाम उक्त नामों से सर्वथा भिन्न हैं, जैसे- गौतमसमुद्र, सागर, गम्भीर, स्तिमित, अचल, कांपिल्य, अक्षोभ, प्रसेनजित, और विष्ण । अभयदेवसूरि ने स्थानांग वृत्ति में इसे वाचनान्तर माना है। इससे स्पष्ट होता है कि नंदी में जिस वाचना का वर्णन है वह समवायांग में वर्णित वाचना से भिन्न है। 'अंतगड' शब्द के दो संस्कृत रूप प्राप्त होते हैं-अंतकृत और अंतकृत् । अर्थ की दृष्टि से दोनों में कोई अन्तर नहीं है, किन्तु 'गड' का 'कृत' रूप छाया की दृष्टि से अधिक उपयुक्त है। विषय-वस्तु वासुदेव कृष्ण और उनके परिवार के सम्बन्ध में इस आगम में विशद जानकारी मिलती है। वासदेवकष्ण के छोटे भाई गजसकमाल की दीक्षा और उनकी साधना का वर्णन बहुत ही रोमांचकारी है। छठे वर्ग में अर्जनमालाकार की घटना उल्लिखित है। एक आकस्मिक घटना ने उसे हत्यारा बना दिया और एक प्रसंग ने उसे साधु बना दिया। परिस्थिति और वातावरण से मनुष्य बनताबिगड़ता है-इसे स्वीकार न करें फिर भी यह स्वीकार किया जा सकता है कि मनष्य के बननेबिगड़ने में वे निमित्त बनते हैं ! ___ अतिमवतक मुनि के अध्ययन में आन्तरिक साधना का महत्व समझा जा सकता है। समग्र आगम में तपस्या ही तपस्या दृष्टिगोचर होती है। ध्यान के उल्लेख नगण्य हैं। भगवान महावीर ने उपवास और ध्यान दोनों को स्थान दिया था। तपस्या के वर्गीकरण में उपवास बाह्य तप और ध्यान आन्तरिक तप हैं। भगवान् महावीर ने अपने साधना-काल में उपवास और ध्यान--दोनों का प्रयोग किया था। यह अनुसन्धेय है कि प्रस्तुत आगम में केवल उपवास पर ही इतना बल क्यों दिया गया? विस्मति और नव-निर्माण की श्रृंखला में बचा हुआ प्रस्तुत आगम अनेक दष्टियों से महत्वपूर्ण और अनुसन्धेय है। १. तत्त्वार्यवातिक १२०, पृ० ७३ :... इत्येते दश बर्धमानतीर्थकरतीर्थे 1 एवमुषमादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थे वन्येऽन्ये च दश दशानगारा दश दश दारुणानुपसर्गान्निजित्य कृत्स्नकर्मक्षयादन्तकृत: दश अस्यां वर्ण्यन्ते इति अन्तकृद्दशा । २. कसायपाहट भाग ११० १३०: अंतयडदसा णाम अंगं चउम्बिहोवसग्गे दारुण सहिऊण पारिहेर लढण णिम्वाणं __ गदे सुदंसपादि-दस-दस-साहू तित्यं पहि वपणेदि । ३. स्थानांगबत्ति पत्र ४५३..."ततो वाचनान्तरापेक्षाणीमानीति सम्भाषयामः । Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का नवां अंग है । इसमें अनुत्तर नामक स्वर्ग-समूह में उत्पन्न होने वाले मुनियों से सम्बन्धित दस अध्ययन हैं, इसलिए इसका नाम 'अणुत्तरोववाइयदसाओ' है । नंदी सूत्र में केवल तीन वर्गों का उल्लेख है। स्वानांग में केवल दस अध्ययनों का उल्लेख है। राजवार्तिक के अनुसार इसमें प्रत्येक तीर्थंकर के समय में होने वाले दस-दस अनुत्तरोपपातिक मुनियों का वर्णन है | समवायांग में दस अध्ययन और तीन वर्ग -- दोनों का उल्लेख है । उसमें अध्ययनों के नाम उल्लिखित नहीं हैं। स्थानांग और तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार उनके नाम इस प्रकार हैं । अतिमुक्त | २६ (१) स्थानांग के अनुसार ऋषिदास, धन्य, सुनक्षत्र, कात्तिक, स्वस्थान, शालिभद्र, आनंद तेतली दशार्णभद्र और 2 अणुतरोववाइयदसाओ (२) राजवार्तिक के अनुसार ऋषिदास वान्य, सुनक्षत्र, काशिक, नन्द, नन्दन, शालिभद्र, अभय, वारिषेण और चिलापुत्र' । उक्त दस मुनि भगवान् महावीर के शासन में हुए थे - यह तत्त्वार्थ वार्तिककार का मत है । धवला में कालिक के स्थान पर कार्तिकेय और नंद के स्थान पर आनंद मिलता है। प्रस्तुत आगम का जो स्वरूप उपलब्ध है वह स्थानांग और समवायांग की वाचना से भिन्न है। अभयदेवसूरि ने इसे वाचनान्तर बतलाया है उपलब्ध वाचना के तृतीय वर्ग में धन्य, ५. ठाणं १०/११४ । ६. तत्त्वार्थवार्तिक १।२० पृ०७३ । ७. षट्खण्डागम १३१२ 1 १. नंदी, सून ८ तिणि वगा । २. ठाणं १०१११४ ३. (क) तस्वार्थपातिक १२०, पृ० ०३ ....... इत्येते दश वर्धमानतीर्थ करतीर्थे । एवमृषभादीनां त्रयोविंशतेस्तीर्थेष्वन्येऽन्ये च दश दशानमारा दश दनुजस्य विजयातपूरयन्ना इत्येवमनुशरोपपादिकः दास्यन्त इत्यनुत्तरोपपादिकदशा । (ख) कसायपाहुड भाग १, पृ० १३० । अणुत्तरोववादियदसा णाम अंगं चउब्विहोवसम्गे दारुणे सहिपूर्ण चउवीसन्हं तित्ययराणं तिथेसु अणुत्तरविमाणं गये दस दस मुणिवस हे वण्णेदि । ४. समयाओ, पइण्णगसमवाओ १७ । .......दस अज्झयणा तिष्णि बरसा स्थानांगवृति पत्र ४०३: तदेवमिहापि वाचनान्तरापेक्षयाध्ययनविभाग उपसो नभ्यमानवाचनापेक्षयेति । Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ सुनक्षत्र और ऋषिदास-ये तीन अध्ययन प्राप्त हैं। प्रथम वर्ग में वारिषेण और अभय-ये दो अध्ययन प्राप्त है, अन्य अध्ययन प्राप्त नहीं हैं। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम में अनेक राजकुमारों तथा अन्य व्यक्तियों के वैभवपूर्ण और तपोमय जीवन का सुन्दर वर्णन है । धन्य अनगार के तपोमय जीवन और तप से कृश बने हुए शरीर का जो वर्णन है वह साहित्य और तप दोनों दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। पण्हावागरणाई नाम-बोघ प्रस्तुत आगम द्वादशाक्षी का दसवां अंग है। समवायांग सूत्र और नंदी में इसका नाम 'पण्हावागरणाई' मिलता है। स्थानांग में इसका नाम 'पण्हावागरणदसाओ' है। समवायांग में 'पण्हावागरणदसासु'-यह पाठ भी उपलब्ध है। इससे जाना जाता है कि समवायांग के अनुसार स्थानांग-निर्दिष्ट नाम भी सम्मत है। जयधवला में 'पण्हवायरण' और तत्त्वार्थवार्तिक में 'प्रश्नव्याकरणम्' नाम मिलता है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न मत प्राप्त होते हैं। स्थानांग में इसके दस अध्ययन बतलाए गए है-उपमा, संख्या, ऋषि-भाषित, आचार्य-भाषित, महावीर-भाषित, क्षोमक प्रश्न, कोमल प्रश्न, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न और बाहु प्रश्न । इनमें वर्णित विषय का संकेत अध्ययन के नामों से मिलता है। समवायांग और नंदी के अनुसार प्रस्तुत आगम में नाना प्रकार के प्रश्नों, विद्याओं और दिव्य-संवादों का वर्णन है। नंदी में इसके पैतालिस अध्ययनों का उल्लेख है । स्थानांग से उसकी १. (क) समवाओ, पइण्णमसमवाओ सूत्र ६८। (ख) नंदी, सूत्र ६० । २. ठाणं १०।११०॥ ३. (क) कसायपाहुट, भाग १ पृष्ठ १३१ : पण्हवायरणं णाम अंगं"। (ख) तत्त्वार्थवार्तिक ११२० : ''प्रश्नव्याकरणम् । ४. ठाणं १०१११६: पण्हावागरणदसाणं दस अपझयणा एण्णता, तं जहा-उवमा. संखा, इसिभासियाई, आयरियभासियाई, महावीरभासियाई, खोमणपसिणाई, कोमलपसिणाई, अद्दामपसिणाई, अंगुटुपसिणाई बाहुपसिणाई । ५. (क) समकाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १८: पण्हावागरणेसु अठ्ठत्तरं पसिणसय अठ्ठत्तरं अपसिणसयं अट्ठतरं पसिणापसिणयं विज्जाइसया, नागसुवण्णेहि सद्धि दिव्वा संवाया आघविज्जति । (ख) नंदी, सूत्र है। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ कोई संगति नहीं हैं। समवायांग में इसके अध्ययनों का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके 'पण्हावागरणदसासु' इस आलापक (पैराग्राफ) के वर्णन से यह निष्कर्ष निकाला जा सकता हैं कि समवायांग में प्रस्तुत आगम के दस अध्ययनों की परम्परा स्वीकृत है। उक्त आलापक में बतलाया गया है कि प्रश्नव्याकरणदसा में प्रत्येक बुद्ध भाषित, आचार्य भाषित, वीरमहर्षि भाषित, आदर्श प्रश्न, अंगुष्ठ प्रश्न, बाह प्रश्न, असि प्रश्न, मणि प्रश्न, क्षोम प्रश्न, आदित्य प्रश्न आदि-आदि प्रश्न वणित हैं। इन नामों की स्थानांग में निर्दिष्ट दस अध्ययन के नामों के साथ तुलना की जा सकती है। यद्यपि उद्देशनकाल पैतालिस बतलाए गए हैं फिर भी अध्ययनों की संख्या का स्पष्ट निर्णय नहीं किया जा सकता। गंभीर विषय वाले अध्ययन की शिक्षा अनेक दिनों तक दी जा सकती है। तत्त्वार्थवार्तिक के अनुसार प्रस्तुत आगम में अनेक आक्षेप और विक्षेप के द्वारा हेतु और नय से आश्रित प्रश्नों का उत्तर दिया गया है, लौकिक और वैदिक अर्थों का निर्णय किया गया है। जयधवला के अनुसार प्रस्तुत आगम आक्षेपणी, विक्षेपणी, संवेजनी और निवेदनी- इन चारों कथाओं तथा प्रश्न के आधार पर नष्ट, मुष्टि, चिन्ता, लाभ, अलाभ, सुख, दुख जीवन और मरण वा वर्णन करता है। उक्त ग्रंथों में प्रस्तुत आगम का जो विषय वर्णित है वह आज उपलब्ध नहीं हैं। आज जो उपलब्ध है उसमें पांच आश्रवों (हिंसा, असत्य, चौर्य, अब्रह्मचर्य और परिग्रह) तथा पांच संवरों (अहिंसा, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह) का वर्णन है। नदी में उसका कोई उल्लेख नहीं है। समवायांग में आचार्य भाषित आदि अध्ययनों का उल्लेख है तथा जयधवला में आक्षेपणी आदि चारों कथाओं का उल्लेख है। इससे अनुमान किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम का उपलब्ध विषय भी प्रश्नों के साथ रहा हो, बाद में प्रश्न आदि विद्याओं की विस्मृति हो जाने पर वह भाग प्रस्तुत आगम के रूप में बचा हो। यह अनुमान भी किया जा सकता है कि प्रस्तुत आगम के प्राचीन स्वरूप के विच्छिन्न हो जाने पर किसी आचार्य के द्वारा नए रूप से रचना की गई हो। नदी में प्रस्तत आगम की जिस वाचना का विवरण है, उसमें आश्रवों और संवरों का वर्णन नहीं है, किन्तु नंदी चूर्णि में उनका उल्लेख मिलता है । यह संभव है कि चूणिकार ने उपलब्ध आकार के आधार पर उनका उल्लेख किया है। १. तत्त्वार्यवार्तिक १२०, पृ०७३, ७४ : आक्षेपविक्षेपहेतुन्याश्रितानां प्रश्नानां व्याकरणं प्रश्नव्याकरणम् । तस्मिल्लौकिकवैदिकानामर्थानां निर्णयः । कसायपाहुड, भाग १, पृ० १३१, १३२ः पण्डवायरणं णाम अंगं अक्खेवणी-विक्खेवणी-संवेयणी-णिव्वेयणीणामाग्रो चउम्विहं कहाओ पण्हादो णट्र-मटिठ चिंता-लाहालाह-सुखदुक्ख-जीवियमरणाणि च वणेदि । १. नंदी सूत्र, चूणि सहित पृ० ६६ । Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૨૯ विवागसुयं नाम-बोध प्रस्तुत आगम द्वादशाङ्गी का ग्यारहवां अंग है। इसमें सुकत और दुष्कत कर्मों के विपाक का वर्णन किया गया है, इसलिए इसका नाम 'विवागसुयं है। स्थानांग में इसका नाम 'कम्म विवागदसा' है। विषय-वस्तु प्रस्तुत आगम के दो विभाग हैं-दुःख विपाक और सुख विपाक । प्रथम विभाग में दुष्कर्म करने वाले व्यक्तियों के जीवन प्रसंगों का वर्णन है। उक्त प्रसंगों को पढ़ने पर लगता है कि कुछ व्यक्ति हर युग में होते हैं। वे अपनी र मनोवृत्ति के कारण भयंकर अपराध भी करते हैं। दुष्कर्म व्यक्ति की शारीरिक और मानसिक स्थितियों को किस प्रकार प्रभावित करता है, यह भी जानने को मिलता है। दसरे विभाग में सुकत करने वाले व्यक्तियों के जीवन-प्रसंग हैं। जैसे कर कर्म करने वाले व्यक्ति हर युग में मिलते हैं वैसे ही उपशान्त मनोवृत्ति वाले लोग भी हर युग में मिलते हैं । अच्छाई और बुराई का योग आकस्मिक नहीं है। स्थानांग सूत्र में कर्म विपाक के दस अध्ययन बतलाए गए हैं-मृगापुत्र, गोत्रास, अंड, शकट, माहन, नन्दीषेण, शौरिक, उदुम्बर, सहसोद्दाह-आमरक और कुमार लिच्छवी' ! ये नाम किसी दूसरी वाचना के हैं। उपसंहार अंग सूत्रों के विवरण और उपलब्ध स्वरूप में पूर्ण संवादिता नहीं है। इस आधार पर यह अनमान किया जा सकता है कि अंग सूत्रों का उपलब्ध स्वरूप केवल प्राचीन नहीं है, प्राचीन और अर्वाचीन दोनों संस्करणों का सम्मिश्रण है। इस विषय का अनुसन्धान बहुत ही महत्वपूर्ण हो सकता है कि अंग सूत्रों के उपलब्ध स्वरूप में कितना प्राचीन भाग है और कितना अर्वाचीन तथा किस आचार्य ने कब उसकी रचना की। भाषा, प्रतिपाद्य, विषय और प्रतिपादन शैली के आधार पर यह अनुसन्धान किया जा सकता है। यद्यपि यह कार्य बहुत ही श्रम, साध्य है, पर असंभव नहीं है। १. (क) समबाओ, पइण्णगसमवाओ सूत्र १६ । (ब) नंदी, सूत्र ६१ (ग) तत्त्वार्थवार्तिक १२०॥ (घ) कसायपाहुड, भाग १ पृ. १३२ 1 २. ठाणं १०११०1 ३. ठाणं १०११११॥ Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कार्य-संपूति प्रस्तुत आगमों के पाठ-संशोधन में अनेक मुनियों का योग रहा है। उन सबको मैं आशीर्वाद देता हूँ कि उनकी कार्य जा शक्ति और अधिक विकसित हो । इसके सम्पादन का बहुत कुछ श्रेय शिष्य मुनि नथमल को है, क्योंकि इस कार्य में अहनिश वे जिस मनोयोग से लगे हैं, उसी से यह कार्य सम्पन्न हो सका है। अन्यथा यह गुरुतर कार्य बड़ा दुरूह होता ! इनको वृत्ति मूलतः योगनिष्ठ होने से मन की एकाग्रता सहज बनी रहती है । सहज ही आगम का कार्य करते-करते अन्तर्रहस्य पकड़ने में इनको मेधा काफी पैनी हो गई है। विनयशीलता, श्रम-परायणता और गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण भाव ने इनकी प्रगति में बड़ा सहयोग दिया है। यह वृत्ति इनकी बचपन से ही है। जब से मेरे पास आए, मैंने इनकी इस वृत्ति में क्रमशः वर्धमानता ही पाई है । इनको कार्य-क्षमता और कर्तव्य-परता ने मुझे बहुत संतोष दिया है। मैंने अपने संघ के ऐसे शिष्य साधु-साध्वियों के बल-बूते पर ही आगम के इस गुरुतर कार्य को उठाया है। अब मुझे विश्वास हो गया है कि अपने शिष्य साधू-साध्वियों के निस्वार्थ, विनीत एवं समर्पणात्मक सहयोग से इस बृहत् कार्य को असाधारण रूप से सम्पन्न कर सकूँगा। भगवान महावीर की पचीसवीं निर्वाण शताब्दी के अवसर पर उनकी वाणी को जनता के समक्ष प्रस्तुत करते हुए मुझे अनिर्वचनीय आनन्द का अनुभव हो रहा है। अणुव्रत विहार, नई दिल्ली-१ २५००वां निर्वाण दिवस आचार्य तुलसी Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Preface NAYA DHAMMAKAHÃO The title The present Agama is the sixth Anga of Dwadasangi. It has two Śrutaskandhas. The first is called as 'NAYA' and the second as 'DHAMMAKAHÃO. On combining both the Srutaskandhas, the present Agama has the title as 'NÄYADHAMMAKAHÃO. NAYA' (Jnäta) means examples. and 'DHAMMAKAHÃO' means religious fables. The present Agama has both of historical illustrations and imaginary fables. In the Jayadhawala the title of this Agama is found as 'Nähadhämmakaha' (Nathadharma-katha). Nätha' means the Lord. 'Nathadhamma-kaha' ie, the dharmakatha expounded by the Tirthankara. In some Sanskrit works the title of this Agama is given as 'Jnātṛidharmakatha'. Acharya Akalanka too has given the title of this Agama as Jnatadharmakatha". Acharya Malayagiri and Abhayadeva Süri give the title of 'Jnätadharmakatha. It is a treatise mainly containing illustrative religious stories. According to them, the first Srutasakandha has illustrations and the second Śrutaskandha has religious stories. Both of them mention the lengthening of the word 'Jnäta"." The family name of lord Mahavira has been given as 'Jnāta' and 'Nätha' in the Swetamber and Digamber literature respectively. On this basis, some scholars have tried to relate this Agama with lord Mahavira. They hold that 'Jnātadharmakatha' or 'Natha dharmakatha' means the 'Dharmakatha by lord Mahavira. Waber says that the work having fables pertaining to the religion of Jnätṛiwanst Mahavira, is titled as NAYADHAMMAKAHA' But, on the account found in the Samwayanga and the Nandi, the meaning 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 94. 2. Tatwartha Vartika, 1/20. 3. (a) Nandivritti, pages 230-31. (b) Samawayanga Vritti, page 108. 4. Jain sahitya ka Pitihas, Purwa-Pithika, page 660. 5. Stories from the Dharma of NAYA, I.A., Vol. 19, page 66. Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 'Dharmakathā of Jaatsiwansĩ Mabävira' does not seem to be appropriate. It has been toid there that in the 'Jnātadharmakathā', the cities and gardens etc. of the Inātas' (the persons cited) have been described,1 The title of the first Adhyayana of this Agama is 'Ukkhittanâye' (Utkshiptajñāta). On this basis also, the word 'Natha' seems to go with the meaning as an 'illustration' only. The content The spiritual elements such as non-voilence, palate contral, faith, restraint of senses etc. have been expounded in an excellent style through the illustrations and fables in the present Āgama. Besides that of a plot, it has the elegance of description also. While going through the first Adhyayana, we have the reminiscense of the poetical prose-work such as the Kadambari. In the ninth Adhyayana, the description of the boat sinking in the sea, is very lively and horripilating. In the twelfth Adhyayana, the process of purifying water reminds us of the modern method. The changability of the Pudgala substance has been expounded by this illustration. Along with the main illustrations and fables, some subsidiary fables are also found. In the eighth Adhyayana the fable of a well-frog has been recorded in an excellent style. Parivrājikā Chokha goes to Jitaśatru. Jitaśatru enquires of her---You wander a lot. Have you ever seen a harem like that of mine? With a smile Chokha said - You are like a Kūpa-Mandūka. Who is that Kupa Manduka ? Chokha said–There was a frog in a well. He was born and brought up there. He considered his well everything. One day an ocean-frog came down in that well. The well-frog said to him-Who are you? He answered -I am a frog from the ocean. I have came from there. The well-frog asked him-How big is the ocean ? The ocean-frog said-It is very big. The well-frog, drawing a boundry with his foot, asked him--Is the ocean as big as this? The ocean-frog answered --Far more greater than this. The well-frog had a jump, from the eastern to the western end of the well, and said--Is the ocean so big? The ocean-frog answered--It is far more bigger than this too. The well-frog could not believe it as it had never seen any thing except the well. 1. (a) Samwao. painnagasamawao, Sutra 94. (6) Nandi, Sutra 85. 2. Nayadhammakahao, 8/154, pages 186-87. Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 33 In this way, from the view point of various fables, insertions, illustrations, descriptions, anecdotes and word-usages, this Agama has a great value. A comparative study of it with that of the different fable-works found the world over may well give some new facts. UWĂSAGADASÃO The title The present Agama is the seventh Anga of the Dwadasangi. It has the biographies of ten Upasakas (lay devotees), therefore, it is called as ‘Upāsagadasão' in the Sramanū order the laymen serving the Sramanas are called Sramaṇopāsakas or Upāsakas. Lord Mahavira had large number of Upāsakas. It comprises of ten 'Adhyayanas' depicting the life of ten principal Upāsakas. The Content Lord Mahavira has given twofold code of conduct, such as laws of conduct for Munis and laws of conduct for Upāsakas. Five Mahāyratas (great vows) were postulated for a Muni and twelve Vratas (vows) for a Upasaka, śramanopāsaka Anand was consecreted and initiated to his cult by him. The list of the Vratas is an excellent code of conduct pertaining to religious or ethical life. Even today, it has the same utility as it had 2500 years ago. As long as the weakness of human nature is there, its utility will always exist. The code of conduct for Munis is found in many Agamas but the code of conduct for laymen is found in this Agama only. It has, therefore, its own place in the codes of conduct. The object of its composition is only to put forth the code of conduct for a layman. Incidentiy, Niyatiwada has also been discussed nicely with its arguments for and against. Incidents, proving the religious touch-stone for the Upasakas, are also found. It also throws light on the fact as to how lord Mahavira took care of the accomplishment of the Upāsakas. and encouraged them to higher spiritual life from time to time. According to the Jayadhawalā the present Agama narrates eleven-fold practices of the 'Upåsakas'. They are-Darsan, Vrat, Sāmayika, Pausadhopawā. Sacitta-Virati, Ratri-Bhojan-Virati, Brahmacarya, Arambha-Virati, Parigrahavirati Anumáti-Virati, and Uddista Virati'. The Srāwakas, beginning from 1. Kasyapahuda, parti, pages 129-30. Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 34 Ananda, had practised above said eleven Pratimas. The Vratas are practised indenpedently, and at the time of fulfilment of Pratimás also. These Vratās and Pratimās are the two religious codes for an Upāsaka. In the Samawāyānga and the Nandi Sütra, Vrata and Pratimă both are mentioned. The Jayadhawalā gives an account of Pratimäs only. ANTAGADADASÃO The title The present Agama is the eighth of the Dwādaśāngi. The illustrious ones who put an end to the cycle of death and birth, have been narrated in it, and it has ten Adhyayanas. Hence the title 'Antagadadasão". The Samwāyānga tells us that it contained ten Adhyayanas and scven Vargast. The Nandi Sūtra says nothing about its Adhyayanas and only eight Vargas have been accounted for and in it. Sri Abhayadeva Sūri has tried to find consistency in these both. He tells us that the first Varga has ten Adhyayanas, therefore the Samawāyānga Sūtra mentions ten Adhyayanas and seven Vargas only. The Nandi Sūtra gives cight Vargas only with no mention of Adhyayanas'. But this consistency cannot be maintained to the end, because the Samawāyanga gives us ten Siksha-kālas (Uddeśan kālas) of this Agama and the Nandi Sūtra gives only eight. Sri Abhayadeva Suri admits that he does not understand the purpose behind the differcnce in the number of the Uddesankälas. Thc Chūrnikār of the Nandisātra, Sri Jinadas Mahattar and the Vrittikär, Sri Haribhadra Sūri also write that the present Āgama is given the title 'Antagadadasão as it has ton Adhyayanas in the first Vargas. The Churņikār takes the meaning of 'Daśā' as 'Awastha' (condition) also. Threc traditions are found to narrate the present Agama : firstly, that of the sa mawāyānga; secondly, that of the Tatwārtha Vārtika, and thirdly, that of the Nandi Sütra. 1. Samawao, painnagasamawao, Sutra 96. 2. Nandi Sotra, 88. 3. Samwayanga Vritti, page 112. 4. Samawayanga Vritti, page 112. 5. (a) Nandi with Churni, page 68. (b) Nandi with Vritti, page 83. 6. Nandi with the Churnipage 68. Dasatti Awastha. Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 35 According to the first tradition, the present Āgama has ten Adhyayanas. The Sthānānga Sūtra supports it. The Sthānānga mentions the tco Adhyayanas and their headings, such as Nami, Mātanga, Somila, Ramagupta, Sudarsana, Jamäti, Bhagāli, Kimkașa, Cilawaka, Pāla, and the Ambashthaputtra. These headings are fou d in the Tatwārthavartika aiso with some variance, such as, Nami, Mātang, Somila, Ramaguptā, Sudarśana, Yamalika, Kambala, Pāla and Ambaşthaputtra. Samawayanga mentions ten adhayans without giving their names. The present Āgama gives an account of the Antaksīta Kcwalis, in groups of ten contemporaries of cach Tirthankara. The Jayadhawala, too. supports this statement of the Tatwārthavrāt.ka. In the Nandisutra mention is found neither of the ten Adhyayabas nor of their headings. On this basis, it can be inferred that the Samawāyanga and the Tatwārthavartika maintain the old tradition and the Nandi-Sutra gives the Agama in the form found at present. There are ten Adhyayanas of the first Varga out of the eight Vargas found at present, but their headings altogether differ from the abovc- said headings. i.c., Gautama, Samudra, Sāgara, Gambhira, Stanita, Acala Kāmpilya, Aksetra, Prasenjit and Vişnu. In the 'Sthänăngavritti' Sri Abhayadeva Suri acknowledges it as a variant 'Vācna. This shows that the Vaena' of the 'Nandi' is different from the 'Vāónā 'found in the 'Samawāyānga'. The word 'Antagada' has two Sanskrit forms.Antakrita and Antakrit. Both have the same sense but 'gāda' goes more with the Sanskrit version Ksita' so far as morphology is concerned. tent The Content This Agama gives an excellent account of Vasudeva Krisna and his family. The Diksā (initiation) and accomplishment of Gajasukamāla, the younger brother of Vasudeva Krişna has been horripiliatingly narrated. In the sixth Varga, is found an account of the incident occured with Ariuna, the gardener. An accident turned him to be a murderer and the other association made him a saint. It may not be admitted that a man changes with the circumstances and atmosphere, but, even then, it may be accepted that they are the cause of the rise and fall of a man. 1. Tatwarthavartika 1/20 2. Tatwarthavartika 1/20. 3. Sihany Vritti. Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 36 By the Adhyayana of Atimuktaka Muni, the value of spiritual accomplishment can be well understood. Fasting alone is seen in this Agama through out. The narrations of meditations are scanty. Lord Mahavira had laid stress upon both--the fast and the meditation. In the classification of penance, fast is the outer penance and meditation is the inner one. Lord Mahavira in his penance-period, had observed both, fast and meditation. It is worth investigating why this Agama lays so much stress on fasting only. This Agama, a remanent in the succession of oblivion and reproduction, is valuable and worthy of research work from many points of view. ANUTTAROWAWAIYA-DASÃO The title This Agama is the ninth Anga of the Dwādaśangi. As it contaisten Adhyayanas regarding the Munis born in the Aruttara Swarga class, its title is given as Anuttarowawāiya-Dasāo'. The Nandi Sūtra mentions only three Vargas? The Sthānānga quotes only ten Adhyayanas. According to the Rajavärttika groups of ten Anuttaropapātika Munis, contemporaries of each Tirthanker, have been narrated in it.* The Samawāyanga mentions the ten Adhyayanās and the three Vargas too. But the headings of the ten Adhyavanas have not been given in it. According to the Sthānänga and the Tattwärtha vårttika they read as, Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Karttika. Swastban, Salibhadra, Ananda, Tetali, Daśārnabhadra and Atimuktas, and as Risidasa, Dhanya, Sunaksatra, Kärttika, Nandanandana, Sätibhadra, Abhaya, Warişeņa, and Cilattaputra respectively. The above said Munis were the contemporarics of Lord Mahavira, such is the opinion of the author of the Tatta wārtha värttika." In the Dhawala we find Kartikeya instead of Kärttika and Anand instead of Nanda?. The present form of the Agama is different from the 'Vaćna' of the Sthânāga and the Samawāyānga. Abhayadeva Süri holds that it is a different Vacna'. In the form of the Agama, that is available, three Adhyayanas, such 1. Nandi, Sutra, 89. 2. Thanam, 10/114. 3. Tatiawarth varttikas 1/20, Kasayapahuda I, page 130. 4. Samawao, painnaga samawao, Sutra 97. 5. Thanam 10/114. 6. Tatiwarthvarttjka 1/20. 7. Satkhundagama 1/1/2. Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 37 as Dhanya, Sunakshtra and Risidasa, are found. In the first Varga, only two Adhyayanas, named as Wārisrena and Abhaya, are seen. The contents This Agama beautifully narrates the luxury and ascetic lives of many princes. The narration of the ascetic life of Dhanya Anagära and his body emaciated due to the penance is noteworthy both from the literary and spiritual viewpoints. PANHAWĀGARANĀIN The title The present Āgama is the tenth Anga of the Dwādaśāngi. Its title has been mentioned as 'Panhāwāgaraņāin' in the Samawāyanga Sūtra and the Nandi. Its name is found as 'Paṇhāwägaradasão" in the Sthānānga and the same reads as 'Panhāwāgaranadasásu' in the Samawāyānga. It is, therefore inferred that the title mentioned in the Sthānānga is also in concurrence with the Samawāyānga. The Jayadhawala and the Tattwärthavarttika note it as Panhäwayaraña or Praśna-Vyakaraņā. The Contents Opinions differ regarding the contents of the present Agama. The Sthānanga citcs its ten Adhyayanas, such as, Upamā, Samkhyā. Risibhāsita, Ācāryabhāsitä, Mahavira-bhăşitā, Kșaumaka-Praśna, Komala-Praśna, ĀdarśaPraśna. Angustha-Praśna and Bahu-Praśna.* The headings of the Adhyayanas indicate well the contents they have. According to the Samawāyānga and the Nandi, the present Āgama has various types of queries, sciences (vidyās) and the dialogues of the Devas dealt with. The Nandi notes fortyfive Adhyayanas of it, which do not accord with the Sthānanga. The Samawāyānga makes no mention of its Adhyayanas. 1. (a) Samawao painnagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi. Sutra 90, 2. Thanam, 10/110. 3. (a) Kasayapanuda pt. I, page 131. (b) Tatwarthavarttika 1/20. 4. Thadam 10/116. 5. (a) Samawao, pa innagasamawao, Sutra 98. (b) Nandi, Sutra, 90. Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 38 But, from its 'Panhāwāgaranadasāsu paragraph, it may be inferred that the Samawāyanga accepts the traditional ten Adhyayanas of the present Agama, The said paragraph tells us that Pratyeka Buddhabhāsita, Atāryabhāṣita, Viramaharşi-Bhäşita, Ādarśa-Praśna, Anguștha-Praşna, Bāhu-Prašna, Asi-Praśna, Mani-Praśna, Kșauma-Praśna, Aditya-Praśna etc. have been dealt with in the Praśna-Vyakarana-Dasā'. These headings can well be compared with those of ten Adhyayanas mentioned in the Sthānānga. Though the Uddeśana-Kālas have been mentioned as fortyfive, the exact number of the Adhyayanas cannot be decided definitely. The tcaching of the Adhyayana on a deep topic could he spread over for many days. According to the Tattwärtha vārttika many queries have been expoucded in this Agama , depending on cause and inference by 'Āksepa' and Viksepa'. Also the Laukika (sccular) and Vedic Arthas have been ascertained in it. The Jayadhawalá notes that this Agama narrates the Naşta, Musti, Cintā, Labha, Aläbha, Sukha, Dukkha, Jiwan and Marana with the help of the four kinds of fables, ic, Aksepani, Prakṣepani, Samvejanī, and Nirvedani, as well as purporting a query. The contents of the Āgama, as mentioned in the said works, is not found today. What is found covers the five Aśrawas (Hinsă, Asatya, Caurya, Ābrahmaćarya and Parigraha) and the five Samwaras (Ahimsa, Satya, Aćaurya, Brhmatarya, and Aparigraha) only. The Nandi does not make mention of it at all. The Samawäyānga mentions the Adhyayanas beginning from Acārya-Bhāşita, while the Jayadhawala gives an account of the four kinds of fables beginning from Akşepani. It may be inferred that the known contents of the Āgama formerly were in the form of the queries and subsequently, the Icarning of query etc. being lost, the remanent part formed the present Āgama. It is also likely that the old form of the present Āgarna being lost, some Āćarya composed it a fresh. The Vacna' of this Agama given in the Nandi, does not narrate the Aśrawas and the Samwaras, but the Curni of the Nandi does it. Likely it is that the Cürnikära did it on the basis of the present form of the Agama. 1. Tattwarthavarttika 1/20. 2. Kasayapa huda part I, page 131. 3. Nandi Sutra with the Curni on page 12 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 39 VIVĀGASUYAM The title The present Āgama is the 11th Anga of the Dwādaśāngi. The Vipāka (fruit) of the Suksita and Duşkļita deeds has been dealt with in it. therefore the title "Vivāgasuyam." The Sthānānnga gives its title as "Kāmma Vivāgadasa." The Contents This Agama has two divisions, i.e. the Dukha Vipäka and the Sukha Vipāka. The first division contains the topics on the lives of the individuals doing bad deeds. On going through the said contents, it appears that, in every age, there are some individuals who commit horrible crimes on account of their cruel mentality. It is also gathered how the criminal deeds affcct their physical and mental states. The second division has the life-contents of those individuals who perform good deeds. As the commitant of cruel deeds are found in every age, so are the persons having the tranquil mentality. Conjunction of goodness and badness is not without cause. Conclusion The Sthānānga Sūtra enamurates ten Adhyayanas of the Karma-Vipaka such as, Mrigāputra, Gotrāsa, Anda, Sakata, Māhan, Nandişeņa, Saurika Udumbara, Sahasoddāha-Amaraka, and Kumar Licchavī. These headings have been taken from some other Vaćna'. The account of the Anga-Sūtras and the peculiar form they are presently found in are not fully harmonic. On this basis, it may be inferred that the obtained form of the Agama Sutras in not ancient only, but is a mixture of the editions of old and new, both. This will form an important subject of investigation as to how much of the present form of the Anga. Sūtra is ancient and how much modern, as well as who of the Āćaryas composed it and when. The language, the subject-matter and the style of ascertainment will surely form the basis of investigation. This is of course, highly toilsome, but not impossible. 1. (a) Samawao, painnagasamawao, Sutra 99 (b) Nandi Sutra 91. (c) Tattawarthavarttika 1/20 (d) Kasayapahuda, Pt I, page 132. 2. Thanam 10/110. Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Accomplishment of the work In the accomplishment of this task, there has been the contribution of many a Muni. I bless them that their devotedness to the performance be ever more developed. For the editing of this Āgama major amount of credit goes to my learned disciple Muni Shri Nath Mali. Day in and day out he has devoted himself to this arduous task. It is because of his concentrated efforts that the work has got such a nice accomplishment. Otherwise, it would not have been an easy job. On account of his in-born Yogic temperament he was capable of attaining that concentration of mind which was essential for achieving the end. On account of his constant devotion to the work of research in the field of Agamic literature his intellect has achieved sufficient sharpness in finding out immediately the hidden meaning and mysteries of Āgamic expositions. His keen sense of obedience, perseverance and absolute dedication have contributed much in developing his personality. The above qualities are seen in him since his early age. Right from the time when he joined the Sangha I have been an observor of these qualities of his, which have so developed. His capacity to undertake to a big task has given me ever increasing satisfaction. I have undertaken this hard and tremendous task of editing the Agamas relying on the strength of such learned disciples in the Sangha. I am now, quite confident that I shall be able to complete this hazardous work with the help and assistance of my obedient, selfless and devout disciples. On the holy occasion of this 25th centinary of Lord Mahavira, I have a feeling of great pleasure in presenting to the people the teachings of the Lord. Anuvrata Vihar Acharya Tulasi Delhi Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदाओ सू० १-८६ पृ० ३६५-४२० उक्खेव पदं १, आणंदगाहावइ-पदं ८ महावीर - समवसरण पदं १७, आणंदरस गिहिधम्मवित्त-पदं २३, अतियार- पदं ३१, आणंद- अभिग्गह-पदं ४५, सिवणंदाए वंदणठ्ठगमणपद ४६, सिवणंदाए गिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं ५१, गोयम- पुच्छा-पदं ५३, भगवओ जणवयविहार - पदं ५४, आणंदस्स समणोवासग चरिया- पदं ५५, सिवर्णदाए समणोवासिय चरियापदं, ५६, आणंदस्स धम्मजागरिया - पदं ५७, आणंदस्स उवासगपडिगा - पडिवत्ति-पदं ६१, आनंदस्स अणसण-पदं ६५, आणंदस्स ओहिनाणुप्पत्ति-पदं ६६, गोयमस्स आगमण-पदं ६७, आणंद-गोयम-संवाद-पदं ७६, भगवओ उत्तर- पदं ८१, गोयमस्स खामणा-पदं ८२, भगवओ जणवयविहार-पदं ८३, आणंदस्स समाहिमरण-पदं ८४, निक्लेव पदं ८६ । पढमं अभयणं बीयं अभयणं सू० १-५७ पृ० ४२१-४३६ उक्खेव-पदं १, कामदेवगाहावइ-पदं २, महावीर - समवसरण - पदं ७, कामदेवस्य गिहिधम्मपरिवत्ति - पदं १३, भगवओ जणवयविहार- पदं १५, कामदेवस्य समणोवासयग- चरिया-पदं १६, भद्दाए समणोवासिय चरिया - पदं १७, कामदेवस्स धम्मजागरिया- पद १८, कामदेवरस पिसायरूव कय उवसग्ग-पदं २०, कामदेवरस हथिरूव कय उवसग्ग पदं २८, कामदेवस्स सप्परूव-कय-उवसग्ग- पदं ३४, देवरूव विउव्वण-पदं ४०, कामदेवस्स पडिमा - पारण-पाद ४१, कामदेवस्स भगवओ पज्जुवासणा-पदं ४२, भगवया कामदेवस्स उवसग्गवागरण-पदं ४५, भगवया कामदेवस्स पसंसा- पद ४६, कामदेवस्स पडिगमण-पदं ४८, भगवओ जणवयविहार-पदं ४६, कामदेवस्स उवास गपडिमा पडिवत्ति-पदं ५०, कामदेवस्स अणसण-पदं ५४, कामदेवस्स समाहिमरण-पदं ५५, निक्खेव पदं ५७ । ४७ तइयं अभयणं सू० १-५३ पृ० ४४०-४५३ उक्खेव-पदं १, चुलणीपियगाहावइ-पदं २, महावीर - समवसरण - पदं ७ चुलणीपियस्स गहिधम्म- पडिवत्ति-पदं १३, भगबओ जणवयविहार-पदं १५, चुलणीपियस्स समणोवासगचरिया- पद १६, सामाए समणोवासिय चरिया - पदं १७, चूलणीपियस्स धम्मजागरिया-पदं १८, चुलणीपियस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०, ० जेठपुत्त २१, मज्झिमपुत्त २७, ० कणीयसपुत ३३, भद्दा सत्यवाही ३६, चूलणीपियस्स कोलाहल - पदं ४२, भद्दाए पसिण-पदं ४३, चुलणीपियस्स उत्तर-पदं ४४, पायच्छित्त-पदं ४५, चुलणीपियस्स उवासमपडिमा पदं ४७, चूलणीपियस्स अणसण-पदं ५१, चुलणीपियस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव पदं ५३ । चउत्थं अभयणं • सू० १-५३ पृ० ४५४-४६६ उक्खेव पदं १, सुरादेवगाहावइ-पदं २, महावीर - समवसरण पदं ७, सुरादेवस्स मिहिधम्मपडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, सुरादेवस्स समणोवासग चरियापदं १६, Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८ धन्नाए समणोवासिव-चरिया-पदं १७, मुरादेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८, सुरादेवस्स देवकय-उबसग्ग-पदं २०, जेठ्ठपुत्त २१, मज्झिमपुत्त २७, कणीयसपुत्त ३३, ° सोलसरोगायंक ३६, मुरादेवस्स कोलाहल-पदं ४२, धन्नाए पसिण-पदं ४३, सुरादेवस्स उत्तर-पद ४४, पायच्छित्त-पदं ४५, सुरादेवस्स उवासगडिमा-पदं ४७, सुरादेवस्स अणसण-पदं ५१, सुरादेवस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव-पदं ५३ ।। पंचमं अज्झयणं सू०१-५४ पृ० ४६७-४१६ उक्खेव-पदं १, चुल्लसययगाहावइ-पदं २, महावीर-समवसरण-पदं ७, चुल्लसययस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पदं १५, चुल्लसयतस्स समणोवासग-चरियापदं १६, बहलाए समणोवासिय-चरिया-पद १७, चूल्लसयय-धम्मजागरिया-पदं १८, चुल्लसयगस्स देव-क्रय-उवसग्ग-पदं २०, जेठ्ठपुत्त २१, ° मज्झिमपुत्त २७, ° कणीयसपुत्त ३३, हिरण्णकोडीबिप्पकिरण ३६, चूल्लसययस्स कोलाहल-पदं ४२, बहुलाए पसिण-पदं ४३, चूल्लसयगस्स उत्तर-पदं ४४, पायच्छित्त-पदं ४ , चूल्लसयगस्स उवासगपडिमा पदं ४७, चूल्लसयगस्स अणसण-पदं ५१, चुल्लसययस्स समाहिमरण-पदं ५२, निक्खेव-पदं ५४ । . छठें अज्झयणं सू०१-४२ पृ० ४८०-४८६ उक्खेव-पदं १, कंडकोलियगाहावइ-पदं २, महावीर समवसरण-पदं ७, कंडकोलियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणक्यविहार-पदं १५, कंडकोलियरस समणोवासगचरिया-पदं १६, पूसाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७, देवेण नियतिवाद-समत्थण-पदं १८, कंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २१, देवेण नियतिवाद-समत्थण-पद २२, कंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पद २३, देवस्स पडिगमण-पदं २४, महावीर-समवसरण-पदं २५, महावीरेण पुव्वतंत-परूवण-पदं २८, महावीरेण कुडकोलियस्स पसंसा-पद २६. भगवओ जणवयविहार-पदं ३२, कुडकोलियरस धम्मजागरिया-पदं ३३, कुडकोलियस्स उवासगपडिमा-पदं ३५, कंडकोलियस्स अणसण-पदं ३६, कुंडकोलियस्स समाहिमरण-पदं ४०, निक्खेव-पदं ४२। सत्तमं अज्झयणं सू०१-८६ पृ०४६०-५१३ उक्खेव-पदं १, सद्दालपुत्त-पदं २, सद्दालपुत्तस्स देवसंदेस-पदं ८. सद्दालपुत्तस्स संकप्प-पदं ११, महावीर-समवसरण-पदं १२, महावीरस्स देवसंदेस-विरूवण-पदं १७, सहालपत्तस्स निवेदण-पद १८, महावीरेण सद्दालपुत्त-संबोधण-पदं १६, सद्दालपुत्तस्स गिहिधम्म-पडिवत्तिपदं २८, अग्मिमित्ताए वंदगढ़-गमण-पदं ३३, अग्गिमित्ताए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ३७. भगवओ जणवयविहार-पदं ३९, सद्दालपुत्तस्स समणोवासगचरिया-पदं ४०, अग्गिमित्ताए समणोवासियचरिया-पदं ४१, गोसालस्स आगमण-पदं ४२, गोसालेण महावीरस्स गणकित्तण-पदं ४४, विवाद-पट्रवणा-पसिण-पदं ५०, सद्दालपुत्तस्स धम्मजागरिया-पदं १४. Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ૪૨ सद्दालपुत्तस्स देवरू कम उवसग्ग पदं ५६, • जेटुवुत्त ५७, मज्झिमपुत्त ६३, कणीयसत ६६, ० अग्गिमित्ताभारिया ७५, सद्दालपुत्तस्स कोलाहल-पदं ७८, अग्निमित्ताए परिण-पदं ७९, सदालपुत्तस्स उत्तरपदं ८०, पायच्छित प ८१, सद्दालपुत्तस्स उवासगपडिमा पदं ३, सद्दालपुत्तस्स अअसण-पदं ८७ सद्दालपुत्तस्स समाहिमरण-पदं प निक्खेव पदं ८६ | • अट्ठमं अभय सू० १-५४ पृ० ५१४-५२६ उक्खेव पदं १, महासतयगाहावइ पदं २, महावीर - समवसरण पदं प महासतयस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १४, महासतयस्स समणोवासग चरिया - पदं १६, भगवओ जणवयविहारपदं १७, रेवतीए चिता-पदं १८, रेवतीए सवत्ती उद्दवण-पदं १६, रेवतीए मंसमज्जासायणपदं २०, अमाघाय-पदं २१, महासतगस्स धम्मजागरियापदं २५ महासतगस्स अणुकूलउवसग्ग-पर्व २७, महासतगस्स उवासगपडिमा पदं ३२ महासतगस्स अणसण-पदं ३६, महासतस्स ओहिनागुष्पत्ति-पदं ३७, महासऩगस्स पुणरवि अगुकूल उवसग्ग-पदं ३८, महासतगस्स विक्खेव पदं ४१, महावीर-समवसरण-पदं ४४, महासतगस्स अंतिए गोतमपेसण-पद ४६, गोतमस्स आगमण-पदं ४७, महासतगस्त वंदण-पदं ४८, महावीरुत्तस्स कहण-पदं ४६, महासतगस्स पायच्छित्त-पदं ५०, गोयमस्स पडिणिक्खमण-पदं ५१, भगवओ जणवयविहार पद ५२, महासतगस्स अणसण-पदं ५३, निक्खेव पदं ५४ । नवमं अभयणं सू० १-२७ पृ० ५२७-५३१ उपवेव-पदं १, नंदिणीपियगाहावइ- पदं २ महावीर - समवसरण-पदं ७, नंदिणीपिस्स गिहिधम्म- पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार- पदं १५, नंदिणीपियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६, अस्सिणीए समणोवासिय चरिया-पदं १७, नंदणीपियरस धम्मजागरियापदं १८, नंदिणीपियस्स उवासगपडिमा - पदं २०, नंदिणीपियस्स अणसण-पदं २४, नंदिणीपियस्स समाहिमरण-पदं २५, निक्खेव पदं २७ सू० १-२७ पृ० ५३२-५३७ उक्खेव - पदं १ लेइयापितागाहावइ-पदं २, महावीर - समवसरण - पदं ७, लेतियापियस्स मिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३, भगवओ जणवयविहार-पद १५, लेतियापियस्स समणोवासगafter पद १६ फग्गुणीए समणोवासिय चरिया - पदं १७, लेतियापियस्स धम्मजागरियापदं १८, लेतियापियस्स उवासगपडिमा पदं २०, लेतियापियस्स अणसण-पदं २४, लेतियापियस्स समाहिमरण-पदं २५, निक्खेव पदं २७ । दसमं अभयणं Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकेत निर्देशिका • . ये दोनों बिन्दु पाठपूर्ति के द्योतक है । पाठपूर्ति के प्रारम्भ में भरा बिन्दु [[ और उसके समापन में रिक्त विन्दु [0] रखा गया है । देखें-पृष्ठ २ सू ६ । [?] कोष्ठकवर्ती प्रश्नचिन्ह [?] अदर्शो में अप्राप्त किन्तु आवश्यक पाठ के अस्तित्व का सूचक है । देखें-पृष्ठ ३. सूत्र ७ ॥ .' ये दो या इससे अधिक शब्दों के स्थान में पाठान्तर होने का सूचक है । देखें पृष्ठ २ सू० ४। 'वण्णओ' व 'जाव' शब्द के टिप्पण में उसके पूत्ति स्थल का निर्देश है । देखें-पष्ठ १ टिप्पण ३ और पृष्ठ ३ सूत्र ८। काश [x] पाठ न होने का द्योतक है। देखें--पृष्ठ ३ टिप्पण ४ । पाठ के पूर्व या अन्त में खाली विन्दु [• ] अपूर्ण पाठ का द्योतक है । देखें-१० ३ सूत्र ७ टिप्पण ५। 'जहा' 'तहेब' आदि पर टिप्पण में दिए गए सूत्रांक उसकी पूर्ति के सूचक हैं । देखें-पृष्ठ ३०१ सूत्र ७ तथा पृष्ठ ३७८ सूत्र ५० ॥ क, ख, ग, घ, च, छ, ब, देखें-सम्पादकीय में 'प्रति-परिचय' शीर्षक । 'व्या० वि' व्याकरण विमर्श । देखें--पृष्ठ ३६६ टिप्पण १। 'क्व' क्वचित् प्रयुक्तादर्श । सं० पा० संक्षिप्त पाठ का सूचक है। देखें-पष्ठ ५ टिप्पण १ । वृपा वृत्ति-सम्मत पाठान्तर । देखें--पष्ठ १० टिप्पण ३ । वृ वृत्ति का सूचक है । देखें—पृष्ठ ६ टिप्पण १७ 1 पू० पूर्णपाठार्थ द्रष्टव्यम् । देखें-पष्ट ५२६ टिप्पण १ । अं० अंतगडदसाओ। अ० अणुत्तरोववाइयदसाओ। सूय सूयगडो। उवा० उवासगदसाओ। जंबू० जंबूदीवपण्णत्ति । ओ० ओवाइयं । ना० नायाधम्मकहाओ। भ०, भग०, भगवई। राय० रायपसेणइयं । पाहा० पण्हावागरणाई। वि० विवागसूयं । Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसायो Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं प्राणंदे उक्खेव-पदं १. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था-वण्णो ' ।। २. पुण्णभद्दे चेइए–वण्णो ॥ तेणं कालेणं तेणं समाएण' 'समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतेवासी अज्जसुहम्मे नाम थेरे जातिसंपण्णे कुलसंपण्णे वलसंपण्णे रूवसंपण्णे विणयसंपण्णे नाणसंपण्णे दसणसंपपणे चरित्तसंपण्णे लज्जासंपण्णे लाघवसंपण्णे पोयंसी तेयंसी वच्चंसी जसंसी जियकोहे जियमाणे जियमाए जियलोहे जियणिद्दे जिइंदिए जियपरीसहे जीवियासमरणभयविप्पमुक्के तवप्पहाणे गुणप्पहाणे करणप्पहाणे चरणप्पहाणे निग्गहप्पहाणे निच्छयप्पहाणे अज्जवप्पहाणे मद्दवप्पहाणे लाघवष्पहाणे खंतिप्पहाणे गत्तिप्पहाणे मुत्तिप्पहाणे विज्जप्पहाणे मंतप्पहाणे बंभप्पहाणे वेयप्पहाण नयप्पहाणे नियमप्पहाणे सच्चप्पहाणे सोयप्पहाणे नाणप्पहाणे दंसणप्पहाणे चरित्तप्पहाणे अोराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छृढसरीरे संखित्तविउलतेयलेस्से च उदसपुन्वी च उनाणोवगए पंचहि अणगारसहि सद्धि संपरिवुडे पुव्वाणुपुचि चरमाणे गामागुणाम दूइज्जमाण सुहंसुहेणं विहरमाणे जेणेव चंपा नयरी जेणेव पुष्णभद्दे वेइए तेणेव उवागच्छइ, चंपानयरीए बहिया १. नाम (ख)। २. हुत्था (ग)। ३. ओ० सू०१1 ४. ओ० सू० २-१३ ५. स. पा.-समएणं अज्जमूहम्मे समोसरिए जाव जंवू रज्जुवासमाणे। असौ बिन्दुमध्य वर्ती पाठः क्रमश; रायपसेणइय-नोवाइयसूत्राभ्यां पूरितः । प्रस्तुतसूत्रस्य वृतौ 'नायाधम्मकहाओ' सूत्रात् पूरणस्य सूचना कृतास्ति। अस्माभिः पूरिते पाठे तत: किञ्चिद् भेदो विद्यते, नास्ति क्वचिद मौलिको भेदः । Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगढसााओ पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहें प्रोगिण्हइ, प्रोगिरिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरई॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं अज्जसुहम्मस्स थेरस्स जेटे अंतेवासी अज्जजंबू नामं अणगारे कासव' गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वइररिसहणारायसंघयणे कणगपुल गनिघसपम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे अोराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचे रवासी उच्छृढ सरीरे संखित्तविउलतेयलेर से अज्जसुहम्मस्स थेरस्स अदूरसामंते उड्ढं जाणू अहोसिरे भाणकोट्टोवगए संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।। तए णं से अज्जजंबू नामं अणगारे जायसड्ढे जायसंसए जायकोऊहल्ले, उप्पण्णसड्ढे उप्पण्णसंसए उप्पण्णकोऊहल्ले, संजायसड्ढे संजायसंसए संजायकोहल्ले, समुप्पण्णसड्ढे समुप्पण्णसंसए समुप्पण्ण कोउहल्ले उठाए उढेइ, उठेत्ता जेणेव अज्जसुहम्मे थेरे लेणे व उवागत्छइ, उवागच्छित्ता अज्जसुहम्मं थेरं तिवखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंस इ, वंदित्ता णमसित्ता णच्चासपणे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलि उडे ० पज्जुवासमाण एवं वयासी-जइ णं भंते ! समणेण भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं छठुस्स अंगस्स नायाधम्मकहाणं अयम? पणत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अंगस्स उवासगदसाण समणेणं भगवया महावीरेण जाव संपत्तेण के अद्रे पण्णत्ते? ६. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमरस अंगस्स उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं जहा-- संगहणी-गाहा आणंदे कामदेवे य, गाहावतिचुलणीपिता। सुरादेवे चुल्लसयए, गाहावइकुडकोलिए ।। सद्दालपुत्ते महासतए, नंदिणीपिया लेइयापिता'।१॥ १. व्या० वि०-विभक्तिरहितं पदम् । सुरादेवे चुल्लसतए, गाहावतिकुंडकोलिए। २. पज्जुवासइ (क)। सद्दालपुत्ते महासतए णदिणीपिया सालेइया३. ना० १४१७। पिता । (स्थानांग १०१११२)! स्थानांग४. सपाविउकामेणं (समावओ १२)। सूत्रे दशमाध्ययनस्य नाम 'साले इयापिता' ५.६. ना०१११७॥ लभ्यते। अत्र एकस्यां प्रतौ 'साले इणीपिया' ७. लेतियापिया (क, ग); सालेइणीपिया (ख)। नाम उपलब्धमस्ति, किन्तु 'सालइयापिता' उवासगदसाणं दस अज्झयणा पण्णत्ता, तं नाम नोपलभ्यते। स्यादसौ वाचनाभेदः अथवा लिपिदोषणासी विपर्ययो जातः ; इति आणंदे कामदेवे अ, गाहावतिचूलणीपिता। अनुसंधेयमस्ति । Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अभय (आनंदे ) ७. ३६७ जइ णं भंते! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स श्रंगस्स उवासगदसाणं दस ग्रज्झयणा पण्णत्ता, पढमस्स णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपते के अट्ठे पण्णत्ते ? श्रादगाहावइ-पदं एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणियगामे नाम नयरे होत्था -- वण ॥ ८. Ĉ. तस्स वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरत्थि मे दिसीभाए, एत्थ णं दूइपलासए नामं चेइए" || १०. तत्थ णं वाणियगामे नयरे जियसत्तू राया होत्था - वण्णो । ११. तत्थ णं वाणियगामे नयरे प्राणंदे नामं गाहावई परिवसई - श्रड्ढे दित्ते वित्ते विच्छिण्णविउलभवण-सयणासण जाणवाहणे बहुधण जायख्व- रयए प्रायोगपोगसंपत्ते विच्छडियपउरभत्तपाणे बहुदासी दास-गो-महिस-गवेलगप्पभूए बहुजणस्स परिभूए ॥ १२ . तस्स णं आनंदस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरण्णकोडोओ निहाणपत्ता, 'चत्तारि हिरण्णकोडोस्रो वढिपत्ताओ" चत्तारि हिरण्णकोडीग्रो पवित्थरपत्ता, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था || 0 १३. सेणं आणंदे गाहावई वहूण राईसर - तलवर-माइंबिय कोडुंबिय इन्भ-सेट्ठिसेणावेइ-सत्यवाहाणं बहसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुंबेसु य मंतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वियणं 'कुडुवस्स मेढी पमाणं प्रहारे आलंबणं चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए आलंबणभूए चक्खुभूए"" सव्वकज्जवड्ढावए" यावि होत्था || १,२. ना० १।१०७ । ३. ओ० सू० १४ । ४. चेतिते ( क ) ; चेइए होत्या (घ) 1 ५. ओ० सू० १४ । ६. सं० पा०--- अड्ढे जाव अपरिभूए । ७. X ( क ) । ८. ईसर ( क, ख, ग ) ; ( ओ० सू० १८ ) । स० जाव सत्थवाहाणं | ६. यद्यपि सर्वास्वपि प्रतिषु मंतेसु य कुटुंबे ११. मेढीभूते सन राईसर पा० – राईसर ईसराणं ( ब ) ; य' इति पाठो लभ्यते, किंतु अर्थसंगत्या 'कुडुंबेस य मंतेषु य' इति पाठ उपयुक्तोस्ति । ज्ञाता (१११६) सूत्रे तथा रायपसेणइय ( ६७५) सूत्रेपि इत्थमेवपाठो विद्यते । ज्ञातावृतौ अर्थ संगतिरित्थं कृतास्ति-कुटुम्बेषु च स्वकीयपरकीयेषु विषयभूतेषु च मंत्रादयो निश्चयान्तास्तेषु आप्रच्छनीय: । १०. कुटुंबस्स मेढीभूए (क, ग ); कुटुंबस्स मेढीभू जाव ( ख ) । (घ) 1 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३६८ उवास गदसाप्रो १४. तस्स णं श्राणंदस्स गाहावइस्स सिवणंदा नाम भारिया होत्था-प्रहीण• पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा लक्खण-वंजण-गुणोववेया माणुस्माण- पमाणपडिपुण्ण-सुजाय- सव्वंग सुंदरंगी ससि सोमाकार कंत- पिय- दंसणा सुरूवा, ग्राणंदस्स गाहावइस्स इट्ठा, आणंदेणं गाहावइणा सद्धि अणुरत्ता अविरत्ता, इट्ठे' सद्द-फरिस-रस- रूव-गंधे पंचविहे माणुस्सए काम भोए पच्चणुभवमाणी विहरइ || १५. तस्स णं वाणियगामस्स नयरस्स बहिया उत्तरपुरित्थमे दिसीभाए, एत्थ णं कोलाएँ नामं सणिवेसे होत्था - रिद्धत्थिमिए' जाव' पासादिए दरिसणिज्जे अभि पडिवे | 0 १६. तत्थ णं कोल्लाए सण्णिवेसे श्राणंदस्स गाहावइस्स बहवे मित्त-नाइ-नियगसण-संबंधि-परिजणे परिवसइ -- ग्रड्ढे जाव' बहुजणस्स प्रपरिभूए ॥ महावीर - समवसरण - पदं १७. तेणं काणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरें जाव" "जेणेव वाणियगामे नयरे जेणेव दूइपलासए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं हं गिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ १८. परिसा निग्गया || १. सिवानंदा ( खघ ) | २. सं० पा०--- - अहीण जाव सुरूवा ! ३. सं० पा० इट्ठे जाव पंचविहे । ४. कोलाते (क,ग) 1 १६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जात्र" पज्जुवासइ ।। २०. तए णं से प्राणंदे गाहावई इमोसे कहाए लट्ठे समाणे -- "एवं खलु समणे" "भगवं महावीरे" पुढवाणुपुव्विं चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणियगामस्स नयरस्स बहिया दूइपलासए चेइए महापडिव प्रोग्गहं गिरिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पा भावेमाणे विहरइ ।" तं महाफलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवा सणयाए ? एगस्सवि प्रारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अटुस्स ग्रहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुपिप्या ! समणं ५. रिद्वित्थमिए ( ख ) 1 ६. ओ० सू० १ ० ७. बहुवे (ग) 1 - ८. उदा० १।११ ६. सं० पा० - महावीरे जाव समोसरिए । १०. ओ० सू० १६, २२ ११. ओ० सू० ५३-६६ ॥ १२. सं० पा० - समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि । १३. पू० - ओ० सू० ५२ । Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ३६६ भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं इयं पज्जुवासामि –— एवं संपेहेइ, संपेहित्ता व्हाए' कयवलिकम्मे कय- कोउय मंगलपायच्छत्ते सुद्धप्पावेसाई मंगललाई वत्थाई 'पवर परिहिए" "अप्पमघाभरणालंकियरीरे 'सयाओ गिहाम्रो" पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं 'वाणियगामं नयरं " मज्यंमज्झणं निग्गच्छर, निरगच्छित्ता जंणामेव दूइपलासए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावोरे तेणेव उवागच्छइ, उवाग च्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिग-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसई' वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासपणे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमु विणणं पंजलिउडे " पज्जुवासइ || २१. तए णं समणे भगवं महावीरे प्राणंदस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्मं परिकहेइ || २२. परिसा पडिगया, राया य गए ।। आनंदस्स मिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं २३. तए णं से आनंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स प्रति धम्मं सच्चा निसम्म हट्ट - चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमसित्ता एवं वयासी सहामि णं" भंते! निम्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निरयं पावयण, ग्रभूमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! • तुभेवदह " । जहा णं देवाणुप्पियाण अतिए यं सूत्रे १. सं० पा०-हाए सुद्धप्पावेमा अप्प° । २. अत्र नामक हाओ ( १|१|३३ ) 'पवर परिहियात्री' पाठो विद्यते । वृतौ — प्रवरमिहानुस्वारलोपशे दृश्य:, इति व्याख्यातमस्ति । एतत् उपयुक्तं प्रतिभाति तंत्र । ३. सातो गिहातो ( ग ) । ४. वाणियागामं नगरं ( क ) 1 ५. ० पलासे (क. ग ) 1 ६. सं० पा० णमंसइ जाव पज्जुवासइ 1 ७. ओ० सू० ७१-७७ । ८. पडिगओ ( क ) ; गया ( ख ) 1 १० ११. ६. सं० पा० - हट्टतुटु जाव एवं वयासी । सं० पा० – सद्दहामि णं जाव से जहेयं । वदह त्ति ( क ); वदह त्ति कट्टु (ख,ग,घ); रायप से इयसूत्रे (६६५) अत्र किञ्चिदधिकः पाठो लभ्यते - त्ति कट्टु वंदइ नमसइ वंदित्ता नमसित्ता एवं क्यासी Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसायो वहवे राईसर-तलवर-माइंविय-कोडुबिय-इभ-मेट्ठि-मेणावइ-सत्यवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचामि मुडे' भक्त्तिा अगारामओ अणगारियं पव्वउत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अतिए पंचाणुन्व इयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिबज्जिस्सामि । अहासुहं देवागप्पिया ! मा पडियंध करेहि ।। २४. तए णं से आणदे गाहावई समस्स भगवनो महावीरस्म अंनिए तबदमयाए' थूलयं पाणाइवायं पच्चक्वाइ जावज्जीवाए दुविहं तिविहेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा ।। तयाणतरं च णं थूलयं मुसावायं पच्चक्खाइ जावज्जो कार दुविहं निविहेण --- न करेमि न कारवेमि, मणसा बयसा कायसा ।। २६. तयाणतरं च णं थूलयं अदिण्णादाणं पच्चक्खाइ जावज्जोवाए दुविहं तिवि हेणं-न करेमि न कारवेमि, मणसा वयसा कायसा ।। २७. तयाणतरं च णं सदारसंतोसोए" परिमाणं करेइ---नन्नत्थ एक्कार सिवनंदाए भारियाए, अवसेसं" सब्वं मेहुणविहि पच्चक्खाइ ।। २८. तयाणंतरं च ण इच्छापरिमाणं करेमाणे-- (१) हिरण्ण-सुवण्णविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ चउहि हिरण्णकोडोहिं निहाणप उत्ताहिं, चउहिं वड्डिपउत्ताहिं, च उहि पवित्थरपउत्ताहिं, अवसेसं सव्वं हिरण्ण-सुवण्णविहिं पच्चक्खाइ। १. सं० पा० ---मुंडे जाव पव्व इत्त ए। ३. करेह (च)। २. गिहिधम्म (क,ख,ग,घ) । दिग्व्रत-शिक्षावता- ४. मताते (ग)। नामतिचारनिरूपणप्रसंगे बत्ति कारेण समा- ५. धूल (क)। लोच्यपाठः समुद्घतोस्ति । तत्र व्रतग्रहण- ६. पच्चक्खामि (ख,ग,घ) । संकलावसरे ग्रहणानन्तरं च उभयत्रापि ७. तदा (ग)। 'सावगधम्म' इति पाठो विद्यते, यथा- ८. शूलं (क)। "कथमन्यथा प्रागुक्त दुवालसविह सावगधम्म १. थूलं (क,ग); धूलग (घ) । पडिवज्जिस्सामीति? कथं वा वक्ष्यति- १०. संतोसिए (क,ख); ० संतोसिते (ग,घ);३५ दुवालसविहं सादगधम्म पडिव्वज्जति ति" सूत्रे इकारस्य दीर्घत्वं लभ्यते । (वृ), अग्रिमस्थलेषु 'गिहिधम्म' इत्येवपाठः ११. असे सं (क)। प्रतिषु लभ्यते। तत्र वृतौ नास्ति काचिद् १२. मेथुन ° (क); मेथुण ° (घ)। व्याख्या, तेन क्वचित्-क्वचित् गिहिधम्म' १३. सुवण्णपरिमाणं (ग,घ)।। पाठोम स्वीकृतः । नानयोः कश्चिद् अर्थ- १४. पच्चक्खामि (ख,ग) अग्रे सर्वत्रापि । भेदोस्ति। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झयणं (आणंदे) ४०१ (२) तयाणंतरं च णं चउप्पयविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ चउहि वहि' दसगोसाहस्सिएणं वएणं, अवसेसं सव्वं च उप्पयविहिं पच्चक्खाइ। (३) तयाणंतरं च णं खेत्त-वत्थु विहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ पंचहि हलसएहिं नियत्तणसतिएणं हलेणं, अवसेसं सव्वं खेत्त-वत्थुविहिं पच्चक्खाइ। (४) तयाणंतरं च णं सगडविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ पंचहिं सगडसएहि' दिसायत्तिएहि, पंचहिं सगडसएहिं संवहणिएहिं, अवसेसं सव्वं सगडविहि' पच्चक्खाइ ! (५) तयाणंतरं च णं वाहणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ चउहि वाहणेहिं दिसायत्तिएहि, चउहिं वाहणहिं संवहणिएहि', अवसेस सव्वं वाहणविहि पच्चक्खाइ।। २६. तयाणंतरं च णं उवभोग-परिभोगविहिं पच्चक्खायमाणे(१) उल्लणियाविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ 'एगाए गंधकासाईए', अवसेसं सव्वं उल्लणियाविहिं पच्चक्खाइ। (२) तयाणंतरं च णं दंतवणविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं अल्ललट्ठीमहु एणं', अवसेसं सव्वं दंतवणविहिं पच्चक्खाइ । (३) तयाणंतरं च णं फलविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ एगेणं ग्वीरामलएणं, अवसेसं सव्वं फलविहि पच्चक्खाइ। (४) तयाणतरं च णं अभंगणविहिपरिमाणं" करेइनन्नत्थ सयपागसहस्स पागेहि तेल्लेहि", अवसेसं सव्वं अभंगणविहिं पच्चक्खाइ ॥ (५) तयाणंतरं च णं उव्वट्टणाविहिपरिमाणं" करेइनन्नत्थ एगेणं सुरभिणा गंधट्टएणं", अवसेसं सव्वं उव्वट्टणाविहिं पच्चक्खाइ। (६) तयाणंतरं च णं मज्जणविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ अहिं उट्टिएहि" १. बतेहि (ग)। १०. अभि° (घ)। २. वतेग (ग)। ११. तिल्लेहिं (घ)। ३. सगडसागडेहिं (क); यगडीसएहिं (ख)। १२. उब्वट्टण (क्व)। ४. मगडविहं (घ)। १३. गंधवट्टएणं (क,ख,घ)। एतत् परिवर्तनं ५. संवा ° (ख)। संभवतो लिपिदोषण जातम् । वृतो अस्य ६. वहण ° (क)। मौलिक रूपं सुरक्षितमस्ति, यथा -- गन्ध७. एगाते गंधकासातीते (क,ग)। द्रव्याणामुपलकुष्ठादीनाम्, 'अट्टओ' ति चूर्ण ५. अल्लल्लट्ठो ° (ग)। गोधूमचूर्ण वा गन्धयुक्तम् । स्थानांगे 8. x(क,ग)1 अनमोरादर्शयोरग्रे सर्वत्रापि (३.८७) पि 'गंधट्टएणं' इति प्रयोगो लभ्यते। 'सव्वं' पाठो नास्ति । अत्र लिपेः संक्षेपी- १४. उव्वट्टिएहि (क)। उद्वतितः इति विशेषणेन करणमेव कारण संभाव्यते । अरघट्टपरिवर्तिभिः उदकघटः इत्यर्थः सूच्यते। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०२ उवासगदसाओ 'उदगरस घडेहि", अवसेसं सव्वं मज्जणविहिं पच्चक्खाइ। (७) तयाणंतरं च णं वत्थविहिपरिमाणं करेइ-'नन्नत्थ एगेणं' 'खोमजुयलेणं, अवसेसं सव्वं वविहि पच्चक्खाइ । (८) तयाणंतरं च णं विलेवणविहिपरिमाणं करेइ - नन्नत्थ अगरु'-कंकुम चंदणमादिएहि', अवसेसं सव्वं विलेवणविहिं पच्चरखाइ। (६) तयाणंतरं च णं पुप्फविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगेणं सुद्धपउमेणं माल इकुसुमदामेण वा, अवगेसं सव्वं पुप्फविहि पच्चक्खाइ । (१०) तयाणंतरं च णं आभरणविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ मटकण्णेज्जएहि नाममुद्दाए य, अवसेसं सव्वं आभरणविहि पच्चक्खाइ । (११) तयाणतरं च णं धूवणविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ अगरु'-तुरुक्क-धूवमा दिहि, अवसेस सव्वं धूवणविहिं पच्चक्खाइ। (१२) तयाणंतरं च णं भोयविहिपरिमाणं करेमाणे(क) पेज्ज-विहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ एगाए कटुपेज्जाए, अवसेसं सव्व पेज्जविहिंपच्चक्खाइ। (ख) तयाणंतरं च णं भक्खविहिपरिमाणं' करेइनन्नत्थ एगेहि घयपुण्णेहि खंडखज्जएहिं बा, अवसेसं सव्वं भक्त्रविहि पच्चक्खाइ। (ग) तयाणंतरं च णं प्रोदणविहिपरिमाणं करेइ--नन्नत्थ कलमसालि मोदणेणं, अवसेसं सव्वं प्रोदणविहिं पच्चक्खाइ। (घ) तयाणंतरं च सूवविहिपरिमाणं' करेइनन्नत्थ कलायसूवेण" वा 'मुग्गसूवेण वा माससूवेण" वा अवसेसं सवं सूविहिं पच्चक्खाइ। (ङ) तयाणंतरं च णं घविहिपरिमाणं करेइ-नन्नत्थ सारदिएणं गोघय ___ मंडेणं, अवसेस सव्वं घयविहिं पच्चक्खाइ। (च) तयाणतरं च णं सागविहिपरिमाणं करेइनन्नत्थ वत्थुसाएण वा तुंबसाएण वा सुत्थियसाएण" वा मंडुक्कियसाएण वा, अवसेसं सव्वं सागविहिं पच्चक्खाइ ।। १. उदगघडेहिं (क)। २. नन्नत्थेोणं (क,ग)। ३. अगुरु (क,घ)। ४. °मातितेहिं (क); माइतेहिं (घ) । ५. मालई ° (घ)। ६. अगुरु (क, घ)। ७. भक्वण ° (ख)। ८. भक्खण ° (कस)। ६. सूय (क,ग,घ)। १०. कालाय ° (3) ११. मुग्गमाससूवेण (क)। १२. वुसातेण (क); वत्थुसातेण (ग); चुच्चुसाएण १३. सुत्थिया ° (ग); सूवत्थिय ° (घ)। Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (पाणंदे) (छ) तयाणंतरं च णं माहुरयविहिपरिमाणं करेइ–नन्नत्थ एगेणं पालंकामाहुरएणं', अबसेसं सव्वं माहुरयविहिं पच्चक्खाइ। (ज) तयाणंतरं च णं तेमणविहिपरिमाणं' करे - नन्नत्थ सेहंब दालियंबेहि, अवसेसं सव्वं तेमणविहिं पच्चक्खाइ । (झ) तयाणंतरं च णं पाणियविहिपरिमाणं' करेइनन्नत्थ एगणं अंतलिक्खोदएणं, अवसेसं सव्वं पाणियविहिं पच्चक्खाइ । (अ) तयाणंतरं च णं मुहवासविहिपरिमाणं करेइ तन्नत्थ पंचसोगंधि एण तबोलेणं, अवसेसं सव्वं मुहवास विहिं पच्चक्खाइ ॥ ३०. तयाणंतरं च णं च उव्विहं अणट्ठादंड पच्चक्खाइ,तं जहा.-१. अवज्झाणाचरितं २ पमायाचरितं' ३. हिंसप्पयाणं ४. पावकम्मोवदेसे ॥ प्रतियार-पदं ३१. आणंदाइ ! समणे भगवं महावीरे आणंदं समणोवासगं एवं वयासी-एवं खलु आणंदा ! समणोवासएण' अभिगयजीवाजीवेणं" 'उक्लद्धपुण्णपावेणं आसवसंवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्ख कुसलेणं असहेज्जेणं, देवासुर-णागसुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किंपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहि निग्गंथानो पावयणाओ° अणइक्कमणिज्जेणं सम्मत्तस्स पंच प्रतियारा पेयाला जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -१. संका २. कंखा ३. वितिगिच्छा ४. परपासंडपसंसा ५. परपासंडसंथवो" ॥ ३२. तयाणंतरं च णं थूलयस्स पाणाइवायवे रमणस्स" समणोवासएणं 'पंच अतियारा .---.- ..... ..--.---- १. ० माचुरतेणं (क); ° माधुरतेणं (ग)। १०. सं० पा–अभिगयजीवाजीवेणं जाव अण२. जेवण ° (क); जेमण ° (ख,ग,घ)। 'तेमण' इक्कमणिज्जेणं ।। इति पाठो वृत्याधारण स्वीकृतः । 'ग' प्रतौ ११. अतियारपेयाला (क,ग); अतिचारा पेयाला वारद्वयमपि जेमण' शब्दस्य जकारोपरि (घ)। पेयालत्ति सारा: प्रधाना: स्थूलत्वेन सूक्ष्माक्षरेण 'ते' इति लिखितमस्ति। शक्यव्यपदेशत्वात् (उवासगदसाओ वृत्ति); ३. पाणित ° (ग)। पेयालज्जल पमाणम्मि (देशीनाममाला ४. सोगंधितेणं (ग); ° सोगधेणं (घ)। ५. अनत्य° (ख)। १२. गिच्छा (क)। ६. यरियं (ख)। १३. शङ्काकाङ्क्षाविचिकित्साऽन्यदृष्टिप्रशंसा७. यरियं (क,ख)! संस्तवाः सम्यग्दृष्टेरतिचाराः (तत्त्वार्थ सूत्र ८. दि (क); °ति (ग)। ७१८) । ६. वासतेणं (ग,घ)। १४. पाणायिवाय • (क); पाणादिवाय ° (ग)। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०४ उवासगदसाओ पेयाला" जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा- १. बंधे २. वहे ३. छविच्छेदे' ४. अतिभारे' ५. भत्तपाणवोच्छेदे ।। ३३. 'तयाणंतरं च ण 'थलयस्स मुसावायवे रमणस्स" समणोवासएणं 'पंच प्रतियारा' जाणियव्वा'", न समायरियव्वा, तं जहा -१. सहसाभक्खाणे २. रहस्सब्भक्खाणे ३. 'सदारमंतभेए ४. मोसोवएसे° ५. कूडलेहकरण ।।" ३४. तयाणंतरं च णं थूलयस्स अदिण्णादाणवेरमणस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. तेगाहडे २. तक्करप्पनोगे? ३. विरुद्धरज्जातिक्कमे ४. कूडतुल"-कूडमाणे ५. तप्पडिरूवगववहारे ।। ३५. तयाणतरं च णं सदारसंतोसीए समणोवासएणं पंच प्रतियारा जाणियब्वा, न समायरियव्वा, तं जहा--१. इत्तरियपरिग्गहियागमण" २. अपरिग्गहियागमणे ३. अणंगकिड्डा" ४. परवीवाहकरणे" ५. 'कामभोगे तिव्वाभिलासे ।। ३६. तयाणंतरं च णं इच्छापरिमाणस्स समणोवासएणं पंच" अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. खेत्तवत्थुपमाणातिक्कमे २. हिरण्णसुवण्णपमाणातिक्कमे ३. धण धण्णपमाणातिक्कमे ४, दुपयच उप्पयपमाणातिक्कमे ५. कुवियपमाणातिक्कमे ।। १. पंचतियारपेयाला (क), पंचतियारा पेयाला ११. वाचनान्तरे तु.. कन्नालीय, गवालीयं, भूमा लियं, नासावहारं, क डसक्खेज्ज सधिकरण त्ति २. °च्छेए (क,ख,घ)। पठ्यते । "अावश्यकादौ पुनरिमे स्थूलमृषा३. अयि ° (क), अइ° (ख,घ)। वादभेदा उक्ताः" ततोयमर्थ: संभाव्यते४. °वोच्छेए (क,ख); °बोच्छए (घ)। एत एवं प्रमादसहसाकारानाभोगरभिधीय५. थूलगमुसावाय ° (क,ग,घ) । माना मृषावादविरतेरतिचाराः भवन्त्याकुटया ६. पंचतियारा (क,ग,घ)। अस्मिन् सूत्रे तथा च भंगा इति (वृ)। उत्तरवर्ति अतिचारसूत्रेषु 'पेयाला' शब्दः १२ तक्करपओगे (क,घ) । साक्षात् लिखितो नास्ति ।। १३. कूडतुल्ल (घ)। ७. थूल गमुसावायस्स पंचविहे पण्णत्ते, तंजहा - १४. इत्तिरिय ° (क,ग) । कण्णालियं, गोवालियं, भोमालियं, णासा- १५. ° कीडा (ख,ध)। वहारो, कूडसक्खेज्ज संधिकरणे । थूल गमा- १६. परविवाह (क्व)। वायरस पंच अतियारा जाणियब्वा (ख)। १७. कामभोगे तिव्वाभिनिवेसे (क); कामभोएस ८. सहसभक्खाणे (क) तिव्वाभिनिवे से (ख)। ६. रहसब्भक्खाणे (क); रहसाभक्खाणे (ख,य)। १८. इमे पंच (क) १०. मोसोवएसे सदारमंतभेए (क) 1 Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (आणदे) ४०५ ३७. 'तयाणतरं च णं दिसिवयम्स' समणोवासएक पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा १. उड्ढदिसिपमाणातिक्कमे २. अहोदिसिपमाणा तिक्कमे ३. तिरियदिसिपमाणातिक्कमे ४. खेत्तवुड्ढी ५. सतिअंतरद्धा ।। ३८. तयाणंतरं च णं उवभोगपरिभोगे दुविहे एण्णत्ते, तं जहा–'भोयणओ कम्मो य । भोयणओ समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -१. सचित्ताहारे २. सचित्तपडिबद्धाहारे ३. अप्पउलियोसहिभक्खणया" ४. दुप्पउलिोसहिभक्खणया ५. तुच्छोसहिभक्खणया। कम्मश्रो णं समणोवासएणं पण्ण रस कम्मादाणाई जाणियब्वाइं, न समायरियव्वाई, तं जहा- १. इंगालकम्मे २. वणकम्मे ३. 'साडीकम्मे ४. भाडोकम्मे ५. फोडीकम्मे ६. दंतवाणिज्जे ७. लक्खवाणिज्जे ८. रसवाणिज्जे ६. विसवाणिज्जे १०. केसवाणिज्ने ११. जतपीलणकम्मे १२. निल्लंछणकम्मे १३. दव ग्गिदावणया १४. सरदहतलागपरिसोसणया"१५. असतीजणपोसणया ॥ ३६. तयाणंतरं च णं अणट्ठादंडवेरमणस्स समणोवासएणं पंच प्रतियारा जाणियब्वा, न समायरियव्वा, तं जहा -१. कंदप्पे २. कुक्कुइए" ३. मोहरिए ४. संजुत्ताहिकरणे ५. उवभोगपरिभोगातिरित्ते" ॥ १. वृत्तिकृता अत्र एक महत्त्वपूर्ण सूचनं कृत- ४. सइ ° (ख, घ)। मस्ति दिग्वतं शिक्षाप्रतानि च यद्यपि पूर्व ५. भोयणओ ए कम्मो य (क); भोयणतो नोक्तानि तथापि तत्र तानि द्रष्टव्यान्यति- कम्मतो (ख) । चारभणन यान्यथा निरवकाशता स्थादिहेति, ६. तत्थ णं भोषणओ (ख)। कथमन्यथा प्रागुक्तम् -दुवालमविहं सावग- ७. व्या०वि०-अपउलि+ ओस हि अप्पधम्म पडिवज्जिस्सामीति ? कथं वा उलिओसहि ! वक्ष्यति-दवालसविहं सावगवम्म पडिबज्ज- ८. साडीकम्मे य भाडीकम्मे य फोडीकम्मे इति, अथवा सामायिकादीनामित्वरकालोन- य (ख)। स्वेन प्रतिनियतकालकरणीयत्वात् न ६. 'दंतवाणिज्जे' इत्यनन्तरं पाठभिन्नता श्यतेतदेव तान्यसौ प्रतिपन्नवान्, दिग्वतं च केसवाणिज्जे विसवाणिज्जे (क); रसविरतेरभावात् उचितावसरे तु प्रतिपत्स्यते वाणिज्जे लक्खवाणिज्जे (ग); केसवाणिज्जे इति भगवतस्तदतिचारवर्जनोपदेशनमुप- रसवाणिज्जे लक्खवाणिज्जे विसवाणिज्जे(घ)। पत्नम् । यच्चोक्तं द्वादशविधं गहिधर्म प्रति- १०. तलाय° (क); तडायसोसणया (ख); पत्स्ये, यच्च वक्ष्यति द्वादशविध श्रावकधर्म तलावसोसणया (घ) । प्रतिपद्यते, तद् यथा कालं तत्करणाभ्युपग- ११. असति (क, ग); असइ (घ)। मादनवद्यमवसेयम् (वृ)। १२. कुक्कुतिए (क)। २. दिसि विदिसि (ख,घ)। १३. ० भोगाइरित्ते (क)। ३. उड्ढदिसाइक्कमे (वृपा)। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०६ उवासगदसाओ ४०. तयाणंतरं च णं सामाइयस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समारियव्वा, तं जहा---१. मणदुप्पणिहाणे २. वइदुप्पणिहाणे ३. कायदुप्पणि हाणे ४. सामाइयस्स सतिप्रकरणया ५. सामाइयस्स अणवट्टियस्स करणया!! ४१. तयाणतरं च णं देसावगासियस्स' समणोवासएण पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियव्वा. तं जहा .- १. प्राणवणप्पभोगे २. पेससा? ] णवणप्पयोगे' ३. सद्दाणुवाए ४. स्वाणुवाए ५. बहियापोग्गलपक्खेवे॥ ४२. तयागंतरं च णं पोसहोववासस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियव्वा, न समायरियन्वा, तं जहा -१. अप्पडिलेहिय-दुप्पडिलेहिय-सिज्जासंथारे २. अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-सिज्जासंथारे ३. अप्पडिले हिय-दुप्पडिलेहियउच्चारपासवणभूमी ४. अप्पमज्जिय-दुप्पमज्जिय-उच्चारपासवणभूमी ५. पोस होववासस्स' सम्म अणणुपालणया ।। ४३. तयाणतरं च ण अहासंविभागस्स समणोवासएणं पंच अतियारा जाणियन्वा, न समायरियव्वा, तं जहा–१. सचित्तनिक्खेवणया २. सचित्तपिहणया ३. कालातिक्कमे° ४. परववदेसे' ५. मच्छरियया ।। ४४. तयाणतरं च णं अपच्छिममारणंतियसंलेहणाभूसणाराहणाए। पंच अतियारा जाणियन्वा, न समायरियव्या, तं जहा-१. इहलोगासंसप्पओगे २. परलोगासंसप्पओगे ३. जीवियासंसप्पप्रोगे ४. मरणासंसप्पप्रोगे ५. कामभोगासंस पोगे । आणंद-अभिग्गह-पदं ४५. तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जति, पडिव ज्जित्ता समणं १. वय° (घ)! पाठः समीचीनः प्रतिभाति । २. ० कासिवस्स (प्र)। ४. ०पोग्गलक्खेवे (क)। ३. क, ख, घ, आदर्शषु 'पेसवण' इति पाठो ५. संथारए (ग)। लभ्यते, किन्तु 'पेसवण' शब्दस्यार्थो दुरधि- ६. पोसहस्स (ग)। गमोस्ति । प्रेषणस्यार्थः 'पेसण' शब्देनापि ७. वृत्तो 'सम्म' शब्दो न व्याख्यातो दृश्यते । सूचितो भवेत् । ग' आदर्श 'पेसणवण' इति ८. निक्खिवणयाए (क)। पाठो विद्यते । वृत्त्यनुमारेण अत्रापि आनयन- १. °पिहणयाए (क); ° पेहणया (ख, घ) । स्थाास्ति, यथा -... "बलाद् विनियोज्य: १०. कालातिकम्मदाणे (ख)। प्रेष्यस्तस्य प्रयोगो यथाऽभिगृहीतप्रविचारदेश- ११. परओवदेसे (ख)। व्यतिक्रमभयात् त्वयाऽवश्यमेव तत्र गत्वा मम १२. मच्छरया (ख)। गवाद्यानेयम्" (वृ) तेनात्र 'पेसणवण' इति १३. ° राहणयाते (क)। Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .पदम अज्झयण (आणंदे) ४०७ भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-नो खलु मे भते ! कप्पइ अज्जप्पभिई अण्णउत्थिए वा अण्ण उत्थिय-देवयाणि वा अण्णउत्थिय-परिग्गहियाणि वा अरहंत चेइयाई वंदित्तए वा नमंसित्तए था, पुब्धि प्रणालत्तेणं मालवित्तए वा संवित्तए वा, तेसि असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा दाउं वा अणुप्पदाउं वा, नन्नत्थ रायाभियोगेण गणाभियोगेण बलाभियोगेण देवयाभियोगेण गुरुनिग्गहेण वित्तिकतारेण । कप्पइ मे समणे निग्गंथे 'फासु-एणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं प्रोसह-भेसज्जेण य पडिलाभेमाणरस विहरित्तए-त्ति कटु इमं एयारूवं अभिग्गहं अभिगिण्हइ, अभिगिणिहत्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छित्ता अट्ठाई अादियइ, आदित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदइ णमसइ, वदित्ता णमंसित्ता, समणस्स भगवओ महावीरस्स प्रतियायो दुइपलासाग्रो चइयाग्रो पडिणिक्खमइ, पडिमिक्खमित्ता जेणेव वाणियगामे नयरे, जेणेव सए गिहे जेणेव सिवगंदा भारिया ?] तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सिवगंद भारियं एवं बयासी - एवं खल देवाणुप्पिए ! मए समणस्स भगवनो महाबोरस्स अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्म में इच्छिए पडिच्छिए अभिमा । तं गच्छाहिणं तुम देवाणुप्पिए! समणं भगवं महावीर वंदाहिर णमसाहि सक्कारेहि सम्माणेहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासाहि, समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं --दुवालसविहं गिधिम्म पडिवज्जाहि ।। सिवर्णदाए वंदणढ-गमण-पदं ४६. तए णं सा सिवर्णदा भारिया पाणदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ १. अज्जप्यभिए (ख); अज्जवभिई (घ)। ८. पिया (घ)। २. ° उत्थिया (ग, घ)। ६. मते (ग) । ३. चइयाइं (क, ख, ग); कोष्ठकसकेतितास् १०. अभिरुतिते (ग)। तिसृप्वपि प्रतिषु 'अरहंतचेइयाई पाठस्य ११. गच्छ (क, ख, घ); गच्छह (ग)। स्थाने केवलं 'चेइयाई' इति पाठो लभ्यते। १२. सं० पा०-बंदाहि जाव पज्जुवासाहि । वृत्ती 'अरहंत' शब्दो व्याख्यातोऽस्ति । १३. सं. पा.--हट्टतुटा कोडुबियपुरिसे सद्दावेइ, ४. वित्ती° (क, ग)। २त्ता एवं बयासी-खिप्पामेव लहुकरण जाव ५. फासुतेसणिज्जेणं (क); फासूएणं एसणिज्जेणं पज्जुवासइ । प्रस्तुतसंक्षिप्तपाठस्य सूचकचिन्हें (ख)। नोपलभ्यते । अस्य पूति: औपपातिकस्य ६. सप्तमाध्ययनानुसारेण असौ पाठः उपयुक्तः (पू०८०). प्रस्तुतसूत्रवतिसप्तमाध्ययनस्य प्रतिभाति । (७।३३) तथा भगवत्याः (६।१४१-१४५) ७. सिवनंदा (क), सिवानंद (घ)। आधारेण कृतास्ति। Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४०८ उवासगदसाओ •चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति पाणंदस्स समणोवास गस्स एयमझें विणएणं पडिसुणेइ ।। तए णं से पाणंदे समणोवासए कोडुबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी---- खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त-जोइयं समखुरवालिहाण-समलिहियसिगएहि जवणयामयकलावजत्त-पइविसिदहि रययामयघंट-सत्तरज्जग वरकंचणखचियनत्थपरगहोग्गाहयएहि नीलुप्पलकयामेलएहिं पवरगोणजुवाणएहिं नाणामणिकणग-घटियाजालपरिगयं सुजायजुगजुत्त-उज्जुग-पसत्थसुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवरं उवट्ठवेह, उवट्ठवेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह।। ४८. तए णं ते कोडुबियपुरिसा आणंदेणं समणोवासएणं एवं वुत्ता सभाणा हद्वतुटु चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस-विसप्पमाणहियया करयलपरिमगहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कटु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणएणं ययणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव' धम्मियं जाणप्पवरं उबट्ठवेत्ता तमाणत्तियं पच्चप्पिणंति ।। तए णं सा सिवणंदा भारिया पहाया कयवलिकम्मा कय-कोउय-मंगलपायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई बत्थाई पवर परिहिया अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरा चडियाचक्कवालपाराकण्णा धम्मिय जाणप्पवर दरुहइ, दहित्ता वाणियगाम नयरं मझमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव दुइपलासए चेहए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियानो जाणप्पव राम्रो पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे मुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहे विणएणं पंजलियडा पज्जूवासइ ।। ५०. 'तए ण' समणे भगवं महावीरे सिवर्णदाए तोसे य' महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ॥ सिवणंदाए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ५१. तए णं सा सिवणंदा भारिया समणस्स भगवयो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टत?'- चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस१. उवा० ११४७1 ५. ओ० सू०७१-७७ । २. ततो (क, ख)। ६. कहेइ (क, ख, ग, घ)। ७. सं० पा०-हट्टतुटु जाव गिहिधम्म । ४. महति ° (क)। Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयण (आणंदे) ४०६ विसप्पमाणहियया उद्याए उट्टेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासीसदहामि णं भंते ! निरगंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवि तहमेयं भते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिा बर्वे गईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबियइन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभि इया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडा भवित्ता अगाराप्रो अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिवखावइयं--- दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ ५२. तए णं सिवणंदा भारिया समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिवखावइयं-दुवालसविहं° गिहिधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंस इ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता जामेव दिसं' पाउब्भूया, तामेव दिसं' पडिगया । गोयमपुच्छा-पदं ५३. भतेति! भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-पहू णं भंते ! पाणंदे समणोवासए देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे •भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइत्तए' ? नो इणढे समढे। गोयमा ! पाणंदे णं समणोवासए बहूई वासाई समणोवासगपरियागं' पाउणिहिति', पाउणित्ता •एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताइ अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा° सोहम्मे कप्पे अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि १. दिसि (ख, घ)। २. दिसि (क, ख, घ)। ३. सं० पा०-मुंडे जाव पव्वइत्तए। ४. पव्वतित्तते (ग)। ५. तिणटे (क, ग)। ६. ° परियायं (घ)। ७. पाहुणीहिति (क)। ८. सं० पा०-पाउणित्ता जाव सोहम्मे । Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१० उवासगदसामो पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता' । तत्थ णं आणंदस्स वि समणोवासगस्स चत्तारि पलिप्रोवमाई ठिई पण्णत्ता [भविस्सई ? ] । भगवओ जणवयविहार-पदं ५४. तए णं समणे भगवं महावीरे 'अण्णदा कदाइ" 'वाणियगामानो नयराओ दूइपलासाम्रो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवविहारं विहरइ ।। आणंदस्स समणोवासग-चरिया-पदं ५५. तए णं से पाणंदे समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे •उवलद्धपुषणपावे आसव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्ख कुसले असहेज्जे, देवासुरणाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किण्णर-किपुरिस-गरुल-गंधव्व-महोरगाइएहिं देवगणेहि निग्गंथाम्रो पावयणाओ अणइक्कमणिज्जे, निग्गथे पावयणे णिस्संकिए णिक्कंखिए निवितिगिच्छे लद्धढे गहियटे पुच्छियढे अभिगयढे विििच्छयढे अट्ठिमिजपेमाणुराग रत्ते, अयमाउसो ! निग्गंथे पावयणे अटे अयं परमट्टे सेसे अण? ऊसियफलिहे अवंगुयदुवारे चियत्ततेउर-परधरदार-प्पवेसे चाउद्दसट्टमुट्ठिपुण्णमासिणीसु पडिपुग्णं पोसहं सम्म अणुपालेत्ता समणे निग्गंथे फासुएसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंवल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं' पडिलाभे माणे विहर।। सिवर्णदाए समणोवासिय-चरिया-पदं ५६. तए णं सा सिवणंदा भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा उवलद्धपुण्णपावा पासव-संवर-निज्जर-किरिया-अहिगरण-बंधमोक्खकुसला असहेज्जा, देवासुर-णाग-सुवण्ण-जक्ख-रक्खस-किरणर-किंपूरिस-गरुल-गंधव्वमहोरगाइएहि देवगणेहिं निगंथाप्रो पावयणाप्रो अणइक्कमणिज्जा, निग्गथे पावयणे हिस्संकिया णिक्कंखिया निम्वितिगिच्छा लट्ठा गहियट्ठा पुच्छियट्ठा अभिगयट्ठा विणिच्छियट्ठा अट्टिमिंजपेमाणुरागरत्ता, अयमाउसो ! निग्गथे १. अतोग्रवर्ती 'पण्णता' पर्यन्तः पाठः अत्र ३. सं० पा० - अण्णदा कदाइ बहिया जाव अनावश्यकः प्रतीयते, असौ चतुरशीतितमे सूत्रे विहरइ। ° कयायि (क); अन्नया कयाइ प्रासंगिकोस्ति ! किन्तु सर्वासु प्रतिपु कथम- (ख); अन्नया कयाई (घ) । पि समागतोसौ लभ्यते । ४. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे जाव पडि२. पूर्ववाक्ये 'उववजिहिति' इति भविष्यत्- लाभेमाणे। कालीनं क्रियापदं युज्यते । ५. सं० पा०-~-जाया जाव पडिलाभेमाणी। Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (आणदे) पावयणे अटे अयं परमद्वे सेसे अणटे ऊसियफलिहा अवंगुयदुवारा चियत्तंतेउरपरघरदार-प्पवेसा चाउद्दसट्ठमुट्ठिपुण्णमासिणीसु पडिपुण्णं पोसहं सम्म अणुपालेत्ता समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेण असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं पोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं° पडिलाभमाणी विहरइ ।। पाणंदस्स धम्मजागरिया-पदं ५७. तए णं तस्स आणंदस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं 'सोल-वय-गुण"-वे रमण पच्चक्खाण-पोसहोववाहि अप्पाणं भावमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई वीइक्कताई। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा' वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिर मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं वाणियगामे नयरे बहूणं राईसर - तलवर-माङविय-कोडुविय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाहाणं बहूसु कज्जेसु य कारणेसु य कुडुबेसु य मतेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य यवहारे व यापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे °, सयरस वि य णं कुडंबस्स' मेढी पमाणं आहारे पालवण चक्खू, मेढीभूए पमाणभूए आहारभूए प्रालंबणभूए चक्खुभूए सव्वकज्जबड्डावए °, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं वितरित्तए। तं सेयं खलु ममं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लप्पलकमलकोमलुम्मिलियम्मि अह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणय रे ते या जलते विपुलं' असण-पाण-खाइम-साइम" •उवक्खडावेत्ता, मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधिपरिजणं आमंतेत्ता, तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असणपाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेत्ता सम्माणेत्ता, तस्सेव मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स पुरो° जेटुपुत्तं कुडंबे ठवेत्ता, तं मित्त"- नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं' जेट्टपुत्तं च आपुच्छित्ता, १. °बतेहि (ग)। २. सीलगुणव्वय (क): ३. अंतरे (क, ग)। ४. सं० पा०–राईसर जाव सयस्स । ५. सं० पा० -- कूडबस्स जाव प्राधारे तं। ६. अंतितं (ग)। ७. मम (घ)। ८. सं० पा०—कल्लं जाव जलते। ६. विउलं (ख)। १०. सं० पा०-साइमं जहा पूरणो जाव जेट्रपुत्तं। ११. सं० पा०-मित्त जाव जेद्रपुत्तं । Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१२ उवासगदसाओ 'कोल्लाए सण्णिवेसे' नायकुलसि पोसहसालं पडिलेहित्ता, समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं' •पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सुरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते ° विपुलं असण-पाण-खाइम-साइम उवक्खडावेद, उवक्खडावेत्ता मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं आमतेइ, ग्रामतेत्ता ततो पच्छा हाए कयलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्याभरणालं कियसरीरे भोयणवेलाए भोयणमंडवंसि सुहासणवरगए, तेणं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणेणं सद्धि तं विपुलं असण-पाण-खाइम-साइमं प्रासादेमाणे विसादेमाणे परिभाएमाणे परि जेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए णं आयंते चोक्खे परमसुइन्भूए, तं मित्त - नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं विपुलेणं असण-पाण-खाइमसाइमेणं वत्थ-गंधमल्लालंकारेण य सक्कारेइ सम्माणे इ, तस्सेव मित्त-नाइनियग-सयण-संबंधि-परिजणस्स' पुरो जेट्टपुत्तं सद्दावेइ, सद्दावेत्ता एवं वयासी एवं खलु पत्ता ! अहं वाणियगामे नयरे बहूणं' 'जाव' प्रापुच्छणिज्जे पडिपच्छणिज्जे, सयस्स विय ण कुडबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवडावए, त एतेणं ववखेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं० विहरित्तए । तं सेयं खलु मम इदाणि तुम सयस्स कुडुबस्स मेढि पमाणं आहारं पालवणं चक्खं ठावेत्ता', 'तं मित्त-नाइ-नियगसयण-संबंधि-परिजणं तुमं च आपुच्छित्ता कोल्लाए सणिवेसे नायकुलसि पोसहसालं पडिले हित्ता समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं° विहरित्तए॥ ५८. तए णं [से ? ] जेट्टपुत्ते आणंदस्स समणोवासगस्स तह त्ति एयभट्ट विणएणं पडिसुणेति । ५६. तए णं से आणंदे समणोवासए तस्सेव मित्त-नाइ-नियम-सयण-संबंधि परिजणस्स° पुरनो जेट्टपुत्तं कुडुंबे" ठावेति, ठावेत्ता एवं वयासी-मा णं १. कोल्लागसगिण ° (ग)। पुरओ। २. नातकुलसि (ग)। ६. सं० पा०-बहूण राईसर जहा चितियं जाव ३. स० पा०-कलं विउलं असणं। कल्लं विहरित्तए । विउलं तहेव जिमियभुत्तुत्तरागए (क, ख)। ७,८. उवा० १।१३ । ४. सं० पा० - हाए जाव अप्पमहग्या । ६. सं० पा०--ठावेत्ता जाव विहरित्तए । ५. सं० पा०-तं मित्त जाव विउलेणं पूप्फ ५ १०. सं० पा० - मित्त जाव पूरओ। सक्कारेइ सम्भाणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाब ११. कुटुंबे (ग); कुडंबे (घ) । Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढम अज्झयणं (प्राणंदे) देवाणुप्पिया! तुम्भे अज्जप्पभिई केइ ममं बहूसु कज्जेसु य 'कारणेसु य मंतेसु य कुडुबेसु य गुज्झेसु य रहस्सेसु य निच्छएसु य ववहारेसु य° आपुच्छउ वा पडिपुच्छउ वा, ममं अट्ठाए असणं वा पाणं वा खाइम वा साइमं वा उवक्खडेउ वा उवक्करेउ वा ।। ६०. तए णं से पाणंदे समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणियगाम नयरं मझमझेणं' निग्गच्छड, निग्गच्छित्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव नायकुले, जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ', दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए 'वंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए° दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। पाणंदस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ति-पदं ६१. तए णं से ग्राणंदे समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ६२. [तए णं से आणंदे समणोवासए ?] पढम उवासगपडिम' अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ६३. ताणं से प्राणदे समणोवासए दोच्च उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसमं' उवासगपडिम प्रहासुत्तं अहाकप्प अहामग्गं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ।। ६४. तए णं से पाणंदे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के' 'लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडिया भूए° किसे धमणिसंतए जाए। पाणंदस्स अणसण-पदं ६५. तए णं तस्स पाणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुन्वरत्ता वरत्तकाल१. सं० पा० --कज्जेसु य प्रापुच्छउ वा। ६. उपासकप्रतिमानां विवरणं ज्ञातुं द्रष्टव्या २. मजझ मज्झ (क)। दशाश्रुतस्कन्धस्य सप्तमीदशा । ३. गृहति (क)। ७. सं० पा०-एक्कारसमं जाव आराहेइ । ४. सं० पा०—पोसहिए । ८. सं० पा०-सुक्के जाव किसे । ५. भगवती (२०५६) सूत्रानुसारेण कोष्ठकान्त- ६. सं० पा०--पुन्वरत्ता जाव धम्मजागरियं । तपाठक्रम: संभाव्यते । Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१४ उवासगदसाओ समयसि ° धम्मजागरियं जाग रमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समप्पज्जित्था--एवं खलु अहं इमेणं' •एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पाहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणः किडिकिडियाभूए किसे ° धम्मणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उहाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव 'य मे धम्मायसि धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता में' सेयं कल्लं पाउप्प भायाए रयणीए जाव' उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा-जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-असणा-झसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स, कालं अणवकंख माणस्स विहरित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठियम्मि सूरे सहस्स रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतिय "संहणा-भूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए' कालं प्रणवकंखमाणे विहरई ।। आणंदस्स प्रोहिनाणुप्पत्ति-पदं ६६. तए णं तस्स पाणंदस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ सुभेणं अज्झवसाणेणं, सुभेणं' परिणामेणं, लेसाहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं अोहिणाणे समुप्पण्णे - पुरथिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ । " दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणइ पासइ । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्त जाणइ पासइ ° । उत्तरे णं जाव चुल्ल हिमवंतं वासघरपब्वयं जाणइ पासइ । उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ । अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुतं' नरयं चउरासीतिवाससहस्सट्टितियं जाणइ पासइ ।। गोयमस्स प्रागमण-पदं ६७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए ।। ६८. परिसा निग्गया जाव" पडिगया ।। १. सं० पा० ---इमेण जाव धम्मणिसंतए। २. जा (ग)। ३. सयमेव (क)। ४. गो (क)। ५. उवा० ११५७ । ६. सं० पा०-मारणतिय जाव कालं । ७. सुहेणं (क); सोभणेणं (ग)। ८. ° समुद्दे ण (क)। ६. सतियं (क, ख); ° सइयं (ग)। १०, सं० पा०-एवं दक्खिणे णं पच्चत्थिमे णं च । ११. लोलुयं अच्चुतं (ख) । १२. ओ० सू० ५२,७८-८० । Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (आनंदे) ४१५ ६६. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेट्टे' अंतेवासी इंदभूई नाम अणगारे गोयमसगोत्ते णं सत्तुस्सेहे समचउरंससंठाणसंठिए वज्जरिसहनारायसंघपणे कणगलगनिधसम्हगोरे उग्गतवे दित्ततवे तत्ततवे महातवे ओराले घोरे घोरगुणे घोरतवस्सी घोरबंभचेरवासी उच्छूढसरीरे संखित्तविउलतेयस्से छछद्वेगं प्रणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरs || ७०. तए णं से भगवं गोयमे छट्ठक्खमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, बिइयाए पोरिसीए झाणं झियाइ, तझ्याए पोरिसीए अतुरियमचवलमसंभंते मुहपोत्तियं पडिलेइ, पडिलेहेत्ता भायणवत्थाई, पडिलेहेइ पडिलेहेत्ता भायपाई पमज्जइ, पमज्जित्ता भायणाई उम्गाहेइ, उग्गाहेत्ता जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - इच्छामि णं भंते! तुभेहिं अब्भणुष्णाए [ समाणे ? ] छट्ठक्खमणपारणगंसि वाणियगामे नयरे उच्च-नीच मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडित्तए । अहासुंह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेह | ७१. तए ण भगवं गोयमे समणेणं भगवया महावीरेण अव्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतियाश्रो दुइपलासाग्रो चेइयाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता प्रतुरियमचवलमसंभते जुगंतरपलोयणाएं दिट्ठीए पुरोरियं सोहेमाणे- सोहेमाणे जेणेव वाणियगामे नयरे, तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरिय अडड़ || ७२. तए णं से भगवं गोयमे वाणियगामे नयरे उच्च-नीय-मज्झिमाई कुलाई घरसमुदाणस्स भिक्खायरियाए अडमाणे ग्रहापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेइ, डिग्गाहेत्ता वाणियगामा नयराम्रो पडिणिग्गच्छर, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स दूरसामंतेणं वीईवयमाणे बहुजणसद्दं निसामेइ | बहुजणो णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परुवेइएवं खलु देवाणुप्पिया ! समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतेवासी प्राणंदे नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिम मारणंतिय-संलेहणा- भूसणा-भूसिए, भत्तपापडिया क्खिए कालं प्रणवकखमाणे विहरइ ॥ १. जेट्टे जहा पण्णत्तीए तहा भिखारियाए जाव अडमाणे (क, ग) २. भायणवत्थाई (क्व ) । ३. इरिय (क्व ) । ४. सं० पा० - अपच्छिम जाव अणवकखमाणे । Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१६ उवासगदसाओ ७३. तए णं तस्स गोयमस्स बहुजणस्स ग्रंतिए एयमट्ठे सोच्चा निसम्म अयमेयाख्वे' अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - तं गच्छामि गं आणंद समणोवासयं पासामि - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे 'जेणेव पोसहसाला, जेणेव प्राणंदे समणोवासए", तेणेव उवागच्छइ । ७४. तर णं से आणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पासर, पासित्ता हट्ट - चित्त माणंदिए पीइमगे परमसोमणस्सिए हरिसवस विसप्पमाण fare भगवं गोयमं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमसित्ता एवं वयासी एवं खलु भंते! अहं इमेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्टमावण किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए, संचामि देवाप्पियस्स प्रतियं पाउन्भवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे (सु ? ) अभिवंदित्तए । 'तुम्भे णं भंते! इच्छाक्कारेण श्रणभिश्रएणं' इस्रो चेव एह, जेणं' देवाणुप्पियाणं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदामि णमंसामि ॥ ७५. तए गं से भगवं गोयमे जेणेव प्राणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ॥ O प्राणंद-गोयम- संवाद-पदं ७६. तए णं से प्राणंदे समणोवासए भगवओ गोयमस्स तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदर णमंसर, वदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-अत्थि णं भंते ! गिहिणो हिमभावसंतस्स प्रहिणाणे समुप्पज्जइ ? हंता श्रत्थि । जइ णं भंते ! गिहिणों गिहमज्भावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते! ममवि गिहिणो हिमज्भावसंतस्स प्रोहिणाणे" समुप्पण्णे- पुरत्थिमे णं लवणसमुद्दे पचजोयणसयाई" खेत्तं जाणामि पासामि । दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंच जोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । उत्तरे णं जाव चुल्लहिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि । उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि । १. एवं ( ख ) । २. अमेयारूवे (क); अय इमेयारूवे ( ख ) 1 ३. जेणेव आणंदे समणोवासए जेणेव पोसहसाला ( क, ख, ग, घ ) ; महाशतकाध्ययने - 'जेणेव महासयगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासयए समणोवासए अयं क्रमो विद्यते । यत्राप्यसौ कमो युज्यते । ४. सं० पा०-हदुतुद्रु जाव हियए । ५. सं० पा० - उरालेणं जाव धमणिसंतए । ६. इच्छाकारेण (घ ) | ७. अभियोगेणं (कख) ८. जाणं (क, ख, ग ); जहा णं (घ ) । 8. सं० पा० - गिहिणो जाव समुप्पज्जइ । १०. ओहिण्णाणे ( ग ) । ११. सं० पा०-- पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्यं । Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अवणं (आनंदे ) ४१७ हे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुतं' नरयं जाणामि पासामि || ७७. तए णं से भगवं गोयमे श्राणंदं समणोवासयं एवं वयासी - प्रत्थि णं आणंदा ! गिहिणो हिमज्भावसंतस्स ओहिणाणे समुपज्जइ । नो चेव णं एमहालए । तं गं तुमं आणंदा ! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि प्रकरणाए प्रभुद्वाहि ग्रहारिहं पायच्छित्तं • तवोकम्मं पडिवज्जाहि ॥ ७८. तए णं से प्राणंदे समणोवासए भगवं गोयमं एवं वयासी प्रत्थि णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सन्भूयाणं भावाणं आलोइज्जइ " • निदिज्जइ गरिहिज्जइ विउट्टिज्जइ विसोहिज्जइ प्रकरणयाए अब्भुट्टिज्जइ पक्कि मिज्जइ प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिज्जइ ? नो इट्ठे सट्टे । जइ णं भंते! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं • भावाणं नो प्रालोइज्जइ' नो पडिक्कमिज्जइ तो निंदिज्जइ नो गरिहिज्जइ नो विउट्टिज्जइनो विसोहिज्जइ अकरणयाए नो अब्भुट्टिज्जइ अहारिहं पायच्छित्तं तवकम्मं नोपडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते ! तुब्भे चैव एयस्स ठाणस्स आलोएह ' * पक्कि मेह निंदेह गरिह विउदेह विसोहेह प्रकरणाए अभुट्टेह अहारिहं पायच्छितं तवोकम्मं पडिवज्जेह" || ७६. तए णं से भगवं गोयमे आणंदेणं समणोवास एणं एवं वृत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे" प्राणंदस्स समणोवासगस्स श्रंतियात्री पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता जेणेव दूइपलासे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे", तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अदूरसामंते गमणागमाए पक्किम, पडिवकमित्ता एसणमणेसणं बालोएइ, आलोएत्ता भत्तपाणं पडसे, पडिदसित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता o १. लोलुपं अच्चुतं (ख) 1 २. सं० पा० - गिहिणो जाव समुप्पज्जइ । ३. सं० पा० - आलोएहि जाव तवोकम्मं । अत्र स्थानांगे प्रस्तुतवृत्तौ च किञ्चित् पाठभेदो विद्यते--रायच्छित्तं तवोकम्मं (स्थानांग ३।३३८) तवोक्रम्मं पायच्छित्तं (वृत्ति अध्ययन ३) प्रतिषु 'आलोएहि जाव तवोकम्मं' इति पाठसंक्षेपो लभ्यते, तेन स्थानां गानुसारी पाठ एवं मूले स्वीकृतः । ४, सच्चाणं (क), संभासे (ख ) । ५. सं० पा० - आलोइज्जइ जाव पडिवज्जिज्जइ । ६. सं० पा० - संताणं जाव भावाणं; सच्चाणं (ग); संभासे ( ख ) । ७. सं० पा०- आलोइज्जइ जाव तवो कम्मं । ८ तवे ( क ) । ६. सं० पा० - आलोएह जाव पडिवज्जेह | १०. पडिवज्जह ( क, ख, घ) । o ११. वितिगिंछ ( क ); वितिगिच्छा (ख, घ) ! १२. महावीरे जाव भत्तपाणं ( ग ) | Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१८ उवासगदसाओ एवं वयासी एवं खलु भंते ! अहं तुन्भेहिं अभणुप्णाए' 'समाणे वाणियगामे नयरे भिक्खायरियाए अडमाणे महापज्जत्तं भत्तपाणं पडिग्गाहेमि, पडिग्गाहेत्ता वाणियगामायो नयरामो पडिणिग्गच्छामि, पडिणिग्गच्छित्ता कोल्लायस्स सण्णिवेसस्स अदूरसामंतेणं वीईवयमाणे वहुजणसई निसामेमि। बहुजणो अण्णमण्णस्स एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्ण वेइ, एवं परूवेइ-एवं खलु देवाणुप्पिया! समणरस भगवनो महारवीस्स अंतेवासो आणंदे नाम समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइविखए कालं प्रणवकंखमाणे विहरइ।। तए णं मम बहुजणस्स अंतिए एयमढे सोच्चा निसम्म अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-तं गच्छामि णं आणंदं समणोवासयं पासामि-- एवं संपेहेमि, संपेहेत्ता जेणेव कोल्लाए सण्णिवेसे, जेणेव पोसहसाला, जेणेव पाणंदे समणोवासए तेणेव उवागच्छामि । तए णं से प्राणंदे समणोवासए मम एज्जमाणं पासइ, पासित्ता हट्टतुटुचित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणयिए ममं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - एवं खलु भंते ! अहं इमेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तबोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धणिसंतए जाए, णो संचाएमि देवाणुप्पियस्स अंतियं पाउभवित्ता णं तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादे सु?] अभिवंदित्तए। तुब्भे णं भंते ! इच्छक्कारेणं अणभियोगेणं इनो चेव एह, जेणं देवाणुप्पियाणं तिवखुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदामि णमंसामि।। तए णं अहं जेणेव पाणंदे समणोवासए, तेणेव उवागच्छामि । तए णं से प्राणंदे समणोवासए मम तिक्खुत्तो मुद्धाणेणं पादेसु वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-अस्थि ण भंते ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स प्रोहिणणे समुप्पज्जइ ? हता अस्थि । जइ णं भंते ! गिहिणो गिहमज्झावसंतस्स प्रोहिणाणे समुप्पज्जइ, एवं खलु भंते ! मम वि गिहिणो गिहमज्भावसंतस्स ओहिणाणे समुप्पण्णे-पुरस्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । दक्खिणे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे पंचजोयणसयाई खेत्तं जाणामि पासामि । उत्तरे णं जाव चुल्ल हिमवंतं वासधरपव्वयं जाणामि पासामि । उड्ढे जाव सोहम्मं कप्पं जाणामि पासामि । अहे जाव १. सं० पा०-अब्भणण्णाए तं चेव सव्वं कहेइ जाव । Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पढमं अज्झणं (प्राणंदे) इसे रयणप्पा पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीतिवाससहस्सद्वितियं जाणामि पासामि । ४१६ तणं श्रहं आणंद समणोवासयं एवं वइत्था - प्रत्थि णं आणंदा ! गिहिणो हिमभावसंतस्स प्रोहिणाणे समुप्पज्जइ । नो चेव णं एमहालए । तं णं तुम आणंदा ! एयरस ठाणस्स श्रालोएहि जाव' ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि । तए णं से प्राणं ममं एवं वयासी—प्रत्थि णं भंते ! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सम्भूयाणं भावाणं प्रालोइज्जइ जाव' ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जिज्जइ ? नो इट्टे मट्ठे । जइ णं भंते! जिणवयणे संताणं तच्चाणं तहियाणं सब्भूयाणं भावाणं नो आलोइज्जइ जाव' ग्रहारिहं पायच्छितं तवोकम्मं नो पडिवज्जिज्जइ, तं णं भंते! तुब्भे चैव एयस्स ठाणस्स ग्रालोएह जाव प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं विज्जेह || ० ८०. तए णं ग्रहं आणंदेणं समणोवास एणं एवं वृत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छसमावण्णे आणंदस्स समणोवासगस्स अंतियाओ पडिणिक्खमामि, पडिणिक्खमित्ता जेणेव इहं तेणेव हव्वभागए । 'तं णं" भंते ! किं आणंदेणं समणोवासणं तस्स ठाणस्स श्रालोएयव्वं' "पडिक्कमेयव्वं निदेयव्वं गरिहेयवं विव्वं विसोयवं प्रकरणयाए प्रभुद्वेयव्वं अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं • पडिवज्जेयब्वं ? उदाहु मह ? भगवम्रो उत्तर-पदं ८१. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एव वयासी - गोयमा ! तुमं चेव णं तस्स ठाणस्स आलोएहि जाव' ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं • परिवज्जाहि, आणंद च समणोवासयं एयमट्ठ खामेहि ॥ गोयमस्स खामणा-पदं ८२. तणं से भगवं गोयमे समणस्स भगवम्रो महावीरस्स तह त्ति एयम विणणं पsिसुणेs, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स ओलाएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ १. उदा० १।७७ 1 २,३,४. उवा० १।७८ । ५. तए णं (ख); ते णं (घ) । ६. सं० पा० - आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं । ७. सं० पा० ८. उवा० १।७७ । ६. सं० पा० - आलोएइ जाव पडिवज्जइ । प्रालोएहि जाव पडिवज्जाहि । Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२० उवासगदसाओ विउट्ट इ विसोहइ प्रकरणयाए अब्भुट्ठइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ, आणंदं च समणोवासयं एयमढें खामेइ ॥ भगवप्रो जणवयविहार-पदं ५३. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ बहिया जणवयविहारं' विहरइ॥ पाणंदस्स समाहिमरण-पदं ८४. तए णं से पाणंदे समणोवासए बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं' असित्ता, सद्धि भत्ताई' अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्भवडेंसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरस्थिमे गं 'अरुणाभे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। तत्थ णं आणंदस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ८५. आणंदे णं भंते ! देवे तानो देवलोगाओ पाउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ८६. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते ।। १. जणवतं विहारं (घ)। २. अप्पाणं (ग)। ३. भत्ताति (क, ग)। ४. वडिसगस्स (घ)। ५. अरुणे विमाणे (क); अरुणेहि विमाणेहि (ख) । ६. तत्थ णं आणंदे (क)। ७. ततो (ख)। ८. देवलोगलोगाओ (क)। ६. सं० पा--निक्खेवो पढमस्स। Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झषणं कामदेवे उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पढमस्स अज्झयणस्स अयमट्ठ पपणत्ते, दोच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णते ? कामदेवगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी । पुण्णभद्दे चेइए। जियसत्तू राया ।। ३. 'तत्थ णं चंपाए नयरीए कामदेवे नाम गाहावई परिवसई-~-अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स णं कामदेवरस गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वडिपउत्ताओं, छ हिरण्णकोडीनो पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ ५. से णं कामदेवे गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि यणं कुडुबस्स मेढी जाव" सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ।। १. ना० १११७ दसगोसाहस्सिएणं वएणं। २. बग्गस्स (क)। ४. उवा० ११११ । ३. सं० पा०-कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया। ५. बुढि (ख,घ)। छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडि. ६. उवा० ११३ । पउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया ७. उवा० १५१३ । ४२१ Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२२ उवासगदसाम्र ६. तस्स णं कामदेवस्स गाह्रावइस्स भद्दा नामं भारिया होत्था - अहीण-पडिपुण्णपंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ० ॥ महावीर - समवसरण - पद ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव चंपा नयरी, जेणेव पुष्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं ओगिहिता संजमेणं तवसा ग्रप्पाणं भावेमाणे विहरइ ॥ ८. परिसा निग्गया || ६. कूणिए राया जहा तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ॥ १०. तए गं से कामदेवे गाहावई इमी से कहाए लट्ठे समाणे- "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरीए बहिया पुष्णभद्दे चेइए महापडिख्वं श्रहं श्रगहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" तं महाफलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुणे अभिगमण-वंदण - णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विस्सस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय- कोउय-मंगलपायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयाम्रो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंट मल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं चंप नयरि मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव पुण्णभद्दे चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उत्रागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वदित्ता णमंसित्ता णच्चासरणे णाइदूरे सुस्सुसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विषएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ! ११. तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्मं परिकहेइ ॥ १२. परिसा पडिगया, राया य गए ॥ १. उवा० १।१४ । २. सं० पा०-- समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ । तहेव सावयधम्मं पडिवज्जइ । सा चैव वत्तव्वया जाव जेट्ठपुत्तं । ३. ओ० सू० १६,२२ । ४. ओ० सू० ५३-६६ । ५. ओ० सू० ७१-७७ 1 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभयणं (कामदेवे ) कामदेव गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं कामदेवे गाहावई समणस्स भगवप्रो महावीरस्स अंतिए धम्मं सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ट - चित्तमा दिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्पमाणहियए उट्ठाए उट्ठेइ, उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं व्यासो - सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं प्रभुमि णं भंते! निग्रंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेय भंते! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा गं देवाप्पियाणं प्रतिए बहवे राईसर-तलवर- माडविथ कोडुंबिय इब्भ- सेट्ठिसेणावर सत्थवाहपभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचारमि मुंडे भवित्ता प्रगाराम्रो ग्रणगारियं पव्वइत्तए । श्रहं णं arrari ति पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । ग्रहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ १४. तए णं से कामदेवे गाहावई समणस्स भगवत्रो महावीरस्स ग्रंतिए' सावयधम्मं पडिवज्जइ ॥ भगव जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपाए नयरीए पुण्णभद्दाओ या पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ कामदेवस्य समणोवासग चरिया-पदं १६. लए णं से कामदेवे समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु - एसणिज्जेणं असण-पाण -खाइम साइमेणं वत्थ - पडिग्गह- कंबल - पायपुंछणेणं ओसह भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ || ४२३ भद्दाए समणोवासिय चरिया-पदं १७. तए णं सा भद्दा भारिया समणोवासिया जाया -- अभिगयजीवाजीवा जाव समणे निग्गंथे फासू- एसणिज्जेणं असण-पाणखाइम साइमेणं वत्थ-पडिग्गह १. पू० उवा० ११२४- ५३ । २. उवा० १।३५ ३. उदा० ११५६ । Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२४ उवासगदसाओ कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पोढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। कामदेवस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स उच्चावएहि सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं भावमाणस्स चोइस संबच्छराई वीइक्कताई। पण्ण रसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था---एवं खलु अहं चंपाए नयरीए बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवडावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए'। ६. तए णं से कामदेवे समणोवासए' जेटुपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता' 'सयाओ गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता चंपं नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे वगयमालावण्णगविले वणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए ° समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ कामदेवस्स पिसायरूव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासगस्स पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे भायी मिच्छदिट्ठी' अंतियं पाउन्भूए । २१. तए णं से देवे एगं महं पिसायरूवं विउव्वइ । तस्स णं दिव्वस्स पिसायरूवस्स इमे एयारूवे वण्णावासे पण्णत्ते--सोसं से गोकिलंज-संठाण-संठियं', सालि १,२. उवा० १.१३ । ५. मिच्छा ° (क,घ)। ३. ३०-उवा० ११५७-५६ । ६. देवस्स (ख,घ)। ४. सं० पा.--आपुच्छित्ता जेणेव पोसहसाला ७. पुस्तकान्तरे विशेषणांतरमुपलभ्यते - तेणेव उवागच्छइ, २त्ता जहा आणंदो जाव 'विगयकप्पयनिभं', क्वचित्तु, 'वियडकोप्परसमणस्स। निभं' (वृ)। Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) भसेल्ल-सरिसा से केसा कविलतेएणं' दिप्पमाणा, 'उट्टिया-कभल्ल-संठाण-संठियंर निडालं, मुगुंसपुच्छं व तस्स भुमकायो' फुग्गफुग्गाप्रो' विगय-बीभत्सदसणानो, सीसघडिविणिग्गयाइं अच्छीणि विगय-बीभत्स -दसणाई, कण्णा जह सुप्प-कत्तरं चेव विगय-वीभत्स-दंसणिज्जा, उरब्भपुडसंनिभा से नासा, झुसिरा जमल-चुल्ली-संठाण-संठिया दो वि तस्स नासापुडया", 'घोडयपुच्छं" व तस्स मंसूई कविल-कविलाई विगय-बीभत्स-दसणाई", "उट्टा उस्स चेव लंबा १९, फालसरिसा से दंता, जिब्भा जह सुप्प-कत्तरं चेव 'विगय-बीभत्सदंसणिज्जा, हल-कुड्डाल"-संठिया से हणुया, गल्ल-कडिल्लं व तस्स खड्डु फुट्ट 'कविलं फरुस महल्ल, मुइंगाकारोवमे से खंधे, पुरवरकवाडोवमे से वच्छे, कोटिया-संठाण-संठिया दो वि तस्स बाहा, निसापाहाण-संठाण-संठिया दो वि तस्स अग्गहत्था, निसालोढ-संठाण-संठियारो हत्थेसु अंगुलीयो, सिप्पि-पुडगसंठिया से नखा", पहाविय-पसेवनो" व्व उरम्मि" लंबंति दो वि तस्स थणया, पोट्टं अयकोटुप्रो व्व वढू, 'पाण-कलंद-सरिसा से नाही", सिक्कग-संठाणसंठिए से नेत्ते, किण्णपुड-संठाण-संठिया दो वि तस्स वसणा, जमल-कोदिया १. कविला तेएण (क,ग,घ)। (वपा)। २. महल्लउट्टिया' (क,ख,ग); महल्ल उद्रिया- १५. वृत्तावत्र अतिरिक्तपाठस्य उल्लेखोस्ति, कभल्लसरिसीवमं (वृषा)। पाठान्तरे-"हिंगुलयधाउकंदरबिलं व तरस ३. भुमगायो (ख); भुम्मकाओ (घ) । वयण'। ४. फरगुपुग्गाओ (क); जडिलजडिलाओ, १६. कुडा (क); कुडाल (ख); कूडा (ग); जडिल कुडिलानो (वृपा)। कुद्दाल (घ)। ५. वीभृच्छ (ख,घ)। १७. खंड (क,ख)। ६. बोभच्छ (ख,घ)। १८. कविलफरुसं महल्लं (क,ग); कविलफरिस७. जहा (ख)। महल (घ)। ८. बीभच्छ (ख,घ)। १६. नहा (ख); नक्खा (ग,घ); वाचनान्तरे तु ६. हुरणपुडसंठाणसंठिया (वपा) । इदमपरमधीयते—अडियालसंठिनो उरो १०. वत्तावत्र अतिरिक्तपाठस्य उल्लेखोस्ति, उल्लखास्ति, तम्स रोमगति तस्स रोमगुविलो (ब)। वाचनान्तरे --महल्लकुब्ब [कुच्च] संठिया दो २०. पसे यउ (क) 1 वि से कवोला। २१. उरंसि (ख,घ)। ११. पुंछ (क्व)1 २२. पाणासंद (क,ग)। १२. वीभच्छ (ख,घ)। २३. नाभी (क,घ); वाचनान्तरेऽधीतं-भगकडी १३. घोड्यपुच्छे व तस्स कविलफरुसाओ उड्ढलो विगयवकपिट्टी असरिसा दो वि तस्स माओ दाढियाओ (बपा) । फिसगा (वृ)। १४. उट्टा से घोडगस्स जह दोवि विलंबमाणा Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२६ उवासगदसाओ संठाण-संठिया दो वि तस्स ऊरू, 'अज्जुण-गुटुं" व तस्स जाणूई कुडिल-कुडिलाई विगय-बीभत्स-दसणाई, जंघाओ कक्खडीओ लोमेहि उवचियानो, प्रहरीसंठाण-संठिया दो वि तस्स पाया, प्रहरी-लोढ-संठाण-सठियानो पाएसु अंगुलीग्रो, सिप्पि-पुडसंठिया से नखा लडह-मडह-जाणुए', विगय-भग्ग-भुग-भुमए', अवदालिय-वयण-विवरनिल्लालियम्गजाहे. सरड-कयमालियाए 'उंदरमाला-परिणद्ध-सकचिध. नउल-कयकण्णपूरे, सप्प-कयवेगच्छे', अप्फोडते, अभिगज्जते, भीम-मुक्कट्टहासे', 'नाणाविह-पंचवणे हि लोमेहि उचिए एग महं नीलुप्पल-गवलगुलियअयसिकुसुमप्पगासं खुरधार असि गहाय जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आसुरत्ते" रुटू कुविए च डिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी- हभो! कामदेवा ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया" ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! होणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकखिया ! मोक्खकखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया! सग्गापिवासिया ! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई" वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सोलाइं" 'वयाई वेरमणाइ पच्चक्खाणाई° पोसहोववासाइं न छड्डेसि" न भंजेसि, 'तो तं' अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेग खुरधारेण ° असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणु प्पिया" ! अट्ट-दुहट्ट १. प्रज्जुणागुटुं (क)। ८. भीममुक्कअट्टहासे (ख,घ)। २. नक्खा (ग,घ)। ६. ४ (क)। ३. जण्णुए (क)। १०. आसुरुते (क)। ४. इह अन्यदपि विशेषण चतुष्टयं वाचनान्तरे तु ११. ° पत्थया (क) । अभिधीयते- मसिमूसगमहिसकालए भरिय- १२. दुरंत ४ जाव परिवज्जिया (क,ग) । मेहवन्ने लंबोटे निगयदंते (बृ)। १३. जं सीलाई (क्व)। ५. निहालिय अग्गजीहे (ख)। १४. सं० पा० -- सीलाई जाव पोसहोववासाई। ६. उल (क)। १५. छइसि (ख); छंडेसि (घ)। ७. पाठान्तरेग-सप्पकयवेगच्छे मूसगकयभूभ- १६. भंजसि (क)। लए विच्छ्य कयवेयच्छे सप्पकयजण्णोवईए १७. तो ते (क,ग,घ); तो (ख) अभिन्न मुहनपणनखवरवरचित्तकत्तिनियंसणे १८. सं० पा०-नीलुप्पल जाब असिणा। १६. ४(क,ख)। Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२७ बीग्रं अज्झयण (कामदेवे) ___ वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। २३. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं' पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ॥ २४. तए णं से दिव्वे पिसायरूवं कामदेवं समणोवासयं अभीयं तत्थं अणुविग्गं अभियं अचलियं असंभतं तुसिणीय धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं बयासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई, पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडिं करेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव ° जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। २५. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि ___ एवं बुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। २६. तए णं से दिव्व पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भिउडि निडाले साहट्ट कामदेवं समणोवासयं नीलुप्पल- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेइ ।। २७. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं "विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्ख ' दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। कामदेवस्स हत्थिरूव-कय-उवसग्ग-पदं २८. तए णं से दिव्वे पिसायरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं" अतत्थं अणुव्विग्ग अखुभियं अचलियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्झागोवगयं° विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे" नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाम्रो पावयणायो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियं १. देवेणं (ख,घ)। ७. उवा० ॥२४॥ २. देवेणं (ख,घ)। ८. तिउडियं (क)। ३. सं० पा०-अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं । ६.सं० पा०-नीलूप्पल जाव असिणा। ४. उवा० २।२२। १०. सं० पा०----उज्जलं जाव दुरहियासं । ५. सं० पा.-~सीलाई क्याई न छड्डेसि तो ११. सं० पा०-सहइ जाव अहियासेई । जीवियाओ। १२. सं० पा०-अभीयं जाव विहरमाणं । ६. उवा० २।२३। १३. जाव (ग,घ,) अशुद्ध प्रतिमाति। Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४२८ उवासगदसाओ सणियं पच्चोसवकइ, पच्चीसविकत्ता पोसहसालारो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउव्वइ-सत्तंगपइट्ठियं सम्म संठियं सुजातं पुरतो' उदग्गं पिट्ठतो वराह' प्रयाकुच्छि अलवकुच्छि पलंब-लंबोदराधरकर अभुग्गय-मउल-मल्लियाविमल-धवलदंतं कंचणकोसी-पविट्ठदंतं प्राणामिय-चाव-ललिय-संवेल्लियग्गसोंडं कुम्म-पडिपुण्ण चलणं वीसतिनखं अल्लीण-पमाणजुत्तपुच्छ मत्तं मेहमिव गुलगलेत मण-पवण-जइणवेगं-- दिव्वं हत्थिरूवं विउवित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! कामदेवा ! समणोवासया ! 'अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुग्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरिधिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया! पुण्णकामया! सग्गकामया ! मोबखकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकखिया! सग कंखिया ! मोक्खकखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सम्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया! नो खलु कप्पई तव देवाणुप्पिया! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झितए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई बेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि, तो तं 'अहं अज्ज'१० सोडाए गेहामि, गेण्हित्ता पोसहसालानो नीणेमि, नीणेत्ता उड्ढे वेहासं उव्विहामि, उविहित्ता तिखेहि दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि !! २६. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं कुत्ते समाणे अभीए" प्रतत्थे अणुविग्गे अखुभिए अचलिए असंभंते तुसिणीए धम्मज्झाणो वगए विहरइ ।। ३०. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं प्रतत्थं अणुध्विग्गं १. विप्पयंति (क) सर्वत्र; विप्पयहती (ग) ७. गुलगुलेंतं (घ) सर्वत्र। ८. सं० पा०---समणोवासया तहेव भणइ जाव २. पुरओ (क)। न भंजेसि । ३. वसहं (ग)। ६. x (क,ख,ग,घ)। ४. ४(क,ग); अइया (अजिया) कुच्छी १०. अज्ज अहं (क,ख,ग,घ)। (ना० १०११५६) । ११. सं० पा०--अभीए जाव विहरइ ! ५. अणोमिय (क)। १२. सं० पा०-अभीयं जाव विहरमाण । ६. नक्खं (ग)। Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बी अभयणं (कामदेवे ) ४२६ 0 अभियं ग्रलियं असंभतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! कामदेवा' ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं प्रज्ज अहं सोंडाए गेण्हामि, गेहेत्ता पोसहसालाश्रो नीगेमि, नीणेत्ता उड्ढ नेहासं उविहामि उव्विहित्ता तिक्खेहि दंतमुसलेहिं पडिच्छामि, पडिच्छेत्ता हे धरणितलंस तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहां णं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट दुहट्ट - वसट्टे प्रकाले चेव जीवियाम्रो ववरोविज्जसि || ३१. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ || ३२. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवं समणीवासयं सोंडाए गेहेति', हित्ता उड्ढं वेहासं उव्विह', उविहिता तिक्षेहि दंतमुसलेहिं परिच्छइ, पडिच्छित्ता हे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाए लोलेइ || o ३३. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जल' विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियास वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ || कामदेव स सप्रूव कथ उवसग्ग-पदं ३४. तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे कामदेव समणोवासयं अभीयं श्रतत्थं प्रणुव्विरगं अभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासिता जाहे नो संचाएइ' कामदेव समणोवासयं निग्गंथाश्रो पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितते सणियं-सणियं पच्चीसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्aमित्ता दिव्वं हृत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एवं महं दिव्वं सप्परूवं विउव्वइ -- उग्गविसं चंडविसं घोरविसं महाकायं मसी मूसाकालगं नयणविसरोसपुण्णं अंजणपुंज - निगरम्यगासं रत्तच्छं लोहियलोयणं जमलजुयलचंचलचलंतजीह" वरणीयलवेणिभूयं उक्कड फुड- कुडिल- जडिल- कक्कस - वियड १. सं० पा -- कामदेवा तहेव जाव सो वि विहरs | २. उवा० २१२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ | ५. गिरहइ (ख,घ ) । ६. उब्बहइ ( क ) | ७. सं० पा० – उज्जलं जाव अहियाइ । ८. सं० पा०-- संचाएइ जाव सणियं । ९. उग्गविसं दिट्ठिविसं जाव सप्परूवं (क, ग) : उग्गविसं दिट्ठिविसं (घ) । १०. चंचलजीहं ( ख ) । Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदमाओ फडाडोवकरणदच्छं लोहागर-धम्म माण-धमधमेतघोस प्रणागलियदिव्वपचंडरोसंदिव्वं सप्परूवं विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव कामदेवे समणोबासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! कामदेवा! समणोवासया'! अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउद्दसिया। सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सरगकंखिया ! मोक्खकंखिया! धम्मपिवासिया! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्ख पिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइंचालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जाणं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि ° न भंजेसि', तो ते अज्जेव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेदिता तिक्खाहिं विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुदृमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाल चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ।। ३५. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए' प्रतत्थे अणुव्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभते तुसिणोए धम्मज्झाणोवगए° विहरइ।। ३६. 'तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! कामदेवा । समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो ते अज्जेव अहं सरसरस्स कायं दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुट्टे मि, जहा णं तुमं देवाणु प्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ॥ ३७. तए णं से कामदेवे समणोवासए तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' ० विहरइ॥ १. सं० पा० - समणोवासया जाव न भंजेसि। २. भंजसि (क,ग)। ३. विसमपरिगताई (क)1 ४. सं० पा०---अभीए जाव विहरइ। ५. सं० पा०-सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ । ६. उवा० २।२२। ७. उवा० २१२३ । Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअं अज्झयणं (कामदेवे) ३८. तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे कामदेवस्स सरस रस्स कायं दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेइ, वेढित्ता तिवखाहिं विसपरिगताहि दाढाहिं उरंसि चेव निकुदृइ ।।। ३६. तए णं से कामदेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। देवरूव-विउव्वण-पदं ४०. तए णं से दिव्वे सप्परूवे कामदेवं समणोवासयं अभीयं तत्थं अणुव्विग्गं अखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्झाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ कामदेवं समणोवासयं निग्गंथाओ पावयणाग्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तंते परितंते सणियंसणिय पच्चोसक्कइ, पच्चीसक्कित्ता पोसहसालारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खभित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एगं महं दिव्वं देवरूवं विउच्वइ - हार-विराइय-वच्छ' 'कडग-तुडिय-थंभियभुयं अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंड-कण्णपीढधारि विचित्तहत्थाभरण विचित्तमाला-मउलि-मउड कल्लाणग-पवरवत्थपरिहियं कल्लाणगपवरमल्लाणुलेवणं भासुरबोंदि पलंबवणमालधरं दिव्वेणं वण्णेण दिवेणं गंधेणं दिव्येण रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिवेणं संघाएणं दिव्वेण संठाणेण दिव्वाए इड्रोए दिवाए जईए दिवाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिवेणं तेएण दिव्वाए लेसार दसदिसायो उज्जोवेमाणं पभासेमाण पासाईय' 'दरिसणिज्जं अभिरुवं पडिरूवं-दिव्वं देवरूवं विउवित्ता कामदेवस्स समणोवासयस्स पोसहसाल अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए कामदेव समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! कामदेवा ! समणोवासथा ! धणेसि णं तुम देवाणु प्पिया ! पुण्णेसि' •णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयत्थेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! कयलक्खणेसि णं तुमं देवाणु प्पिया ! • सुलद्ध णं तव देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निगंथे पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। १. उवा० २।२४। २. सं० पा०-उज्जलं जाव अहियासेइ । ३. सं० पा०-अभीयं जाव पासइ । ४. सं० पा०-हारविराइयवच्छं जाव दस दिसाओ। ५. पासति (ख)। ६. x(ख) । ७. संपुण्णे (क,ग)। सं० पा०-पुणे कयत्थे कयलक्खणे सुलद्धे। Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३२ उवासगदसाओ एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देविदे देवराया' 'वज्जपाणी पुरंदरे सयक्कऊ सहस्सक्खे मधवं पागसासणे दाहिणड्ढलोगाहिवई बत्तीस-विमाण-सयसहस्साहिवई एरावणवाहणे सुरिदे अरयंबर-वत्थधरे पालइय-मालम उडे नव-हेम-चारुचित्त-चंचल-कुंडल-दिलिहिज्जमाणगंडे भासुरबोंदी पलंववणमाले सोहम्मे कप्पे सोहम्मव.सए विमाणे सभाए सोहम्माए° सक्कसि सोहासणंसि चउरासीईए सामाणियसाहस्सीणं', 'तायत्तीसाए तावत्तीसगाणं, चउण्हं लोगपालाणं, अटुण्हं अग्गमहिसोणं सपरिवाराणं, तिण्हं परिसाणं, सत्तण्हं अणियाणं, सत्तण्हं अणियाहिवईणं, च उण्हं चउरासीणं आयरक्ख-देवसाहस्सीणं °, अण्णेसिं च बहूणं देवाण य देवीण य मज्झगए एवमाइक्खइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूवेइ–एवं खलु देवा ! जंबुद्दीवे दीवे भारहे वासे चंपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहसालाए पोसहिए बभचारी •उम्मक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अवीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ । नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा 'दाणवेण वा जक्खेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निगंथानो पावयणानो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा। तए णं अहं सक्कस्स देविंदस्स देवरण्णो एयमढे असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हन्वमागए । तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जुई जसो वलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे 'लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए।" तं दिवा णं देवाणुप्पियाणं इड्डी' 'जुई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते ० अभिसमण्णागए। तं खामेमि णं देवाणप्पिया ! खमंतु णं देवाण प्पिया ! खंतुमरिहंति णं देवाणुप्पिया ! नाई भुज्जो करणयाए त्ति कट्ट पायवडिए पंजलिउडे' एयमटुं भज्जो-भुज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए ॥ फामदेवस्स पडिमा-पारण-पदं ४१. तए णं से कामदेवे समणोवासए निरुवसग्गमिति कटु पडिमं पारेइ ।। १. देवराया सतक्कतु जाव सकसि (क); देव- ५. दाणवेण वा जा गंधव्वेण वा (क); दाणवेण राया सतक्कत्तं जाव सक्कसि (ग); वा गंधव्वेण वा (ग)। सं० पा० --देवराया जाव सक्कंसि । ६. लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया (क्व)। २. सं० पा०-~-साहस्सीणं जाव अण्णेसि । ७. सं० पा०---इड्ढी जाव अभिसमण्णागए। ३. सं० पा०-बंभचारी जाब दन्भसंथारोवगए। . मरुहंती (क)। ४. सक्का (क, ख, ग, घ)। ६. पंजलियडे (क)। Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीघ्रं अज्झयणं (कामदेवे) ४३३ कामदेवस्स भगवनो पज्जुवासणा-पदं ४२. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव चंपा नयरो, जेणेव पुण्णभद्दे चेइए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अहापडिरूवं ओग्गहं योगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ ।।। ४३. तए णं से कामदेवे समणोवासए इमीसे कहाए लट्ठ समाणे – “एवं खलु समणे भगवं महाबोरे' 'पुव्वाणु पुर्दिव च रमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपते इह समोसढे इहेव चंपाए नयरोए बहिया पुण्णभद्दे चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिछिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे • विहरइ।" तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता नमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता [पोसहसालारो पडिणिक्खमइ पडिणिक्खमित्ता" ?] सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए मणुस्सवगुरापरिक्खित्ते सयानो गिहाप्रो पडिणिक्खमित्ता चपं' नार मज्झमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए', जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणाए° पज्जुवासइ॥ १. सं० पाo-महावीरे जाव विहरइ । मणुस्सवग्गुरा (ग); प्रतिषु ऊर्व मुटुंकित: २. ओ० सू० १६.२२ । पाठो विद्यते, किन्तु नासौ प्रसंगानुसारी प्रति३. सं. पा.---महावीरे जाव विहर इ । भाति । कामदेवः संप्रति पौषधिको वर्तते । ४ 'संपेहेता' इति पाठस्याग्रे कोष्ठ कान्तर्गतपाठो अतएव 'अप्पमहग्घाभरणालकियसरीरे' नासो युज्यते । १६ सूत्रे--पयाओ गिहापो पाठः पोषधावस्थायां संगच्छते । शंखथावपडिणिक्वमइ, पडिणिक मित्ता चंप नरि केणापि पोषधावस्थायां भगवतो दर्शनं कृतम्। मझमज्झेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव तत्र 'सुद्धमावेसाई मंगल्लाई बत्थाई पवर पोस इसाला, तेणेव उवागच्छइ, इति पाठोस्ति, परिहिए', (भगवती १२।१५) एतावान् एव तेन अवापि 'पोषहमालाओ पडिणिक्खमित्ता' पाठो विद्यते । भगवतीवृत्तावपि एतावतः, एष पाठः आवश्यकोस्ति । भगवती (१२।१५) पाठस्यैव व्याख्या समुपलभ्यते । प्रस्तुताध्ययने सत्रेपि इत्यमेव पाठयोजना विद्यते-पोसह- (सू० १६) 'उम्मुक्कमणिसुवण्णे' एव पाठोसालाओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता स्ति, तदा आभरणालंकरण कथं प्रासंगिक सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाईवस्थाई पवर परिहिए स्यात् ? असावत्र प्रवाहरूपेणं आयातः इति साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ । संभाव्यते। ५. सुद्धप्पा अप्प मणुस्सवग्गुरा (क); सुद्धप्प- ६. चंपा (ख)। वेसाइ अपमहाया मणुस्सवग्गुरा (ख, घ); ७. सं० पा-चेइए जहा संखे जाव पज्जुवासइ। सुद्धपावेसाई वस्थाई अप्पमहग्घाई जाव अप्प Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३४ उवासगदसाओ ४४. तए णं समणे भगवं महावीरे कामदेवस्स समणोवासयस्स तीसे य' 'महइमहा लियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ ° ।। भगवया कामदेवस्स उवसांग-वागरण-पदं ४५. कामदेवाइ ! समणे भगवं महावीरे कामदेवं समणोवासयं एवं वयासी-- से नूणं कामदेवा ! तुम्भं पुबरत्तावरनकालसमयंसि एगे देवे अंतियं पाउन्भूए । ताए णं से देवे एगं महं दिव्वं पिसायरूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता ग्रासुरत्ते रुट्टे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल'- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं' असि गहाय तुमं एवं वयासी हंभो ! कामदेवा ! •समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सोलाई बयाई वेरमणाइं पच्चवखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं इमेणं नीलप्पलगवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेमि, जहा णं तमं देवाणुप्पिया! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव ° जीवियाओ ववरोविज्जसि । तमं तेणं दिवेणं पिसायरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि । "तए णं से दिव्बे पिसायरूवे तुम अभीयं जाव पासइ. पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुम एवं वयासी--हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव" जइ ण तुम अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज इमेणं नीलप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेमि, जहा ण तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जो वियानो ववरोविज्जसि । तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं पिसायरूवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव" विहरसि । तए ण से दिव्वे पिसगरूवे तुम अभीयं जाव पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुद्रु कूविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तिवलियं भि उडि निडाले साहटु तुम १. सं० पा. - तीसे य जाव धम्म कहा सम्मत्ता। ८. सं. पा... एवं दण्ण गरहिया तिणि वि २. प्रो० सू० ७१-७७ । उवसरगा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो ३. पिसातरूवं (ग)। पडिगओ। ४. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असि। ६. उवा० २१२४ । ५. सं० पा०—कामदेवा जाव जीवियायो। १०. उवा० २।२२। ६. उवा० २।२२। ११. उवा० २।२३ । ७. उवा० २।२३। १२. उवा० २।२४ । Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीनं अज्झयणं (कामदेवे) ४३५ नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसि कुसुमप्पगासेण खुरधारेण असिणा खंडाखंडि करेइ । तए गं तु मे तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि। तए णं से दिव्वे पिसायरूवे तुम अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएइ, तुमं निग्गंथाओ पावयणाम्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितते सणिय-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाप्रो पडिणिवखमइ, पडिणिक्ख मित्ता दिव्वं पिसायरूवं विप्पजहइ, विप्पजहिता एगं महं दिव्वं हत्थिरूवं विउन्वइ, विउव्वित्ता जेणेव पोसहसाला, जेणेव तुमे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुम एवं बयासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया! जाव' जइणं तमं अज्ज सीलाई वयाइं वे रमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो तं अहं अज्ज सोडाए गेण्हामि, गेण्हित्ता पोसहसालारो नाणेमि, नीणेत्ता उड्ढं वेहासं उठिवहामि, उविहित्ता तिक्खेहि दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा गं तुमं देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरसि । तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे तुम अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि तुम एवं वयासी हभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई बेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छडुसि न भंजेसि, तो तं अज्ज अहं सोंडाए गेहामि, गेण्हित्ता पोसहसालानो नीणेमि, निणित्ता उड्ढं वेहासं उठिवहामि, उविहित्ता तिखेहिं दंतमुसलेहि पडिच्छामि, पडिच्छित्ता अहे धरणितलसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेमि, जहा णं तुम देवाणुप्पिया ! अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि । तए णं तुमे तेणं दिव्वेणं हत्थिरूवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि। तए णं से दिव्वे हत्थिरूवे तुम अभीयं जाव पास इ, पासित्ता आसुरत्ते रुदे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुम सोंडाए गेहति, गेण्हित्ता उड्ढं वेहासं उविहइ, उविहित्ता तिखेहिं दंतमुसलेहिं पडिच्छइ, पडिच्छित्ता अहे धरणितलंसि तिक्खुत्तो पाएसु लोलेइ । १. उवा० २।२७ । २. उवा० २।२४। ३. उवा० २१२२ । ४. उवा० २।२३ । ५: उवा० २२४ । ६. उवा ० २।२२॥ ७. उवा० २।२३ । ८. उवा० २।२४ । Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३६ उवासगदसाओ तए गं तुमेतं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि | तए गं से दिव्वे हथिरूवे तुमं प्रभीयं जाव' पासइ, पासित्ता जाहे नो संचाएति निथा पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामित्तए वा, ताहे संते तंते परितंते समियं सणियं पच्चोसक्कर, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता दिव्वं हत्थिरूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एवं महं दिव्वं सप्रूवं विउव्वइ, विउव्वित्ता जेणेत्र पोसहसाला, जेणेव तुमं, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तुमं एवं वयासी- हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं श्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते प्रज्जेव ग्रहं सरसरस्स कार्य दुरुहामि, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिताहि दाढाहि उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा णं तुमं देवाणुप्पिया ! ग्रट्ट-दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीविया वक्रोविज्जसि । तणं तु तेणं दिव्वेणं सप्परूवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरसि । तणं से दिव्वे सप्परूवे तुमं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि तुमं एवं वयासी- हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते प्रज्जेव ग्रहं सरसरस्स कार्य दुरुहामि दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढेमि, वेढित्ता तिक्खाहि विसपरिगताहिं दाढाहि उरंसि चेव निकुट्टेमि, जहा गं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे का चैव जीवियात्रो ववरोविज्जसि । तए णं तु तेणं दिव्वेणं सप्परूपेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे प्रभीए जाव' विहसि । तसे दिव्ये सप्पत्रे तुमं अभीयं जाव पासइ, पासिता श्रासुरत्ते रुट्टे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे तुब्भं सरसरस्स कार्य दुरुहइ, दुरुहित्ता पच्छिमेणं भाएणं तिक्खुत्तो गीवं वेढइ, वेढेत्ता तिक्खाहि विसपरिगताहि दाहिं उरंसि चेव निकुट्टेइ । तए णं तु तं उज्जलं जाव वेयणं सम्मं सहसि खमसि तितिक्खसि अहियासेसि । तर से दिव्वे सप्रूवे तुमं प्रभीयं जाव" पासइ, पासित्ता जाहे तो संचाएइ १. उवा० २।२७ । २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २।२२ । ४. ज्वा० २।२३ । ५. उवा० २।२४। ६. उवा० २१२२ । ७. उवा० २।२३ | ८. उवा० २१२४ । ६. उवा० २।२७ । १०. उदा० २।२४ Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीअ अज्झयणं (कामदेवे) ४३७ तुम निग्गंथाम्रो पावयणाश्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा, ताहे संते तते परितते सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता पोसहसालानो पडिणिक्ख मइ, पडिणिवखमित्ता दिव्वं सप्परूवं विप्पजहइ, विप्पजहित्ता एग मह दिव्वं देवरूवं विउब्वइ, विउवित्ता पोसहसाल अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता अंतलिक्खपडिवणे सखिखि णिवाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तमं एवं क्यासी-हंभो ! कामदेवा ! समणोवासया ! धणेसि णं तम देवाणु प्पिया ! पुण्णेसि णं तुमं देवाणु पया ! कयत्थेसि णं तुम देवाणप्पिया ! कयलक्खणेसि णं तुमं देवाणुप्पिया ! सुलद्धे णं तर देवाणुप्पिया ! माणुस्सए जम्मजीवियफले, जस्स णं तव निग्गंथ पावयणे इमेयारूवा पडिवत्ती लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया। एवं खलु देवाणुप्पिया ! सक्के देधिदे देवराया जाव' एवमाइवखइ, एवं भासइ, एवं पण्णवेइ, एवं परूदेइ एवं खलु देवा ! जवुद्दीवे दीवे भारहे वासे चपाए नयरीए कामदेवे समणोवासए पोसहमालाए पोसहिए बंभचारी उम्मुक्कमणिसूबण्ण ववगयमालावण्णगविलवण निक्खित्तसत्थमसले गे गती रोवगए समणस्रा भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता ण विहरह। नो खलु से सक्के केणइ देवेण वा दाणवेण वा जखेण वा रक्खसेण वा किन्नरेण वा किंपुरिसेण वा महोरगेण वा गंधव्वेण वा निग्गंथानो पावयणाम्रो चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए वा। ताए णं अहं सक्कस्स देविदस्स देवरण्णो एयमÉ असद्दहमाणे अपत्तियमाणे अरोएमाणे इहं हव्वमागए । तं अहो णं देवाणुप्पियाणं इड्डी जुई जसो वलं वीरियं पूरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्त अभिसमण्णागए । तं दिट्टा णं देवाणुप्पियाण इड्री जूई जसो बलं वीरियं पुरिसक्कार-परक्कमे लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए । तं खामेमि ण देवाणुप्पिया ! खमंतु णं देवाणुप्पिया ! खंतुमरिहंति णं देवाणप्पिया ! नाई भज्जो करणयाए त्ति कटु पायवडिए पंजलिउडे एयमद्रं भज्जोमज्जो खामेइ, खामेत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए । से नणं कामदेवा ! अट्ठ समढे? हंता अस्थि ॥ भगवया कामदेवस्स पसंसा-पदं ४६. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे बहवे समणे निग्गंथे य निगंथीयो य ग्राम तेत्ता एवं वयासी-जइ ताव अज्जो ! समणोवासगा गिहिणो गिहमज्भावसंता दिव्व-माणुस-तिरिक्खजोणिए उवसगे सम्म सहति' 'खमंति तितिक्खंति १. उवा० २१४०1 २. सं० पा०-सहति जाव अहियाति । Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३८ उवासगदसाओ अहियासेति, सक्का पुणाई अज्जो ! समणेहि निगंथेहि दृवालसंगं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहि दिव्व-माणुस-तिरिव खजोणिए उवसग्ग सम्मं सहित्तए' 'खमि त्तए तितिक्खित्तए ° अहियासित्तए॥ ४७. ततो ते बहवे समणा निग्गथा य निग्गंथीयो य समणस्स भगवनो महावीरस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेति ।। कामदेवस्स पडिगमण पदं ४८. ता णं से कामदेवे समणोवासए हट्टतटु चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमण स्सिए हरिसवस-विसप्पमाहियए° समणं भगवं महावीरं पसिणाई पुच्छइ, अट्ठमादियइ, समणं भग' महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता जामेव दिस पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए। भगवनो जणवविहार-पदं ४६. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ चंपायो नयरीनो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ कामदेवस्स उवासगपडिमा-पडिवत्ति-पदं ५०. तए' णं से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ ॥ ५१. 'तए ण से कामदेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्च सम्मं काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तइ पाराहेइ ।। ५२. तए णं से कामदेवे समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचमं, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवम, दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिम प्रहासुत्तं अहाकप्पं अहामगं अहातच्च सम्म कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५३. तए ण से कामदेवे समणोवासए इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेण पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। कामदेवस्स अणसण-पदं ५४. तए णं तस्स कामदेवस्स समणोवासयस्स अण्णदा कदाइ पूवरतावरत्तकाल १. सं० पा०-सहित्तए जाव अहियासित्तए। २. सं० पा०-हट्टतुटू जाव समण । ३. तपो (क, ग, घ)। ४. सं० पा०-विहरइ तएणं । Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बोअं अभय (कामदेवे ) ४३६ समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स श्रयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुपज्जित्था - ' एवं खलु श्रहं इमेणं एयारूवेणं श्रोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं प्रत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार - परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, 'जावता मे प्रत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्ल पाउपभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलं ते अपच्छिममा रणतियसंलेणा भूसणा-भूसियस्स भत्तपाण- पडियाइ क्ख़ियस्स कालं श्रणवखमाणस्स विहरितए एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिपयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसले हणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण -पडियाइविखए कालं प्रणवखमाणे विहरइ ॥ कामदेवस्स समाहिमरण-पदं ५५. तए णं से कामदेवे समणोवासए बहूहि' सील-व्वय-गुण- वेरमण-पच्चवखाणपोस होववासेहिं प्रप्पाणं भावेत्ता वीस वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एवकारस य उदासगपडिमा सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ता भूमित्ता, सट्ठि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, थालाइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिमगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थिमे णं ग्ररुणाभे विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं श्रत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिप्रोमाई ठिई पण्णत्ता । कामदेवस्स वि देवरस चत्तारि पलिश्रोमाई ठिई पण्णत्ता ॥ ५६. से णं भंते! कामदेवे ताओ' देवलोगाश्रो ग्राउक्खएणं भववखणं ठिइक्खएणं अनंतरं चयं चइत्ता कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिह मुच्चिहि सव्वदुक्खाणमंतं काहि || निक्खेव पदं ५७. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स मट्ठे पण्णत्ते ॥ १. उदा० १।५७ । २. सं० पा० - बहूहि जाव भावेत्ता । ३. अप्पार्ण (क, ख, ग, घ ) ४. तओ चेव ( ख ) | ५. सं० पा०- निक्खेवो । Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयण चुलणोपिता उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं दोच्चस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, तच्चस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अटे पण्णत्ते ? ० चुलणोपियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी। कोट्ठए' चेइए । जियसत्तू राया ॥ ३. 'तत्थ णं वाणारसीए नयरीए चुलणीपिता' नाम गाहावई परिवसइ-ग्रड्ढे ____ जाव' बहुजणस्स अपरिभूए ।। ४. तस्स णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीयो निहाणपउत्तानो, अट्ठ हिरण्णकोडीअो वडिपउत्तानो, अट्ठ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्तानो, अट्ट वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।। ५. से णं चुलणीपिता गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे, पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य ण कुटुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डाबए यावि होत्था। हा १. सं० पा०-उक्खेवो। २. ना० ११७। ३. क्वचित् कोष्ठकं चैत्यमधीतं क्वचिन्महा कामधनमिति (७)। ४. सं० पा०--तत्य णं वाणारसीए चुलणिपिया नाम गाहावई परिवसई अड्ढे सामा भारिया अटू हिरण्यकोडीमो निहाणपउत्ताओ अद्र वड्ढिय ° अट्ठ पवित्थरप °। अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएण वएणं जहा आणदो ईसर जाव सवकज्जवड्ढावए यावि होत्था । ५. चुलणिपिता (ग, घ)। ६. उवा० ११११ । ७,८. उवा० १११३ । ४४० Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) ६. तरस णं चुलणीपियस्स गाहावइस्स सामा' नाम भारिया होत्था-- अहीण पडिपुरण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ° ॥ महावीर-समवसरण-पदं ७. “तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव वाणारसी नयरी जेणेव कोट्टए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिहित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया । ६. कुणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुवासइ ।। १०. ताणं से चुलणी पिया गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे- "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुब्बि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए बहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिछिहत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो! देवाणुपिया! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमसण-पडिपुच्छणपज्जवासणयाए ? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुक्यणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगव महावीर वदामि णमसामि सक्कारांम सम्मामि कल्लाणं मंगल दवयं चेइयं पज्जवासाभि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहाए कयबलिकम्मे कयकोउय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालकियसरीरे सयानो गिहारो पडिमिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकारटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवमगुरापरिखित्ते पादविहारचारेण बाणारसि नरि मज्झमझणं निम्गच्छइ, निच्छित्ता जेणामेव कोटुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसाइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलि उडे पज्जुवासइ॥ १. सीमा (ख)। २. उवा० १११४ । ३. सं० पा०—सामी समोसढे । चूलणीपिया वि जहा आणदे सहा निग्मओ । तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयमपुच्छा। तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए। ४. ओ० सू० १६, २२ । ५. ओ० सू० ५३-६६ । Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४२ उवासगदसाओ ११. तए णं समणे भगवं महावीरे चुलणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहा लियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए । चुलणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए ण से चुलगीपिता गाहावई समणस्स भगवनो महावो रस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवसविसप्पमाणहियए उठाए उट्ठइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिण करइ, करेत्ता वदइ णमसइ, वदित्ता णमसित्ता एवं बयासी - सद्दहामि ण भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निगंथ पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गथं पावयणं, अब्भुट्ठमि पं भते ! निगथ पावयणं । एवमेयं भते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भते ! असदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पांडाच्छयमेयं भते । स जहेय तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए वहवे राईसर-तलवर-माउंवियकोडुबिय-इन्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगारामा अणगारियं पव्व इत्तए । अहं ण देवाणुप्पियाण अतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं -दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ १४. तए णं से चुलणीपिता गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए' सावय धम्म पडिवज्जइ॥ भगवनो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसोए नयरीए कोट्टयानो चेइयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। चलणोपियस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायछणेणं ओसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ॥ ३. उवा० ११५५। १. प्रो० सू० ७१-७७ ।। २. पू०.-उवा० ११२४-५३ । Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) सामाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा सामा भारिया समणोवासिया जाया---अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निगथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएण पडिलाभेमाणी विहरइ ॥ चुलणोपियरस धम्मजागरिया-पदं १८. ताणं तम्म चुलणोपियस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चवखाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराई वीइक्कताई। पण्ण रसमरस संवच्छ रस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमर्यास धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिाए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जिया-एवं खलु अहं वाणा रसीए नयरीए बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेण वक्लेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स प्रतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए॥ १६. ताणं से चुलणीपिता समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च यापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणारसि नयरिं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसाल पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दव्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दव्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी' •उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दभसंथारोवगए ° समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसपज्जित्ता ण विहरइ ।। चलणोपियस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स पुवरत्तावरत्तकालसमयसि एगे देवे अंतिय पाउन्भूए । • जेट्टपुत्त २१. तए णं से देवे एग महं नीलुप्पल - गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं १. उवा० ११५६ । ६. द्वितीयाध्ययनस्य विंशतितमे सूत्रे अस्याग्रे २,३. उवा० १६१३ । ___ 'मायी मिच्छदिट्ठो' एतद् विशेषणद्वयं विद्यते । ४. पू०-उवा० ११५७-५६ । ७. सं० पा०-नीलुप्पल जाव असि । ५. सं० पा०-बंभयारी समणस्स । Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४४ उवासगदसाओ असि महाय चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया' ! •अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउसिया ! सिरि- हरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्खकामया ! धम्मकखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकखिया ! मोक्ख कखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सम्गपिवासिया ! मोवखपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई क्याई वेरमणाइ पच्चक्खाणाइ पोसहाववासाइ चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुभं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज जेट्टपुतं 'सानो गिहाओ" नीणेमि नीणेत्ता तव श्रभ्यग्रो घाएमि, घाएत्ता तो मससोल्ले करोमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि हेमि', दत्ता तव गायं मंसेन य सोणिएणय आइंचामि', जहा णं तुमं श्रट्ट-दुहट्ट - सट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि ॥ २२. तए से चुलणी पिता समणोवासए तेणं देवणं एवं वृत्ते समाणे श्रभीए' तत्थे अणुव्विग्गे ग्रखुभिए अचलिए असभंते तुसिणीए धम्मभाणोवगए विहरइ ॥ २३. तए गं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं श्रभीयं तत्थ अणुव्विग्गं अखभियं अलि असंत सिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासिता दोच्चं पि तच्च पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया । "जाव" जड़ गं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं प्रज्ज जट्टपुत्तं साओ गिहाम्रो नीर्णम, नीर्णत्ता तव ग्रग्गओ घाएमि, घाएत्ता तथा मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेमि, श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सांगिएण य श्राईचामि, जहा णं तुमं ग्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चैव जीविया ववरोविज्जसि || २४. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे श्रभीए जाव" ० विहरइ ॥ १. सं० पा०- - समणोवासया जहा कामदेवो जाव न भजेसि । २. ततो ( क ); तम्रो ( ख ) 1 ३. सातो महातो ( क ग ); सातो गिहाम्रो (घ) । ४. ततो ( क ) । ५. दहेमि (ख) 1 ६. आसिचामि ( ख, ग ) । o ७. सं० पा० - अभीए जाव विहरइ । ८. सं० पा० - अभीयं जाव पासइ । ६. सं० पा०-- समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ । १०. उवा० २।२२ । ११. उदा० २।२३ । Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४५ तइयं अन्भवणं (चुलणोपिता) २५. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरते रुद्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स जेट्टपुत्तं हाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गश्रो घाएइ, घाणत्ता तस्रो मंससोल्ले करेइ, करेता ग्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेड, प्रद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ || २६. तए णं से चुलणोपिता समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंड दुक्खं दुरहियास वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिवखइ ग्रहियासेइ || • मज्झिमपुत्त २७. तए गं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुलणीपिवं समणोवासयं एवं व्यासी- हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया ! जाव' जइतुमं प्रज्ज सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई नछड्डेसि न भंजेसि, 'तो ते" अहं श्रज्ज मज्झिमं पुत्तं साम्रो गिहाओ नीर्णेमि नीणेता तव गओ घाम, वाता' 'तम्रो मंससोल्ने करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि nergie मि श्रहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य श्राचामि जहा गं तुमं ग्रह-वसट्टे अकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि || २८. तए गं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ || २६. तए गं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पारित्ता दोच्चं पि तच्च पिचुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी- हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज मज्भ्रिमं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीमि, नीणेत्ता तव ग्रग्गमो घाएमि, घाएत्ता तओ मससोल्ले करेमि, करेत्ता प्राणसरियस कडाइयंसि अहेमि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य १. उवा० २१२४ । २. यत्र उत्तमपुरुषक्रियाप्रयोगस्तत्र सर्वत्रापि 'साओ गिहाओ' इतिपाठो लभ्यते । यत्र च प्रथमपुरुषक्रियाप्रयोगोस्ति तत्र केवलं 'गिहाओ' पाठो लभ्यते, किन्तु यत्र श्रमणोपासका: घटितघटनां मनसि चिन्तयन्ति श्रावयन्ति च तत्र 'साओ गिहाम्रो पाठो युज्यते । ३. सं० प० – उज्जल' जाव अहिपासेइ । . ४. उदा० २।२४ । ५. उवा० २।२२ । ६. ततो ते ( क ); ततो ( ख ) । ७. स०पा०- बाएत्ता जहा जेट्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयसंपि जाव अहिया सेइ । ८. उवा० २।२३ । ६. उवा० २/२४ । १०. उवा० २१२२ । Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४६ सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि || ३०. तए णंं से चुलणीपिया समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ || ३१. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासिता प्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुलणीपियस्स समणोवासयस्स मज्झिमं पुत्त गहाम्रो नीणेइ, नाणेत्ता अग्गश्रो घाएइ, घाएता तम्रो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहे, ग्रहहेत्ता चुलगी पियस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ ॥ ३२. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ || उदासगदसा • कणीसपुत्त ३३. तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुलायिं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिता ! समणोवासया ! जाव' जइ गं तुमं श्रज्ज सोलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई छडेसि न भंजसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्ग धाएमि, घाएता तो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियंसि काह्यंसि हेमि, अहेता तत्र गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेत्र जीवियाश्र ववरोविज्जसि 11 ३४. तए गं से चुलणोपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ || ३५. तए णं से देवे चुलणोपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि चुलणोधियं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीविता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं श्रज्ज सोलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खागाई पोसहोववासाइ न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं साथ गिहाम्रो नोणेमि, नोणत्ता तव अग्गश्रो धाएमि, धाता तम्रो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाह्यंसि ग्रहेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण १. उवा० २।२३ । २. उवा० २२४ । ३. उवा० २।२७ । ४. उदा० २।२४ ५. उवा० २१२२ । ६. उवा० २१२३ । ७. उवा० २१२४ । ८. उवा० २१२२ । Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४७ तइयं अज्झयण (चुलणीपिता) य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ३६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वुत्ते समाण अभीए जाव' विहरइ ! ३७. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पास इ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुटे कुविए चंडिविकाए मिसिमिसीयमाणे चुलगी पियस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाम्रो नीणे इ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करे इ, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडायसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुलणीपियस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोणिएण य प्राइंचइ ।। ३८. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। ° भद्दा सत्यवाही ३६. तए णं से देवे चुलणीपियं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता च उत्थं पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! चुलणीपिया! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम 'अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छडेसि ° न भंजेसि, 'तो ते'' अहं अज्ज जा इमा माया भद्दा सत्थवाही देवतं 'गुरु-जणणी" 'दुक्कर-दुक्करकारिया तं" सानो गिहायो नीणे मि, नीणेत्ता तव अग्गयो धाएमि, घाएत्ता तो मससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अइहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेणं य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरो विज्जसि ।। ४०. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्तं समाणे अभीए जाव विहरइ ।। १. उवा० २।२३ । २. उवा० २।२४ । ३. उवा० २१२७ । ४. उवा० २१२४ । ५. उदा० २२२। ६. सं० पा०--नुमं जावन भंजेसि । ७. तओ (ख, ग)। 5. इमा तव (क्व)। ६. गुरुजणणी (क); गुरु जणणी (ख, ग) ! १०. दुक्करकारिया (ग)। ११. तं ते (क, ख, ग, घ); डा० ए० एफ० रुडोल्फ होरनल द्वारा प्रस्तुतसूत्रस्य पाठसंशोधनप्रयुक्तादशेषु एकस्मिन् आदर्श 'ते' पाठो नोपलभ्यते । तदाधारण अस्माभिरत्र तस्याग्रहणं कृतम् । १२. उवा० २।२३। Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४४८ उवासगदसाओ ४१. तए णं से देवे चुलणी पियं समणो वासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुलणी पिता ! समणोवासया ! •जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा माया भद्दा सत्थवाही देवतं गुरु जणणी दुक्कर-दुक्करकारिया, तं सानो गिहारो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तो मससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिरण य प्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो' ववरो विज्जसि ॥ चुलणीपियस्स कोलाहल-पदं ४२. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासयस्स तेण देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- अहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाई कम्माई समाचरति', 'जे णं ममं जेटुं पुत्तं सानो गिहामो नीणे इ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता' 'तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाह्यसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं मायं मयेण य सोगिएण य ग्राईचइ, 'जे णं मम" मज्झिम पुत्तं साओ गिहाम्रो नीणेइ, नोणेत्ता मम अग्गो घाएइ, धाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाह्यसि अद्दहेइ, अहहेत्ता मम गायं मंसेण य° सोणिरण य प्राइंचइ, जे णं मम कणीयसं पुत्तं साओ गिहाओ'' 'नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अहहेइ, अदहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएण य° प्राइंचइ, जा वि य णं इमा' मम माया भन्दा सत्थवाही देवतं 'गुरु-जणणी'? दुक्कर-दुक्करकारिया, तं पि य णं इच्छइ" सामो गिहाओ नीणेत्ता मम अग्गो घाएत्तए-तं सेयं खलु मम एयं पुरिसं गिण्हित्तए १. उवा० १२४ । ७. सं० पा० --धाएत्ता जहा कयं तहा विचितेइ २. सं० पा०–समगोवासया तहेव जाव बवरो- जाव गायं । विज्जसि । ८. जेणेव मम (क, ख, ग, घ)। ३. उवा० २।२२। ६. सं० पा०-गिहाओ जाव सोणिएण। ४. सं० पा०-इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था । १०. सं० पा०.--गिहाओ तहेव जाव आइंचद्द । ५. समातरति (क, ग); समायरइ (ख, )। ११. इमं (ख)। ६. जेण (ग)। १२. गुरु जणणी (क, ख, ग, घ)। १३. इच्छेति (ग)। Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झयणं (चुलणीपिता) ४४६ त्ति कटु उद्धाविए', से वि य आगासे उप्पइए, तेण च खंभे आसाइए, महया मया सद्देणं कोलाहले कए ।। भद्दाए पसिण-पदं ४३. तए णं सा भद्दा सत्थवाही तं कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव चुलणीपिया समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ', उवागच्छित्ता चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी-किण्णं पुत्ता ! तुम महया-मया सद्देणं कोलाहले कए ? चुलणी पियस्स उत्तर-पदं ४४. तए ण से चुलणीपिया समणोवासए अम्मयं भई सत्थवाहिं एवं वयासी-एवं खलु अम्मो ! न याणामि के वि पुरिसे प्रासुरत्ते' रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एग मह नीलुप्पल"- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असि गहाय ममं एवं वयासो-हंभो! चुलणीपिया! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेटुपुत्त सानो गिहारो नीणेमि, नोणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता तो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अद्दहेत्ता तव' गायं मंसेण य सोणिएण य आईचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ° ववरोविज्जसि। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव" विहरामि ।। तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी -हंभो! चुलणीपिया ! समणोवासया ! 'जाव" जइ णं तुम प्रज्ज सोलाई बयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो जाव" तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि । १. उट्ठाइए (ख); उट्ठाएइत्ते (घ); डा० ए० ६. समणोवासया अपत्थिय-पत्थिया ! ४ (क)। एफ) रुडोल्फ होरनल संपादिते पुस्तके ७. उवा० २।२२ । प्रस्तुतसूत्रे ‘उट्ठाइए' इति पाठः स्वीकृतोऽस्ति, ८. सं० पा०--तुमं जाव ववरोविज्जसि । लिपिजनितभ्रम कारणेन बहुषु आदर्शषु मुद्रित- ६. देवेणं (क, ख, ग, घ); अस्मिन् सूत्रे सर्वत्र । पुस्तकेषु च 'उद्धा' स्थाने 'उट्ठा' एव लभ्यते । १०. उवा० २।२३। अग्रे 'भग्गवए' इति पाठस्य व्याख्यायां वृत्ति- ११. उवा० २।२४ । कारेणापि 'उद्धावनात्' इति उल्लिखतमस्ति । १२. स० पा०--समणोवासया तहेव जाव गाय २. य (घ)। प्राइंच। ३. उवागते (क)। १३. उवा० २०२२ । ४. आसुरुते (ग, ध)। १४. उवा० २२२। ५. सं० पा०--नीलुप्पल जाव असि । Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५० उवासगदसाम तरणं श्रहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समागे अभीए जाव' विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं प्रभीयं जावरे पासइ, पासिता आसुरते रुट्ठे कुविए डिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेट्ठपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तम्रो मंससोल्ले करेइ, करेता प्रदानभरिति कडाहसि हे अत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ | तगुणं अहं तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि ग्रहियासेमि । "एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि हियामि । एवं कणीयसं पुत्तं जाव' वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियामि । f- o तए से पुरिसे ममं ग्रभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासीहंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुमं अज्ज सोलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज जा इमा माया देवतं गुरु-जणणी दुक्कर- दुक्करकारिया, तं साओ गिहाओ नीम, नीणेत्ता तव अग्गग्रो घाएमि, घाएता तम्रो मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणरियसि कडाहुह्यसि ग्रहंमि, महेता तव गायं मंसेण य सोगिएणय आइंचामि, जहा णं तुम ग्रट्ट दुहट्ट-वसट्ट ग्रकाले चेव जोवियाग्रो ववरोविज्जसि । Q तणं श्रहं तेणं पुरिसेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव" पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि ममं एवं वयासी - हंभो ! चुलणीपिया ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुमं ग्रज्ज" "सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न १. उवा० २।२३ । २. उवा० २।२४ । ३. सं० पा० - उज्जलं जाव अहियासेमि । ४. उवा० २।२७ । ५. सं० पा० - एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीसं जाव आइंचइ । अहं तं उज्जलं जाव अहियामि । ६. उवा० ३।२७-३२ । ७. उदा० ३।३३.३८ । ८. उदा० २।२४ । ६. सं० पा०-- समणोवासया अप्पत्थियपत्थिया जाव न भजेसि । १०. उवा० २।२२ । ११. सं० पा०-- गुरु जाव ववसेविज्जसि । १२. उवा० २।२३ । १३. उदा० २१२४ । १४. उवा० २१२२ । १५. सं० पा० - अज्ज जाव ववरोविज्जसि । Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं अज्झणं (चुणीपिता) ४५१ भंजेसि, तो जाव तुमं दु-वसट्टे का चेक जोवियाओ क्रोविज्जसि ।। तणं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूत्रे ग्रज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - ग्रहो णं इमे पुरिसे प्रणारिए' प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पाबाई कम्माई समाचरति, जे गं ममं जेट्टं पुत्तं सा गिहाम्रो नीणेह, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता तमससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कडाहयंसि श्रई, अहेता ममं गायं मंगेण य सोणिएण य आइंचइ, जेणं ममं मज्झिम पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएता तम्रो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रदा भरियंसि कडाहयंसि ग्रहेइ, श्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे गं ममं कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाता तो मंससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रादागभरियंसि कडाहसि हे ग्रहेत्ता ममं गायं संसेण य सोणिएग य श्रइंच, तुब्भे वि य णं इच्छइ साम्रो गिहाम्रो नीणेत्ता मम अग्गग्रो घाएत्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिमं गति तिकट्टु उद्धाविए । सेविय श्रागासे उप्पइए मए विय खंभे आसाइए, महया मया सद्देणं कोलाहले कए || पायच्छित-पदं ४५. तए णं सा भद्दा सत्थवाही चुलणीपियं समणोवासयं एवं वयासी - तो खलु केइ पुरिले तव' 'जेट्ठपुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिये तव मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाओ नीइ, नीणेता तव श्रग्गयो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता as are ares, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेड, एस गं तुमे विदरिणे दिले । तं गं तुमं इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । 'तं ण" तुमं पुत्ता ! एयस्स ठाणस्स ग्रालोएहि' 'पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि प्रकरणयाए अभुद्वाहि ग्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि ॥ ४६. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए अम्माए' भद्दाए सत्यवाहीए तह त्ति एमट्ठे विणणं पडणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स श्रालोएइ' 'पडिक्कमइ १. सं० पा० - प्रणारिए जाव समाचरति 1 २. सं० पा०-- गिहाओ तहेव जाव कणीयसं जाव आइचर | ३. सं० पा० तव जाव कणीयसं । ४. विइरिस (ग) 1 ु ५. तणं (क); तेणं (घ) 1 ६. सं० पा० - आलोएहि जाव पडिवज्जाहि । ७. अम्मगाते ( ग, घ ) 1 ८. सं० पा० - आलोएइ जाव पडिवज्जइ । Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५२ उवासगदसाओ निदइ गरिहइ विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुढेइ अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जइ ।। चुलणीपियस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं उबसंपज्जित्ता णं विहरइ ! ४८. "तए णं से चुलणीपिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामगं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ४६. ताण से चलणीपिता समणोवासए दोच्चं उवासरापडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवम, दसम एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामगं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ° ।। ५०. तए णं से चुलणीपिता समणोवासए तेणं' अोरालेणं'विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । चुलणोपियस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स चुलणीपियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जाग रमाणस्स अयं अज्झत्थिाए चितिए पत्थिर मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे वले वीरिए पूरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अस्थि उटाणे कम्मे बले वीरिए पूरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्रियम्मि सरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-भूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा - - --- --- १. सं० पा०पढम उवासगपडिम अहासुत्तं ४ ३. सं० पा.-उरालेणं जहा कामदेवे जाव जहा आणंदो जाव एक्कारस वि। सोहम्मे। २. अस्य स्थाने ११६४ सूत्रे 'इमेणं एयास्वेणं' ४. उवा० ११५७ ॥ पाठो विद्यते । Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तइयं श्रझयणं (चुलणीपिता) ४५३ जलते ग्रपच्छिममारणंतियसंलेहणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण -पडिया इखिए कालं प्रणवखमाणे विहरइ ॥ चुलो पियस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से चुलगोपिता समणोवासए बहूहि सोल- व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपाहावाहि अप्पाणं भावेत्ता, वोसं वासाई समणोवासगपरियागं पाणिता, एक्कारस य उवास गपडिमा सम्भं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं भूसित्ता, सद्वि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, श्रालोइयपक्कि समाहिते कालमासे कालं किच्चा • सोहम्मे कप्पे सोहम्मवडिस - गस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरत्थि मे गं श्ररुणप्पभं विमाणे देवत्ताए उववण्णे । चत्तारि पलिव माई ठिई पण्णत्ता | महाविदेहे वासे सिज्झिहिर बुज्झिहिइ मुच्चिहि सव्वदुक्खाणमंत काहिइ || निक्लेव-पदं ५३. एव खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं तच्चस्स यणस्स मट्ठे पण्णत्ते || o १. सं० पा०—निक्खेवो । Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं सुरादेये उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं तच्चस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, चउत्थस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के पट्टे पण्णते ° ? सुरादेवगाहावइ-पद २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं वाणारसी नामं नयरी । कोट्टए चेइए । जियसत्तू राया ।। ३. तत्थ णं वाणारसीए नयरीए सुरादेवे नाम गाहावइ परिवसइ अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स ण सुरादेवस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तानो, छ हिरणकोडीमा बडिप उत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउत्तानो, छ व्बया दसगोसाहस्सिएणं वएण होत्था ॥ ५. से णं सुरादेवे गाहावई वहूर्ण जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपच्छणिज्जे, सयस्स वि यणं कुडुवस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवडावए यावि होत्था ।। १. स. पा.-उसेवो। स। जहा प्राणदो तहेव पडियज्जइ गिहि२. मा० १.१७ धम्मं । जहा कामदेवो जाव समणरस । ३. कामधनम् (वृपा)। ५. उवा० ११११ ४. सं. पा.-तुरादेवे गाहावइ अड्ढे । छ ६. उवा० १११३ । हिरणकोडीग्री जान छ या दसगोपाहस्सि- ७. उवा० १११३ । एणं वएणं तस्स धन्ना भारिया सामी समो ४५४ Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४५५ ६. तस्स णं सुरादेवस्स गाहाव इस्स धना नाम भारिया होत्था- अहीण-पडिपुष्ण पंचिदियसरीरा जाव माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं तेणं कालेणं देणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जणव वाणारसी नयरी जेणेव कोदए चेइए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रहापडिरूवं प्रोग्गह प्रोगिण्हत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।। ८. परिस! निग्गया ।। ६. कणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से सुरादेवे गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे—“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुदवाणपब्दि चरमण गामाणगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव वाणारसीए नयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिम्वं प्रोग्गहं ओगिछिहत्ता संजमेण तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ।" सं महत्फलं खलु भो ! देवाण प्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-बंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासम्णयाए ? एगरस वि आरियरस धम्मियरस सुवयणरस सवणयाए, किमंग पुण विउलरस अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्भाणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेता रहाए कयवलिकम्मे कयकोउय-मंगलपायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहाम्रो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं वाणारसिं नयरि मज्झमझेणं निगच्छइ, निगच्छित्ता जेणामेव कोटुए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे,तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ मसइ, बंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलि उड़े पज्जुवासइ॥ ११. तए णं समणे भगवं महावी रे सुरादेवस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए। १. उवा० १।१४। २. ओ० सू० १६, २२ । ३. ओ० सू० ५३-६६ । ४. ओ० सू० ७१-७७ । Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५६ उवासगदसाओ सुरादेवस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए ण से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुटू-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसबस-विसप्पमाणहियए उडाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निगंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इन्भ-सेटिसेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पवइया, नो खल ग्रह तहा सचाएमि मडं भवत्ता अगाराआअणगरिय पव्वइत्तए । ग्रहण देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्व इयं सत्तसिक्खावइयंदुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ १४. तए णं से सुरादेवे गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए' सावयधम्म पडिवज्जइ।। भगवनो जणवय विहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ वाणारसीए नयरीए कोयानो चेइयाो पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्ख मित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। सुरादेवस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ धन्नाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा धन्ना भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह ३. उवा० ११५६ । १. पू०-उवा० १२४-५३॥ २. उवा० ११५५ । Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अभयणं (सुरादेवे ) कंबल - पायपुंछणेण श्रोसह-भे सज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-पलग-सेज्जासंथारएणं पडिला माणी विहरइ || सुरादेव धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्यय-गुण-वेरमणपच्चक्खाण-पोस होववासेहि अप्पा भावेमाणस्स चोट्स संवच्छराई वीइक्केताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरतावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे प्रज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु ग्रहं वाणारसीए नयरीए बहूणं जाव पुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचामि समणस्स भगव महावीरस्स प्रतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए' || १६. तए णं सुरादेवे समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि- परिजन च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वाणासि नयर मज्झमज्भेणं निग्गच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेइ, पडिलेहित्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहर, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे वयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अवीए दब्भसंथारोवगए' समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतियं धम्मपणत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ || सुरादेवस्त देव-कय-उवसग्ग-पदं o २०. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्ताव रत्तकालसभयंसि एगे देवे प्रतियं पाउब्भवित्था || ४५७ • जेट्टपुत २१. तए से देवे एगं महं नीलुप्पल'- गवलगुलिय-अयसि कुसुमप्पगासं खुरधारं • असि महाय' सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया' ! दुरंत-पंत-लक्खणा ! हीणपुण्णचाउसिया ! १. उवा० १।१३। २. उवा० १।१३ । ३. पू० – उबा० १।५७ - ५६ । ४. सं० पा० - नीलुप्पल जाव असि । ५. द्वितीयाध्ययनस्य द्वाविंशतितमे सूत्रे निम्न लिखितः पाठोतिरिक्तो विद्यते - जेणेव पोसहसाला जेणेच कामदेवे समणोवासए, तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता प्रासुरते रुट्ठे कुविए चंडिfear मिसिमिसीयमाणे कामदेव' | ६. ० पत्थिया ४ ( क, ख, ग, घ ) । Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५८ उवासगदसायो सिरि-हिरि-घिइ-कित्ति-परिवजिया ! धम्म कामया ! पप्णकामया! सग्गकामया! मोवलकामया! धम्मकंखिया ! पुग्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सम्पपिवासिया ! मोदखपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चदखाणाई पोसहोयवासाई चालित्ताए बा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्ता वा परिचइत्ताप वा, तं जइ णं तुम अज्ज सीलाई •वयाई वेरमणाई पच्चयखाणाई पोसहोवासाई न छड्डेसि ° न भंजसि, तो ते अहं अज्ज जेटपर साम्रो गिहात्रो नीम, नीणत्ता तव अग्गयो घाएमि घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेन, करेता यादाणकारियसि काहय सि अहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण यसो गहण र भाईचाम, जहाणं तुम 'अट्ट-दुहट्ट वसट्टे अकाले चव जीवियाग्रो ववरोविज्जति ॥ २२. तए ण से सुरादेवे समणोवासए तेण देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अणबिग्गे अखुझिए अचलिए असंभ तुसिणीस धम्मज्झाणोवगए बिहरइ ।। २३. तए ण से देवे सुरादेवं समणीवासवं अमाय अतत्थं अणु विग्गं अभियं अच लियं असतं तुसिणीयं धम्मनायोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्चं पि सुरादेवं रामणोवासथं एवं क्यासी- हभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ ण तुमंजज्ज संलाई बयाई वेरमगाई पच्चक्खाणाई पासहोववासाई न छड्डुसि न मजमि, तो ते अहं अज्ज जट्टपुत्त सानो गिहाम्रो नीणभि. नीणेत्ता तव अम्मा पाएमि, धाएत्ता पंच मंसशील्ले करेमि, करेत्ता ग्रादाणभरियसि कडायसि अद्दहेमि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइचााम, जहा ण तुग अट्ट-दुहट्ट-सट्ट अकाल चव जावियानो ववरो विज्जसि॥ २४. तए ण से सुरादेवे समणोवासए तेणं वेगदाचं पितञ्च पि एवं वृत्त समाण अभीए जाब विहरइ ।। २५. तए णं से देवे सुरादेवं सनणोवासयं अभीय जाव' पासइ, पासित्ता प्रासूरते रुद कूविए चंडिक्किए, मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स जेट्टपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नोणेत्ता अग्गयो पाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अइहेइ, अइहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचइ॥ १. स. पा.--सोलाइं जावन भंजेसि । णीपियरस, नवरं एक्केरके पंच सोल्लया ! २.४ (क, ख, ग, घ)। ४. उवा० रा२२ । ३. सं० पा० एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्के- ५. उवा० २.२३ । के पंच सोल्लया। तहेव करेइ, जहा ६. उवा० २१२४ । Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ च उत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) ४५६ २६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं विउलं कवकसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियासं वेयण सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। मज्झिमपत्त २७. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरादेव समणीवासयं एवं बयासी- हभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवसाणाई पोसहोववासाई न छड्डुसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिम पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणे मि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडायसि अद्दहेमि, अइहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिाण य आइंचामि, जहा ण तुमं अदृ-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। २८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेण एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। २६. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाइ वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मझिम पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गनो धाएमि, धाएता पंच मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुम पट्ट-दुहट्ट-वराटे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरो विज्जसि ।। ३०. तए णं मे सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ॥ ३१. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुटे कुविए चडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स मज्झिम पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणत्ता अग्गयो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडायंसि अद्दहेइ, अइहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मरोण य सोणिएण य ग्राइंचह ।। ३२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। १. उवा० २।२४ ॥ २. उवा० २।२२। ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २१२४॥ ५. उवा० २२२ 1 ६. उवा० २।२३ । ७. उवा० २१२४ । ८. उवा० २२७ । Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६० उवासगदसामो कणीयसपुत्त ३३. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो पाएमि, घाएत्ता पंच मससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गाय मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ३४. तए ण से सुरादेवे समगोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ३५. तए णं से देवे सुरादेव समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी–हभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई बयाई वेरमणाई पच्चखाणाई पोसहोववासाई न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्त सानो गिहामओ नाणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेमि, करेता आदाणभरियसि कडाह्य सि अहहेमि, अहहेत्ता तव गाय मसेण य सोगिएण य प्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरो विज्जसि ।। ३६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ३७. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसोयमाणे सुरादेवस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहानो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेइ, अइहेत्ता सुरादेवस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोणिएण य आइंचइ। ३८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। १. उवा० २।२४। २. उवा० २॥२२॥ ३. उवा० २१२३ ४. उवा० २।२४। ५. उवा० २।२२। ६. उवा० २१२३ । ७. उवा० २।२४। ८. उबा० २०२७ । Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं प्रज्झयणं (सुरादेवे) ४६१ सोलसरोगायंक ३६. तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता च उत्थं पि सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि', तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायके पक्खिवामि, [तं जहा-१. सासे २. कामे ३. 'जरे ४. दाहे ५. कुच्छिसूले ६. भगंदरे ७. अरिसए ८. अजीरए ६. दिट्ठिसूले १०. मुद्धसूले ११ अकारिए १२. अच्छिवेयणा १३. कण्णवेयणा १४. कडुग १५. उदरे १६. कोढे ।] जहा ण तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ४०. तए णं से सुरादेवे समणोवासा' 'तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' ० विहरइ॥ ४१. "तए णं से देवे सुरादेवं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि मुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी -हंभो! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाइं वे रमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्रेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगायके पक्खिवामि जावर जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ० ववरोविज्जसि ।। सुरादेवस्स कोलाहल-पदं ४२. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्च पि तच्च पि एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिर मणोगए संकणे समुप्पउिजत्था--अहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाइ कम्माई • समाचरति, जे ण ममं जेट्टपुत्तं" सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले" करेइ, करेत्ता आदाण १. उवा० २।२४ । भणइ जाव ववरोविसि । २. उवा० २।२२। १०. उवा० २१२४ । ३. परिच्चयसि (क, ख, ग, घ)। ११. उवा० २।२२ । ४. सरीरस्स (क, ख, ग, घ)। १२. उवा० ४१३६ । १. सं. पा.-कासे जाव कोडे । १३. सं० पा०-अणारिए जाव समाचरति । ६. असो कोष्ठ कवतिपाठः व्याख्यांश: प्रतीयते। १४. सं० पा०-जेट्टपुत्तं जाव कणीयस जाब ७. सं० पा० -समणोवासए जाव विहरइ । आइंच।। ८. उवा० २।२३। १५. मंससोल्लया (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-एवं देवो दोच्चं पि तच्च पि Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ उवासगदाओ भरियंसि कासि अहेर, ग्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचड़, जेणं ममं मज्झिमं पुत्तं साम्रो गिहाओ नीणेइ, नीर्णत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कासि अहेर, ग्रहेत्ता ममं गायं मंत्रेण य सोगिएण य श्राईचइ, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं सा गिहाम्रो नी, नीणेत्ता मम श्रगओ घाएइ, घाएत्ता पंच मससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाह्यंसि प्रदर, अद्दहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएणय आइंचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते वि य इच्छइ मम सरीरंसि पक्विवित्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्टु उद्घाविए, सेविय आगासे उप्पइए, तेण य खभे श्रासाइए, महया मया सणं कोलाहले कछु ॥ धन्नाए पसिण-पदं ४३. तए णं सा धन्ना भारिया कोलाहलसद्द सोच्चा निसम्म जेणेव सुरादेवे समणोवास, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता एवं वयासी - किण्णं' देवापिया ! तुभेणं महया - महया सद्देगं कोलाहले कए ? सुरादेवस्स उत्तर-पदं ४४. तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नं भारियं एवं व्यासी एवं खलु देवापि ! न याणामि के वि पुरिसे' 'आसुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्कए मिसिमिसीयमाणे एवं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय- प्रयसि कुसुमप्पगासं खुरधारं असि महाय समं एवं क्यासी हंभो ! सुरादेवा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भजेसि, तो ते ग्रहं ग्रज्ज जेटुपुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेमि, नीता तव अग्गओ घाम, घाएता पंच मंससोल्ले करेमि, करेता आदाणभरियंसि agift मि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्ट बसट्टे ग्रकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं ग्रह तेणं पुरिमेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । तए गं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासिता ममं दोच्चं पि तच्चं पि १. सरीरगंसि (क) २. कोलाहलं ( क, ख, ग, घ ); ३:४३ सूत्रे 'कोलाहलस' इति पाठो विद्यते । अत्रापि तथैव युज्यते । आदर्येषु संक्षिप्तलेखने 'कोलाहल' पाठो जातः इति प्रतीयते । ३. पिणं तुमं (ग)। ४. सं० पा०-- -- पुरिसे तहे कहेइ जहा चुलणीरिया धन्ना विपडिभगइ जाव कणीयर्स ! ५. उदा० २।२२ ६. उदा० २।२३ । ७. उवा० २।२४ । Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६३ घरस्थं अज्झयणं (सुरादेवे) एवं क्यासी-हंभो ! सुरादेवा! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववामाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तमं अट्ट-दुष्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेण पुरिमेणं दोच्च पि तन्वं पि एवं बुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि। तए णं से पुरिसे मन अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किा मिसिमियमाणे ममं जेपत्तं मिलानो नोणेइ, नोणता मम अपगयो घाएइ, घारत्ता पंच मंससोलने कोइ, करेला प्रादाण गरियंसि कडाहयंसि अहहेइ, अहहेत्ता ममं गाय मंगेण य सोणिराण य नाइचइ । तङ्ण अहं तं उज्जल जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिखामि अहियामि । एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयगं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयस्सं पत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियालेमि । तए णं से परिगे मम अशीगं जाव' पान, पासित्ता ममं च उत्थं भि एवं वयासी-हंभो ! मुरादेवा ! रामणवागया ! जान जर ण म अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चकखाणाई पोलहोत्रासाई न हड्डेसि न भजेसि, तो ते अह अज्ज सरोरसि जमगरा मगमेव सोलस रोगाने पविन्धवामि जाब जहा णं तम पद-दहद-वसद अकाने येत्र जीवियायो पवनजसि। तए ण ग्रहं तेण पुरिसेणं एवं वुत्ते समाण शोए जाब विहरामि । तए णं से परिसे मम अभीयं जाव" पास इ, पारित्ता दोच्च पि तच्चं पिम्म एव वयासी-हंभो ! सुरादेवा ! रामणोवासया ! जाव जइ णं तमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चकवाणाई पोसहोववासाई न छईसि न भंजसि, तो ते महं अज्ज सरीरंसि जमगसमगमेव सोलस रोगाय के पक्खिवामि जाव" जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वपट्टे यकाले नेब जावियागो ववरोविज्जसि । तए णं तेण पुरिसेणं दोच्च पि तच्च पि ममं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे १. उवा० ॥२२॥ २. उवा० २।२३ } ३. उवा० २।२४ ॥ ४. उवा० २.२७ । ५. उवा०४।२७-३२ । ६. उवा० ४१३३-३८ । ७. उवा० २।२४ । ८. उदा० २।२२। ६. उवा० ४१३६ । १०. उवा० २.२३ । ११. उवा० २१२४ । १२. उवा० २०२२ । १३. उवा० ४.३६। Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६४ उवासगदसाओ अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- अहो णं इमे पुरिसे प्रणारिए प्रणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जे गं ममं जेट्ठ पुत्तं सा गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता ग्रादाणभरियंसि कडाहयंसि ग्रहेइ, ग्रहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएणय आइंचइ, जे गं ममं मज्झिमं पुत्तं साओ गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घारत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कासि अहेर, अहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जेणं ममं कणीयसंत्तं साम्रो गिहाओ नीणेइ, नीणेत्ता मम अघाएइ, घाएत्ता पंच मंससोल्ले करेइ, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कासि हेइ, अत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य श्राइचइ, जे वि य इमे सोलस रोगायंका, ते विय इच्छइ मम सरीरंसि पक्खिवित्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिसं गिहित्तए त्ति कट्टु उद्धाविए से वि य श्रागासे उप्पइए, मए वि य खंभे ग्रासाइए, महया मया सद्देणं कोलाहले कए || पायच्छित्त-पदं ४५. तए णं सा धन्ना भारिया सुरादेवं समणोवासयं एवं वयासी -- तो खलु केइ पुरिसे तव पुत्तं सा गिहाम्रो नीणेइ, नीर्णत्ता तव अग्गश्रो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव ग्रग्गओ घाइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्त साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव श्रग्गयो घाएइ, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुब्भ' के वि पुरिसे सरीरंसि जमगसमगं सोलस रोगाय के पक्खिवइ, एस णं के वि पुरिसे तुब्भं उवसगं करेइ', एस णं तु मे विदरिसणे दिट्ठे । तं गं तुमं इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भगोसहे विहरसि । तं गं तुमं पिया ! एयस्स ठाणस्स श्रालोएहि पडिक्कमाहि निवाहि गरिहाहि विट्टाहि विसोहेहि प्रकरणयाए अट्ठाहि श्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं पडिवज्जाहि ॥ ४६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए धन्नाए भारियाए तह त्ति एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ fass विसोहेइ प्रकरणयाए अब्भुट्ठेइ ग्रहारिहं पायच्छितं तवोकम्मं पडिवज्जइ ॥ १. यद्यपि 'तुभे, तुब्भ' इत्यादिबहुवचनान्ताः प्रयोगा व्याकरणे यन्ते, तथापि प्रस्तुतागमे एकवचनान्ता अपि प्रयुक्ताः सन्ति । महाशतकाध्ययने २७ सूत्रे 'तुब्भं तुमं, विहरसि' एते प्रयोगाः एकस्मिन्नेव प्रसङ्ग प्राप्ताः सन्ति । २. सरीरगंसि ( क ) । ३. सं० पा० – करेइ | सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेस जहा चुलणीपियस्स निरवसेसं जाव सोहम्मे । Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चउत्थं अज्झयणं (सुरादेवे) सुरादेवस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ४८. तए णं से सुरादेवे समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ।। ४६. तए णं से सुरादेवे समणोवासए दोच्चं उवासंगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवमं, दसमं, एक्कारसं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकायं ग्रहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ पाराहेइ ॥ ५०. तए णं से सुरादेवे समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तबोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमशिसंतए जाए। सुरादेवस्स अणसण-पदं ५१. तए णं तस्स सुरादेवस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव रत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झस्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकणे समुप्पज्जित्या--एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं अत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे मुद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उट्टाणे कम्मे बले वीगि परिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेग, जाव य मे धम्मारिए धम्मावएमए समण भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणोए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-रुसणा-झसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, काल अणवकंखमाणस्स विहरित्तए --एव संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाध रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसले हणा-झसणा-भूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवखमाणे विहरइ ।। सुरादेवस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से सुरादेवे समणोवासए बहूहिं सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्का रस य उवासगपडिमानो सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए १. उवा० ११५७ । Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६६ उबास गदसाओ अत्ताणं भूमित्ता, सहि भत्ताई प्रणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा • सोहम्मे कप्पे अरुणकंते विमाणे उववण्णे । चत्तारि पलिप्रोमाई ठिई । महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुचिचहि सव्वदुक्खाणमंत काहिइ ॥ निक्खेव पदं ५३. एवं खलु जंबू ! समर्पणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं चउत्थस्स अयणस्स मट्ठे पण्णत्ते ॥ ० १. सं० पा०- निक्खेवो । Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं अज्झयण चुल्लमयए उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं च उत्थस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, पंचमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ° ? चुल्लसययगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू! तेणं कालेणं तेणं समएणं आलभिया' नाम नयरी। संखवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया। ३. "तत्थ णं पालभियाए नयरीए चुल्लसयए नाम गाहावई परिवसइ–अड्ढे जाव बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीनो वड्डिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीनो पवित्थरपउत्ताओ, छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं चुल्लसयए गाहावई बहूणं जाव' प्रापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य ण कुटुंबस्स मेढी जाव” सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था ।। ६. तस्स णं चुल्लसययस्स गाहावइस्स बहुला नाम भारिया होत्था--अहीण १. सं० पा०-उक्खेवो। २. ना० १११७ । ३. आलंभिया (क, घ)। ४. सं० पा०-- चुल्लसयए गाहावई अड्ढे जाव छ हिरण्णकोडीओ जाव छ व्वया दसगो साहस्सिएणं बहुला भारिया। ५. उवा० ११११ । ६. उवा० १११३ । ७. उवा० १११३ Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ उवास गदसाओ पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ महावीर - समवसरण - पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव जेणेव आलभिया नयरी जेणेव संखवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं हं ओहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ || ८. परिसा निग्गया || ! ६. कुणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव" गज्जुवासइ || १०. तए णं से चुल्लसयए गाहावई इमी से कहाए लट्टे समाणे- "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इमागए इह् संपत्ते इह समोसढे इहेव आलभियाए नयरीए बहिया संखवणे उज्जाणे अहापरुिवं म्हं योगिण्हत्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।” तं महत्फलं खलु भो ! देवाणुपिया तहाख्वाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किंमग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवा सणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गणयाए ? तं गच्छामि णं देवाप्पिया ! समयं भगवं महावीरं वंदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामि एवं संपेहेइ, सपेहेत्ता हाए कयवलिकम्मे कयकोय-मंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालकियसरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्वग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेण श्रालभियं नयरि मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव संखवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छङ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो याहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ गमंसइ, वंदित्ता णमसित्ता पच्चासरणे णाइदूरे मुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमुहे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासइ || ११. तए णं समणे भगवं महावीरे चुल्लस्ययस्स गाहावइस्स तोसे य महइमहालि - या परिसाए जाव' धम्मं परिकहेइ || १२. परिसा पडिगया, राया य गए । १. उदा० २१२४ । २. सं० पा० - सामी समोसढे जहा आनंदी तहा गिहिधम्मं पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपणति । ३. ओ० सू० १६, २२ । ४. ओ० सू० ५३-६६ । ५. ओ० सू० ७१-७७ । Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पचमं ग्रयणं (चुल्लसय ए ) चुल्लस्ययस्स मिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं चुल्लसयर गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिर धम्मं सोच्चा निसम्म तु चित्तमानंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस - विसप्प माणहियए उट्टाए उट्ठेइ उट्ठेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो श्रायाहिण -पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं व्यासी - सद्दहामि गं भंते! निम्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि गं भंते ! निग्गंथ पावयणं, अव्भुट्ठेमि णं भते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते! से जहेय तुम्भे वदह । जहा णं देवाप्पियाण ग्रंति बहवे राईतर तलवर-माइंबिय को डुविय इ०भ-सेट्ठिसेणावइ सत्थवाहपभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइत्तए । अहं देवाप्पियाणं प्रति पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं - दुवालसविहं सावगधम्मं पडिवज्जिस्सामि । ग्रहासु देवाणुपिया ! मा परिबंध करेहि || १४. तए णं से चुल्लसयए गाहावई समणस्स भगवत्रो महावीरस्स अंतिए सावयधम्मं पडिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार पदं १५. तए गं समणे भगव महावीरे प्रष्णदा कदाइ आलभियाए नयरीए संखवणाम्रो उज्जाणाओ पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ चुल्लसययस्स समणोवासग चरिया. पदं १६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जाए - अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासू - एसणिज्जेण असण- पाणखाइम साइमेण वत्थ-पडिग्गह- कंवलपायपुंछणेण श्रोसह - भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ - फलग - सेज्जा - संथारएण पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ ४६६ बहुलाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा बहुला भारिया समणोवासिया जाया - प्रभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासू- एसणिज्जेणं असण-पाण- खाइम- साइमेणं वत्थ-पडिग्गह १. पू०-११२४ ५३ । २. उवा० १।५५ । ३. उवा० ११५६ । Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७० उवास गदसाओं कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फ.लग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। चुल्लसयय-धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स चुल्लसययस्स समणोवासगस्स उच्चावएहिं सील-व्वय-गुण-वे रमण पच्चक्खाण-पोसहोवकासेहि अप्पाणं भावेमाणस्स चोइस संवच्छराई वीइक्कताई। पण्णरसमस्स संवच्छ रस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं पालभियाए नयरीए बहूणं जाव' यापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए जेटुपुतं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पालभियं नयरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं° धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। चुल्लसयगस्स देव-कय-उवसग्ग-पदं २०. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स पुन्वरत्तावरत्तकालसमयंसि एगे देवे अंतियं 'पा उब्भूए ।। जेपुट्टत्त २१. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं ° असि गहाय एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया' ! 'अप्पत्थियपत्थिया! दुरंत-पंत-लक्खणा! होणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइकित्ति-परिवज्जिया! धम्मकामया! पुण्णकामया ! सग्गकामया ! मोक्ख १. उवा० १११३ । २. उवा० १६१३ । ३. पू०-उवा० ११५७-५६ । ४. सं० पा०-प्रतियं जाव असि । ५. सं० पा०-समणोवासया जाब न भंजेसि । Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) ૪૭૨ कामया ! धम्मखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया ! सग्गपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तइ वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं ग्रज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चवखागाई पोसहोववासाईन छड्डेसि न भंजेसि, तो ते [ अहं ? ] प्रज्ज जेट्ठपुत्तं साओ गिहाओ नोणेमि', 'नीणेत्ता तव अग्गश्रो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्लं करेमि, करेत्ता श्रादाणभरियंसि कडाहयंसि हेमि, ग्रहेत्ता तव गायं मंसेण यसोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट दुहट्ट-वसट्टे प्रकाले चेव जीविया ववरोविज्जसि ॥ २२. तए गं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वृत्तं समाणे अभी तत् विखुभिए चलिए असंभते तुसिणीए धम्मज्भाणोवगए विहरइ || २३. तए णं से देवे चुल्लस्यगं समणोवासयं अभीयं तत्थं अणुव्विमगं प्रखुभियं अचलियं असंभंत तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि चुल्लसययं समणोवासयं एवं वयासी - हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई क्याई वेरमणाई पच्चक्खागाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते ग्रहं अज्ज जेट्ठपुत्तं सा गिहाम्रो नीमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कासि ग्रहेमि, अहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएणय आइंचामि, जहा णं तुमं श्रट्ट दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाश्रो ववरोविज्जसि || २४. तए णंं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पितच्च पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ || २५. तर णं से देवे चुल्लस्यगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरते रुट्ठे कुfar afsfer मिसिमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स जेट्ठपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गग्रो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयसि अहेर, अद्दहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ || २६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडे दुक्खं दुरहियासं वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ श्रहियासेइ ॥ १. सं० पा० - नीणेमि, एवं जहा चुलणीपियं नवरं एक्केक्के सत्त मंसोल्लया जाव कणी यसं जाब आइंचामि । २. उवा० २।२२ । ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २।२४ । Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७२ उवासगदसायो मज्झिमपुत्त २७. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुल्ल सयगं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिम पुत्तं सामओ गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गयो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाण भरियसि कडायसि अद्दहेमि, अइहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आई चामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। २८. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ॥ २६. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं बयासी-हंभो! चुल्लसयया! समणोवासया ! जाव" जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं साओ गिहामो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गयो घाए मि, घाएत्ता सत्त मंसमोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अइहेमि, अइहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्च पि तच्च पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ३१. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पास इ, पासित्ता प्रासुरत्ते रु? कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स मज्झिम पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो पाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडायसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोगिएण य आईचद।। ३२. तए ण से चुल्लसयए समणोवासए तं उज्जलं जाव वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ।। १. उवा० २।२४ 1 २. उवा०२।२२। ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० ॥२४॥ ५. उवा० २।२२। ६. उदा० २।२३। ७. उवा० २।२४ । ८. उवा० २१२७ । Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७३ पंचम अज्झयणं (चुल्लसयए) कणीयसपुत्त ३३. तए ण से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चुल्ल सयग समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोवयासाई न छ?सि न भंजेसि, तो ते ग्रह अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहारो नीमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अदहेमि, अहहेत्ता तव गायं ममेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरो विज्जसि ।। ३४. तग णं से चुल्लसयए समणोवासप तेणं देवेणं एवं बुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरई॥ ३५. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्चं पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासीहंभो ! चुल्लसयगा ! गमणोवासया ! जाव जइ यं तमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खा. णाई पोसहाववासाइं न छईसि न भजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पत्तं सानो गिहाम्रो नीणमि, नीणेत्ता तव अग्गनो घाएमि, धाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहासि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य प्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ३६. तर णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाण अभीए जाव विहरइ ।। ३७. तए ण से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीय जाव पासइ, पासित्ता आसुरते रुदै कुविए चंडिक्किए मिसीमिसीयमाणे चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स कणीयस पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नोणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेता चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोणिएण य° ग्राइंचइ ।। ३८. तए ण से चुल्लसयए समणोवासए" "तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ° अहियासेइ ।। १. उवा० ॥२४॥ २. उवा० २।२२। ३. उवा० २।२३ । ४. उवा० २०२४॥ ५. उदा० २।२२। ६. उवा० ॥२३॥ ७. उवा० २।२४ । ८. सं० पा०-समणोवासए जाव अहियासेइ । ६. उदा० रा२७ । Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७४ उवासमदसायो हिरण्णकोडी-विपकिरण ३६. तए णं से देवे चुल्लसयगं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता च उत्थं पि चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासिया ! 'जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चयखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसिन भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाप्रो इमायो छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वडिपउत्तानो, छ हिरणकोडीयो पवित्थरपउत्तानो, तानो सानो गिहामो नीमि, नीणेत्ता प्रालभियाए नयरीए सिंघाडग'-'तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह पहेसु सव्वनो समता विप्पइरामि', जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरो विज्जसि ॥ ४०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ४१. तए ण से देवे चुल्लसयग समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि' 'एवं वयासी--- हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डुसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जाओ इमाओ छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वड्डिपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउताप्रो, ताओ साओ गिहाम्रो नीमि, नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडगतिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सव्वनो समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ॥ चुल्लसयगस्स कोलाहल-पदं ४२. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासयस्स तेण देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-अहो णं इमे पुरिसे अणारिए 'प्रणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जे णं ममं जेट्ठ पुत्तं सामओ गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता १. उवा० २२४ । २. स. पा०--समणोवासया जाव न भंजेसि। ३. उवा० २१२२। ४. सं० पा०--सिंघाडम जाव पहेसु।। ५. विप्पयिरामि (क, ग)। ६. उवा० २।२३। ७. उवा० २।२४। ८. सं० पा०ताचं पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि । ६. उवा० २।२२। १०. सं० पा०-अगारिए जहा चुलणीरिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंच।। Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७५ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरि यंसि कडाहयंसि अहहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंच इ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाप्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडायंसि अहहेइ, अद्दहेत्ता मम गायं मसेण य सोणिएण य ग्राइंचइ, जे णं मम कणीयसं पुत्तं सायो गिहाओ नीण इ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहहेइ, अहहेत्ता मम गायं मंसेण य सोणिएण य° आइंचइ, जानो वि य णं इमामो ममं छ हिरण्णकोडीनो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वडिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ पवित्थरपउताओ, तानो वि य णं इच्छइ ममं सानो गिहारो नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-च उम्मुह-महापहपहेसु सव्वओ समंता' विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एवं पुरिस गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाविए', 'से वि य अागासे उप्पइए, तेण य खंभे प्रासाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ।। बहुलाए पसिण-पदं ४३. तए ण सा बहुला भारिया त कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव चुल्लसयए समणोवासए तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासो--किण्णं देवाणु प्पिया ! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? चुल्लसयगस्स उत्तर-पदं तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलं भारियं एवं वयासी-एवं खलु बहुले ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे एग महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय मम एवं वयासी–हभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाईन डेसिन तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्त सानो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तब अग्गो घाएमि, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्टवसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । ४४. १. सं० पा०—सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए। २. सं० पा०-उद्घाविए जहा सुरादेवो । तहेव भारिया पुच्छई, तहेव कहेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स जाव सोहम्मे । ३. उवा० २।२२ । ४. उवा० ॥२३॥ Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७६ उवास गदसाओ तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्च पि एवं वयासी -हंभो! चुल्लसयगा ! समणोवासया! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोबवासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो जाव तुम अट्ट-दहट्ट-वस प्रकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। तए णं ग्रहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जेदुपुत्तं मिहानो नीगइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचइ । तए ण अहं तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं मज्झिमं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयसं प्रत्तं जाव वेयणं सम्म सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता ममं च उत्थं पि एवं वयासी-हंभो ! चुल्लसयगा! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई बयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अह अज्ज जानो इमानो छ हिरण्णकोडीनो निहाणपउत्तानो, छ हिरणकाडाओ वाड्रपउत्तानो, छ हिरण्णकांडीग्रो पवित्थरपउत्तानो, तानो सानो गिहाना नीण मि, नीणेत्ता पालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चरचउम्मुह-महापहपहेसु सव्वनो समंता विप्पइरामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं देवेणं एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव" विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पास इ, पासित्ता दोच्च पि तच्च पि मम एवं वयासी हभो ! चुल्लसयगा ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुम अज्ज सीलाइं वयाई वेरमणाइं पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । १. उवा० २।२४ । २. उवा० २।२२॥ ३. उवा० २।२३। ४. उवा० ॥२४॥ ५. उवा० २१२७ । ६. उवा० ५।२७-३२ । ७. उवा० ५।३३-३८ । ८. उवा० २१२४ । ६. उवा० २।२२ । १०. उवा० २।२३ । ११. उवा० २।२४ । १२. उदा० ॥२२॥ Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७७ पंचम अज्मयणं (चुल्लसयए) तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्च पि ममं एवं कुत्तस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिाए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था---अहो णं इमे पुरिसे प्रणारिए प्रणारियबुद्धी प्रणारियाई पावाई कम्माइं समाचरति, जे णं ममं जेटुं पुत्तं साम्रो गिहारो नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोलने करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचइ, जे णं ममं मज्झिमं पुत्तं सानो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ, करेत्ता यादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, जे णं ममं कणीयसं पुत्तं सानो गिहाओ नीणे इ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, घाएत्ता सत्त मंससोल्ले करेइ,करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहहेइ, अद्द हेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य प्राइंचइ,जानो वि य णं इमामो ममं छ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ, छ हिरण्णकोडीओ वडिपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीयो पवित्थरप उत्तानो, तायो वि य णं इच्छइ मम सानो गिहाम्रो नीणेत्ता आलभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सवयो समंता विप्पइरित्तए, तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिण्हित्तए त्ति कटु उद्धाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे ग्रासाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए॥ पायच्छित्त-पदं ४५. तए णं सा बहुला भारिया चुल्लसयगं समणोवासयं एवं वयासी - नो खलु केइ पुरिसे तव जेद्वपुत्तं सानो गिहाओ नोणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमं पुत्त सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुतं सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, नो खलु देवाणुप्पिया ! तुम्भं के वि पुरिसे तव छ हिरण्णकोडीओ निहाणप उत्तानो, छ हिरणकोडीनो वडिपउतानो, छ हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्तानो, सानो गिहाओ नीणेत्ता अालभियाए नयरीए सिंघाडग-तिय - चउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापहपहेसु सम्वनो समंता विप्पइरइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुमे विदरिसणे दिद्वे, तं गं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं णं तुम पिया ! एयस्स ठाणस्ण पालोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि प्रकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ॥ ४६. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुलाए भारियाए तह त्ति एयमढे विणएणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स पालोएइ पडिक्कमइ निंदइ गरिहइ Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७८ उवासगदसायो विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ॥ चुल्लसयगस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ४८. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ४६. तए णं से चुल्लसया समणोवासए दोच्चं उदासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवम, दसम, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। चुल्लसयगस्स प्रणसण-पदं ५१. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेण पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उहाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्ला पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयस जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए काल अणवकखमाणे विहरइ ! १. उवा० ११५७ । Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) चुल्लसययस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुहिं सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । "तत्थ णं प्रत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। चुल्लसयगस्स वि देवस्स चत्तारि पलिप्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ५३. से णं भंते ! चुल्लसयए तारो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे ° सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ।। निक्खेव-पदं ५४. •एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं पंचमस्स अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते ॥ १. सं० पा०-चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेस २. सं० पा०-निक्खेवो । तहेव जाब सिभिहिति) Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 अज्झयणं कुडकोलिए उक्खव-पदं १. 'जइणं भंते समणेणं भगवया महावीरेण जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं पंचमस्स अज्झयणस्स अयमद्र पुण्णत्ते, छट्रस्स णं भंते ! अज्झ यणरस के ग्र? पण्णत्ते ? ० कंडकोलियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएण कंपिल्लपुरे नयरे ! सहस्संबवणे उज्जाणे । जियसत्तू राया ।। ३. "तत्थ णं कपिल्लपुरे नयरे कुडकोलिए नाम गाहावई परिवसइ--अढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूग। ४. तस्स णं कुडकोलियस्स गाहावइस्स छ हिरण्णकोडीअो निहाणपउत्तानो, छ हिरण्णकोडीओ वडिपउत्तानो, छ हिरणकोडीओ पवित्थरपउत्ताओ, छव्यया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।।। ५. से णं कुंडकोलिए गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्रा वि य णं कुडंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ।। १. सं० पाo-उक्खे वो। छ बढिपउत्ताओ, छ पवित्थरप उत्ताओ, २. ना० १११७ । छब्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं। ३. अस्यानन्तरमतिरिक्तपाठ:--'पृढविसिलापट्टए ५. उवा० १११ । चेइए' (ग)। ६. उवा० १११३ ४. सं० पा.- कंडकोलिए गाहावई । पूसा ७. उवा० १११३ । भारिया छ हिरणकोडीनो निहाणपउत्ताओ, ४८० Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८१ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ६. तस्स णं कंडकोलियस्स गाहावइस्स पूसा नाम भारिया होत्था--अहीण पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ° ।। महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे जाव' जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छिता अहापडिरूवं ओग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। ८. परिसा निग्गया ।। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव पज्जुबासइ ।। तए णं से कुंडकोलिए गाहावई इमीसे कहाए लढे समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुष्वि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे ग्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिहिता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि आरियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं-महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कराबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्धाभरणाल कियसरोरे सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं कंपिल्लपुर नयरं मझमझणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समण भगवं महावोरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसिता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमसमाणे अभिमह विणएणं पंजलिउड पज्जूवासइ। ११. तए णं समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियस्स गाहावइस्स तोसे य महइमहा लियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १. उदा० १३१४ । ३. ओ० सू० १६, २२ । २. सं० पा०-सामी समोसढे । जहा कामदेवो ४. ओ० सू० ५३-६६ । तहा सावयधम्म पडिवज्जइ सा सम्वेव ५. ओ० सू.७१-७७ । वत्तब्वया जाव पडिलाभेमाणी विहरह। Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८२ उवासगदसाओ १२. परिसा पडिगया, राया य गए। कंडकोलियम्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतुटु-चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उठाए उठेइ, उतॄत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणपयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमिणं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अभद्रेमि भंते ! निग्गथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं, भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माउंबिय-कोडंबिय-इब्भ-सेटिसेणाव इ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पन्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि । अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ।। १४. तए णं से कुंडकोलिए गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए' सावय धम्म पडिवज्जइ ॥ भगवो जणवयविहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ कंपिल्लपुरानो नयरानो सहस्संब वणाम्रो उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवविहारं विहरइ कुंडकोलियस्त समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जाए--अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायछणेणं प्रोसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ॥ पूसाए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा पूसा भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा १. पू०-उवा० १०२४-५३ । २. उवा० ११५५ । Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छटुं अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४३ जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्यपडिग्गह-कंबल-पायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग सेज्जा-संथारएणं ° पडिलाभेमाणी विहरइ ।। देवेण नियतिवाद-समत्थण-पदं १८. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए अण्णदा कदाइ पच्चावरण्हकालसमयसि जेणेव असोगवणिया, जेणेव' पुढविसिलापट्टए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता नाममुद्दग" च उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता समणस्स भगवरो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। १६. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स एगे देवे अंतियं पाउन्भवित्था ।। २०. तए णं से देवे नाममुद्दग" च उत्तरिज्जगं' च पुढविसिलापट्टयाओ गेण्हइ, गेण्हित्ता 'अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाई" पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए कुंड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी -हंभो ! कुंडकोलिया ! समणोवासया ! संदरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती--तथि उद्राणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता' सव्वभावा', मंगुली णं समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपण्णती-अत्यि उदाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार -परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा ।। कुंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २१. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती"-नत्थि उहाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सध्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवनो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती--अस्थि उदाणे इ वा" 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता १. °उवा ११५६ ॥ मूलपाठः २०४० सूत्रानुसारी स्वीकृतः । २. पुवा (ख, घ): ८. नियया (ख, घ)। ३. जेणामेव (क)। ६. सव्वेभावा (ग)। ४ नामामुद्दगं (क, ख, ग)। १०. सं० पा०-उदाणे इ वा जाव परक्कमे । ५. नाममुद्दे (क, ख, घ); नामामुइं (ग)। ११. अनियता (क, घ); अणियया (ख) । ६. उत्तरिज (ख, ग, घ)। १२. पणत्ति (ग)। ७. सखिखिणि अंतलिक्खपडिवणे (क, ख, ग, १३. सं. पा.-उठाणे इ वा जाब नियता। च); पाठसंक्षेपकरणेनात्र परिवर्तनं जातम् । १४. स० पा०-उटाले इपा जाव अषियमा । Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८४ उवासगदसाग्रो सव्वभावा, तुमे णं देवाणुप्पिया! इमा एयारूवा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणभावे किण्णा' लद्धे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? कि उढाणेण' •कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार-परक्कमेणं ? उदाहु अणटुाणेणं' 'अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं ° अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ? देवेण नियतिवाद-समत्थण-पद २२. तए णं से देवे कुंड कोलियं समणोवासयं एवं वयासी -- एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं' अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं 'लद्धे पत्ते अभिसम ण्णागए। कुंडकोलिएण नियतिवाद-निरसण-पदं २३. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासा तं देवं एवं वयासी-जइ णं देवाणुप्पिया ! तुमे 'इमा एयारूवा' दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिब्वे देवाणुभावे अण्वाणेण प्रकम्मेण अवलेणं अवीरिएण' अपूरिसक्कारपरक्कमेण 'लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए", जेसि ण जीवाणं नत्थि उदाणे इ वा" 'कम्मे इ वा बले इ वा बीरिए इवा परिसक्कार-परक्कमे इवा, ते किन देवा ? 'अह तुब्भे'१२ इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिब्वे देवाणभावे उदाणेणं" 'कम्मेणं बलेणं वीरिएणं पुरिसक्कार. -परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्तीनत्थि उदाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा णियता सम्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवो महावी रस्स धम्म १. किणा (क)। परक्कमेण । २. सं० पा०--उदाणेणं जाव पुरिसक्कारपर- ६. लद्धा पत्ता अभिगमायागया (क, ख, ग, घ)। क्कमेणं । १०. सं० पा.--उदाणे दवा जाव परक्कमे । ३. सं० पा०-अणदाणेणं जाव अपुरिसक्कार- ११. 'क' प्रतो अस्यानन्तर-'अह ते एवं भवति, परक्कमेण । तो जं वदसि ' एवं पाटो विद्यते । 'ग' प्रतो ४. इमेयारूवा (क, ख, ग, ५)। 'अह तुभे इमा एयारूवा दिब्बा देविड्ढी ३ ५. सं० पा० -अणुट्ठाणेणं जाव. अपुरिसक्कार- उदाणेण जाव परक्कमेणं लद्धा ३ । तं ते एवं परक्कमेणं। न भवति, तो जं वदसि ।। ६. लद्धा पत्ता अभिसमण्णागया (क्व) १२. अह णं देवाणुप्पिया तुमे (ख, घ)! ७. इमेयारूवा (क, घ); इमे एयारूवा (ग)। १३. सं० पा०-उठाणेणं जाव परक्कमेणं ! ८. स० पा०-अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कार- १४. सं० पा०-- उट्ठाणे इ वा जाव णियता । Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छट्ठ अज्झयणं (कुडकोलिए) ४८५ पण्णत्ती अस्थि उहाणे इ वा' 'कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिस क्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा ।। देवस्स पडिगमण-पद २४. ताए णं से देवे कुंडकोलिएणं समणोवासएणं एवं वुत्ते समाणे संकिए' कंखिए वितिमिच्छासमावण कलुससमावण्णे नो संचाएइ कुंडकोलियस्स समणोवासयस्स किचि पमोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउभूए, तामेव दिसं पडिगए। महावीर-समवसरण-पदं २५. तेणं का नेणं तेणं समाएण सामी समोसढे ॥ २६. तए णं से कुंडकालिए समणोवासए इमोसे कहाए लद्ध?' 'समाणे-"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणगाम दूइज्जमाणे इहमागा इह संपत्ते इह समोसढे इहेव कंपिल्लपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवर्ण उज्जाण अहापडिरूवं प्रोग्गहं ग्रागिण्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावमाणे विहरइ।" तं सेयं खलु मम समणं भगवं महावीरं वंदित्ता णमंसित्ता ततो पडिणियत्तस्स पोसहं पारेत्तए त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता [पोसहसालारो पडिणिक्खमइ, पडिगिक्खभित्ता ?] सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए मणुस्सवन्गुरापरिक्खिते सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्वमित्ता कपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्मेण निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्सववण उज्जाण, जेणेव समण भगवं महावीरे, तेगेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो ग्रायाहिण-पयाहिण करेइ, करेत्ता वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता तिविहाए पज्जुवासणए पज्जुवासइ ।।। २७. तए ण समणे भगवं महावीरे कंडकोलियस्स समणोवासयस्स तीसे य महइ महालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ° ।। महावीरेण पुववृत्तंत-परूवण-पदं २८. कुंडकोलियाइ ! समणे भगवं महावीरे कुंडकोलियं समणोवासयं एवं वयासी १. सं० पा० -उठाणे इ वा जाव अणियता। २. सकिए जाव लुससमावण्णे (ग)। ३. ठावेइघ)। ४. लट्ठे हट्ट (क, ख, ग, घ); अत्र 'हट्ठ' शब्द: किमर्थमुल्लिखितः, इति न ज्ञायते । कामदेव वर्णने नासी उपलभ्यते। सं० पा-लद्ध? जहा कामदेवो तहा निग्गच्छइ जाव पज्जु वासइ । धम्मकहा। ५. ओ० सू० ७१-७७ । Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ से नूणं कुंडकोलिया ! कल्लं' तुम्भं पञ्चावरण्हकालसमयंसि असोगवणियाए एगे देवे अंतियं पाउब्भवित्था । तए णं से देवे नाममुद्दगं च' 'उत्तरिज्जगं च पुढविसिलापट्टयानो गेण्हइ, गेण्हित्ता अंतलिक्खपडिवण्णे सखिखिणियाइं पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुम एवं वयासी-हंभो! कंडकोलिया ! समणोवासया ! संदरी णं देवाणुप्पिया ! गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती - नत्थि उठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवप्रो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उट्ठाणे इ वा कम्मे इ वा बले इ वा वीरिए इ वा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा । तए ण तुमं तं देवं एवं वयासी-जइ ण देवाणुप्पिया ! सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उट्ठाणे इ वा जाव पुरिसक्कार-परकम्मे इ वा नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवनो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उट्टाणे इ वा जाव पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा अणियता सव्वभावा, तुमे णं देवाणप्पिया ! इमा एयारूवा दिव्वा देविड्री दिव्वा देवज्जूई दिव्वे देवाणुभावे किण्णा लधे ? किण्णा पत्ते ? किण्णा अभिसमण्णागए ? कि उट्ठाणेणं जाव पुरिसक्कार-परक्कमेणं? उदाहु अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरकम्मेणं? तए णं से देवे तुम एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिया ! मए इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे अणुट्ठाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लधे पत्ते अभिसमण्णागए। तए णं तुमं तं देवं एवं वयासी जइ णं देवाणुप्पिया ! तुमे इमा एयारूवा दिव्या देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिब्वे देवाणुभाव अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, जेसि णं जीवाणं नत्थि उढाणे इ वा जाव परक्कमे इवा, ते कि न देवा? अह तुब्भे इमा एयारूवा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवज्जुई दिव्वे देवाणुभावे उढाणेणं जाव परक्कमेणं लद्धे पत्ते अभिसमण्णागए, तो जं वदसि सुंदरी णं गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स धम्मपण्णत्ती-नत्थि उदाणे इ वा जाव नियता सव्वभावा, मंगुली णं समणस्स भगवो महावीरस्स धम्मपण्णत्ती-अस्थि उढाणे इ वा जाव अणियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा। तए णं से देवे तुम एवं वुत्ते समाणे संकिए कंखिए वितिगिच्छासमावणे कलुससमावण्णे नो १. ४ (ख)। ३. सं० पा०-- नामदगं च तहेव जाव पडिगए। २. पुन्वावरण्ह° (ख, घ)। Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४८७ मुटुं अग्झयणं (कुंडकोलिए) संचाएइ तुब्भे किचि पमोक्खमाइक्खित्तए, नाममुद्दगं च उत्तरिज्जयं च पुढविसिलापट्टए ठवेइ, ठवेत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं° पडिगए। से नूणं कुंडकोलिया ! अढे समढे ? हंता अस्थि॥ महावीरेण कुंडकोलियस्स पसंसा-पदं २६. अज्जोति ! समणे भगवं महावीरे [बहवे ? ] समणा निग्गंथा य निगंथीयो य आमंतेत्ता एवं वयासी-जइ ताव अज्जो ! गिहिणो गिहिमज्झावसंता' अण्णउत्थिए अट्रेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पट्ट-पसिणवागरणे करेंति, सक्का पुणाई अज्जो ! समणेहिं निग्गथेहि दुवालसंगं गणिपिडगं अहिज्जमाणेहिं अण्णउत्थिया अद्वेहि य 'हेहि य पसि णेहि य कारणेहि य वागरणेहि य° निप्पटु-पसिणवागरणा करेत्तए। 30. तए णं [ते बहये ? ]" समणा निग्गथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवो महावीरस्स तह त्ति एयमट्ठ विणएणं पडिसुणेति ।। ३१. 'तए ण से कुंडकोलिए समणोवासए समण भगवं महावीरं वदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता पसिणाई पुच्छइ, पुच्छिता अट्ठमादियइ, अट्ठमादित्ता जामेव दिसं पाउब्भूए तामेव दिसं पडिगए। भगवरो जणवयविहार-पवं ३२. सामी बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। कुडकोलियस्स धम्मजागरिया-पदं ३३. तए णं तस्स कुंडकोलियरस समणोवासयस्स बहूहि' 'सोल-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहिं अप्पाणं° भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छ राई १. हंता अस्थि अस्य पाठस्यानन्तरमेतावान् पाठः इति पाठस्यानन्तरं-'अज्जोति ! समणे अलभ्यते, यथा-तं धन्ने सि णं तुमं जहा भगवं महावीरे' इति सूत्रमस्ति (सू० २।४६) कामदेवो तहा पससिओ (क); अत्रापि इत्यमेव युज्यते। तं धन्नेसि णं तुम जहा कामदेवो (ख, घ); २. महावीरे बहवे (२०४६) । तं धन्ने सि णं तुम जहा कामदेवो जाव ३. गिहिमके वसंता (क, ग); वसंता णं पडिगता (ग); असो अत्र अप्रासंगिकः (ख, वृ)। प्रतीयते। कामदेवाध्ययने 'तं धन्नेसि णं तुम' ४. सं० पा०-अद्वेहि य जाव निप्पट्ट । इत्यादि वाक्यानि देवो ब्रवीति (सू० २०४०)। ५. ते बहवे समणा (२०४७) । अत्र च भगवतो महावीरस्य संवादप्रसंगे असो ६. २।४८ सूत्रस्य क्रमः अस्माद् भिन्नोस्ति । पाठोस्ति, किन्तु कामदेवाऽध्ययने 'हंता अस्थि' ७. सं० पा०-वहिं जाव भावमाणस्स । Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवास गदसाओ atsaiताई । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स प्रष्णदा कदाइ' • पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरिय जागरमाणरस इमेयावे efore चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - एवं खलु श्रहं कंपिल्लपुरे नयरे बहूणं जाव आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जव ड्डावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवश्रो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता गं विहरित || ३४. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ नियम-सयण-संबंधिपरिजणं च पुच्छर, आपुच्छित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिवखमइ, पडिणिक्खमित्ता कंपिल्लपुरं नयरं मज्झमज्भेणं निम्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार- पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दव्भसंथारयं संथरेइ, संथरेता दब्भसंथारयं दुरूह, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निविखत्तसत्यमुसले एगे बीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवश्रो महावीरस्स प्रतियं • धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ॥ ४८८ कुंडकोलियस उवास पडिमा -पदं ३५. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरइ ॥ ३६. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं श्रहासुतं ग्रहाकप्पं ग्रामगं हातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ || ३७. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्च, चउत्थं, पंचमं, छट्ठ, सत्तमं, अद्रुमं नवमं दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं महासुतं अहाकप्पं ग्रहामणं ग्रहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ राहेइ ॥ ३८. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए इमेणं एयारूवेणं ओरालेणं विउलेणं १. सं० पा० - कदाइ जहा कामदेवो तहा जेटुपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत २. उवा० १११३ ३. उदा० १।१३ । ४. पू० उवा० १।५७-५२ । ५. सं० पा० एवं एक्कारस उदासगपडिमाओ ! तव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणजभए विमाणे जाव अंतं काहि । Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ छ8 अज्झयणं (कुंडकोलिए) ४८६ पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अढिचम्मावणद्धे किडिकि डियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । कुडकोलियस्स प्रणसण-पद ३६. तए णं तस्स कुंडकोलियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिर पत्थिर मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेगं विउलेणं पयत्तेणं परमहिएणं तवोकम्मेण सुक्के लुक वे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। त अस्थि ता मे उहाण कम्मे बले वोरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता में उदाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं प्रणवकंखमाणस्स वित्तिए- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-भूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।। कुडकोलियस्स समाहिमरण पदं ४०. तए णं से कुंडकोलिए समणोवासए बहूहि सोल-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाग्रो सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए सलेहणाए अत्ताण झूसित्ता, सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, पालाइय-पडिक्कते, समाहिपत्त, कालमासे काल किच्चा, सोहम्मे कप्पे सोहम्मडिसगस्स महाविमाणस्स उत्तरपुरथिमे णं अरुणज्झए विमाणे देवत्ताए उववणे । तत्थ णं अत्थेगइयाण देवाणं चत्तारि पलिनोवमाई ठिई पण्णत्ता ।। ४१. से णं भते ! कुंडकोलिए ताओ देवलागायो आउक्खएण भवक्खएणं ठिइक्खएणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाण° अंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं ४२. एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ॥ १. उवा० १:५७ ॥ २. सं. पा.--निक्खेवो। Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झरणं सद्दालपुत्ते उपखव-पदं १. जइ णं भंते ! समगेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं छट्ठस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, सत्तमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? सहालपुत्त-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं ° पोलासपुरं नाम नयरं । सहस्संबवणं उज्जाणं । जियसत्तू राया ।। ३. तत्थ णं पोलासपुरै नयरे सद्दालपुत्ते नाम कुंभकारे' आजीवियोवासए' परिवसइ । आजीवियसमयंसि लद्धढे गहियट्ठ पुच्छियढे विणिच्छियढे अभिगय8 अट्टिमिजपेमाणुरागरत्ते । "अयमाउसो ! आजीवियसमए अट्टे अयं परमट्टे सेसे अणद्वे" ति आजीवियसमएणं अप्पाणं भावमाणे विहरइ ।। ४. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स एक्का हिरण्णकोडी निहाणपउत्तानो एक्का हिरण्णकोडी वडिपउत्तानो, एक्का हिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ताओ, एक्के वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं ॥ ५. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीविओवासगस्स अग्गिमित्ता नाम भारिया होत्था ।। ६. तस्स णं सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स पोलासपुरस्स नगरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया होत्था । १. सं० पा०-उक्लेवो। (ग); आजीवियओवासगे (घ)। २. ना० १।१७। ५. ति एवं (ग)। ३. कुंभकारे इड्ढे (ख)। ६ कुंभकारा° (ख, घ)। ४. आजीवितोवासते (क); आजीवितोवासए ४१० Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते ) 19. सद्दालपुत्तस्स देववेसंस पर्व तर णं से सद्दालपुत्ते प्राजीविश्रोवासए अण्णदा कदाइ पञ्चावरण्हकालसमयंसि' जेणेव असोगवणिया, तेणेव उवागच्छइ, उदागच्छित्ता गोसालस्स लिपुत्तस्स अंतियं धम्मपणत्ति उवसंपज्जिता णं विहरइ ॥ तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीविप्रोवासगस्स एक्के देवे अंतियं पाउ भवित्था || ८. ८ . १ तस्स' णं बहवे पुरिसा दिण्ण भइ भत्तवेयणा कल्लाकुल्लिं' बहवे करए य वारए पिड य घse य अद्धघडए य कलसए य अलिंजरए य जंबूलए य उट्टिया य करेंति । अणे य से बहवे पुरिसा दिष्ण भइ भत्तवेयणा कल्ला कल्लि' तेहि बहूहि करएहि य वारएहि य पिहडएहि य घडएहि य एहि य कलसएहि य अलिंजरएहि य जंबूलएहि य° उट्टियाहि य रायमसि वित्ति कप्पेमाणा विहरति ॥ £. १०. तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई' पंचवण्णाई वत्थाई पवर • परिहिए सद्दालपुत्तं प्राजीविनोवासयं एवं वयासी - एहिइ णं देवाणुप्पिया ! कल्लं इह महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए" अरहा जिणे केवल सव्वष्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय" - महिय-पूइए" सदेवमणुयासुरस्त लोगस्स प्रच्चणिज्जे पूर्याणिज्जे" वंदणिज्जे" णमसणिज्जे सक्का रणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे तच्च-कम्मसंपयासंपत्ते । तं गं तुमं वंदेज्जाहि" "णमंसेज्जाहि सक्कारेज्जाहि सम्माणेज्जाहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जाहि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं उवनिमतेज्जाहि । दोच्चं पि तच्च पि एवं वयइ", वइत्ता जामेव दिसं पाउब्भूए, तामेव दिसं पडिगए ।। . १. डा० होर्नल संपादित पुस्तके 'तत्थ' पाठो लभ्यते । १०. तीयपच्चुपण्णाणागय ० ( क ) ; तीयपडुपण्णा२. कल्लाकल्ल (क, ख, ग ) । गय ० ( ख ) । ३. हेमशब्दानुशासन (१/२०१) विठरे हो ११. प्राचीन लिप्यां वकार चकारयोः सादृश्यात् केचिदादशेषु 'वहिय' इति पाठोपि दृश्यते । वारश्च डः' । १२. पूतिते ( क ) । ४. कल्लाकल्लं ( ग ) । ५. सं० पा० - करएहि य जाव उट्टियाहि । ६. पुब्वा ० ( ख, घ) । ७. एगे ( ख ) । क. स० पा० - सखिखिणियाई जाव परिहिए । ६. एहीति (क, ग ); एही (ख, घ) । ० १३. × (क, ख, ग ) । १४. सं० पा० - वंदणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे । १५. स० पा०- वंदेज्जाहि जाव पज्जुवा सेज्जाहि । १६. वयासी (ग, घ ) | १७. दिसि (ख, घ)। Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६२ सद्दालपुत्तस्स संकष्प-पदं ११. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स प्राजीविप्रोवासगस्स तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूत्रे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे – एवं खलु ममं धम्मारिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते से णं महामाहणे उप्पण्णणाणदंसणधरे 'तीयप्पडपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कच हिय महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स ग्रच्चणिज्जे पूर्याणज्जे बंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्मानणिज्जे कल्लाणं मंगल देवयं इयं पज्जुवासणिज्जे • तच्च कम्मसंपया-संपत्ते से णं कल्लं इह हव्वमागच्छस्सति । तए णं तं ग्रहं बंदिस्सामि णमंसिस्सामि सक्कारेस्सामि सम्माणे सामि कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं ० पज्जुवासिस्सामि पाडिहारिएण' • पीढ-फलग - सेज्जा- संथारएणं • उवनिमतिस्सामि || o महावीर - समवसरण - पदं १२. तए णं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए फुल्लुप्पलकमल कोमलुम्मिलियमि ग्रह पंडुरे पहाए रत्तासोगप्पगास-किसुय-सुयमुह-गुंजद्धरागसरिसे कमलागरसंडबोहए उट्टियम्म सूरे सहस्रस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते समणे भगवं महावीरे जाव' 'जेणेव पोलासपुरे नयरे जेणेव सहस्संववणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ग्रहापडिरूवं श्रोग्गहं ओगिण्हत्ता संजमेणं तवसा अप्पाण भावेमाणे विहरइ ॥ १३. परिसा निरगया || १४. उवासगदसाओ कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निम्गच्छइ जाव' ० पज्जुवासइ || १५. तए णं से सद्दालपुत्ते प्राजीविप्रोवासए इमी से कहाए लट्ठे समाणे - "एवं खलु समणे भगवं महावीरें 'पुव्वाणुपुव्वि चरमाणे गामाणुगामं दृइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया सहस्संबवणे उज्जाणे अहापरूिवं प्रोग्गहं ओगिव्हित्ता संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।" तं गच्छामि णं समणं भगवं महावीरं वंदामि " णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि १. सं० पा० उप्पण्णणाणदंसणधरे जाव तच्चकम्मसंनया । २. सं० पा० - वदिस्सामि जाब पज्जुवासि ६. ओ० सू० सामि ७. सं० पा० ३. सं० पा० - पाडिहारिएणं जाव उवनिमंति सामि । ४. सं० पा० - कल्लं जाव जलते । ५. सं० पा० - महावीरे जाव समोसरिए । १६, २२ । जाव पज्जुवासइ । ८. अ० सू० ५३-६६ । ६. सं० पा० - महावीरे जाव विहरइ । १०. सं० पा० - ददामि जाव पज्जुवासामि । Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अणं (सद्दालपुते ) ३६३ कल्लाण मंगल देव चेइयं • पज्जुवासामि - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता पहा • कयबलिकम्मे कय-कोउय-मंगल पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई' मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे मणुस्वग्गुरापरिगए सानो' गिहाम्रो पडिणिaars, पडिणिक्खमित्ता पोलासपुरं नयरं मज्झमझेग निम्मच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता' 'णच्चासणे णाइदूरे सुस्सुसमाणे समाणे ग्रभिमुद्दे विणणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ॥ १६. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स प्राजोविप्रोवासगस्स तीसे य महइ'• महालियाए परिसाए जाव' धम्मं परिकहेइ ॥ o O महावीरस्स देवसंदेस-निरूवण-पदं १७. सद्दालपुत्ताइ ! समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीविओोवासयं एवं बयासी से नूर्ण सद्दालपुत्ता ! कल्लं तुमं पच्चावरण्हकालसमयसि जेणेव सोगणिया, "तेणेव उवागच्छसि उवागच्छित्ता गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरसि । तए णं तुभं एमे देवे श्रतियं पाउ भवित्था | o १. सं० पा०-- पहाए जाव पायच्छिते । २. सं० पा० - सुद्धप्यावेसाई जाव अप्पमहग्घा । ३. सयानो (घ ) । ४. सं० पा०-- णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ ५. सं० पा० - महइ जाव घम्मका समता । ६. प्रो० सू० ७१-७७ | ७. ०दि ( ग ) । 。 तए णं से देवे अंतलिक्खपडिवणे सखिखिणियाई पंचवण्णाई वत्थाई पवर परिहिए तुम एवं वयासी- हंभो ! सद्दालपुत्ता" ! एहि णं देवाणुपिया ! कल्लं इहं महामाहणे जाव" तच्च-कम्मसंख्या -संपत्ते । तं गं तुमं वंदेज्जाहि णमंसेज्जाहि सक्का रेज्जाहि सम्माणेज्जाहि कल्लाणं मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासेज्जाहि, पाsिहारिएणं पीढ - फलग - सेज्जा- संथारएणं उननिमतेज्जाहि । दोच्च पि तच्च पि एवं वयइ, वइत्ता जामेव दिसं पाउन्भूए, तामेव दिसं पडिगए । तए णं तुब्भं तेणं देवेणं एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे प्रज्झत्थित् चितिए पत्थिए मणोगए संकष्पे समुप्पण्णे – एवं खलु मम धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मखलिपुत्ते मे णं महामाहणे जाव" तच्च-कम्मसंपया संपउत्ते, से गं ८. पुब्बा ० (ख, घ) ६. सं० पा० - असो नवणिया जाव विहरसि । १०. सं० पा० - अंत लिक्खपडिवण्णे एवं वयासी । ११. सं० पा० - सद्दालपुत्ता त चैव सव्व जाव पज्जुवा सिस्सामि । १२. उवा० ७११० । १३. उवा० ७ ११ । Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ कल्लं इह हव्वमागच्छिस्सति । तए णं तं अहं वंदिस्सामि णमंसिस्सामि सक्कारेस्सामि सम्मास्सामि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासिस्सामि, पाडिहारिएणं पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतिस्सामि । से नूणं सद्दालपुत्ता ! अट्ठ सम?? हंता अत्थि। तं नो खलु सदालपुत्ता ! तेणं देवेणं गोसालं मखलिपुत्तं पणिहाय एवं वुत्ते ।। सद्दालपुत्तस्स निवेदण-पदं १८. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासयस्स समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वृत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पण्णे - एस णं समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदंसगधरे' •तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वण्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूणिज्जे वंदणिज्जे णमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाण मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे ° तच्च-कम्मसपया-संपउत्ते। तं सेयं खलु ममं समणं भगवं महावोरं वंदित्ता णमंसित्ता पाडिहारिएणं पीढ-फलग •सेज्जा-संथारएण° उवनिमंतेतए--एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं वदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी एवं खलु भंते ! मम पोलासपुरस्स नयरस्स बहिया पंच कुंभारावणसया । तत्थ णं तुब्भे पाडिहारियं पीढ'- फलग सेज्जा-संथारयं ओगिण्हित्ता णं विहरह ।। महावीरेण सद्दालपुत्त-संबोधण-पदं १६. तए णं से समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तस्स अजीवियोवासगस्स एयमटुं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सद्दालपुत्तस्स भाजीवियोवासगस्स 'पंचसु कुंभारावणसएसु फासु-एसणिज्जं पाडिहारियं पीढ-फलग'- सेज्जा -संथारय प्रोगिण्हित्ता णं विहर।। २०. तए णं से सद्दालपुत्ते ग्राजीवियोवासए अण्णदा कदाइ वाताहतयं कोलालभंड अंतो सालाहितो बहिया नीणेइ, नीणेत्ता प्रायवंसि दलयइ ।। १. सं. पा.---उप्पण्णण्णाणदंसणधरे जाव ५. पंचकुंभ (ख, घ) । तच्चकम्मसंपया । ६. सं० पा०-फलग जाव संथारयं । २. सं० पा०-पीढ-फलग जाव उवनिमंतेत्तए। ७. वायाहतयं (क, ग); पायाययं (ख) । ३. सं० पा०-पीढ जाव संथारयं । ५. मातपंसि (ख)। ४. तुगिणिहत्ता (क)। Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सप्तमं प्रज्झयमं (सद्दालपुस) ४६५ २१. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं एवं वयासी सद्दालपुत्ता ! एस णं कोलालभंडे कह' कतो? । २२. तए णं से सहालपुत्ते आजीविनोवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी एस णं भंते ! पुवि मट्टिया आसी, तो पच्छा उदएणं तिम्मिज्जइ', तिम्मिज्जित्ता छारेण य करिसेण य एगयो मीसिज्जइ, मीसिज्जित्ता चक्के आरुभिज्जति', तो बहवे करगा य वारगा य पिहडगा य घडगा य अद्ध घडगा य कलसगा य अलिंजरगा य जंबूलगा य° उट्टियानो य कज्जति ।। २३. तए णं समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं प्राजीविप्रोवासयं एवं वयासी सद्दालपुत्ता! एस णं कोलाल भंडे कि उट्ठाणेणं' 'कम्मेणं बलेणं वीरिएणं' पुरिसक्कार-परक्कमेणं कज्जति, उदाहु अणुढाणेण' अकम्मेणं अबलेणं अवीरि एणं प्रपुरिसक्कारपरक्कमेणं कज्जति ? २४. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणं भगवं महावीरं एवं वयासी भंते ! अणदाणेणं' • अकम्मेणं अबलेणं अवीरिएणं अपुरिसक्कारपरक्कमेणं। नत्थि उट्ठाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा तीरिए इ वा° पुरिसक्कार परकम्मे इ वा, नियता सव्वभावा ।। २५. तए ण समणे भगवं महावीरे सद्दालपुत्तं प्राजीवियोवासयं एवं वयासी सद्दालपुत्ता ! जइ णं तुभं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेज्ज वा विक्खिरेज्ज वा भिदेज्ज वा अच्छिदेज्ज" वा परि?वेज्ज वा, अग्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोग भोगाइं भुंजमाणे विहरेज्जा, तस्स णं तुमं पुरिसस्स क दंडं वत्तेज्जासि? भंते ! 'अहं गं तं पुरिसं आप्रोसेज्ज वा हणेज्ज वा बंधेज्ज वा महेज्ज" वा १. x (क, ख, ग) प्रायो बहुषु आदर्शेषु केवलं ५. सं० पा०-उट्ठाणेण जाव पुरिसक्कार । 'कतो पाठो लभ्यते, उत्तरसूत्रे 'कज्जति' ६. सं० पा०-अणदाणेण जाव अपूरिसक्कार । इति प्रयोगो विद्यते, तेन प्रश्नसूत्रे 'कहं कतो' ७. सं०पा०- अणुदाणेणं जाव अपुरिसककार । इति पाठः उपयुज्यते। ८. सं० पा०--उट्ठाणे इ वा जाब पुरिसक्कार । २. नमिज्जइ (ख); तिमिज्जद (ग); निमिज्जइ . 'ख, ग' प्रत्योः 'जन' स्थाने सर्वत्र 'ज्जा' (घ); पार्टीका रणार्थे 'तिम्म' घाविद्यते। विद्यते। तेन 'तिम्मिज्जइ'पाठः स्वीकृतः। 'त-न' १०. विच्छेदेज (वृपा)। वर्णयोः प्राचीनलिप्या सादृश्येन परिवर्तन ११. कि (ख, घ)। जातमिति प्रतीयते । १२. अहण्णं (ग, घ)। ३. आरोहिज्जइ (ख); आरुहिज्जति (घ)। १३. गहेज्ज (ग)। ४. सं० पा०-करगा य जाद उद्रियाओ। Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ तज्जेज्ज वा तालेज्ज वा निच्छोडेज्ज वा निब्भच्छेज्ज वा, अकाले चेव जीवियाप्रो ववरोवेज्जा ॥ सद्दालपुत्ता ! नो खलु तुभं केइ पुरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरइ वा विक्खिरइ वा भिदइ वा अच्छिदइ वा परिवेइ वा; अग्गिमित्ताए भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाइं भुजमाणे विहरइ; नो वा तुम तं पुरिसं आप्रोसेसि' वा हणेसि वा' बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडोस वा निभच्छीस वा अकाले चेव जीवियानो बवरोवेसि, जइ नत्थि उट्ठाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इवा बीरिए इवा पूरिसक्कार -परक्कमे इ वा, नियता' सव्वभावा । 'अहं णं तुभं केइ पूरिसे वाताहतं वा पक्केल्लयं वा कोलालभंडं अवहरेइ वा विक्खिरेइ वा भिदेइ वा अच्छिदेइ वा परिटुवेइ वा, अम्गिमित्ताए वा भारियाए सद्धि विउलाई भोगभोगाई भुंजमाणे ° विहरइ; तुमं वा तं पुरिसं प्राग्रोसेसि वा" "हणेसि वा बंधेसि वा महेसि वा तज्जेसि वा तालेसि वा निच्छोडेसि वा निभच्छेसि वा, अकाले चेव जीवियानो ° ववरोवेसि, तो जं वदसि नत्थि उदाणे इ वा 'कम्मे इ वा बले इ वा वोरिए इवा पुरिसक्कार-परक्कमे इ वा°, नियता सव्वभावा, तं ते मिच्छा ।। २७. एत्थ णं से सद्दालपुत्ते आजीविनोवासए संबुद्धे ।। सद्दालपुत्तस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं २८. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीविनोवासए समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसह, वंदित्ता गमंसित्ता एवं वयासी--इच्छामि ण भंते ! तुब्भं अंतिए धम्म निसा मेत्तए। २६. तए णं समणे भगवं महावारे सद्दालपुत्तस्स आजीवियोवासगस्स तोसे य महइमहालियाए परिसाए जाव धम्म परिकहेइ ।। ३०. तए णं से सद्दालपुत्ते आजीवियोवासए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए . धम्म सोच्चा निसम्म हट्ठतु?" 'चित्तमाणंदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए १. पक्कोल्लयं (ग, घ)। २. स० पा०-अवहरइ वा जाव परिदुइ । ३. प्रातोससि (क, ग)। ४. सं० पा० --हणे मि वा जाव अकाले । ५. सं० पा०-उदाणे इ वा जाव परक्कमे । ६. निमिया (क); णितिया (ग) । ७. अहाणं (क, म, घ) 1 ८. सं० पा०-दाताहतं वा जाव परिवेइ । ६. सं० पा-अग्गिमित्ताए वा जाव विहरह। १०. सं० पा० ---आओसेसि वा जाव ववरोवेसि । ११. सं० पा० -- उट्ठाणे इ वा जाव नियता। १२. ओ० सू०७१-७७ १ १३. सं० पा०-हतुटु जाव हियए जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ, नवरं एगा Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ४६७ हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उढेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीर तिक्खुतो प्रायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सदहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथ पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुट्ठमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे बदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराम्रो अणगारिय पव्वइत्तए। अहं ण देवाणुप्पियाण अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ॥ ३१. तए णं से सद्दालपुत्ते समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए' पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं --दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जइ, पडिवज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमसइ, वीदत्ता णमंसित्ता जेणेव पोलासपरे नयरे', जेणेव सए गिहे, जेणेव अग्गिमित्ता भारिया, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासी-एवं खलु देवाणुप्पिए' ! 'मए समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते । से वि य धम्मे मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए ° । तं गच्छाहि णं तुमं समणं भगवं महावीरं वंदाहि णमंसाहि सक्कारेहि सम्माणेहि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं • पज्जुवासाहि, समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं --दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जाहि ।। ३२. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तस्स समणोवासगस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणेइ॥ हिरणकोडी निहाणप उत्ता एगा हिरण्णकोडी ३. सं० पा०-देवाणुप्पिए समणे भगव महावीरे वडिपउत्ता एगा हिरण्ण कोडी पवित्थरपउत्ता जाव समोसढे तं । अस्य पाठस्य पूर्तिः एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं ।। प्रथमाध्ययनस्य ४५ सूत्रेण जायते । तत्र १. पू०.-उवा० ११२४-४५ । 'समणे भगवं महावीरे जाव समोसढे' एता२. नवरे तेणेव उवागच्छइ. उवागच्छित्ता पोला- दृशः पाठो नास्ति । संभवतः पाठस्य संक्षेपी सपूरं नयर मझमझेणं (क, ख, ग, घ); करणे किंचित् परिवर्तनं जातम् । प्रथमाध्ययनस्य ४५ सूत्रानुसारेण असो पाठः ४. सं० पा०-वंदाहि जाव पज्जुवासाहि। अनावश्यकः प्रतिभाति । नास्यार्थसंगतिरपि ५. गिधिधम्म (ग)। विद्यते। Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६८ गिमित्ताए वंदन-गमण-पदं ३३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! लहुकरणजुत्त- जोइयं समखुरवालिहाण - समलिहियसिंग एहि जंबूणयामयकलावजुत्त-पइविट्ठिएहि रययामयघंटसुत्तरज्जुग-वरकंचणखचिय - नत्थपग्गहोग्गाहियएहि नीलुप्पलका मेल एहिं ' पवरगोणजुवाणएहि नाणामणिकणग घंटियाजालपरियं सुजायजुगजुत्तउज्जुग-पसत्यसुविरइयनिम्मियं पवरलक्खणोववेयं जुत्तामेव धम्मियं जाणप्पवेह, उववेत्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणह || वरं ३४. तए णं ते कोडुंबियपुरिसा' 'सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं एवं वृत्ता समाणा तुटु - चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवस विसप्पमाणहियया करयलपरिग्गहियं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं सामि ! त्ति प्राणाए विणणं वयणं पडणेंति, पडिसुणेत्ता खिप्पामेव लहुकरणजुत्त-जोइयं जाव' धम्मियं जाणवरं वट्टवेत्ता तमाणत्तियं • पच्चप्पिति || ३५. तए णं सा अग्निमित्ता भारिया व्हाया कयवलिकम्मा कय- कोउय-मंगल पायच्छित्ता सुद्धप्पावेसाई' मंगललाई वत्थाई पवर परिहिया ग्रप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरा वेडियाचक्कवालपरिकिण्णा धम्मियं जाणप्पवरं दुरहइ, दुरुहिता पोलासपुरं नयरं मज्भंमज्भेणं निगच्छर, निग्गच्छित्ता जेणेव सहस्संबवणे उज्जाणे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता धम्मियात्री जाणप्प → राम्रो पचोरुह, पच्चोरुहिता चेडियाचक्कवालपरिकिण्णा जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता तिक्खुतो' प्रायाहिणपयाहिणं करेइ, करेता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासपणे णाइदूरे" ● सुस्सू माणा णमंसमाणा अभिमुहे विणणं • पंजलियडा" ठिझ्या चेव पज्जुवासइ ॥ ३६. तए णं समणे भगवं महावीरे जाव" धम्मं परिकहेइ || अग्निमित्ताए तीसे य महइमहालियाए परिसाए १. पुस्तकान्तरे यानवर्णको दृश्यते (वृ) । २. ० खइय ( ख ) । ३. तत्थापन हो ० ( ख, ग ) 1 ४. ° कयामल एहिं ( ख ); ० कयमालएहिं ( ग ) । ५. सं०पा० - कोडुंबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणंति । ६. उवा० १२४७ । ७. सं० पा० - व्हाया जाव पायच्छित्ता । उवास दमाओ ८. सं० पा० - सुद्धावेसाई जाव महग्घा । ६. सं० पा० - तिक्खुत्तो जात्र वंदइ । १० सं० पा०—जाइदूरे जाव पंजलियडा । ११. पंजलिउडा (ख, घ ) । १२. ओ० सू० ७१-७७ । अप्प Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ४६४ अग्गिमित्ताए गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं ३७. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवनो महावीरस्स ग्रंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट' चित्तमाणंदिया पीइमणा परमसोमणस्सिया हरिसवसविसप्पमाणहियया उदाए उद्वेइ, उद्वेत्ता° समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सहहामिणं भंते ! निम्गंथं पावयणं', 'पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अब्भुटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते । अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेय भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे उग्गा भोगा' 'राइण्णा खत्तिया माहणा भडा जोहा पसत्थारो मल्लई लेच्छई अण्णे य बहवे राईसरतलवर-माडंबिय-कोडंबिय-इन्भ-सेट्रि-सेणावइ-सत्यवाहप्पभिइया मंडा भवित्ता अगारामो अणगारियं पब्वइया. नो खलु अहं तहा संचाएमि देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडा भवित्ता अगारानो अणगारियं पब्वइत्तए । अहं णं देवाणप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं गिहिधम्म पडिज्जिस्सामि। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंधं करेहि ॥ ३८. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणस्स भगवनो महावी रस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं--दुवालसविहं गिहिधम्म पडिवज्जइ,पडिज्जित्ता समणं भगवं महावीरं वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता तमेव धम्मियं जाणप्पवरं दुरुहइ, दुरुहिता जामेव दिसं पाउन्भूया, तामेव दिसं पडिगया । भगवो जणवयविहार-पदं ३६. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ पोलासपुरानो नगराओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवय विहारं विहरइ ।। सद्दालपुत्तस्स समणोवासग-चरिया-पदं ४०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जाए—अभिगयजीवाजीवे जाव' 'समणे १. सं० पा०-हट्टतुट्ठा समणं । २. सं० पा०-पावयणं जाव जहेयं । ३. सं० पा०-भोगा जाव पब्वइया। ४. सं० पा०-भवित्ता जाव अहं। ५. पडिवज्जामि (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०–अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ। ७. उवा० ११५५ । Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुंछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।। मग्गिमित्ताए-समणोवासिय-चरिया-पदं ४१. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण 'य पीढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। गोसालस्स प्रागमण-पदं ४२. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते इमीसे कहाए लद्धटे समाणे-एवं खलु सद्दालपुत्ते आजीवियसमयं वमित्ता समणाणं निग्गंथाणं दिद्धि पवण्णे', तं गच्छामि गं सद्दालपुत्तं आजीवियोवासयं समणाणं निग्गंथाणं दिद्धिं वामेत्ता पुण रवि माजीवियदिद्धि गेहावित्तए त्ति कटु-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता प्राजीवियसंघपरिवुडे जेणेव पोलासपुरे नयरे, जेणेव आजीवियसभा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भंडगनिक्खेवं करेइ, करेत्ता कतिवएहि पाजीविएहिं सद्धि जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ।। ४३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसालं मखलिपुत्तं एज्जमाण पास इ, पासित्ता नो आढाति' नो परिजाणति', अणाढामाणे अपरिजाणमाणे तुसिणीए संचिट्ठइ ॥ गोसालेण महावीरस्स गुणकित्तण-पदं ४४. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तेणं समणोवासएणं अणाढिज्जमाणे अपरिजाणिज्जमाणे पीढ-फलग-सेज्जा-संथारट्ठयाए समणस्स भगवो महा वीरस्स गुणकित्तणं करेइ'-आगए णं देवाणुप्पिया ! इह महामाहणे ? ४५. तए णं से सद्दालपुते समणोवासए गोसालं मखलिपुत्तं एवं वयासी–के गं देवाणप्पिया ! महामाहणे? तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-समणे भगवं महावीरे महामाणे । १. उवा० ११५६ । २. पडिवण्णे (क, ध)। ३. कतिवतेहिं (क); कइवएहिं (ख, घ)। ४. अढाति (क, ग)। ५. परिजाणाति (घ)। ६. अणाढामीणे (क); अणाढायमाणे (ख, घ)। ७. करेमाणे सहालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ५०१ से केण?णं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महामाहणे ? एवं खलु सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महामाहणे उप्पण्णणाणदसणधरे 'तीयप्पडुपण्णाणागयजाणए अरहा जिणे केवली सव्वष्णू सव्वदरिसी तेलोक्कचहिय-महिय-पूइए सदेवमणुयासुरस्स लोगस्स अच्चणिज्जे पूयणिज्जे वंदणिज्जे नमंसणिज्जे सक्कारणिज्जे सम्माणणिज्जे कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासणिज्जे . तच्च-कम्मसंपया-संपउत्ते । से तेणटेणं देवाणुप्पिया! एवं वुच्चइ समणे भगवं महावीरे महामाहणे ॥ ४६. प्रागए णं देवाणुप्पिया ! इहं महागोवे ? के णं देवाणुप्पिया! महागोवे? समणे भगवं महावीरे महागोवे। से केणदेणं देवाणुप्पिया! *एवं वुच्चइ - समणे भगवं महावीरे° महागोवे ? एवं खलु देवाणु प्पिया ! समणे भगवं महावीरे ससाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे विलप्पमाणे धम्ममएणं दंडेणं सारक्खमाणे संगोवेमाणे निव्वाणमहावाडं साहत्थि संपावेइ । से तेणटुणं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ -समणे भगवं महावीरे महागोवे ।। ४७. प्रागए' णं देवाणुप्पिया ! इहं महासत्थवाहे ? कणं देवाणु प्पिया ! महासत्थवाहे ? सद्दालपुत्ता ! समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे । से केण?णं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ? एवं खलु देवाणुप्पिया! समणे भगवं महावीरे संसाराडवीए बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे 'खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लप्पमाणे विलुप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे' धम्ममएणं' पंथेणं सारक्खमाणे निव्वाणमहापट्टणे साहत्थि संपावेइ । से तेण?णं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ–समणे भगवं महावीरे महासत्थवाहे ॥ ४८. आगए" णं देवाणुप्पिया ! इहं महाधम्मकही ? १. सं० पा०–उप्पण्णणाणदसणधरे जाव महि- ७. धम्ममतेणं (क, ग) ! यपूइए जाव तच्च । ८. पथेणं (घ)। २. सं० पा०—देवाणुप्पिया जाव महागोवे । ६. निव्वाणमहापट्टणाभिमुहे (ख, घ)। ३. आगदे (क)! १०. महासार्थवाहालापकानन्तरं पुस्तकान्तरे ४. से के (क, ख, ग, घ)। इदमपरमधीयते -वृत्तावस्योल्लेखस्यानुसारेण ५. सं० पा०—विणस्समाणे जाव विलुप्पमाणे । 'महाधम्मकहीं' इत्यालापक: पाठान्तररूपेण ६. ४ (क)। स्वीकृतोऽस्ति। Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०२ उवासगदसाओ ४६. केणं देवाणुप्पिया ! महाधम्मकही ? समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही। से केणटेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे महइमहालयंसि संसारंसि बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लप्पमाणे विलप्पमाणे उम्मग्गपडिवण्णे सप्पहविप्पणद्वे मिच्छत्तबलाभिभूए अट्ठविहकम्मतमपडल-पडोच्छण्णे बहूहि अद्वेहि य हेऊहि य पसिणेहि य कारणेहि य वागरणेहि य निप्पटु-पसिण वागरणेहि य चाउरंतानो संसारकंतारापो साहत्थि नित्थारेइ । से तेणद्वेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महाधम्मकही ।। प्रागए गं देवाणुप्पिया ! इह महानिज्जामए ? के णं देवाणुप्पिया ! महानिज्जामए ? समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए। से केण?ण' 'देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए? एवं खलु देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे संसारमहासमुद्दे बहवे जीवे नस्समाणे विणस्समाणे 'खज्जमाणे छिज्जमाणे भिज्जमाणे लुप्पमाणे ° विलुप्पमाणे बुड्डुमाणे निबुड्डुमाणे उप्पियमाणे धम्ममईए नावाए निव्वाणतीराभिमुहे साहत्यि संपावेइ । से तेणटेणं देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-समणे भगवं महावीरे महानिज्जामए । विवाद-पटुवणा-पसिण-पद ५०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए गोसाल मंखलिपुत्तं एवं वयासी-तुब्भेणं देवाणुप्पिया! इयच्छेया इयदच्छा इयपट्टा" इयनिउणा इयनयवादी इयउवएसलद्धा" इयविण्णाणपत्ता । पभू णं तुब्भे मम धम्मायरिएणं धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए ? नो इणढे समढ़े। १. से के (क, ख, ग, घ)। ८. धम्ममतीते (क, ग)। २. पडल (क)। ६. तुब्भं (ग)। ३. सं० पा०-अटेहि य जाव वागरणेहि। १०. इयच्छेयाओ (ख)। ४. से के (क, ख, घ)। ११. इयपत्तट्ठा (वृपा)। ५. सं० पा०–केणट्रेणं एवं । १२. अस्यानन्तरं वृतौ 'इयमेधाविणो' अस्य ६. सं० पा०–विणस्समाणे जाय विलुप्पमाणे । पाठान्तरस्य उल्लेखोस्ति । ७. उप्पिमाणे (क)। १३. णं भंते ! (क, ग)। Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) से केणद्वेण देवाणुप्पिया ! एवं वुच्चइ-नो खलु पभू तुब्भे मम धम्मायरिएणं' धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया महावीरेण सद्धि विवादं करेत्तए ? सद्दालपुत्ता ! से जहानामए केइ पुरिसे तरुणे जुगवं 'बलवं अप्पायके थिरगहत्थे पडिपण्णपाणिपाए पिटुंत रोरुसंघायपरिणए घणनिचियवद्रवलियखंधे लघण-वगण-जयण-वायाम-समत्थे चम्मेढ़-दुघण-मुट्टिय-समाय-निचियगत्ते उरस्सबलसमन्नागए ताल जमल जुयलबाहू छेए दक्खे पत्त? • निउणसिप्पोवगए एगं महं अयं वा एलयं वा सूयरं वा कुक्कुडं वा तित्तरं वा वट्टयं वा लावयं वा कवोयं वा कविजल' वा वायसं वा सेणय वा, हत्थंसि वा पायंसि वा खुरंसि वा पुच्छसि वा पिच्छंसि वा सिंगंसि वा विसाणं सि वा रोमसि वा जहिं-जहिं गिण्हइ, तहि-तहिं निच्चलं निप्फंद' करेइ', एवामेव समणे भगवं महावीरे ममं वहूहिं अद्वेहि य हेहि य' 'पसिणेहि य कारणे हि य° वागरणेहि य जहि-जहिं गिण्हइ, तहि-तहिं निप्पटु-पसिणवागरणं करेइ। से तेणटेणं सद्दालपुत्ता ! एवं वुच्चइ---नो खलु पभू अहं तव धम्मायरिएण" 'धम्मोवएसएणं समणेणं भगवया ° महावीरेणं सद्धि विवादं करेत्तए ।। ५१. तए णं से सद्दालपुत्ते ! समणोवासए गोसाल मंखलिपुत्तं एवं क्यासी -- जम्हा ण 'देवाणुांप्पया ! तुब्भे मम धम्मायरिस्स" धम्मोवएसगस्स समणस्स भगवनो° महावीरस्स संतेहि तच्चेहि तहिएहि सन्भूएहि भावेहि गुणकित्तणं करह", तम्हा णं अहं तुब्भे पाडिहारिएणं पीढ". फलग-सेज्जा-संथारएणं उवनिमंतेमि, नो चेव णं धम्मो त्ति वा तवो त्ति वा । तं गच्छह णं तुम्भे मम कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढ-फलग सेज्जा-संथारयं अोगिण्हित्ता ण" विहरह। ५२. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स एयमढे पडिसुणेइ, १. सं० पा०-धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं। . सं० पा०-हेऊहि य जाव वागरणेहि। २. स० पा०--जगवं जाव निउणसिप्पोवगए। १०. सं० पा०-धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं ! ३. तितरं (घ)। ११. तुम्भे देवाणुप्पिया (क)। ४. कविंजलि (घ)। १२. सं० पा०--धम्मायरिस्स जाव महावीरस्स। ५. सहं (क); सेण्ण्यं (ख)। १३. करेसि (ख)। ६. निष्पंदं (क)। १४. सं. पा.-.-पीढ जाव संथारएणं । ७. धरेइ (क, ख, ग)। १५. सं० पा०--फलग जाव ओगिण्हित्ता। ८. एकमेव (ख, ग)1 १६. णं उवसंपज्जित्ता णं (क, ख, ग, घ)। Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उ बासगदसाओ पडणेत्ता कुंभारावणेसु पाडिहारियं पीढः फलग- सेज्जा- संथारयं श्रगिहित्ता णं विहरइ || ५३. तए गं से गोसाले मंखलिपुत्ते सद्दालपुत्तं समणोवासयं जाहे नो संचाएइ बहूहि प्राघवणाहि य पण्णवणाहि य सण्णवणाहि य विष्णवणाहि य निग्गंथाओ पावयणाओ चालित्तए वा खोभित्तए वा विपरिणामेत्तए' वा, ताहे संते तंते परितंते पोलासपुराम्रो नराम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता वहिया जणवयविहारं विहरइ || ५०४ सद्दालपुत्तस्स धम्मजागरिया-पदं ५४. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स बहूहिं सील - व्वय-गुण- वेरमणपच्चक्खाण-पोस होववासेहि अप्पाणं • भावेभाणस्स चोद्दस संवच्छरा वीइक्कंता । पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स 'अण्णदा कदाइ" पुण्वरत्तावरत्तकाल" समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झ थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं पोलासपुरे नयरे बहूणं जाव प्रपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुटुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवो महावीरस्स प्रतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता णं विहरित ' ॥ ५५. तए गं से सद्दालपुत्ते समणोवासए जेट्ठपुत्तं मित्त-नाइ नियग-सयण-संबंधि-परिजणं चप्रापुच्छइ, प्रापुच्छित्ता सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता पोलासपुरं नगरं मज्भंमज्भेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला तेणेव उवागच्छर, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार पासवणभूमि पडिले, पडित्ता दव्भसंधारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवओ महावीरस्स प्रतियं धम्मपण्णत्त उवसंपज्जित्ता णं विहरइ || १. सं० पा० पीढ जाव ओगिव्हित्ता । २. विपरिणावित्त ए ( ग ) । ३. सं० पा०सील जाव भावेमाणस्स । ४. X ( क, ख, ग, घ ) । ५. सं० पा० - पुण्वरत्तावरप्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स | संक्षेपीकरणपद्धती प्रायो नैकरूपता लभ्यते । क्वचित् 'जाव' शब्दानन्तरं संक्षिप्तपाठस्य अन्तिमशब्दो निविश्यते 9 क्वचिच्च पूर्ववतिशब्दः । अत्रापि इत्थमेव विद्यते । तेन द्वितीयाध्ययनस्वाधारेणात्र 'दब्भसंथारोवगए' इति पर्यन्तं पाठः पूरितः । ६. उदा० १।१३ । ७. उवा० १।१३ । ८. पू० उवा० १।५७-५६ । ६. धम्मं (क) । Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ५०५ सद्दालपुत्तस्स देवरूव-कय-उवसग्ग-पदं ५६. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स पुव्वरत्तावरत्तकाले एगे देवे अंतियं पाउभवित्था ।। जेट्टपुत्त ५७. तए णं से देवे एगं महं नीलुप्पल'- गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधार असि गहाय सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया! अप्पत्थियपत्थिया ! दुरंत-पंत-लक्खणा! हीणपुण्णचाउद्दसिया ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सम्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सगकखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया! सम्पपिवासिया ! मोक्खपिवासिया ! नो खलु कप्पइ तव देवाणुप्पिया ! सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई चालित्तए वा खोभित्तए वा खंडित्तए वा भंजित्तए वा उज्झित्तए वा परिच्चइत्तए वा, तं जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चत्रखाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं साओ गिहामो नीणेमि, नीर्णता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोगिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ५८. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए अतत्थे अण व्विग्गे अखुभिए अचलिए असंभते तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ ।। ५६. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं अतत्थं अणु विग्गं प्रखुभियं अचलियं असंभंतं तुसिणीयं धम्मज्भाणोवगयं विहरमाणं पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपत्ता! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपत्तं साओ गिहाम्रो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि ॥ १. सं० पा०-नीलुप्पल एवं जहा चुलगीपियस्स तहेव देवो उवसम्गं करेइ नवरं एक्केक्के पुत्ते नव मंससोल्लए करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २ त्ता जाव प्राइंच। २. उवा० २।२२ । Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगसाओ ६०. तए णं से सद्दालपुत्ते समगोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ॥ तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता प्रासुरत्ते रुट्रे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस जेटुपुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अम्गयो घाएइ, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडायंसि अहहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स गायं मसेण य सोगिएण य आइंचइ ।। ६२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तं उज्जलं विउलं कक्कसं पगाढं चंडं दुक्खं दुरहियास वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासे इ॥ मझिमपुत्त ६३. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव जइ ण तुमं अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिमं पुत्तं सानो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयंसि अहहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोगिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ६४. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरई॥ ६५. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया! जाव जद्द णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज मज्झिम पुत्तं साओ गिहामओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अहहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ६६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ ।। १. उवा० २१२३। ५. उवा० २।२३। २. उवा० २।२४ । ६. उदा० २।२४। ३. उवा० २।२४ । ७. उवा० २।२२। ४. उवा० २।२२। ८. उवा० ॥२३॥ Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्झयण (सद्दालपुत्ते) ६७. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स मज्झिम पुत्तं गिहाम्रो नीगेइ, नीणेत्ता अग्गओ घाएइ, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समणोवास यस्स गाय मंसेण य सोणिएण य आइंचइ ॥ ६८. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ कणीयसयुत्त ६६. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छडेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गओ घाएमि, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अहमि, अहहेता तव गायं मंसेण य सोणिएण य पाइंचामि. जहा णं तमं अद्र-दूहद-वसटे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। ७०. तए णं से सदालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरइ ।। ७१. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्च पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं क्यासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ ण तुम अज्ज सीलाई वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणमि, नीणत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले क रेमि, करेत्ता प्रादाणभरियसि कडाह्यसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। ७२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरइ ।। १. उवा० २१२४ २. उदा० २।२७। ३. उवा० २।२४। ४. उवा० २।२२ । ५. उवा० २।२३ । ६. उवा० २।२४ । ७. उवा० २१२२1 ८. उवा० २।२३। Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५०६ उवासगदसाओ ७३. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए मिसीमिसीयमाणे सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स कणीयसं पुत्तं गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता अग्गो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयसि अद्दहेइ, अहहेत्ता सद्दालपुत्तस्स समगोवास यस्स गायं मसेण य सोणिएण य° पाइंचइ ।। ७४. 'तए णं से सद्दालपुते समणोवासए तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्म सहइ खमइ तितिक्खइ अहियासेइ ॥ प्रग्गिमित्ताभारिया ७५. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता चउत्थं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ गं तुम अज्ज सोलाइं वयाइं वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाइं न छडेसि ° न भंजेसि, 'तो ते अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं साम्रो गिहाओ नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्लए करेमि, करेत्ता आदाणभरियंसि कडायसि अहहेमि, अहहेत्ता तव गायं म सेण य सोणिएण य प्राइंचामि, जहा गं तुमं अट्ट-दुहट्ट - वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ° ववरोविज्जसि ।। ७६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं देवेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव" विहरइ॥ ७७. तए णं से देवे सद्दालपुत्तं समणोवासयं अभीयं जाव पासइ, पासित्ता दोच्चं पि तच्चं पि सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणो १. उवा० २।२४ । ५. सं. पा०-समणोवासिया अपस्थियपत्थिया २. पूर्ववर्ति क्रमानुसारेण (३१३८) स्वीकृतं सूत्र- जाव न भजसि । मत्र युज्यते, किन्तु आदर्शेषु नास्य संकेतः ६. उवा० २।२२ । प्राप्तोस्ति । संभवतः संक्षेपीकरणे परित्यक्त- ७.. तओ (क, ख, ग, घ)। मिदमभूत् । अस्य स्थाने आदर्शेषु निम्नप्रकारं ८. तं ते (क, ख, ग, घ) । सूत्रं लभ्यते-'तए णं से सद्दालपुत्ते समणो- ९. X (क, ख, ग, घ)। वासए अभीए जाव विहरई' । नैतद् अत्र १०. सं० पा०~-दुहट्ट जाव ववरोविज्जसि । उपयुक्तमस्ति । ११. उवा० २।२३ । ३. उवा० २।२७ । १२. उवा० २०२४। ४. उवा० रा२४॥ Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तमं अज्भयणं (सद्दालपुते) वासया' ! 'जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं साओ गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता तव मायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। सद्दालपुत्तस्स कोलाहल-पदं ७८. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स तेणं देवेणं दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्तस्स समाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जिस्था'--'अहोणं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धी अणारियाई पावाई कम्माई समाचरति, जे णं ममं जेटुं पुत्तं, जे णं ममं मज्झिमयं पुत्तं, जेणं ममं कणीयसं पुत्तं 'सानो गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गओ घाएइ, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेता ग्रादाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अहहेत्ता मम गायं मसेण य सोणिएण य° पाइंचइ, जा वि य णं ममं इमा अग्गिमित्ता भारिया 'धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया, तं पि य इच्छइ सानो गिहाप्रो नीणेत्ता ममं अग्गो घाएत्तए । तं सेयं खलु ममं एयं पुरिसं गिणिहत्तए त्ति कट्ट उद्धाविए', 'से वि य आगासे उप्पइए, तेण च खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए । अग्गिमित्ताए पसिण-पदं ७६. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया तं कोलाहलसई सोच्चा निसम्म जेणेव सद्दालपुत्ते समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-किण्णं देवाणुप्पिया! तुब्भे णं महया-महया सद्देणं कोलाहले कए ? सद्दालपुत्तस्स उत्तर-पदं ८०. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्गिमित्तं भारियं एवं वयासो-एवं खलु देवाणुप्पिए ! न याणामि के वि पुरिसे आसुरत्ते रुटे कुविए चंडिक्किए १. सं० पा.-.-समणोवासया त चेव भणइ। २. उवा० २।२२। ३. सं० पा०--समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणी- पिया तहेव चितेइ। ४. सं. पा.-पुत्तं जाव आइंच।। ५. सं० पा०-भारिया जाव सम । ६. ममसुहदुक्ख° (ख)। -उद्धाविए जहा चुलणीपिया कलेत सवं भाणियन्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं सुणित्ता भणइ । सेसं जहा चुलणीपिया वत्तन्वया सव्वा नवरं अरुणच्चए विमाणे उववातो जाव महाविदेहे । Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ मिसिमिसीयमाणे एगं महं नीलुप्पल-गवलगुलिय-अयसिकुसुमप्पगासं खुरधारं असिं गहाय ममं एवं वयासी-हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जेटुपुत्तं सायो गिहारो नीमि, नीणेत्ता तव अग्गयो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अहहेमि, अद्दहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य ग्राइंचामि, जहा णं तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाओ ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव' विहरामि । तए णं से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासीहंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुमं अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाइं पोसहोववासाइं न छड्डेसि न भजेसि, तो ते अहं अज्ज जेट्टपुत्तं सानो गिहायो नीणेमि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि, करेत्ता प्रादाणभरियंसि कडाहयंसि अद्दहेमि, अहहेत्ता तव गाय मंसेण य सोणिएण य प्राइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियाग्रो ववरोविज्जसि । तए णं अहं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहरामि। तए णं से परिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता आसुरत्ते रुट्रे कूविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ममं जटुपुत्तं गिहायो नोणेइ, नीणेत्ता मम अग्गयो घाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडाहयंसि अद्दहेइ, अद्दहेत्ता ममं गायं मसेण य सोणिएण य पाइंचइ । तए णं अहं तं उज्जलं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि। एवं मज्झिमं पुत्तं जाव वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । एवं कणीयसं पुत्तं जाव' वेयणं सम्मं सहामि खमामि तितिक्खामि अहियासेमि । तए ण से पुरिसे ममं अभीयं जाव' पासइ, पासित्ता ममं चउत्थं पि एवं वयासी-हंभो ! सद्दालथुत्ता! समणोवासया! जाव" जइ णं तुम अज्ज १. उवा० २।२२ । २. उवा० २।२३ । ३. उवा० २।२४ । ४. उदा० २।२२। ५. उवा० २।२३ । ६. उवा० २।२४ । ७. उवा० २।२७ । ८. उवा० ७१६२-६७ ॥ ६. उवा० ७६८-७३ । १०. उवा० २।२४ । ११. उवा० २।२२। Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्तम अज्झयणं (सद्दालपुत्तै) सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो ते अहं अज्ज जा इमा अग्गिमित्ता भारिया धम्मसहाइया धम्मविइज्जिया धम्माणुरागरत्ता समसुहदुक्खसहाइया तं सानो गिहाम्रो नीणं मि, नीणेत्ता तव अग्गो घाएमि, धाएत्ता नव मंससोल्ले करेमि करेत्ता आदाणभरियंसि कडाहयसि अहहेमि, अदहेत्ता तव गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचामि, जहा णं तुम अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जीवियानो ववरोविज्जसि ।। तए णं अहं तेणं पुरिसेणं एवं वुत्ते समाणे अभीए जाव विहामि । तए णं से परिसे ममं अभीयं जाव' दोच्चं पि तच्च पि मम एवं वयासी --- हंभो ! सद्दालपुत्ता ! समणोवासया ! जाव' जइ णं तुम अज्ज सीलाई वयाई वेरमणाई पच्चक्खाणाई पोसहोववासाई न छड्डेसि न भंजेसि, तो जाव तुमं अट्ट-दुहट्ट-वसट्टे अकाले चेव जोवियाग्रो ववरोविज्जसि ।। तए णं तेणं पुरिसेणं दोच्चं पि तच्चं पि मम एवं वुत्तस्स समाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-ग्रहो णं इमे पुरिसे अणारिए प्रणारियबुद्धो अणारियाइं पावाई कम्माई समाचरति, जे णं मम जेटुपुत्तं, जे णं ममं मज्झिमयं पुत्तं, जे णं ममं कणीयसं पुत्तं सानो गिहायो नीणेइ, नीणेत्ता मम अग्गो धाएइ, घाएत्ता नव मंससोल्ले करेइ, करेत्ता आदाणभरियसि कडायंसि अद्दहेइ, अदहेत्ता ममं गायं मंसेण य सोणिएण य आइंचइ, तुम पि य णं इच्छइ सानो गिहाओ नोणेत्ता मम अग्गो घाएत्तए, तं सेयं खलु मम एवं पुरिस गिण्हित्तए त्ति कटु उद्घाविए, से वि य आगासे उप्पइए, मए वि य खंभे आसाइए, महया-महया सद्देणं कोलाहले कए । पायच्छित्त-पदं ८१. तए णं सा अग्गिमित्ता भारिया सद्दालपुत्तं समणोवासयं एवं वयासी-नो खलु केइ पुरिसे तव जेटुपुत्तं सानो गिहारो नोणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो पाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव मज्झिमयं पुत्तं साओ गिहारो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो धाएइ, नो खलु केइ पुरिसे तव कणीयसं पुत्तं साम्रो गिहाम्रो नीणेइ, नीणेत्ता तव अग्गो घाएइ, एस णं केइ पुरिसे तव उवसग्गं करेइ, एस णं तुम विदरिसणे दिडे । तं गं तुम इयाणि भग्गवए भग्गनियमे भग्गपोसहे विहरसि । तं गं तुमं पिया! एयस्स ठाणस्स आलोएहि पडिक्कमाहि निंदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ॥ ८२. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए अग्गिमित्ताए भारियाए तह त्ति एयमटुं १. उवा० २।२४। २. उवा०२।२२ । Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५१२ उवासगदसाओ विणएणं पडिसुणेs, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निंदइ after fass विसोइ प्रकरणयाए अब्भुइ प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्मं परिवज्जइ ॥ सद्दालपुसस्स उवासगपडिमा -पदं ८३. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए पढमं उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता गं विहरइ ॥ ८४. तए गं से सद्दालपुत्ते समणोवासए पढमं उदासगपडिमं अहासुतं महाकप्पं अहमगं अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ ॥ ८५. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं एवं तच्चं चउत्थं पंचमं, छट्ठ, सत्तम, अट्टमं नवमं दसमं, एक्कारसमं उवासगपडिमं ग्रहासुत्तं ग्रहाकप्पं ग्रहामग्गं अहातच्च सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ राहेइ || ८६. तए णं से सद्दालपुत्ते समणोवासए तेणं ओरालेणं विउलेणं पयत्तेगं पगहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे अट्टिचम्मावण fasaडियाभूए किसे धर्माणिसंतए जाए || सद्दालपुत्तस्स प्रणसण-पदं ८७. तए णं तस्स सद्दालपुत्तस्स समणोवासयस्स श्रण्णदा कदाइ, पुव्वरत्ताव रत्तकाल - समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स ग्रयं अज्झत्थिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था – एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं प्रोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्ाहिएणं तवोकम्मेण सुक्के लक्खे निम्मंसे चिम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं प्रत्थि ता मे उट्टाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धि- संवेगे, तं जावता मे प्रत्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणी जाव' उट्टियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-भूषणा -भूसियस्स भत्तपाणपडियाइक्खियस्स, कालं प्रणवकंखमाणस्स विहरितए - एवं संपेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण- पडियाइक्खिए कालं प्रणवकखमाणे विहरइ ॥ सद्दालपुत्तस्स समाहिमरण-पदं ८८. तणं से सद्दालपुत्ते समणोवासए बहूहिं सील व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सतमं अज्झयणं (सद्दालपुत्ते) ५१३ एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्म काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं असित्ता, सद्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणच्चए विमाणे देवत्ताए उववण्णे । चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता। ° महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ।। निक्खेव-पदं ८६. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयमद्धे पण्णत्ते ° ।। १. सं० पा०-निक्खेवो। Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं महासतए उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं सत्तमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, अटुमस्त णं भंते ! अज्झ यणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? महासतयगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं रायगिहे नयरे । गुणसिलए चेइए। सेणिए राया ॥ ३. तत्थ णं रायगिहे नयरे महासतए' नाम गाहावई परिवसइ-अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए ।। ४. तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स अट्ठ हिरण्णकोडीयो सकसाओ निहाणपउत्ताओ, अट्ठ हिरण्णकोडीअो सकंसाग्रो वड्डिप उत्तानो, अट्ठ हिरणकोडीओ सकसानो पवित्थरपउत्तानो, अट्ठ क्या दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ।। ५. से णं महासतए गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि यणं कुर्दाबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्ढावए यावि होत्था ॥ ६. तस्स णं महासतयस्स गाहावइस्स रेवतोपामोक्खाओ तेरस भारियानो होत्था -- १. सं० पा०-उक्खेवो। अट्ठ हि वड्ढि अट्ठ हि सकंसाओ पवि अट्टक्या २. ना० १११७ । दसगोसाहस्सिएणं वएणं । ३. महासतते (क); महासय ५. उवा० १।११। ४. सं० पाo-अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठ ६,७. उवा० १।१३ । हिरणकोडीओ सकसानो निहाणपउत्ताओ ८. रेवई ० (ख, घ)। ५१४ Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठमं अज्झयणं (महासतए) अहीण-पडिपुण्ण-पंचिंदियसरीरामो जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमा णीग्रो विहरंति ॥ ७. तस्स णं महासतयस्स रेवतीए भारियाए कोलहरियानो' अट्ठ हिरण्णकोडीओ, अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था। अवसेसाणं दुवालसण्हं भारियाणं कोलहरिया' एगमेगा हिरण्णकोडी, एगमेगे य वए दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ महावीर-समवसरण-पदं ८. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ॥ ६. परिसा निग्गया ।। १०. • कूणिए राया जहा, तहा सेणियो निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। ११. तए णं से महासतए गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे-“एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुवाणुपुचि चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इष्मागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव रायगिहस्स नय रस्स बहिया गुणसिलए चेइए प्रहापडिरूवं प्रोग्गहं प्रोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहइ।" तं महप्फलं खलु भो ! देवाणु प्पिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पूण विउलस्स अट्रस्स गहणयाए? तं गच्छामि गं देवाणुप्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारेमि सम्माणेमि कल्लाणं मंगलं देवयं चेइयं पज्जुवासामि-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्धाभरणालंकियसरीरे सयाओ गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवगुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं रायगिह नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छिता जेणामेव गुणसिलए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिवखुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ।। १. सं० पा०--अहीण जाव सुरूवाओ। २. उवा० १११४॥ ३. कोलधरियाओ (ख)। ४. कोलरिया (क, ख, ग, घ)! ५. सं० पा०-जहा आणंदो तहा निगच्छइ । तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ। ६. ओ० सू० ५३-६६ । Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ १२. तए णं समणे भगवं महावीरे महासतयस्स गाहाव इस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १३. परिसा पडिगया, राया य गए। महासतयस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १४. तए णं महासतए गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हतुटु-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसक्स-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी - - सद्दहामि गं भंते ! निग्गथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमिणं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अभद्वेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छिय मेयं भंते ! से जहेयं तुम्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माडविय-कोडंबिय-इन्भ-सेद्विसेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगारामो अणगारियं पव्वइत्तए । अहं णं देवाणु पियाणं अंतिए पंचाणुब्वइयं सत्तसिक्खावइयं-- दुवालसविहं सावगधम्म पडिबज्जिस्सामि। पया! मा पडिबंधं करेहि ।। तए णं से महासलए गाहावई समणम्स भगवो महावीरस्स अंतिए'० सावयधम्म पडिवज्जइ, नवरं-अट्ठ हिरण्णकोडीओ सकंसायो । अट्ठ वया। रेवतीपामोक्खाहि ते रसहिं भारियाहि अवसेसं मेहुणविहिं पच्चक्खाइ । इमं च णं एयारूवं अभिग्गहं अभिगेण्हति–कल्लाकल्लि 'च गं' कप्पइ मे बेदोणियाए कंसपाईए हिरण्णभरियाए संववहरित्तए ।। महासतयस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से महासतए समणोवासए जाए... अभिगयजीवाजीवे' जाव' 'समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गह-कंबलपायछणेणं प्रोसहभेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएण पडिलाभेमाणे • विहरइ ॥ १. ओ० सू०७१-७७ । २. पू०-उवा० २४-४५ । ३. सकंसाओ उच्चारेति (क, ख, ग)। ४. पच्चक्खाइसेस सव्वं तहेव (क, ख, ग, घ)। ५. x (ख)। ६. पेदोणि° (क)। ७. सं० पा०-अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ। ८. उवा० ११५५ । Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अद्रुमं अज्झयण (महासतए) भगवो जणवविहार-पदं १७. तए णं समणे भगवं महावीरे बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ रेवतीए चिता-पदं १८. तए णं तोसे रेवतीए गाहावइणीए अण्णदा कदाइ पुनरत्तावरत्तकालसमयसि कुडुव' जागरियं जागरमाणीए° इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलू अहं इमासि दुवालसण्हं सपत्तीण* विधातेण नो संचाएमि' महासतरण समणोवासएणं सद्धि अोरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुजमाणी विहरित्तए। ते सेयं खलु ममं एयायो दुवालस वि सवत्तीग्रो अग्गिपयोगेण वा सत्थप्पयोगेण वा विसप्पोगेण वा जीवियानो ववरोवित्ता एतासि गमेगं हिरण्णकोडि शगमेमं वयं सयमेव उवसंपज्जित्ताणं महासतएणं समणोवासएणं सद्धि अोरालाई 'माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणी विहरित्तए–एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता तासि दुवालसण्हं सवत्तीणं अंतराणि य छिद्दाणि य 'विरहाणि य० पडिजागरमाणी-पडिजागरमाणी विहरइ ॥ रेवतोर सबतो-उद्दवण-पदं १६. तए णं सा रेवती गाहावइणी अण्णदा कदाइ तासि दुवालसण्हं सवत्तीणं अंतरं जाणित्ता छ सवत्तीग्रो सत्थप्पोगेणं" उद्दवेइ, छ सवत्तीयो विसपनोगेणं उद्दबे इ, उद्दवेत्ता तासि दुवालसण्हं सवत्तीण कोलरियं एगमेगं हिरण्णकोडि, एगमेगं वयं सयमेव पडिवज्जित्ता महासतएणं समणोवासएणं सद्धि प्रोरालाई माणुस्साई भोग भोगाइं भुजमाणी विहरइ ।। रेवतीए मंसमज्जासायण-पदं २०. तए णं सा रेवती गाहावइणी मंस लोलुया मंसमुच्छिया •मंसगढिया मंसगिद्धा १. प्राक्तनेषु अध्ययनेषु भगवतो विहारसूत्रं पूर्व ७. सवत्तीयाओ (ख): तदुत्तरं च श्राव भवनसूत्रं लभ्यते । इह च ८. एताणं (क); एयासि ख, घ)। पूर्व थाकभवनसूत्र तदुतरं च भगवतो ६. स० पा०.--उरालाइं जाव विहरित्तए। विहारमूत्रं वर्तते । असो कमः समीचीन: १०. विहराणि य विवराणि य (क); विवराणि प्रतिभाति । २. कपाइं (घ)। ११. सत्यप्यतोतेणं (क, ग)। ३. सं० पा०-कुडुंब जाव इमेयारूवे । १२. सं० पा०-मंसमुच्छिया जाव अज्झोववण्णा। ४. पत्तीणं (क); सवत्तीणं (ख)। मंसेसु मुच्छिया (क, ख, घ); मंससमुच्छिया ५. विघाएणं (ख, घ)। ६. संबादेमि (ख)। Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ मंस अज्झोववण्णा बहुविहेहिं मंसेहि सोल्ले हि य तलिएहि य' भज्जिएहि य' 'सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधुं च पसण्णं च प्रासाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरइ ।। प्रमाघाय-पदं २१. सए णं रायगिहे नयरे अण्णदा कदाइ अमाधाए घुटे यावि' होत्था ।। २२. तए णं सा रेवती गाहावइणो मंसलोलुया मंसमुच्छिया मंसगढिया मंसगिद्धा मंसअज्झोववण्णा कोलघरिए पुरिसे सद्दावेइ, सहावेत्ता एवं वयासी- तुभे देवाणुप्पिया ! ममं कोलहरिएहितो' वएहितो कल्लाकल्लिं दुवे-दुवे गोणपोयए उद्दवेह, उद्दवेत्ता ममं उवणेह ।। २३. तए णं ते कोलरिया पुरिसा रेवतीए गाहावइणीए तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणंति, पडिमुणित्ता रेवतीए गाहावइणीए कोलहरिएहितो' वएहितो कल्लाकल्लि दुवे-दुवे गोणपोयए' वहति, वहेत्ता रेवतीए गाहावइणीए उवणेति ।। २४. तए णं सा रेवती गाहावइणी तेहिं गोणमसेहि सोल्लेहि य तलिएहि य भज्जिएहि सुरं च महुं च मेरगं च मज्जं च सीधु च पसण्ण च आसाएमाणी विसाएमाणी परिभाएमाणी परिभुजेमाणी विहरइ ॥ महासतगस्स धम्मजागरिया-पदं २५. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स बहूहि सील-व्वय-गुण-वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाण' भावेमाणस्स चोइस संवच्छरा वीइक्कता"। पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वद्रमाणस्स अण्णदा कदाइ पूव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पथिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं रायगिहे नयरे वहणं जाव" अापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स विय गं कूडबस्स मेढी जाव" सव्व कज्जवड्डावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं वित्तिए । १. मंसेहि य (क, ख, ग, घ)। ६. उवहति (ख); गहिति (ग, घ)। २. X (क, ग, घ)। १०. गोमंसेहिं (क, ग)। ३. ४ (घ)। ११. सं० पा०-सीलव्वय जाव भावेमाणस्स। ४. सुरं च पसन्नं च (क)। १२. स. पा०-वीइक्कता एवं तहेव जेट्रपुत्तं ५. वि (क)। ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपत्ति । ६. घोलघरिए (क)। १३. उवा० १।१३। ७. कोल्ल° (घ)। १४. उवा० १११३! ६. गोणपोतलए (क)। १५. पू०-उवा० ११५७-५६ । Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अटुमं अज्भयणं (महासतए) २६. तए णं से महासतए समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि-परि जणं च पापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिहं नयरं मज्झमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दन्भसंथा रयं दुरुहइ, दुरुहिता पोसहसालाए पोसहिए वंभयारी उम्मुक्कमणिसुवण्णे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवनो महावीरस्स अतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। महासतगस्स अणुकल-उवसग्ग-पदं २७. तए णं सा रेवती गाहावइणी मत्ता लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं 'विकङ्क माणी-विकड्डमाणी' जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्मायजणणाई सिंगारियाई इथिभावाइं उवदंसेमाणी'-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया ! धम्मकामया ! पुण्णकामया ! सग्गकामया! मोक्खकामया! धम्मकंखिया ! पुण्णकंखिया ! सग्गकंखिया ! मोक्खकंखिया ! धम्मपिवासिया ! पुण्णपिवासिया! सग्गपिवासिया! मोक्खपिवासिया! किंणं" तुभं देवाणु प्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जंणं तम मए सद्धि पोरालाई 'माणुस्सयाई भोगभोगाई भंजमाणे नो विहरसि ? २८. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरई। २६. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्चं पि तच्चं पि एवं वयासी- हभो ! •महासतया ! समणोवासया ! किं णं तुम्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुणेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुमं मए सद्धि ओरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? १. कड्ढिज्जमाणी-कड्ढिज्जमाणी (क); विकट्ट- (ख, ग, घ) । . माणी-विकट्टमाणी (ख)। ६. अपरियाणिज्जमीणे (क); अपरियाणिज्जमाणे २. दसेमाणी २ (ख)। (ख,ग,घ)। ३. किणं (घ)। ७. सं० पा०-हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव ४. सं० पा०-उरालाई जाव भुंजमाणे । जाव अणाढायमाणे । ५. अणाढाइज्जमीणे (क); अणाढाइज्जमाणे ८. पू०-उवा० पा२७ । Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२० उवासगदसाओ ३०. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्च पि तच्चं पि एवं वृत्ते समाणे एयमद्वं नो पाढाइ नो परियाणाइ°, अणाढायमाणे अपरिया णमाणे विहरइ ।। ३१. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएण अणाढाइज्जमाणी अपरियाणिज्जमाणी जामेव दिसं पाउन्भूया तामेव दिसं पडिगया ।। महासतगस्स उवासगपडिमा-पदं ३२. तए णं से महासतए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ। ३३. तए णं से महासतए समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आरा ३४. तए णं से महासतए समणोवासए दोच्चं उवासगपडिमं, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठम, नवमं, दसम, एक्कारसमं उवासगपडिम प्रहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ० ॥ ३५. तए णं से महासतए समणोवासए तेणं अोरालेण विउलेणं पयत्तेणं पगहि एणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए ° किसे धमणिसंतए जाए। महासतगस्स अणसण-पदं ३६. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासयगस्स अण्णदा कदाइ पुठवरत्तावरत्तकाले धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं अोरालेणं' विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्टिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अस्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परकम्मे सद्धाधिइ-संवेगे, तं जावता मे अस्थि उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा १. सं० पा०-पढम अहासुत्त जाव एक्कारस्स वि। २. सं० पा-उरालेणं जाव किसे । ३. स० पा०--उरालेण तवोकम्मेण जहा आणंदो तहेव अपच्छिम । ४. उवा० ११५७० । Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अट्ठम अझयणं (महासतए) ५२१ असणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए -- एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उठ्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते • 'अपच्छिममारणतियसलेहणा-झूसणा झूसिए" भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणव कंखमाणे विहरइ ।। महासतगस्स प्रोहिनाणुप्पत्ति-पदं ३७. तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स सुभेणं अज्झवसाणण' 'सुभेणं परिणामेणं साहिं विसुज्झमाणीहि, तदावरणिज्जाणं कम्माणं खग्रोवसमेणं प्रोहिणाणे समुप्पण्णे पुरथिमे णं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ, ''दविखणे णं लवणस मुद्दे जोयणसाहस्सियं खेत्तं जाणइ पासइ, पच्चत्थिमे णं लवणसमुद्दे जोयणसाहस्सियं खेतं जाणइ पासइ° उत्तरे णं जाव चुल्लहिम. वंतं वासहरपव्वयं जाणइ पासइ, उड्ढं जाव सोहम्मं कप्पं जाणइ पासइ ? ]' अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुयं नरयं चउरासीइवाससहस्सटिइयं जाणइ पासइ॥ महासतगस्स पुणरवि अणुकूल-उवसग्ग-पदं ३८. तए णं सा रेवती गाहावइणी अण्णदा कदाइ मत्ता' 'लुलिया विइण्णकेसी ° उत्तरिज्जयं विकमाणी-विकड्डमाणी 'जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए", तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-हंभो! महासतया ! समणोवासया ! किणं तब्भं देवाणप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि अोरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? ३९. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमटुं नो पाढाइ नो १. सलेहणाए झूसियसरीरे (क,ख,ग,घ)। ५. स० पा०—मत्ता जाव उत्तरि जय । २. सं० पा० -अज्झवसाणेणं जाव खओव- ६. जेणेव महासत्तए समणोवासए जेणेव समेण । पोसहसाला (क,ख,ग,ध)। अत्र संभवतो ३. सं० पा०—एवं दविखणे ण पच्चरिथमे णं लिपिदोषेण क्रमपरिवर्तनं जातम् । किन्तु उत्तरे ण। पूर्वसूत्रस्य (सू. २६) अनुसारेण स्वीकृतपाठ ४. कोष्ठकान्तर्वी पाठः प्रयुक्तादशेषु कस्मि- एवं उपयुज्यते । नपि नोपलभ्यते। 'अहे इमीसे रयणप्प- ७. सं० पा०-- महासतयं तहेव भणइ जाव भाए जाणइ पासई' एष पाठ: 'क' प्रतो दोच्च पि तच्चं पि एवं क्यासी–हभो ! नास्ति। संभवतः सक्षिप्तलिपिपद्धत्या तहेव । परिवर्तनमिदं जातम् । अत्र द्वावपि पाठी ८. पू०-उवा० ८।२७ । युज्यते। Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२२ उवासगदसाओ परियाणाइ, प्रणादायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्झाणोवगए विहरइ॥ ४०. तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं दोच्च पि तच्चं पि एवं वयासी-हंभो ! महासतया ! समणोवासया' ! किं णं तुब्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुण्णेण वा सग्गेण वा मोक्खेण वा, जं णं तुम मए सद्धि पोरालाई माणुस्सयाई भोगभोगाइं भुजमाणे नो विहरसि ? ' महासतगस्स विक्खेव-पदं ४१. तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्चं पि एवं वुत्ते समाणे आसुरत्ते' रुटे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे प्रोहिं पउंजइ, पउंजित्ता प्रोहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी-हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! दुरंत-पंत-लक्खणे ! होणपुण्णचाउद्दसिए ! सिरि-हिरि-धिइ-कित्ति-परिवज्जिए! एवं खलु तुमं अंत सत्तरत्तस्स अलसएणं' वाहिणा अभिभूया समाणी अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा अहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु नेरइएसु नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि ।। तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतएणं समणोवासएणं एवं वुत्ता समाणी -- रु? णं ममं महासतए समणोवासए ! हीणे णं ममं महासतए समणोवासए ! अवज्झाया णं अहं महासतएणं समणोवासएणं, न नज्जइ ण' अहं केणावि' कु-मारेणं मारिज्जिस्सामि-त्ति कटु भीया तत्था तसिया उव्विग्गा संजायभया सणियं-सणियं पच्चोसक्कइ, पच्चोसक्कित्ता जेणेव सए गिहे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता प्रोहयमणसंकप्पा' चितासोगसागरसंपविट्ठा करयल पल्हत्थमुहा अट्टज्झाणोवगया भूमिगयदिट्ठिया° झियाइ ॥ ४३. तए ण सा रेवती गाहावइणी अंतो सत्तरत्तस्स अलसएणं वाहिणा अभिभूया अट्ट-दुहट्ट-वसट्टा कालमासे कालं किच्चा इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सटिइएसु ने रइएसु नेरइयत्ताए उववण्णा ।। ४२. १. पू०--उवा० ८।२७ । २. आसुरुत्त (क,ख,ग,घ)। ३. आलस्सएणं (क); आलस्सएणं (ख)। ४. समाणी एवं च (क,ग,घ); समाणी एवं वयासी (ख); किन्तु प्रकरणानुसारेण नेवं युज्यते। ५. X(ग, घ)। ६. केणति (क); केण वि (ख, घ)। ७. सं० पा०—ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ। ८. आलस्सएण (क); पालसएणं (ख); अलस्सएणं (ग)। Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ giri ( महासतए ) महावीर - समवसरण - पदं ४४. तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे समोसरिए || ४५. परिसा पडिगया || महासतगस्स अंतिए गोतम - पेसण-पदं ४६. गोयमाइ ! समणे भगवं महावीरे भगवं गोयमं एवं वयासी एवं खलु गोयमा ! इहेव रायगिहे नयरे ममं अंतेवासी महासतए नामं समणोवासए पोसहसालाए अपच्छिममारणंतियसंलेहणाए भूसियसरी भत्तपाण- पडियाइfree, कालं प्रणवखमाणे विहरइ || तए णं तस्स महासतगस्स समणोवासगस्स रेवती गाहावइणी मत्ता' 'लुलिया विइण्णकेसी उत्तरिज्जयं विकड्डूमाणी- विकडमाणी जेणेव पोसहसाला, जेणेव महासतए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता मोहुम्माय जणणाई सिंगारियाई इत्थिभावाई उवदंसेमाणी-उवदंसेमाणी महासतयं समणोवासयं एवं क्यासी - हंभो ! महासतया ! समणोवासया' ! किं णं तुब्भं देवाणुप्पिया ! धम्मेण वा पुणेण वा समोण वा मोक्त्रेण वा, जं गं तुमं मए सद्धि ओोरालाई माणुस्साई भोगभोगाई भुंजमाणे नो विहरसि ? तए णं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए एयमहं नो आढाइ नो परियाणाइ, अणाढायमाणे अपरियाणमाणे तुसिणीए धम्मज्भाणोवगए विहरइ । तए णं सा रेवती गाहावइणी महासतयं समणोवासयं ● दोच्च पि तच्चं पि एवं वयासी । ५२३ तणं से महासतए समणोवासए रेवतीए गाहावइणीए दोच्चं पि तच्च पि एवं वृत्ते समाणे आसुरते रुट्ठे कुविए चंडिक्किए मिसिमिसीयमाणे ओहिं पतंजइ, परंजित्ता प्रहिणा आभोएइ, आभोएत्ता रेवति गाहावइणि एवं वयासी' - हंभो ! रेवती ! अप्पत्थियपत्थिए ! दुरंत-पंत- लक्खणे ! हीणपुण्णचाउछ सिए ! सिरि-हिरि-धिइ कित्ति-परिवज्जिए ! एवं खलु तुम तो सत्तरत्तस्स असणं वाहिणा अभिभूया समाणी श्रट्ट दुहट्टवसट्टा असमाहिपत्ता कालमासे कालं किच्चा आहे इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए लोलुयच्चुए नरए चउरासीतिवाससहस्सट्टिइएस नेरइएस नेरइयत्ताए उववज्जिहिसि । नो खलु कप्पइ गोयमा ! समणोवासगस्स अपच्छिम मारणंतियसंलेहणा १. सं० पा०—मत्ता जाव विकड्ढमाणी । २. सं० पा० - मोहम्माय जाव एवं वयासी तहेब जाव दोच्चं पि । ३. पू० उवा० ८२७ । ४. सं० पा०-- वयासी जाव उववज्जिहिसि । ५. सं० पा० - अपच्छिम जाव भूसियस्स । Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२४ उवासगदसाओ झूसणा-झुसियस्स' भत्तपाण-पडियाइविखयस्स परो संतेहिं तच्चेहि तहिहिं सभाएहि अणि?हिं अकतेहिं अप्पिएहिं अमणुण्यहिं अमणामेहिं वागरणेहि वागरित्तए । तं गच्छ णं देवाणुप्पिया! तुमं महासतयं समणोवासयं एवं वयाहि----नो खलु देवाणप्पिया! कप्पइ समणोवासगस्स अपच्छिम मारणतियसंहणा-झूसणा-झूसियस्स ° भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहिं 'तच्चेहि तहिएहिं सन्भूएहिं अणि?हिं अकंतेहि अप्पिएहिं अमणुण्णेहिं अमणामेहि वागरणेहि° वागरित्तए तुमे य णं देवाणुप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहिं तच्चेहि तहिएहिं सब्भूएहिं अणि हिं अकंतेहि अप्पिएहिं अमणुग्णेहि अमणामेहिं वाग रणेहिं वागरिया। तंणं तुमं एयस्स ठाणस्स पालोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं. पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जाहि ।। गोतमरस आगमण-पदं ४७. तए ण से भगवं गोयमे समणस्स भगवनो महावीरस्स तह त्ति एयमटुं विणएणं पडिसुणे इ, पडिसुणेत्ता तो पडिमिक्खमइ, पडिणिक्वमित्ता रायगिहं नयरं मज्झमझेणं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता जेणेव महासतगस्स समणोवासगस्स गिहे जेणेव महासलए समणोवासए, तेणेव उवागच्छइ ।। महासतगस्स वंदण-पदं ४८. ताए णं से महासतए समणोवासए भगवं गोयमं एज्जमाणं पास इ, पासित्ता हद' तुटु-चित्तमाणंदिए पीइमाणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाण ° हियए भगवं गोयम वंदइ नमसइ ॥ महावीरुत्तस्स फहण-पदं ४६. तए णं से भगर्व गोयमे महासतयं समणोवासयं एवं वयासी-एवं खलू देवाणुप्पिया ! समणे भगवं महावीरे एवं आइक्खइ भासइ पण्णवेइ परूवेइ-- नो खलु कप्पइ देवाणुप्पिया ! समणोवासगस्स अपच्छिम" मारणंतियसंलेहणा ७. जहारिहं (क, ख, ग, घ)। ८. अस्यानन्तरं 'जेणेव पोसहसाला' इति पाठः अपेक्ष्यते । किन्तु कस्मिन्नप्यादर्श नोपलब्धो १. झसियस्स सरीरस्स (ख, ग, घ)। २. पडिग पाइक्वितस्स (क) । २. X(ग)। ४. सं० पा०--च्छिम जाव भत्तपाण । ५. सं० पा०-संतेहि जाव वागरित्तए। ६. सं० पा०---आलोएहि जाव महारिहं । ६. सं० पा०-हटु जाव हियए। १०. सं०पा०-अपच्छिम जाव वागरित्तए। Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ०मा० अट्ठमं अज्झयणं (महासतए) ५२५ झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स परो संतेहि तच्चेहि तहिपहिं सब्भूएहिं अणिद्वेहि अकतेहिं अप्पिएहि अमण्णोहिं अमणामेहिं वागरणेहि ° वागरित्तए। तुमे णं देवाणप्पिया ! रेवती गाहावइणी संतेहि तच्चेहि तहिहिं सब्भूएहिं अणिद्वेहिं अकतेहिं अप्पिएहिं अमणुण्यहिं अमणामेहि वागरणेहिं . वागरिया । तं णं तुम देवाणु प्पिया ! एयस्स ठाणस्स पालोएहि पडिक्कमाहि निदाहि गरिहाहि विउट्टाहि विसोहेहि अकरणयाए अब्भुट्ठाहि अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म° पडिवज्जाहि ।।। महासतगस्स पायच्छित्त-पदं ५०. तए णं से महासतए समणोवासए भगवनो गोयमस्स तह त्ति एयमढुं विणणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता तस्स ठाणस्स आलोएइ पडिक्कमइ निदइ गरिहइ विउदृइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ° अहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ ।। गोयमस्स पडिणिक्खमण-पदं ५१. तए णं से भगवं गोयमे महासतगस्स समणोवासगस्स ग्रंतियानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता रायगिह नयर मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव समण भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीर वंदइ नमसइ, वंदित्ता नमसित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ ।। भगवनो जणवयविहार-पदं ५२. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ रायगिहायो नय राम्रो पडिणि क्खमइ, पडिणिक्खमिता वहिया जणवयविहारं विहरइ॥ महासतगस्स अणसण-पदं ५३. तए ण से महासतए समणोवासए बहूहि सील-व्वय - गुण-वे रमण-पच्चक्खाण पोसहोववाहि अप्पाणं° भावेत्ता बोसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता एक्कारस य उवासगपडिमानो सम्मं काएणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झूसित्ता, सट्टि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, पालोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणव.सए' विमाणे १. सं० पा०-संतेहिं जाव वागरिया ! २. सं० पाo-आलोएहि जाव पडिवज्जाहि। ३. पडिच्छति (क)। ४. सं० पा०—आलोएइ जाव अहारिहं। ५. जहारिहं (क, ख, ग, घ)। ६. सं० पा०-सोलध्वयगणेहिं जाव भावेत्ता । ७. वडिसए (ख, ग, घ)। Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगदसाओ देवत्ताए उववणे। चत्तारि पलिग्रोवमाई ठिई पण्णत्ता। महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंत काहिइ ।। निक्खेव-पदं ५४. "एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते ° ।। १. सं० पा०--निक्खेवो। Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं नंदिणोपिया उक्खेव-पदं १. "जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं अट्ठमस्स अज्झयणस्स अयमढे पण्णत्ते, नवमस्स णं भंते ! अज्झयणस्स के अट्ठ पण्णत्ते ? नंदिणीपियगाहावइ-पदं २. एवं खलु जंबू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी। कोट्ठए चेइए । जियसत्तू राया। ३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए नंदिणीपिया नाम गाहावई परिवसइ --अड्ढे जाव' बहुजणस्स अपरिभूए । तस्स णं नंदिणीपियस्स गाहावइस्स ° चत्तारि हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्तायो, चत्तारि हिरण कोडीओ वडिपउत्तानो, चत्तारि हिरण्णकोडीओ पवित्थर पउत्तानो, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था । ५. से णं नंदिणोपिया गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था । १. सं० पा०—उक्खेवो। २. ना० १११७ । ३. सं० पा०–अड्ढे । चत्तारि । ४. उवा०१११। ५. सं० पा.---अस्सिणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जह । सामी बहिया विहरइ । ६. उवा० १२१३ । ७. उवा० १११३। ५२७ Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५२८ उवासगदसाओ ६. तस्स णं नंदिणी पियस्स गाहावइस्स अस्सिणी नामं भारिया होत्था-अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ॥ महावीर-समवसरण-पदं ७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे ।। ८. परिसा निग्गया। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे - "एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुटिव चरमाणे गामाणुगामं दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए बहिया कोट्टए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं अोगिण्हित्ता संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" तं महाफलं खलु भो ! देवाणुप्पिया ! तहारूवाणं अरहताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किमंग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए ? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणु प्पिया ! समणं भगवं महावीरं वदामिणमसामि सक्कारेमि सम्माणमि कल्लाण मंगल देवयं चेइयं पज्जुवासामि ... एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छित्ते सुद्धप्पावेसाइं मंगल्लाइं वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालं कियसरीरे सयानो गिहाम्रो पडिणिक्ख मइ, पडिणिवखमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवम्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेणं सावत्थि नरि मज्झमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणामेव कोट्टए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासण्णे णाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जवासइ ।। ११. तए णं समणे भगवं महावीरे नंदिणीपियस्स गाहावइस्स तीसे य महइ महा लियाए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए । नंदिणीपियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए धम्म ३. ओ० सू० ७१-७७ । १. उवा० १११४ । २. ओ० सू० ५३-६६1 Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (नंदिणीपिया) ५२६ निसम्म हट्ठतुट्ठ-चित्तमाणदिए पोइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस-विसप्पमाणहियए उट्ठाए उठेइ, उद्रुता समगं भगवं महावोरं तिक्खुत्तो पायाहिणपयाहिणं करेइ, करेता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी-सद्दहामि णं भंते ! निगंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, अभट्रेमि णं भंते ! निगथं पावयणं । एवमेयं भंते ! तहमेयं भंते ! अक्तिहमेयं भते । असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छिय मेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भते ! इच्छिप-पडिच्छि प्रमेयं भंते ! से जहेयं तबभे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाण अंतिए वहवे राईसर-तलवर-माडंबिय-कोडुविय-इभसेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगा राम्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराप्रो अणगारिय पव्वइत्तए । अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयं-दुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि। अहासुह देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। १४. तए णं से नंदिणीपिया गाहावई समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतिए' साक्य धम्म पडिवज्जइ ।। भगवो जणवय विहार-पदं १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरीए कोट्ठयानो चेइयाओ पडिणिकावमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ।। नंदिणीपियस्स समणोवासगचरिया-पदं १६. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जाए-- अभिगयजीवाजीवे जाव' समण निरगंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणेणं पोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पोढ-फलग-सेज्जा संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ । अस्सिणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा अस्सिणी भारिया समणोवासिया जाया--अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-सणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुंछणणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जासंथारएणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। १. पू०---उवा० ११२४-५३ । २. सं० पा०–जाए जाब विहरइ । ३. उवा० १२५५ । ४. उवा० ११५६॥ Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवासगसाओ नंदिणीपियस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स नंदिणी पियस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-ध्वय-गुण'- वेरमण पच्चक्खाण-पोसहोववासेहि अप्पाणं ° भावमाणस्स चोदस संवच्छराई वीइक्कताई', 'पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए वहूर्ण जाव' यापुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुवस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावर, तं एतेण वक्खेदेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए"। १६. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च आपुच्छइ, आपुच्छित्ता सयानो गिहारो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सावत्थि नरि मझमझेणं निग्गच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चारपासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दब्भसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। नंदिणी पियस्स उवासगपडिमा-पदं २०. तए णं से नंदिणोपिया समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ २१. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं महाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। २२. तए णं से नंदिणोपिया समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छद्र, सत्तम, अट्टम, नवम, दसम, एक्कारसम उवासगपडिम अहासूत्तं अहाकप्पं अहामन्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तोरेइ कित्तेइ पाराहेइ। २३. तए णं से नंदिणीपिया समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। १. सं० पा०-गुण जाव भावमाणस्स। विदेहे वासे सिज्झिहिइ । २. सं० पा०-वीइक्कंताई तहेव जेट्टपुत्तं ३. उवा० १११३ । ठवेइ । धम्मपण्णत्ति। वीसं वासाइं परियागं ४. उवा० ११३ । नाणतं अरुणगवे विमाणे उववाओ महा- ५. पू०-उवा० ११५७-५६ । Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नवमं अज्झयणं (नंदिणीपिया) ५३१ नंदणीपियस्स अणसण-पदं २४. तए णं तस्स नंदिणी पियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुश्वरत्ताव रत्तकाल समयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए भगोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था-एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं परगहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अढि चम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अस्थि ता मे उहाणे कम्मे बले वीरिए पूरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तंजावता मे अत्थि उदाणे कम्मे बले वारिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थो विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स, कालं अणवखमाणस्स विहरितए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए कालं अणवकंखमाणे विहरइ ।। नंदणोपियस्त समाहिमरण-पदं २५. तए णं से नंदिणोपिया समणोवासए वहहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण पोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाइं समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म काएण फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सर्द्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, पालोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणगवे विमाणे देवत्ताए उववणे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिअोवमाइं ठिई पण्णत्ता। नंदिणीपि यस्स वि देवस्स चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता॥ २६. से णं भंते ! नंदिणोपिया तारो देवलोगाप्रो आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्ख एणं प्रणतरं चयं चइता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! • महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं काहिइ ॥ निक्खेव-पदं २७. "एवं खलु जंबू ! समजेणं भगवया महावीरेणं उवासगदसाणं नवमस्स अज्झय णस्स अयमढे पण्णत्ते ° ॥ १. उवा० ११५७ । २. सं० पा०--निक्खेवो । Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं लेइयापिता उक्खेव-पदं १. जइ णं भंते ! समणेणं भगवया महावीरेणं जाव' संपत्तेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाणं नवमस्स अज्झयणस्स अयम? पण्णत्ते, दसमस्स णं भंते अज्झय णस्स के अटे पण्णत्ते? ' लेइयापितामाहावइ-पदं २. एवं खलु जंवू ! तेणं कालेणं तेणं समएणं सावत्थी नयरी ! कोटुए चेइए । जियसत्तू राया ॥ ३. तत्थ णं सावत्थीए नयरीए लेतियापिता' नाम गाहावई परिवसइ–अड्ढे 'जाव बहुजणस्स अपरिभूए । ४. तस्स पं लेइयापियस्स गाहावइस्स चत्तारि हिरपणकोडीअो निहाणपउत्तानो, चत्तारि हिरणकोडीओ वडिपउत्तानो, चत्तारि हिरण्णकोडीअो पवित्थरपउत्ताओ, चत्तारि वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं होत्था ॥ ५. से णं ले इयापिता गाहावई बहूणं जाव' आपुच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे, सयस्स वि य णं कुडुबस्स मेढी जाव' सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था ।। ---- ---- --- १. सं. पा.---उक्खेवो। ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ २. ना० १।१७। महावीरस्स धम्मपत्ति उवसंपज्जित्ता णं ३. सालिहीयापिया (ख) विहर। नवरं निरुवसग्गो एक्कारस्स वि ४. सं० पा–अडढे। चत्तारि । उवासगप डिमाओ तहेव भाणियब्व ओ। ५. उवा० १११! एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाव सोहम्मे । ६. सं.पा०-फग्गुणी भारिया । सामी समोसढे। ७. उवा० १।१३ । जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडि- ८. उवा० ११३१ वज्जइ। जहा कामदेवो तहा जेटुं पुत्तं Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम अज्झयणं (लेइयापिता) ६. तरस णं लेतियापियरस गाहावइरस फगुणी नाम भारिया हारथा- अहीण पडिपुण्ण-पंचिदियसरीरा जाव' माणुस्सए कामभोए पच्चणुभवमाणी विहरइ ।। महावीर-समवसरण-पदं १७. तेणं कालेणं तेणं समएणं सामी समोसढे । ८. परिसा निग्गया। ६. कूणिए राया जहा, तहा जियसत्तू निग्गच्छइ जाव' पज्जुवासइ ।। १०. तए णं से लेतियापिता गाहावई इमीसे कहाए लट्ठ समाणे --"एवं खलु समणे भगवं महावीरे पुव्वाणुपुदि चरमाणे गामाणुगाम दूइज्जमाणे इहमागए इह संपत्ते इह समोसढे इहेव सावत्थीए नयरीए वहिया कोट्ठए चेइए अहापडिरूवं प्रोग्गहं ओगिहिना संजमेणं तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ।" त महप्फलं खलु भो ! देवाणुपिया ! तहारूवाणं अरहंताणं भगवंताणं णामगोयस्स वि सवणयाए, किंमग पुण अभिगमण-वंदण-णमंसण-पडिपुच्छणपज्जुवासणयाए? एगस्स वि पारियस्स धम्मियस्स सुवयणस्स सवणयाए, किमंग पुण विउलस्स अट्ठस्स गहणयाए ? तं गच्छामि णं देवाणप्पिया ! समणं भगव महावीरं वदामि णमंसामि सक्कारमि सम्माणे मि कल्लाणं मंगलं देत चेइयं पज्जवासामि एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता हाए कयबलिकम्मे कय-कोउयमंगल-पायच्छिते सुद्धप्पावेसाई मंगल्लाई वत्थाई पवर परिहिए अप्पमहग्घाभरणालंकियसरीरे सयानो गिहाम्रो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं मणुस्सवग्गुरापरिखित्ते पादविहारचारेण सावत्थि नरिमझमझेणं निग्गच्छइ,निग्गच्छिता जेणामेव कोट्रए चेइए, जेणेव समणे भगवं महावीरे, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छिता समणं भगवं महावीर तिक्खुत्तो आयाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ णमंसइ, वंदित्ता गमंसित्ता णच्चासण्णे गाइदूरे सुस्सूसमाणे णमंसमाणे अभिमुहे विणएणं पंजलिउडे पज्जुवासइ ।। ११. तए णं समणे भगवं महावीरे लेतियापियस्स गाहावइस्स तीसे य महइमहालि याए परिसाए जाव' धम्म परिकहेइ ।। १२. परिसा पडिगया, राया य गए। लेतियापियस्स गिहिधम्म-पडिवत्ति-पदं १३. तए णं से लेतियापिया गाहावई समणस्स भगवो महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ-चित्तमाणदिए पीइमणे परमसोमणस्सिए हरिसवस- - - - -- १. उवा० १११४ । ३. ओ० सू०७१-७७ । २. ओ० सू० ५३-६६। Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३४ उवासगदसाओ विसप्पमाणहियए उढाए उद्वेइ, उद्वेत्ता समणं भगवं महावीरं तिवखुत्तो पायाहिण-पयाहिणं करेइ, करेत्ता बंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता एवं वयासी.सदहामि णं भंते ! निगथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते ! निग्गथं पावयणं, रोमिण भते । निगंथं पावयणंअब्भटेमिणं भंते ! निग्गंथं पावयणं । एवमयं भते ! तहमेयं भंते ! अवितहमेयं भंते ! असंदिद्धमेयं भंते ! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छिय-पडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वदह । जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राईसर-तलवर-माइंबिय-कोडुबियइब्भ-सेटि-सेणावइ-सत्थवाहप्पभिइया मुंडा भवित्ता अगारात्रो अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्व इत्तए। अहं णं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाणुव्वइयं सत्तसिक्खावइयंदुवालसविहं सावगधम्म पडिवज्जिस्सामि।। अहासुहं देवाणुप्पिया ! मा पडिबंध करेहि ।। १४. तए ण से लेतिया पिता गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए' सावय धम्म पडिवज्जइ । भगवनो जणवयविहार-पदं । १५. तए णं समणे भगवं महावीरे अण्णदा कदाइ सावत्थीए नयरीए कोट्टयानो __ इयानो पडिणिक्खमइ, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरइ ॥ लेतियापियस्स समणोवासग-चरिया-पदं १६. तए णं से लेतियापिता समणोवासए जाए-अभिगयजीवाजीवे जाव' समणे निग्गथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं बत्थ-पडिग्गह-कंबलपायपुछणेणं अोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथारएणं पडिलाभेमाणे विहरइ ।। फग्गुणीए समणोवासिय-चरिया-पदं १७. तए णं सा फग्गुणी भारिया समणोवासिया जाया-अभिगयजीवाजीवा जाव' समणे निग्गंथे फासु-एसणिज्जेणं असण-पाण-खाइम-साइमेणं वत्थ-पडिग्गहकंबल-पायपुछणेणं प्रोसह-भेसज्जेणं पाडिहारिएण य पीढ-फलग-सेज्जा-संथार एणं पडिलाभेमाणी विहरइ ।। लेतियापियस्स धम्मजागरिया-पदं १८. तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स बहूहिं सील-व्वय-गुण-वेरमण ३. उवा० ११५६। १. पू०-उवा० ११२४-५३ । २. उवा० ११५५ Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसम अज्झयण (लेइयापिता) ५३५ पच्चवखाण-पोसहोववासे हि अप्पाणं भावेमाणस्स चोद्दस संवच्छराइं वीइक्कंताइं पण्णरसमस्स संवच्छरस्स अंतरा वट्टमाणस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकालसमयसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स इमेयारूवे अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था --एवं खलु अहं सावत्थीए नयरीए बहूर्ण जाव' आपूच्छणिज्जे पडिपुच्छणिज्जे सयस्स वि य णं कुडुंबस्स मेढी जाव सव्वकज्जवड्ढावए, तं एतेणं वक्खेवेणं अहं नो संचाएमि समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरित्तए । १६. तए णं से लेतियापिता समणोवासए जेट्टपुत्तं मित्त-नाइ-नियग-सयण-संबंधि परिजणं च प्रापुच्छइ, आपुच्छित्ता सयाओ गिहारो पडिणिक्ख मइ, पडिणिक्खमित्ता सात्थि नरि मझमझेणं निगच्छइ, निग्गच्छित्ता जेणेव पोसहसाला, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पोसहसालं पमज्जइ, पमज्जित्ता उच्चार-पासवणभूमि पडिलेहेइ, पडिलेहेत्ता दभसंथारयं संथरेइ, संथरेत्ता दब्भसंथारयं दुरुहइ, दुरुहित्ता पोसहसालाए पोसहिए बंभयारी उम्मुक्कमणिसुवणे ववगयमालावण्णगविलेवणे निक्खित्तसत्थमुसले एगे अबीए दब्भसंथारोवगए समणस्स भगवनो महावीरस्स अंतियं धम्मपण्णत्ति उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। लेतियापियस्स उवासगपडिमा-पदं २०. तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं उवसंपज्जित्ता णं विहरइ॥ २१. तए णं से लेतियापिता समणोवासए पढम उवासगपडिमं अहासत्तं महाकप्प अहामगं अहातच्च सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। २२. तए ण से लेतियापिता समणोवासए दोच्चं उवासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तम, अट्ठमं, नवम, दसमं एक्कारसमं उवासगपडिम अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ आराहेइ॥ २३. तए णं से लेतियापिता समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । लेतियापियस्स अणसण-पदं २४. तए णं तस्स लेतियापियस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल ३. पू०-उवा० ११५७-५६ । १. उदा० ११३॥ २. उवा० १६१३ । Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५३६ उवासमदसाओ समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं प्रज्भतिथए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था -- एवं खलु ग्रहं इमेणं एयारूवेणं श्रोरालेणं विउलेणं पत्ते पहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लक्खे निम्मंसे श्रचिम्मावण किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए । तं प्रत्थि ता मे उट्ठाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार- परक्कमे सद्धा-धि-संवेगे, तं जावता मे प्रत्थि उट्टा कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिण्यरे तेयसा जलते प्रपच्छिममारणंतियसंलेहणा भूसणा-भूसियस्स भत्तपाण- पडियाइक्खियस्स, कालं प्रणवखमाणस्स विहरित्तए - एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए उट्टियम्मि सूरे सहस्सररिसम्म दिपयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा - भूसणा-भूसिए भत्तपाण -पडियाइविखए कालं प्रणवखमाणे विहरइ ॥ लेतिया पियस्स समाहिमरण-पदं २५. तए णं से लेतियापिता समणोवासए बहूहि सील व्वय-गुण- वेरमण-पच्चक्खाणपोसहोववासेहि अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियायं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमा सम्मं कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए प्रत्ताणं भूसित्ता, सट्टि भत्ताई अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा • सोहम्मे कप्पे अरुणकीले विमाणे देवत्ताए उबवण्णे । तत्थ णं अत्थेगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिओ माई ठिई पण्णत्ता । लेतियापियस्स वि देवस्स चत्तारि पलिश्रवमाई ठिई पण्णत्ता ॥ २६. से गं भंते ! लेतियापिता ताम्रो देवलोगाश्रो ग्राउक्खएणं भवक्खएणं ठिक्खणं श्रणंतरं वयं चइत्ता कहि गमिहिइ ? कहि उववज्जिहिइ ? गोमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ बुज्झिहिइ मुच्चिहि सव्वदुक्खाणमंत काहि ॥ निeda-पदं २७. एवं खलु जंबू ! समणे णं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं दसमस्स अभयणस्स अयमट्ठे पण्णत्ते ॥ १. उवा० १।५७ । २. अव्ययननिगमनानन्तरमादर्शेषु पाठान्तररूपेण स्वीकृतं संग्रहवाक्यमुपलभ्यते । वृत्त्यनुसारेण नैतत् संभाव्यते-- दसह वि पष्णरसमे संवच्छरे वट्टमाणे णं चित्ता | दसह वि वीसं वासाई समणोवासयपरिया (क) ख, ग, घ ) । Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दसमं अज्झयणं (लेइयापिता) ५३७ २८. 'एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेणं सत्तमस्स अंगस्स उवासगदसाण अयमद्वे पण्णत्ते॥ परिसेसो उवासगदसाणं सत्तमस्स अंगस्स एगो सुयखंधो । दस अज्झयणा एक्कसरगा दससु चेव दिवसेसु उद्दिस्संति । तओ सुयखंधो समुद्दिस्सइ। तो सुयखंधो अणुण्णविज्जइ दोसु दिवसेसु अंग तहेव ।। ग्रन्थ-परिमाण अक्षर परिमाण-८७८१२ अनुष्टुप् श्लोक-परिमाण-२७४४ एतद् निगमनवाक्यं नोपलभ्यते, २. अतोने एता: संग्रहगाथा आदर्शषु नोपकिन्तु वृत्तौ अस्योल्लेखो विद्यते---'एवं खलु लभ्यन्ते । वृत्तौ पुस्तकालरप्राप्ते रुल्लेखोस्ति, जब! इत्यादि उपासक दयानिगमनवाक्यम- यथा-पुस्तकान्तरे संग्रहगाथा उपलभ्यन्ते ध्येयमिति। ताश्चेमाः वाणियगामे चंपा, दुवे य वाणारसीए नयरीए । पालभिया य पुरवरी, कम्पिल्लपुरं च बोद्धव्वं ॥१॥ पोलासं रायगिह, सावत्थीए पुरीए दोन्नि भवे। एए उवासगाणं, नयरा खलु होति बोद्धव्वा ॥२॥ सिवनन्द-भद्द-सामा, धन्न-बहुला पूस-अग्गिमित्ता य । रेवइ-अस्सिणि तह, फग्गुणी य भज्जाण नामाइं॥३॥ प्रोहिण्णाण-पिसाए, माया वाहि-धण-उत्तरिज्जे य । भज्जा य सुव्वया, दुव्वया निरुवसग्गया दोन्नि ।।४।। अरुणे अरुणाभे खलु, अरुणप्पह-अरुणकंत-सिटे य।। अरुणज्झए य छट्टे, भूय-वडिसे गवे कीले ॥५॥ Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिशिष्ट-१ संक्षिप्त-पाठ, पूर्त-स्थल और पूर्ति आधार-स्थल नायाधम्मकहाओ संक्षिप्त-पाठ पूर्त-स्थल पूर्ति आधार-स्थल अंतिए जाव पव्वयामि २११०२५ १११।१०१ अंतेउरे य जाव अज्झोववणे ११६।४१ १२१६२८ अगडे वा जाव सागरे १८१५४ शक्षा१५४ अग्गिसामण्णे जाव मच्चुसामण्णे ११११११ १।१।१११ अग्घेणं जाव आसणेणं श१६१६७ १११६:१८६ अच्चणिज्जे जाव पज्जुवासणिज्जे ११२१७६ ओ० सू०२ अज्जग जाव परिभाएत्तए । १।६।५ १।१।११० अज्जाओ तहेव भणंति तहेव साविया जाया तहेब चिंता तहेव सागरदत्तं आपुच्छति । १५१६।६८-१०४ १।१४।४४-५० अज्झथिए० ११८७९ ११११४८ अज्झथिए किमण्णे जाव वियंभइ १।१६।२७२ १।१६।२७२ अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था १।११५३,५६,१५४,१५५,१६६,२०४,२०५; १।२।१२,७१,११५।११८,१२४;११७२५; १।१६११८,२८५,२।११३८ शश४८ अज्झत्थिय जाव जाणित्ता ११६।२८६ ११११४८ अट्टदुहट्टवसट्टमाणसगए जाव रयणि १११११५५ १११११५४ अट्टमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि २।८।१,२ २।२।१,२ अद्वाई जाव नो वागरेइ शश६६ १५६९ अट्ठाई जाव वागरेइ ११५२६६ प्रदायिं महानंदीसरं जामेव दिसं पाउ जाव पडिगए शक्षा२२६ शमा२२४ अड्डा जाव अपरिभूया ११५७ ओ० सू० १४१ अड्डा जाव भत्तपाणा ११३८ ओ० सू० १४१ Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति १११८४ ओ० सू० १६४ प्रो० सू० ५२ ११७ शपा४२ १२११४६ १११४॥३६ १२१४१३६ अणते जाव समुप्पण्णे ११८१२२५ अणते गाणे समुप्पण्णे जाव सिद्धा १।१६।३२४ अणगारवण्णओ भाणियब्वो ११।१६४ अणगारे जाव इहमागए ११५१६८ अणगारे जाव पज्जवासमाणे २।११४ अणिट्टतराए चेव जाव गंधेणं १।१२।३ अणिवा जाव अमणामा ११६९७ अणिट्ठा जाव दंसणं १११४१४३ अणिवा जाव परिभोगं १।१४।५० अणुत्तरे पुणरवि तं चेव जाव तओ पच्छा भुत्तभोगी समणस्स भगवओ जाव पब्वइस्ससि १।१।११३ अण्णं च तं विउलं १८।२०७ अण्णमण्णं जाव समणे श१३।३८ अत्यत्थिया जाव ताहि इट्टाहिं जाव अणवरयं ११४३ अस्थामा जाव अधारणिज्ज १।१६२५३ अपत्थिय जाव परिवज्जिए ११८५१२८ अपत्थियपत्थए जाव वज्जिए १॥५॥१२२ अपत्थियपत्थया जाव परिवज्जिया शा७४ अपुष्णाए जाव निबोलियाए १११६२५ अब्भण्णाए जाव पव्वइतए श१२।३६ अब्भुज्जएणं जाव विहरित्तए १।५।११८,१।१६२८ अब्भुढेंसि जाव वंदसि ११५१६७ अभिसिंचइ जाव पडिगए १११६६२८० अभिसिंचइ जाव राया जाए विहरइ ११५/६३-६५ अमच्चे जाव तुसिणीए श१२।१५ अम्मयाओ जाव पब्वइत्तए १३१५१०६ अम्मयाओ जाव सुलद्धे १३१४१२ अयमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था ११५१६५ अरहण्णग जाव वाणियगाणं ११८६७ अरहण्णग संज्जत्तगा ११८८४ अरिटुनेमि जाव गमित्तए १।१६३२० अरिटुनेमिस्स जाव पव्वइत्तए ११५।२० अवंगुणेइ जाव पडिगए श११११२ ११८।२०५ १३१५३ ओ० सू०६८ ११६।२१ ११५११२२ उवा०।२।२२ ११५४१२२ १४१६१८ शश१०४ १।५।१२४ ११५२६६ ११११६१ ११११११७-११६ १।१२१७ १११११०७ १।१।३३ १११४८ ११८६४ १८६६ १।१६।३३४ ११.१०६ १११६१६१ Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १.१६१२७६ ११०९६-१०१ १।१८।१२ १११६२२० ११मा१६६ १.१६।२४६ ११८१७२ १।२।१२ २१४१३६ शरा२० ११२२५२,५३ १०१२।४ १।१६।२६२ १५॥३४-३८ १११८८ १११६।२१६ १११६१२१ १।१६।२४५ ११८१५६ १।२।१२ १२१४१३८ १२।१४ ११२।३७,३८ १।२।१४ ११७२२ १।१६।१५२ ११७६ १४१६४१५१ अवरकंका जाव सणि वाडिया अवसेसं तहेव जाव सामाइयमाइयाई अवहरइ जाव तालेइ अवहिया जाव अवक्खित्ता अवीरिए जाव अधारणिज्ज असक्का रिय जाव निच्छुढे असक्कारिया जाव निच्छूढा असणं जाव अणुवढेमि असणं जाव दवावेमाणी असणं जाव परि जे मागी असणं जाव परिवेसेइ असणं जाव विहरइ असणं मित्तनाइ चउण्ह य सुण्हाणं कुलघर जाव सम्माणित्ता असण जाव पसन्न असिपत्ते इ वा जाव मुम्मुरे इ वा एत्तो अणिद्वतराए चेव असोगवणिया जाव कंडरीयं अहं जाव अणेगभूयभावभविए अहं जाव सुया अहं रज्जं च जाव ओसन्न जाव उउबद्ध पीढ० विहामि अहम्मिए जाव अहम्मकेऊ अहम्मिए जाव विहरइ अहाकप्पं जाव किट्टेत्ता अहापडिरूवं जाव विहरइ (ति) अहापवत्तेहिं जाव मज्जपाणएण अहासुत्तं जाव सम्म अहिमडे इ वा जाव अणि?तराए अमणामतराए अहीण जाव सुरूवे अहो णं तं चेव आइगरे जाव विहर आइपण वेदो १।१६:५२ १।१६३४ ११५१७६ १५७६ वृत्ति श१६१३३ १३५१७६ १३७६ १९५१२४ १।१८।१६ १६१८१६ १।१२०१ १११।१७११६११ ११।११६ १।१।२०१ १॥५॥११७,११८ वृत्ति १११८।१६ ११११११८ ११४ ११।११५ १११११६८ ११८४२ ११११६ १।१२।१६ २श२० ११७१४ वृत्ति ओ० सू० १५ १२१२११३ ११११९५ वत्ति Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १८.१६८ १।१२१२ १।१६।१८६ १।८।१७० ११८।१७० १।१६।१८६ १३१४१६० शक्षा१७० १११११५४ २१५४ २११६१ १७६ शश१०१ १।१।१०१ १।१।२० ११।१८६ आएहि य जाव परिणामेमाणा ११म१०४ आउक्खएणं जाव चइत्ता १।१६।१२३ आईति जाव पज्जुवासंति १११६:१८८ आढाइ' जाव तुसिणीए १।१२।७१।१६१५ आढाइ जाव तुसिणीया २१११३६ आढाइ जाव नो पज्जुवासह १२१६१६० आढाइ जाव भोगं १।१४१६१ आढाइ जाव संचिइ १।१६।३० आढायति १।१२१५५ आढायंति जाव संलवेंति १२१११५४ आपुच्छइ जाव पडिगए १६१६१२०० आपुच्छणिज्जं जाव वड्डावियं १७४२ आपुच्छामि जाव पव्वयामि। १११२।३८ आपुच्छामि तएणं जाव पव्वयामि १।१६।१२ आरोग्गतुट्ठी जाव दिठे १।१।२६ आलंबे वा जाव भविस्सइ १।१६।३१२ आलिघरएसु य जाव कुसुमघरएसु १२३३१६ आलोएहि जाव पडिवज्जाहि १।१६।११५ आसयंति वा जाव तुयति १।१७१२२ आसाएइ जाव अणुपरियाट्टिस्सइ १११६४२ आसाएमाणीओ जाव परिभंजेमाणीओ ११२११७ आसाएमाणी जाव विहरइ १।२११४ आसाएमाणे जाव विहरइ १२१२१२२ आसायणिज्ज जाव सन्विदिय० १।१२।२० आसायणिज्जे जाव सव्विदिय० १।१२।१६ आसिय जाव गंधवट्टिभूयं शश६७ आसिय जाव परिगीयं ११७६ आसुरुत्ता जाब मिसिमिसेमाणा १।१६।२८ आसुरुते जाव तिवलियं ५८.१५६ आसुरुते जाव तिवलियं एवं १।१६२८६ आसुरुते जाव प उमनाभं १११६२८० आसुरुते जाव मिसिमिसेमाणे १६५१२२ आहारे वा जाव पव्वयामो ११८४१३ आहेवच्चं जाव अभिरमेत्था ११४१६७ आहेवच्चं जाव पालेमाणे १११७१२२ १९४४ १११ १११८१ १।१।८१ १११२।४ १।१२।४ ११.३३ वृत्ति ११११६१ शा१०६ १८।१०६ १८१०६ १११११६१ १५६० १११.१५७ १११११८ Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ५ १११११८ शश६ ११११४६ १.१६/४७ २०४६ ११११४६ ११११४८ १६१६४६ १११११४५ उवा० २१४० १।११४८ शश१६४ १।११६७,११५३५२ १३५१६:१।३४ आहेवच्चं जाव विहरइ ११३८ आहेवच्चं जाव विहइ १११८/२० आहेवच्चं जाव विहरसि १११११५७ इट्ठा जाव मणामा १११६७० इट्ठा तं चेव १६१६:४८ इट्टाहिं जाव आसासेइ ११६।१३१ इटाहिं जाव एवं १८१२०३ इटाहिं जाव वग्गूहिं १८६७ इट्ठाहि जाव समासासे इ १११।५० इठे जाव से णं ११५/२० इड्ढी जाव परक्कमे ११८७६११६२६५ इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्या ११७१६:२।१११२ इरियासमियाओ जाव गुत्तबंभचारिणीओ १।१४।४० इहमागए जाव विहरइ ११५१५३ ईसर जाव नीहरणं १११४१५६ ईसर जाव पभितीणं १७६ ईहामिय जाव भत्तिचित्तं १।११८६१८४६ उक्किट्ठ जाव समुद्दरवभूयं १४१८४० उक्किट्ठाए जाव देवगईए १।१६।२०४,२०६ उक्किट्ठाए जाए विज्जाहरगईए १४१६१६० उक्किट्ठाए प्फ कुम्मगईए १:४१२१ उक्खेवओ तइयवग्गस्स २१३१ उक्खेवओ पढमझयणस्स २॥५॥३ उज्जलंजाव दुरहियासं १।११६३ उज्जला जाव दाहवरकंतीए १११११८७ उज्जला जाव दुरहियासा ११५१०६:१।१६।२०,११६४५ उज्जाणे जाव विहरइ १११६३२१ उत्तरपरस्थिमे दिसीभाए तिदंडयं जाव धाउरत्ताओ श५८० उत्तरिज्जेहि जाव चिट्ठामो १८१७६ उत्तरिज्जेहिं जाव परम्मुहा । ११८१७८ उदगपरिफोसिया जाव भिसियाए ११८१५१ उप्पलाइं जाव सहस्सपत्ताई १।२।१४ उम्मुक्कबालभावा जाव उक्किट्ठसरीरा १६१६४१२८ उम्मुक्कबालभावा जाव रूवेण १८३८,११६।३७ १३११२५ ११८१६७ राय० सू० १० १।४।२१ वृत्ति २।२।१ २।२।३ शश१६२ १११११६२ १।१।१६२ १६१६१३१६ भ० २।५२,११५।५२ शक्षा१७७ ११५१७७ श८।१४१ राय० सू० ६७ १।१६।३७ वि०१४।३६ Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११२० उम्मुक्कबालभावे जाव जोव्वणग० ११४२२ उरालस्स क सिध मं जाव सुमिणस्स १११६ उरालाई जाव भुंजमाणा १।१२।४० उरालाई जाव विहरइ १११४०२० उरालाई जाव विहरिज्जामि १२१६११३ उरालाई जाव विहरिस्सइ १।१६।२०४ उराले जाव तेयलेस्से १।१६.१२ उरालेणं तहेव जाव भासं ११११२०४ उबवेए जाव फासेणं १।१२।४ उव्वत्तिज्जमाणे जाव टिट्रियावेज्जमाणे १।३।२२ उन्वत्तेइ जाव टिट्टियावेइ ११३१२६ उठवेत्तेंति जाव दंतेहि निक्खुडेंति जाव करेत्तए १४.१६ उध्वत्तेति जाव नो चेव णं संचाएंति करेत्तए १।४।१२ एगदिस जाव वाणियगा एगयओ जहा अरहन्लए जाव लवणसमुई श१७।५ एज्जमाणि जाव निवेसेह १।८।१७१ एवं अत्थेणं दारेणं दासेहि पेसेहि परियणेणं १६१४७७ एवं कुलत्था वि भाणियल्वा । नवरं इम नाणत्तं-इत्थिकुलत्था य धनकुलत्था य । इस्थिकुलत्था तिविहा पुण्णत्ता, तं जहाकुलबहुयाइ य कुलमाउयाइ य कुलधूयाइ य। धन्नकुलत्था तहेव ११५७४ एवं जहा मल्लिणाए १।१६।२०० एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स ११८३१,३२ एवं जहा सूरियाभस्स जाव एवं २११४१५ एवं जहेव तेयलिणाए सुब्वयाओ तहेव समोसढाओ तहेव संघाडओ जाव अणपविट्रे तहेव जाव सूमालिया १६१६१६४-६७ एवं जहेव राई तहेव रयणी वि २।११५७-६० एवं जाब घोसस्स २।३।११ एवं जाव सागरदत्तस्स १।१६।८८-६१ एवं पत्तियामि णं रोएमिणं १११११०१ एवं पाएहि सीसे पोट्ट कायंसि १११११५३ एवं पायंगुलियाओ पायंगुट्ठए वि कण्णसक्कुलीओ वि नासापुडाई १।१४।२१ १।१६।११३ १।१२।४० १।१६।११३ १।१६:११३ ११.६ ११२०२ १११२१३ १।३।२१ १1३२१ ११४१११ ११४१११ ११८६२ १८६६ १।१।४०,१११६६१३१ १.१४१७७ श।७३ ११८११५४ १११८०२०,२२ राय० सू०६६८ २१४१४०-४३ २।११४७-५० ठाणं २।३५६-३६२ १।१६१६३-६६ १११११०१ श६१५३ १११४।२१ Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १२।११७ १११११७ ११५॥७५ १२५७३; भ० १८।२१५-२१६ एवं पासत्थे कुसीले पमते एवं भासा वि । नवरं इमं नाणत----मास। तिविहा पण्णत्ता, तं जहा--कालमासा य अस्थमासा य धन्नमासा य । तत्थ णं जे ते कालमासा ते णं दुवालस तं जहा---सावणे जाव आसाढे । तेणं अभक्खेया। अत्थमासा दुविहा हिरण्णमासा य सुवण्णमासा य तेणं अभक्खेया । धन्नमासा तहेव एवं वट्टए आडोलियाओ तिदूसए पोचुल्लए साडोल्लए एवं सेसाओ वि एवं सेसाओ वि ओरोह जाव विहरइ ओसन्ने जाव संथारए ओहय जाव झियायह ओयमण जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पं जाव झियायमाणि ओहयमणसंकप्पा० ओहयमणसंकप्पा जाब झियाइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायइ ओहयमणसंकप्पा जाव झियायंति ओयमणसंकप्पा जाव झियायह ओहयमणसंकप्पा जाव झियायामि ओहयमणसंकप्पा जाव झियाहि ओहयमणसंकप्पे जाव झियामि ओहयमणसंकप्पे जाव झियायइ ओयमणसंकप्पे जाव झियायमाणे ओहयमणसंकप्पे जाव झियायसि कंडरीए उट्टाए उट्टेइ उठेत्ता जाव से जहेयं कत्ता जाव भवेज्जामि कते जाव जीवियऊसासए कक्खडा जाव दुरहियासा कज्जेसु य जाव रहस्सेसु कटु जाव पडिसहेइ कट्ठस्स य जाब भरेति ११८८ १।१८८ २७६ २।७।२ २।८६ २१८२ १।१६२२५ १।१६:१६५ शश१२५ १६५।११७ १1८1१७१ ११११३४ १।३।२३ ११३४ १।१४।३८,१।१६।२०५ १११।३४ १११४१३८ ११११३४ श१३४ वृत्ति १३१४॥३७,१३१६६६२,८७,२०७ ११११३४ १शक्षा१५ ११११३४ १शमा१७३ १।११३४ १११६२६५ १५१०३४ १।१६.६४,६२,२०८ १।११३४ १।१७१० ११॥३४ ११११६८,१२१४१७७,१११७१८ ११।३४ १।१६।३२ १६१२३४ १।१७।६ १११।३४ १।१६।१२ १११०१ १११६३९७ १०१४।४३ १।१।१४५ १।१।१०६ १११११६२ वृत्ति १७.४२ ११५१० १११६।२५५ १११६१२५१,२५२ ११७२८ १।१७।२२ Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कणग जाव दलयइ कण जाव पडिमाए कणग जाव सावएज्जं कणग जाब सिलप्पवाले कयकोउय जाव सवालंकारविभूसिया कयत्थे जाव जम्म० कयवसिकम्मं जाव सध्वालंकारविभूसियं कवलिकम्मा जाव पायच्छित्ता कलिकम्मा जाव विपुलाई जाव विहरइ कवलिकम्मे जाय राय हिं कलिकम्मे जाव सरीरे araलिकम्मे जाव सब्दालंकार० करयल ० करयल० करयल० करयल अंजलि करयल जाव एवं करयल जाव एवं करवल जाव कट्टु करयल जान कट्टु तहेब जाव समोसरह करयल जाव कण्हं करयल जाव पच्चप्पियंति करवल जाव परिणे करयल जाव वद्धावेइ करयल जाव वद्धावेंति करयल जाव वद्भावेति करमन जाव बढाता करयल जाव वद्धावेहि करयल तं चैव जाव समासोरह करयल तहत जेणेव करमलपरिग्गहियं जाव अंजलि १११६ १६८ १८१५० १२१८३८ १२१८:३३ १|१३-१ १।१३/२५ १।१६।७३ १।१।२७ १।१।३२ १।२१५८ १.१.६६ ११४७ १।५।६८, १२३, १६७३८१,१८, १५८,१६०१ ४३१:१।१४।३१,५० ११८१२०३, २०४:१।१६।१३७, १६१, २१६,२६४;१।१७।११ १।१६१२४६ ११:५५, ६० १।१।२०६१।१६।१७०, २१२: १११६१३,४६,२११२० १९३१७,१११४१२७, २८:१११६१४३ १|१|११८१।१६।१३३,२।१।११ १।१६।१४२ १।१६।१३८ शा१६६ शा१६५ १।१५।१६ १।१६।२३६ १।१७।२६ १।८।१३१:१।१६।२४४ ११८१०७ १।१६ १३४ १।१४११३ ११११२१ १२१३९१ १८४१ ११११६१ १४१४६१ १।२।२६ १।१३१२५ ११८१ १।१/३३ १२६६ १।१८ १ १११।२७ १११११ ११.१९ ११/२६ ११३६ १३१ १९ १।१।२६ १।१।२१ १११/२६ १।१६ १३२ १।१६।१२७ शा१६५ १।१।२६ १|१|४८ १|१|४८ १११.३६ १|१|४८ १|१|४८ १।१६/१३२ १।५।१३ १।१।१६ Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करयलपरिग्गहियं जाव कट्टु करयल परिग्गहियं जाव वढावेत्ता करयल बद्धावेइ करयल वृद्धावेत्ता करयल वद्धावेत्ता करेइ जाव अडमाणीओ करेंति जाव पच्चुत्तरंति करेता जाव विगयसोया करेमो तं चैव जाव णूमेमो करेह करेत्ता जाव पञ्च पिणह करेह जाव पञ्चपिणंति कल्लं कल्लं जाव विहरइ कसप्पहारे य जाव निवाएमाणा कसष्पहारेहि य जाव तण्हाए सप्पहारेहिय जाव लयाप्पहारेहि कारणेसु य जाव तहा कालगए जाव प्पहीने कालोभासे जाव वेयणं कासे जोणिसूले जाव कोढे किण्हाण य जाव सुक्किलाण किहाणि य जाव सुक्किलाणि किन्होभासा जाव निउरंबभूया कुंभए एवं तं चैव जाव पवेसेइ रोहासज्जे कुडवा जाव एगदेसंसि के जाव गमणाए कोपुडा य जाव अण्णेसिं गारसि सम्म सं कोडुंबिय जाव खिप्पामेव लहुकरणजुत्त जाव जुत्तामेव उवट्टवेति कोडुंबियपुरिसा जाव एवं कोडुंबिय पुरिसा जाव ते वि तहेव कोडुंबियपुरिसा जाव पच्चष्पिणंति खंड जावडे है |१|१|३६ १८१२६ ११५/२० १/८/१०५ १/१६ । १५७ १ । १४१४१, ४२ ११६११५ १११८/२७ १।१६२८८ २।१।१२ १८४० १८१५१ ११५।१२४ १।२/३३ १२/६७ ११२/४५ १२५६० १।१६।३२२ ११२६७ १।१६।३० १/१७/२२ १।१३।२० १।७११३ १/८/१७४ ११७११७, १८ १।१।१११ १।१७१२२ ११७ २५ १८५२ १।१५।७ १११११७ १ १/६२ १११६३७८ ११११२६ १११४८ ११११४८ १११४८ १|१|३६ वृत्ति ११२।१४ ११६१४८ १।१६।२८२ राय० सू० ६ ११८/५१ १।१।२४ १।५।१२४ १/२/३३ १४२/३३ १/२/३३ १११/१६ ११५२८४ वृति १११३।२६ १।१७/२३ १।१७/२३ ओ० सू० ४ १८११७३ १/७/१५, १६ १।१।१०७ वृत्ति १२७७ उवा० १४७, ११८१५१ १।१५।६ १११।११६ १।१।२३ १.१६/७४ Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खंतीए जाव बंभचेरवासेणं खिज्जणाहि य जाव एयमटुं खीरधाईए जाव गिरिकंदरमल्लीणा गंध जाव उस्सुक्कं गंध जाव पडिविसज्जेइ गंध जाव सक्कारेत्ता गंधब्वेहि य जाव विहरंति गज्जियं जाव थणियसद्दे गणनायग जाव आमंतेंति गणिमस्स जाव चउम्विहभंडगस्स गब्भस्स जाव विणेति गय० गवलगुलिय जाव खुरधारेणं गवल जाव एडेमि गहाय जाब पडिगए गामघा वा जाव पंथकोट्टि गामागर जाव अणुपबिस सि गामागर जाव आहिंडह गिण्हामि जाव मग्गणगवेसणं गुणे० किं चालेइ जाव नो परिच्चयइ धडएसु जाव संबसावेइ चउत्थ जाव भावेमाणे चउत्थ जाव विहरइ चउत्थ जाव विहरंति चउत्थस्स उक्खेवओ चंपगपायवे० चच्चर जाव महापहपहेसु चरगा वा जाव पच्चप्पिणंति चरमाणा जाव जेणेद चरमाणे जाव जेणेव चरमाणे जाव जेणेव सुभूमिभागे जाव विहरह चवलं नहेहि चारगसोहणं जाव ठिइपडियं ११०१५ १।१८।१४ ११६३६ १८८४ १।१६।१६९ ११७१६ १११६:१५२ १२९६ १1१1८१ श६६ २०१७ शमा६३ श६।१६ १९६३७ १११८१३६ १११८१२४ १४१६१२२६ १२१४१४३१११७११७ १।२।२६ १८७६ १।१२।१६ ११८१६ १२५२१०१,२।११३३ ११८।१७,२५ २४११ १।१८।४६ १६११६७ १११५७ १२।६६ १५१० १।१०३ १।१८।१० आयारचूला १५११४ २११३० ११८१६० १११२३० १११६३१५० १९७१ १।१२४ १९६६ १।२१७ ११६७ उवा० २०२२ १।९।१६ १४१८१३८ १।१८२२ १८१५८ ११८५८ १।२।२७,२६ ११८७४ १।१२।१६ ११।१६५ १।१।१६५ १११११६५ २।२।१ १२१२१०५ १११३३ १११५६६ १३१४ १।१४ २५११०८ १।४।१७ १११४१३३,३४ १११४ १।४।१४ १११७६-७४ Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ ११।१७ ११८७६ १।१।१५० १।१।१५१ ११११२३ ११११४ २११४ १।११४ २२११४ १११८१२१ १।१८।२५ १।१३।३६ १।१६।१०६ १।१६।१०६ १११११६५ श१८१२२ चारवेसा जाव पडिरूवा રાક चालितए जाव विप्परिणामित्तए १८७६ चिट्ठइ जाव उट्टाए १११।१५१ चिट्ठइ जाव संजमेणं १११।१६३ चित्तेह जाव पच्चप्पिणह ११८११७ चेइए जाव अहापडिरूवं श२०६६ चेइए जाव विहरइ ११११६४ चेइए जाव संजमेणं २।११३ चोक्खा जाव सुहासणवरगया १६१६:१५२ चोरनायगं जाव कुडंगे १११८१३० चोरविज्जाओ य जाब सिक्खाविए १।१८।२८ छटुंछट्टेणं जाव विहरइ १।१३६३६ छटुंछटेणं जाब विहरइ १।१६।१०८ छ छट्रेणं जाव विहरित्तए १२१६११०७ छट्ठट्ठम जाव विहरइ १४१६४१०५ जणवयं जाव नित्थाणं ११८।३२ जहा पोट्ठिला जाव परिभाएमाणी १।१६।६२ जहा मंडुए से लगस्स जाव बलिय सरीरे जाए १:१६२४-२६ जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा १११७११ जहा महब्बले जाव परिवड्डिया १शक्षा३७ जहा मागंदियदारगाणं जाव कालियवाए १।१७।६ जहा बद्धमाणसामी नवरं नवहत्थुस्सेहे० २।१।१६ जहा सूरियाभो जाव भासमणपज्जत्तीए ११:४० जहा सेलगस्स जाव दाहवक्कंतीए १११६२० जायं च जाव अणुवड्ढेमि १।२।१४ जाया जाब पडिलाभेमाणी १११४१४६ जाव एवं चेव पल्हायणिज्जे श१२।२३ जाव जहा २४१२२ जाव पज्जुवासइ शश१७ जाव सणियं १४.१६ जाव समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलामेमाणे शश६३,६४ जाव हावभावं शमा१२१ २०११४-११६ ११८७२ राय० सू० ८०४ १९18 आ० सू० १६;वाचनान्तर पृ० १४० राय० सू० ७६७ ११५.१०६ १२।१२ ११४७ १।१२।२२ ११२।७६ १।१।६६ ११४११३ राय० सू० ६६३११५२४७ ११।११७ Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिमिय जाव सूइभूया जिमियत्तुत्तरागयं जाव सुहासण० ११२।१४ १।१६।२१६ १।८।१५४ ११११४ १।१७।२२ १।२।२७ हाए जाव पायच्छित्ते ११४१६४ हाए जाव सरणं उवेइ २ करयल एवं व १११६/२६५ १२१७१ जोव्वणेण य जाव नो खलु झोडा जाव मिलायमाणा ठवेंति जाव चिट्ठति भिहिय जाव कुमारियाहि हाए जाव सुद्धप्पावेसाइं हायं जाव पुरिससहस्वाहिणीयं व्हाया जाव पायच्छित्ता हाया जाव बहूहि हाया जाव सरीरा हायाणं जाव सुहासण ० तइयज्झयणस्स उक्खेवओ सइयवग्गस्स निक्खेवओ तण से गए एवं वयासी जहा वासुदेवे नवरं भेरी नत्थि जाव जेणेव तं इक्छामि णं जाव पव्वइत्तए तं चैव जाव निरावयक्खे समणस्स जाव पश्वइस्ससि तं चैव सव्वं भणड़ जाव अत्थस्स तं यणि चणं चोट्स महासुमिणा वण्णओ तक्करे जाव गिद्धे विव आमसभक्खी तन्वं दूयं चंपं नयरिं । तत्थ णं तुम कण्णं अंगराय सल्लं नंदिराय करयल तहेव जाव समोसरह । उत्थं यं सोत्तिमहं नरं । तत्थ णं तुमं सिसुपालं दमघोससुयं पंचभाइसय-संपरिवुड करयल तहेब जाव समोसरह । पंचमं दूयं हथिसीसं नयरिं । तत्थ णं तुम दमदंतंरायं करयल जाव समोसरह । दुयं महुरं नयर । तत्थ णं तुम १३ १/१४/५३ ११२१६६; ११८११७६ १८।१६८ १।३।११ १।१६।८ २१११५६ २।३।१२ १।१६ १४३, १४४ १।१।१११ १११।१०७ १११८५२ १८२६ १२३३ १११।८१ १।२३१४ शाह ११११/२ १।१७।२२ ११२।२५ १११।२७ १।१६।२६४ १।१।१२४ १|१४|१८ १।१।२७ १८१७६ १।१।२७ १८७६ २ १/४६ २ १/६३ १।१६।१३४-१४१ ११११०४ १।१।१०६ १।१८।५१ कल्पसूत्र ४ १।२।११ Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ घरं शयं करयल जाव समोसरह । सत्तमं वयं रायगिहं नगरं तस्य णं तुमं सहदेवं जरासंधसुयं करयल जाव समोसरह अट्टगं दूयं कोटिपणं नवरं । तत्थ णं तुमं रुप्पि भेसगमुषं करयल तहेब जाव समोसरह नवमं दूयं विराटं नयर । तत्थ णं तुमं कीयगं भाउससमगं करयल जाव समोस रह । दसमं दूयं अवसेसेसु गामागरनगरे अणेगाई रायहस्साइं जावरसमोसरह तए णं से दूए तहेब निग्गच्छ जेणेव गामागर तहेव जाव समोसरह । तच्च पि जाव संचिट्ठ तच्चा जाव सब्भूया तणकूडे ० तत्थे जाव संजायभए तयावर ईहापूह जाब सणिजा इसरणे तलवर जाब एभितमो तलवर जाव सत्थवाह तहत जाव पछिसुर्णेति तहारुहि जाव विपुलं तहेव जाव पहारेत्थ तहेव सरीरवाउसिया देवस जाव अंत तहेव सेयापीएहि कलसेहि व्हावेइ जाव अरहओ अरिनेमिस्स छत्ताइ पागाइडाग पास २ ता विज्जाहरचारणे जाव पासित्ता ताओ जाव विदेहे वासे जाव अंतं तिक्तो जाव एवं तिग जाव हेसु तिग जाव बहुजणस्स तित्तेसु जाव विमुकबंधणे तुट्टी वा जाग आणंदो तुग्भण्णं जाव पव्वयामि तुरियं जाव वेइय १।१६।१४५ १।१९।३५ १।१२।३१ ११४।७७ १।१।१६८ १मा१५१ १११४/६५ ११५१६ १।५।१३ १।१।२१५ ११८११३६,१३७ २११५१-५४ ११५२५, २१ १।१६:२२६ १।१२।३४ १।५।२६ १।१६:२६ १।६०४ ११२६४ १।१२।४३ १८१६६ १।१६।१३२-१३४ १।१२।३५ १।१२।१९ १११४/७६ १।११६० १.१.१६० १।५८६ ओ० सू० ५२ १।१।२६ ११:२०६ १२८/६९,१०० २११:३२-४४ १।१।१२९,१४४,९९ १।१।२१२ १।१९।२६ १।१।३३ १५०५३ १/६/४ ११२/६३ १।१।१०४ ૪૨૪ Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुरुक्क जाव गंधवट्टिभयं श१६।१५५ तेसि जाव बहूणि १1१७१६ थलय ११मा४६ थलय जाव दसद्धवणं १८१३१ थलय जाव मल्लेणं ११८१३२ थावच्चापुत्ते जाव मुंडे ११५१८० थेरागमणं इंदकुंभे उज्जाणे समोसढा १८८ थेरा जाव आलिते १५१६३१५ दंडणाणि जाव अणु परियट्टइ १।४।१८ दंडणाणि य जाव अणुपरियट्टइ ११३१२४ दसमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ २।१०।१,२ दाणधम्मच जाव विहरइ १८.१४११५२ दारियं जाव झियायमाणि १।१६।६४ दासचेडियाहिं जाव गरहिज्ज माणी शमा१४७ दाहिणड्डभरहस्स जाव दिसं १२१६।२६६ दिट्टे जाव आरोग्य १।१२० दित्ते जाब विउल भत्तपाणे १।२।७ दीहमद्धं जाव वीईवइस्सइ १२२१७६ दुपयस्स वा जाव निव्वत्तेइ ११८१२६ दुरुहइ जाव पच्चोरुहइ १।१७४१३ दुरुहंति जाव कालं १।१६।३२३ दुरूढा जाव पाउन्भवति १८।१४ दूइज्जमाणा जाव जेणेव १४१६३२१ दुइज्जमाणे जाव विहर १११६४३२० देवकन्ना शा१५४ देवकन्ना वा जाव जारिसिया शा८६,१११ देवयभूयाए जाव निव्वत्तिए १२८१२८ देवलोगाओ जाव महाविदेहे १।१६।२४ देवाणुप्पिया जाव कालगए १।१६३२३ देवाणु प्पिया जाव जीवियफले ११८७६ देवाणुप्पिया जाव नाइ १२१६२६५ देवाणु प्पिया जाव पव्वतिए १११६४३४ देवाणु प्पिया जाव साहराहि श१६।२४२ देवाणुपिया जाव सुलद्धे १९१६२६ देवी जाव पंडुस्स १।१६।३०१ १२२२ ११८७१ १८.३० १८.३० १३० ११५१३४ १८।१२ १११११४६ सूय० २६२१७८ ११३१२४ २।२।१,२ ११८१४० १।१६६२ १४८.१४६ १।१६।२६७ ११०२० वृत्ति १।२।६७ ११८.११६ ११११०२ १११६६३२३ १९५६१ ११११४ ११।४।१।१६।३१६ शा८६ वृत्ति ११८१२६ १११२१२ १।१६।३२२ उवा० २।४० ११५१२३ १११६२६ ११६२४० १११६२६ १।१६।२६२ Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ देवी जाव पउमनाभ १२१६१२३६ १११६१२३३ देवी जाव साहिया श१६/२४० १११६०२०८ देवेण वा जाव निग्गंथाओ १९७५ उवा० २।४५ देवेण वा जाव मल्लीए ११८१३५ १९७५ दोच्चस्स वगस्स उक्खेवयो २।२।१ २११६ घण कणग जाव परिभाएउं २११४९२ १११०६१ धण जाव सावएज्जस्स १७१३४ १९१ धण जाव सावएज्जे १११६६ ११६१ धण्णा णं ते जाव ईसरपभियओ १।१३।१५ १।११३३ धम्म सोच्चा जं नवरं ११५८७ १२१११०१ धम्म सोच्चा जहा णं देवाणु प्पियाणं, अंतिए बहवे उग्गा भोगा जाव चइत्ता हिरणं जाव पव्वइया तहा गं अहं णो संचाएमि पवइए १।१४५ राय० सू० ६६५ धम्मकहा भाणियब्बा १९५७८ १६५१६३ धम्मोत्ति वा जाव विजयस्स श।७५ शरा६४ धोबसि जाव आसयसि २।१३५ २।११३४ धोवेइ जाव आसयइ २।११३८ २।११३४ धोवेइ जाव चेएइ १।१६१११९ १।१६११४ धोवेसि जाव चेएसि १११६।११५ १११६।११४ नंदीसरे अट्टाहियं करेंति जाव पडिगया १८१२२४ जंबू० वक्ष०५ नगरगिहाणि १६७ १८१५८ नगर जाव सण्णिवेसाणं आहेवच्चं जाव विहराहि श११११८ नच्चासन्ते जाव पज्जुवासइ १२१४/८५ ११६६ नट्टा य जाव दिन्न १५१३२२० नठमईए जाव अवहिए १।१७।१० १२१७१८ नरि अणुपविसह १६१६२१६ १११६१२१८ नवमस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव अट्ठ राक्षा१,२ २।२।१,२ नवरं तस्स १७२८,२६ ११७८,२५,२६ ताइ० ११५।२६:११७४६,६,२२,२६,४२१११५।११:१।१६।५०,५४,१।१८,५१,५६ श१८१ नाइ० १३१४११८,१।१५।१६ १३२२० ओ० सू० ६८ ओ० सू० १ Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १ १७६ ११७६ १२।१२ १६१८१ १। ११ १।५।२० १।५।२० २१४३६ १।१४।३६ नाइ चउण्ह य कुल जाव विहराहि १७।२५ नाइ जाव आमंतेइ १।१४१५३ नाइ जाव नगरमहिलाओ १२११६ नाइ जाव परियणं १।१४।१६ नाइ जाव परियणेण शा४८ नाइ जाव परिबुडे १।१६।५० नाइ जाव संपरिवुडे १।१३।१५:१।१४।५३ नाम वा जाव परिभोग १।१६।६७ नाम जाव परिभोग १११४१३७ नासानीसासवायवोझ जाव हंसलक्खणं ११।१२८ निक्लेवओ २।४।६ निक्खेवओ अज्झयगस्स રારા निक्खेवओ चउत्थवग्गस्स २।४18 निक्खेवओ दसमवग्गस्स २११०७ निक्खेवओ पढमज्झयणस्स २०३८ निक्खेकओ बिइयवग्गस्स २।।१० निग्गंथा जाव पडिसुणेति १।१६।२३ निगंथाणं जाव विहरित्तए शश१२४ निगंथी वा १११८१६१ निग्गंयो वा जाव पव्वइए श७२७,१११०१३,१११११३,५ निग्गंथे वा जाव पव्वइए १२।७६ निग्गंथो वा १।१७।२५,३६ निग्गंथी वा जाव पंचसु २१५।१४ निग्गंथो वा २ जाव विहरिस्सइ १।५।१२६ निद्वियं जाव विज्झायं श११८४ निप्पाणे जाव जीवविप्पजढे १११८१५४ नियग० १९७६ निव्वत्तियनामधेजे जाव चाउदंते १११।१६७ निवाघायंसि जाव परिवा निसंते जाव अब्भणु ण्णाया १।१४।५० निसम्म जं नवरं महब्बलं कुमार रज्जे ठावेमि १२८८ निसीयइ जाव कुसलोदंतं १।१६।१६८ आयारचूला १५०२८ २।११४५ २।११४५ २।१२६३ २०१६६३ २।११४५ २॥१॥६३ शश२६ ११५११४ शश६८ श२।६८ १।२।६५ १।२।६८ २३६२४ ११२१७६ श११८३ ११२।३२ १श८१ ११११५६ राय० सू० ८०४ ११११०४ १८७ १११६१८७ Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८।१७२ १११८१४६ १।१४।७३ १५१४१७७ १।१६।२८७ १८.१६७ १९।१६ १९१६ १११४।७३ १।१६।२८५ १३५११२७,१२८ ११५८३,८४ २१५.१,२ ११७३३ १।१६।२७६ २।२।१,२ १७२५६ १।१६।२७५ निस्संचारं जाव चिटुंति नीलुप्पल नीलुप्पल जाब असि नीलुप्पल जाय खंसि पउमनाहे जाव नो पडिसेहिए पंचअणगारसया बहणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता जेणेव पंडरीए पव्वए तेणेव उवागच्छंति जहेव थावच्चापुत्ते तहेव सिद्धा० पंचमवग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव बत्तीसं पंचमे जाव भवियब्वं पंचयण्णं जाव पूरियं पंचाण ब्वइयं जाव समणोवासए जाए अहिगयजीवाजीवे जाव अप्पाणं पंडवा. पंथएणं जाव बिहरह पगइभद्दए जाव विणीए पच्चक्खाए जाव आलोइय० पच्चक्खाए जाव थूलए पज्जग जाव तओ पच्छा अणुभूयकल्लाणे पम्वइस्ससि पच्चप्पिणह जाव पच्च प्पिणंति पट्टिया जाव गहियाउहपहरणा पड़ागे जाव दिसोदिसिं पडिबुद्धा जाव विहाडिय पडिबुद्धि जाव जियसत्तुं पडिबुद्धी० करयल. पडिलाभेमाणे जाव विहरइ पडिसुणेति जाव उवसंपज्जित्ता पढमज्झयणस्स उक्लेवओ पढमस्स उक्खेवओ पणामेत्ता जाव कुवं पण्णत्ते जाव सग्गं ११२४५-४७ ११६१३१३ ११५४१२६ ११११२०६:११६।२४ १।१६।४६ १.१३।४२ वृत्ति; ओ० सू० १२०,१६२ १।१।११६ १॥५॥१२४ ओ०सू०११६ ११।२०६ १०१२०६ १११११११ १११७७ १।२।३२ १।१६।२५२ १।१६।६५ १८१३६ १८।४७ ११५।५६ १।१६।२३ २।७।३२८1३;२०६३ २।१०।३ १।१६।२४४ १५।६० ११११२३ राय सू० ६६४ वृत्ति १११६१६२ १।८।२७ १।११३६ ११५।५२ १।५।११३ २।२।३ २।३ १।१६।२४३ ११५१५५ Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।६२ १७.१५ पतिवया जाव अपासमाणी पत्तिए जाव सल्लइयपत इए पत्तिया जाव चिटुंति पत्तेयं जाव पहारेत्थ पमाएयव्वं जाव जामेव परलोए नो आगच्छइ जाव वीईवइस्सइ परिग्गहिए जाव परिवसित्तए परिणमंति तं चेव परिणममाणा जाव ववरोति परिणामेण जाव जाईसरणे परिणामेणं जाव तयावरणिज्जाणं परितंता जाव पडिगया परिपेरतेणं जाव चिटुंति परियागए जाव पासित्ता परियाणह जाव मत्थयंसि पल्लंसि जाव विहरंति पवर जाव पडिसेहित्था पवर जाव भीए पवरविवडिय जाव पडिसेहिया पव्वए जाव सिद्धे पव्वावेद जाव उपसंपज्जित्ता पवावेइ जाव जायामायाउत्तियं पसन्थदोहला जाव विहरइ पाणाइवाएणं जाव मिच्छदसणसल्लेणं पाणाणुकायाए जाव अंतरा पाणाण कंपयाए जाव सत्ताणु कंपयाए अपामोक्खा जाव वाणियगा ० पामोक्खे जाव वाणियगे पायसंघद्राणाणि य जाव रयरेण गुंडणाणि पावयणं जाव पव्वइए पावयणं जाव से जहेयं पासाईए जाव पडिरूवे पासित्ता जाव नो वंदसि पियं जाव विविहा १।१६।१७१ ११५१३३ १११५।१४ १।८।१३१ १।१२।१७ १११५१५ १२१३१३५ १।१४:५३ १।१३।३१ १३१७।२२ ११३।१६ १६११४८ १७।२० १।१६।२५६ १।१८१४४ १।१६।२५३ १॥५॥१०४,१०५ २१११३०,३१ १११११६२ १८३३ १।६।४ १।१।१८६ १११११८२ १८८१ ११८८३ १११११८६ शरा७३ १११२१३५ ११८६ ११श६७ ११.२०६ १।१६।५६ ११७११४ १११११२ १।१६।१४६ १२१२१४८ १।२१७६ ११८।१०७ १११२१६ १।१५।११ ११।१० १३१३१६० १।४।१६ श१७१२२ ११३१५ ११११४८ ११७११६ १।८।१६५ १।१८।४२ शमा१६५ १३०८३,८४ १११११५०,१५१ १११।१५० ११११६८,६६ १११२०६ १।१२१८१ १।११८१ ११८६६ १८६६ १.१.१५३ १२१२१०१,भ०६।१५०,१५१ १११११०१ १.११८६ भ० २१५२ Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११११३० १।१।१६ १६५।११० १२१२२०६ श२०४० १०२११२ १११११२ वृत्ति पीइदाणं जाव पडिविसज्जेइ पीइमणा जाव हियया २०१०११ पीढ़ ११।११७ पुच्छणाए जाव एमहालियं १११।१५४,१५५ पुढवि जाव पाओवगमणं ११५१८३ पुत्तधायगस्स जाव पच्चामित्तस्स १।२१५६,६४ पुप्फ जाव मल्लालंकार श२।१४ पुफिया जाव उवसोभेमाहा श१३११६ पुरापोराणं जाव पच्चणुब्भवमाणी १२१६१६२ पुरापोराण जाव विहरइ १।१६१११३ पुश्वभवपुच्छा एवं २।११५० पोखरिणीओ जाव सरसरपंतियाओ १११३११५ पोसहसाल जाव पुव्वसंगइयं १।१६।२०१-२०३ पोसहसालाए जाव विहरइ १११३।१४ फलिया जाव उवसोभेमाणा १।११।४ फासुएस णिज्जेणं जाव तेगिच्छं १२५२११४ फासुयं पीढ़ जाव विहरह ११।११३ बंधित्ता जाव रज्जू १११४१७७ बहिया जाव खणावेत्तए १११३११५ बहिया जाव विहरंति ११५।११८ वहिया जाव विहरित्तए १५।११७ बहुनायाओ एवं जहा पोट्टिला जाव उव्वलद्धे १।१६।६७ बहूई जाव पडिगयाई १११६।१८२ वहूणि गामाणि जाव गिहाई १।१६।१६६ बहहिं जाव चउत्थ विहरइ २५/३८ बहूसु जाव विहरेज्जाह शहा२० बारवई एवं जहा पंडू तहा घोसणं घोसावेइ जाव पच्चप्पिणति पंडुस्स जहा १।१६।२२३,२२४ बावत्तरि कलाओ जाव अलंभोगसमत्थे १।१६।३०८,३०६ बासष्ट्रिं जाव उत्तरइ १६१६१२८७ बासदि जाव उत्तिण्णा १।१६।२७ बिइयज्झयणस्स निक्लेवओ २॥१॥५५ बुज्झिहिइ जाव अतं २१३१४४ १२१६।१२ २।१।१५ रायसू० १७४ १।१६:२३७-२३६ १।११५३ १।११।२ १११११० १।५।११० १११४।७३ १११३३१५ १११११६६ १११३१६६ १।१४।४३ शमा१६१ ११८१५८ १२११६५ ११९२० श१६।२१३,२१४ ११११८४,८५ १४१६।२८५ १११६।२८५ २।१।४५ १।११२१२ Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २० भगवओ जाव पव्वइत्तए भड० भवणवइ० तित्थयर० भवित्ता जाव दोद्दसपुवाई भवित्ता जाव पवइत्तए भवित्ता जाव पव्वइस्सामो भवित्ता जाव पव्वयामो भाणियवाओ जाव महाधोसस्स भारहाओ जाव हथिणारं भाव जाव चित्ते भासासमिए जाव विहरइ भीए जाव इच्छामि भीए जाव संजायभए भीया जाव संजायभया भीया वा भीया सजायभया भुंजावेंति जाव आपुच्छति भुतुत्तरागए जाव सुइभूए भेसज्जेहिं जाव तेगिच्छ भोगभोगाई जाव विहरई भोगभोगाई जाब विहरति भोगभोगाइं जाव विहरा हि मइविकप्पणाहि जाव उवणेति मज्झमझेणं जाव सयं मट्टियाए जाव अविग्घेणं मट्टियालेवे जाव उप्पतित्ता मणपणे तं वेव जाब पल्हायणिज्जे मत्थयछिड्डाए जाव पडिमाए मयूरपोयग जाव नदुल्लग महत्थं० महत्थं जाव उवणेति महत्थं जाव तित्थयराभिसेयं महत्थं जाव निक्खमणाभिसेय महत्थं जाव पडिच्छइ ११११११३ १३१४१०४ ११९:१४ ११८५७ १९३६ कल्पसूत्र महावीरजन्म प्रकरण ११५८० ११८२०४;२१११२७ ११११०४ १११२४० १११११०१ ११८१८६११६६३१० २१४१५ ठाणं० २:३५५-३६२ १।१६।२४० १।१६।२५४ ११।११८ ११८११७ ११।३५-३७ वृत्ति १२१२१३६ ११५१२१ १११४१६६ १११११६० १६२५,२७ १११११६० ११८७६ ११८७३ ११८७२ ४११६० ११८६६ १८६६ १।१२।४ १२।१४ १६१६२२ ११५।११० ११११६६ १।१।१७ १११६१८३ १।१६।२०० ११११३२ १११६।२४७ ओ० सू० ५७ १।१६।१६६ १२१६२१८ ११८१४३ ११५४६० ११६४ १६६४ १११२स १५१२६४ ११८४१,४२ ११८।४१ ११३१२८ ११३१२७ शा८१ १९८१ १८.८४ ११८८१ १८ा२०५ शश११६ ११५६८ १११७११७ दा८२ Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१ मित महत्थं जाव पाहुडं १११७११६ ११२२० महत्थं जाव पाहुडं रायारिह १११३१५ ११५२० महत्थं जाव रायाभिसेय ११श६२११६।३७ ११११११६ महब्बले जाव महया १८।१६ १॥५॥३४ मयाहय जाव विहरह २।११० राय० सू०८ महालियं जाव बंधित्ता अत्थाह जाव उदगंसि १११४१७७ १।१४।७५ महावीरस्स जाव पव्वइस्ससि ११११११० १।१।१०६ महिडीए जाव महासोक्खे सूय०२।२।७३ महुरालाउयं जाव नेहावागाद १११६ १।१६८ माणुस्सगाई जाव विहरइ ११५१६ १६११६७ माया इ वा जाव सुण्हा ११४१७१ सूय० २।२७ मासाणं जाव दारियं १।१६।१२४ ११२।२० माहण जाव वणीमगाण १११४१३८ आयारचूला १।१६ माहणी जाब निसिरइ ११६२४ १।१६।१४ १७।२२ ११२८१ मित्त जाव चउत्थ १७:१० १९७६ मित्त जाव बहवे १७।३० ११७२५,११ मित्त जाव संपरिवुडा ११।२० १॥२।१२ मित्त नाइ गणनायग जाव सद्धि १।२८१ शश८१ मित्तपक्खं जाव भरहो १११११८ मुडावियं जाव सयमेव १६११६१ १।१।१४६ मुंडे जाव पव्वयाहि १।१६।१४ १५१११०१ मुच्छिए जाद अज्झोववण्णे १।१६।२६ १११६२८ मेहे जाव सवणाए ।१५४ १।१।१०६ य णं जाव परमसुइभूए १।१२।२२ ११८१ रज्जइ जाव नो विप्पडिघाय. १११६६४६ १२१७४२५ रज्जं च जाव अंतेउरं १११६।२६ १।१।१६ रज्जे जाव अंतेउरे १।१४।६० १।१४।२१ रज्जे य जाव अतेउरे श८.१५१:१।१६।१८७१।१६।२६ १११११६ रज्जे य जाव वियंगेइ जाव अंगमगाइ १११४१२२ १।१४।२१ रज्जे य जाव वियत्तेइ १३१४१२२ १।१४।२१ रणो जाव तहत्ति श१६१३०३ १८५१०४ रणो वा जाव एरिसए १८.१५३ १।८।६७ रयण जाव आभागी १।१८५६ १११६१:१११८१५१ वृत्ति Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ रहमया १११६.१४७ राईसर जाव गहाई १।१४।४३ राईसर जाव विहरइ १८।१४६ रायाहीणा जाव रायाहीणकज्जा श१४१५६ रिउव्वेय जाव परिणिट्ठिया श८।१३६ रुट्टा जाव मिसिमिसेमाणी १२।५७ रूवेण य जाव उक्किटुसरीरा १।१६।२०० रूवेण य जाव लावण्णेण १।१६।१६० रूवेण य जाव सरीरा १६१४।११ रोयमाणा य जाव अम्मापिऊण १.१८।१३ रोयमाणि जाव नावयक्खसि १।४० रोयमाणे जाव विलवमाणे १२।३४ रोयमाणे जाव विलवमाणे १।६।४७ लद्धमईए जाव अमूढदिसाभाए १।१७।१३ लवण जाव ओगाहित्तए ११६६ लवण जाव ओगाहेह १५ लवणसमुद्दे जाव एडेमि शा२० लोइयाई जाव विगयसोए ११८।५७ वंदामो जाव पज्जुवासामो १११३।३८ वंदित्तए जाव पज्जवासित्तए २।१।१२ वण्णहेडं वा जाव आहारेइ १११८१४८ वण्णेणं जाव अहिए ११०१४ वण्णणं जाव फासेणं १।१२।३ वत्थ जाव पडिविसज्जेइ १२१४/१६ वत्थ जाव सम्माणेत्ता १।१६:५४ वत्थस्स जाव सुद्धेण ११५४६१ वत्थे जाव तिसं १७.३३ वयासी जाव के अन्ने आहारे जाव पव्वयामि १६१२१४५ वयासी जाव तुसिणीए १११६४१६,१७ बरतरुणी जाव सुरूवा १११३७ ववरोवेह जाव आभागी १११८१५३ वाइय जाव रवेणं १शमा२०२ वाणियगाणं जाव परियणा शक्षा६७ बाबाह वा जाव छविच्छेयं १।४।२० १८।५७ ११८०५८ १८।१४० १।१४।५६ ओ० सू०६७ ११।१६१ शमा ११८३८ ११८/१० १११८18 १४६४० १।२।२६ १।९।४० १।१७।१२ ११।४ १।६।४ ११६१६ ११९०४८ ओ० सू० ५२ रायः सू० ६ वृत्ति १।१८६१ १११००२ १११२११२ १८११६० ११७६ ११५॥६१ ११७६ ११५१० १३१६१४,१५ १११११३४ श१८५२ १.११११८ शक्षा६६ १।४।११ Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वाणाए जाव धम्माणुओर्गाचिताए वाराज तं चैव जान नियधरं वावी व जाव विहरेज्जाह वासाई जाव देति वासुदेवपामोव जाव उदागए वासुदेवे धणुं परामुसद्द वेदो वासे जाव असीदं च समसहस्सा दलइतए विउला पगाढा जाव दुरहियासा विगोवइत्ता जाव पव्वइए विजया जान अवक्कमामो विणिम्यमाणी २ एवं वेजा व जाव कुलपुत्ता सई वा जाव अलभमाणा सई वा जाव जेणेव संता जाव भावा संताणं जाव सम्भूयाणं संते जाव निविणे संते जाव भावे १।५।३३ १।१३:३० ११६२२,२४ १।२।२३ १२६६४ संकामेत्ता जान महत्व पाहुड संकिए जाव कलुगसमावण्णे १।३।२४ संगयगयहसिय १२३४५ संचाएइ जाव वित्तिए ११५ ११८ संचाएंति करेत्तए ताहे दोच्चं पि अवक्कमति १९१४।१४, १५ संजत्तगाणं जान पछि १८२ संपरिवुडे एवं जाब बिहरद संभाग्यं जाव पारिता संभग्गं जाय सग्णिवइया संभग्ग तोरण जाब पासद संसारभब्बिग्गा जाव पव्वल संसारभउब्बिग्गे जाव पन्चयामि २३ कोट० सेयचामर भडचडगरेण जाय परिविता १|१|१८६ १२९१४ १११।२० १।२।१२ १११६/१७७ १।१६।२५० १८१९४ १।१६६४० १।११।२९ १।२।४७ १।१४:५३ ११ सकोरेंट जाव संयवर० १८१५७ कोमलदाम जान सेयवरचामराहि महया १२८१६१ गरमा १।१२।३२ १।१२।२१ १८६७६ १।१२।२६ १०८।१४७ १।१६।२६३ १।१६/२७८ १।१६।२७८ १।१६।१५३ १।१।१५३ १९४ १९२० १२/१२ १/१६/१७६ वृत्ति १/८/१९४ १।१।१६२ ओ० सू० ५२ ११२४४ १।१।१४५ १।१३।२१ १।६।२१ १९१२१ ११६६१ १।३।२१ १।१।१३४ १।५।११७ १०४।११.१२ १२६८१ १।१२।३१ १।१२।१६ १|४|१२ १।१२।१६ १।१६।१७५ १।१६/२६२ १।१६४२६२ १।१६।२६२ १।१।१४५ १।१।१४५ १११।६६ ११८५७ १२८।५७ Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २४ १।१६।१५७ ११२५ शक्षा२०३ १०६४ १११५११६ १३१६२४८ ११६:१३४२१८३५ श१६२५१ १।१६।२३६ ११३७ १०८१५७ १॥श२४ ११८७६ १४११५६ २३१२४ ११।३२ शरा३२ १।२।३२ १४२०३२ शहा३६ ११८७३ श८७७ सकोरेंट हयगय सक्का जाव नन्नस्थ सखिखिणियाई जाव वत्थाई सगज्जिया जाव पाउससिरी सज्जइ जाव अणु परियट्टिस्सइ सण्णद्ध० सण्णद्ध जाव गहिया सण्णद्ध जाद पहरणा सण्णद्धबद्ध जाव गहियाउह० सत्तट्ठ जाव उप्पयइ सत्तटुतलाई जाव अरहन्नगं सत्तमस्स वग्गस्स उक्खेवओ एवं खलु जंबू जाव चत्तारि सत्तुस्सेहे जाव अज्जसुहम्मस्स सत्थवज्झा जाव कालमासे सद्द जाव गंधाणं सहफरिसरसरूवगंधे जाव भुजमाणे सदहति जाव रोएंति सद्दावेइ जाव जेणेव सद्दावेइ जाव तं सद्दावेइ जाव तहेव पहारेत्थ सद्दावेइ जाव पहारेत्थ सद्दावेह जाव सद्दावेंति सद्देणं जाव अम्हे समणस्स जाव पवइत्तए समणस्स जाव पव्वइस्ससि समणाउसो जाव पंच समणाउसो जाव पव्वइए समणाउसो जाव माणुस्सए समणाणं जाव पमत्ताणं समणाणं जाव वीईवइस्सइ समणाणं जाव सावियाण समणाण य जाव परिवेसिज्जइ समत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरि० २१७११,२ २।२।१,२ ११११६ ओ० सू० ८२ १।१६।३१ १।१६३१ ४१११७२ १।१७।२२ ११५४९ ओ० सू० १५ १११११०१ १८१६६,१०० १।८।६२,६३ १७४१० ११७१६,७,६ ११८११२,११३ १८६६,१०० १८११५५,१५६ ११८।६६,१०० ११११३६ १११११३८ श३।१६ २३११८ ११।१०७ १११११०४ १।११०८,११२ १।११०६ ११७२७ १।१०।५१।१८४८,१११६।४२,४७ १।३।२४ शा५३ शहा४४ १११११८ ११५।११७ १।३३४ १।२१७६ १४१७१३६ ११२१७६ ११।२०० १८१६६,१६७ २१६।१४० ओ० सू० ६३ Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाणा जाव चिट्ठति समाणी जाव विहरितए समोवइए जान निसीइसा समोसरणं सम्मज्जिवलितं जाव सुगंध वरगंधियं सम्मज्जिवलितं सुगंध जाव कलिये सम्माड जान पडिविसज्जेइ सयमेव० आयार जाव धम्ममाइक्ख इ सरिसगं जाव गुणोवत्रेयं सरिसियाओ जाव सगणस्स पव्वइस्ससि सब्वओ जाय करेमाणा सव्वं तं चैव आभरणं सम्बन्ईए जान निग्धोसनाइयरवेणं सासु जाव रज्जपुराचितए सहइ बाब अहियासेद सहजायया जाय समेच्या सहियाणं जाव पुण्वरता० साइमं जाव परिभाएमाणी सामदंड० साल पूर्ण जाव नेहावगाढेणं सालय जान आहारेसि सालइयं जाव गोबेड सालइयं जाव नेहावगाढं सालइयस्स जाव नेहावगाढस्स सालइयस्स जाव एगंभि साहरह जब बोलत सिंगारा जाव कुसला सिंगारागारनारूबेसाओ जाव कुसलाओ सिंघाडग० सिंघाड जान पहे तिचा जाब बहुजणो सिघाडा जान महया सिक्लावइए जान पडिवण्ण सिम्झिहिर जान मंत २५ १।१५।१० १२ १७ १।१६:२२७,२२८ १२५६५ १।१।३३ १।३।६ ११६.३०० १।१।१५० ११६१२० ११.१०६ १।१६।२३ १२५/३०-३२ १/१/३३ १।१४।५६ १।११:३ ११०३१०,११ १।५।११८ १०१६/६३ १८:४५ १|१४|४ १/१६/२५,२६ १।१६०१६ १।१६०८ १०१६ १६,१९,२० १।१६।२२ १।१६ १९ १५१२ १।१।१३६ १।१:१३५ १।५।५३ १।३।३३:१/१३/२६; १।१६।१५३:१।१८१६ ११७१४१; १८६/२००; १।१३ २६ १।१।१५ १.१३/३६ १।१५।२१ १४१५६ १।२।१७ १११६१६७,११८ १ १/४ '१।१।२२ १।११२२ १।१४।१६ १।१।१४६ ११६१४१ १११११०८ १।१६।२३ १०१।१४५-१४० ओ० सू० ६७ १।१४५६ १।१।१६ १।१११५ १२३४६,७ १।३।७ १।१६/६२ १११।१६ १/१६/५ १११६/१६ १।१६।८ १/१६/८ १११६१८ १।१६।१६ १८४८ १।१।१३४ १।१।१३४ १:१।३३ १।१।३३ १।५१५३ ओ० सू० ५२ उवा० ११४५ १।१।२१२ Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १।१६।४६ ११५१८४ १८.७४ ११८७७,७८ शक्षा६७ श१८३५ १।९।३७ श१६।२१५ १११६।२२१ १४१६२२६ ११५८ १।१५।१३ १।८।२६ सिज्झिहिइ जाव सव्वदुक्खाण. सिद्धे जाव पहीणे सीलब्वय जाव न परिच्चयसि सीलब्व तहेव जाव धम्मज्झाणोवगए सीहनाय जाव रवेणं सोहनाय जाव समुद्दरवभूयं सुई वा० सुई वा जाव अलभमाणे सुई वा जाव लभामि सुई वा जाव उवल द्धा सुकुमालपाणिपाए जाव सुरूवे सुभरूवत्ताए सुमिणपाढगपुच्छा जाव विहरइ सुमिणा जाव भुज्जो २ अणुवहति सुरं च जाब पसन्न सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ सुरूवा जाव वामहत्थेणं सुमाल निव्वत्तवारसाहस्स इमं एयारूवं सूमालिया जाब गए से धम्मे अभिरुइए तए णं देवा पब्वइत्तए सेयवर हयगय महया भडचडगरपहकरेणं सेसं जहा सागरस्स जाव सयणिज्जाओ सोणियासवम्स जाव अवस्स० सोगियासवस्स जाव विद्धंसणधम्मस्स हए जाव पडिसेहिए हट्ट जाव हियया हट्ठतु? जाव पच्चप्पिणंति हट्ठतुटु जाव मत्थए हट्टतुटु जाव हियए हत्थाओ जाव पडिनिज्जाएज्जासि हत्थिखंध जाव परिवुडे हत्थिखंधवरगए जाव सेयवरचामराहिं हत्थिणाउरे जाव सरीरा हत्थी जाव छुहाए १११२१२ ठाणं ११२४६ शपा७४ ११८।७४,७५ ओ०सू० ५२ श८।६७ ११२१२६ १।१६।२१२ १।१६।२१२ १।१६२१२ ओ०० १४३ १११५।११ १११:३२ १।१०२६ १२१६११४६ १।१६।३१८ वृत्ति १।१६।३३,३४ १।१६।६२ १११।१०४ ११८५७ १।१८।३३ १११६१३१६ १।१६।१६३ १।१६।३०५,३०६ १।१६।८७ १।१६।१३ १।१६।२३७ १।१६।८१-८६ १९१८१६१ १९१८।४८ १।१६।२५७ २।१२०,२१,२४,२५ ११११२३ १५१३ १।१।२०७१।१६३१३५ ११७।६ १४१६४१४६ ११८१६३ ११६।२०३ १।१।१८५ १११।१०६ १।१।१०६ शबा१६५ ११।१६ १६१६१६,२२ १६१।२६ १११११६ ११६ १११६३१४६ ११८५७ १४१६१२०० १११११५७ Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २७ हत्थीहि य जाव कलभिया हि हत्थीहि य जाव संपरिबुडे हयगय० हयगय जाव पच्चप्पिणंति हयगय जाव परिवुडा हयगय जाव रवेणं हयगय जाव हथिणाउराओ हयगय संपरिवुडे हयगया जाव अप्पेगड्या ह्य जाव सेणं यमहिय जाव नो पडिसेहिए हयमहिय जाव पडिसेहिए हयमयि जाव पडिसे हित्ता हयमहिय जाव पडिसे हिया हयमयि जाव पडिसे हेइ हयमहिय जाव पडिसे हेति हरिसवस० हियए जाव पडिसुणेइ हियाए जाव आणुगामियताए हिरण्यं जाव वइर हिरण्णागरे य जाव बहवे हीलणिज्जे होलणिज्जे संसारो भाणियव्वो हीलिज्जमाणीए जाव निवारिज्जमाणीए हीलेंति जाव परिभवति होत्था जाव सेणियस्स रण्णो इट्टा जाव विहरइ १११११६८ १५१११५८ ११६।२४८ १११६११३६ १११६१५६ १।११६६ १।१६।३०३ १११६।१७४ ११६१३८ श८१६२ १।१६।२८५ श८१६६,१११६१२५६ १११६१२८६ ११८१४२ १४१८१२४ १।१८।४१ १११।१६१ १११।१२६ १।१३।३८ १११७११६ १११७११८ १४।१८ ११।१२५ १।१६।११८ १३१६।११७ १११११५७ १११११५७ १।८।५७ ओ०सू० ५६ ११८५७ १।११६७ ११८५७ १८५७ ११।१५ शा५७ १८।१६५ १८।१६५ १८.१६५ ११८।१६५ १।८।१६५ १८।१६५ वृत्ति ओ०सू० ५६ ओ०सू० ५२ १११७:१६ १।१७।१४ १३।२४ १।३।२४ १।६।११७ ११३।२४ १११११७ उवासगदसाओ अंतलिक्खपडिवणे एवं वयासी अंतियं जाव असि ७१७ ५।२,२१ ७।१० ३३२०,२१ Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २८ ७१२६ २१२२ ११६६ ६।२८ ६.२८ २१३,४ ११११-१३ ओ०सू० १४१ ३।४२ ३२४२ ६१२० ना० १।१।१६६ ११६५ अम्गिमित्ताए वा जाव विहाइ अज्ज जाव ववरोविज्जसि ३।४४ अज्भवसाणे जाव खओवसमेणं ८.३७ अट्टेहि य जाव वागरणेहि ७१४८ अट्टेहि य जाव निप्पट्ट ६.२८ अड़ढे चत्तारि ६।३,४;१०१३,४ अड्ढे जहा आणंदो नवरं अट्ठहिरण को. डीओ सकसाओ निहाणपउत्ताओ अहि वड्डि अहि ससाओ पवि अद्रवया दस गो साहस्सिएग वएणं अड्ढे जाव अपरिभूए १।११ अणारिए जहा चुलणोपिया तहा चितेइ जाव कणीयसं जाव आइंचइ ५.४२ अणारिए जाव समाचरति ३।४४,४१४२ अणुटाणेणं जाव अपुरिसक्कारपरक्कमेणं ६२१,२२,२३,७१२३,२४ अण्णदा कदाइ बह्यिा जाव विहर इ १९५४ अपच्छिम जाव अणवखमाणे ११७२ अपच्छिम जाव भत्तपाण ८।४६ अपच्छिम जाव झूसियस्स ८।४६ अपच्छिम जाव वागरित्तए ८.४६ अब्भणुण्णाए तं चेव सब्बं कहेइ जाव ११७६ अभिगयजीवाजीवे जाव पडिलाभेमाणे ११५५ अभिगयजीवाजीवे जाव विहरइ ८.१६ अभिगयजीवेजीणं जाव अणइक्कमणिज्जेणं ११३१ अभीए जाब विहरइ २१२६,३५; ३१२२ अभीयं जाव धम्मज्झाणोवगयं ।२४ अभीयं जाव पासई २।४०,३१२३ अभीयं जाव विहरमाणं २।२८,३० अवहरइ वा जाव परिवेइ अस्मिणी भारिया । सामी सामासढे जहा आणंदो तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ । सामी बहिया विहरइ ६।५-१५ असोगवणिया जाव विहरसि ७१७ अहीण जाव सुरूवा ११४ अहीण जाव सुरूवाओ ८६ ८।४६ १७१-७८ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ ओ० सू० १६२ २।२३ २१२३ २।२४ २।२४ ७२५ २१५-१५ ७८ ओ० सू० १५ ओ० सू० १५ Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आओसेसि वा जाव ववशेवेसि आपुच्छिता जेणेव पोसहसाला तेव उवागच्छर २ ता जहा आणंदो जाव समणस्स २।११ आलोइज्जइ जाव तवोकम्मं ११७८ आसोइज्जइ जान पडिवज्जिद १२७८ ८५० ३१४६ ११८० ११७८ ८४६ १४७७ आलोएड जाव जहारिहं आलोएड जाव पडिवज्जइ आलोएयव्वं जाव पडिवज्जेयव्वं आलोएह जाव पडिवज्जेह आलोएहि जाव अहारिहं आलोएहि जाय तयोकम् आलोएहि नाव पडिवज्जाहि इसे जाव पंचविहे हड्डी जाव अभिसमण्णागए इमे जाव धर्माणिसंतए इमेयावे जाव समुप्पज्जिस्था उक्खेवो उज्जलं जाव अहियासेइ उज्जलं जान अरियानेमि उजले जाव दुरहिया उट्टाइ वा जाव अणियना उट्टाइ वा जाव नियता उट्ठाणे इ वा जाव परक्कमे उट्टाइ वा जाय सिक्कार० उट्टागंणं जाव परक्कमेणं उट्टा जाब पुरिसक्कारपरक्कमेणं उद्घाविए कहा चुलगी पिया तब स भागियव्वं । नवरं अग्गिमित्ता भारिया कोलाहलं कोवा गुणिता भणद से जहा | चुलणीपिया वक्तव्वया सव्वा नवरं अरुणच्चए विमाणे उबवानो जाब महाविदेहे उद्घाविए जहा सुरादेवो तहेब भारिया पुच्छ, तब कहे से जहा नुसणीपियरस जाव सोहम्मे 1 २१ ७ २६ |१|१८३।४५८।४१ ३॥४४ २।२७ ६/२१,२३ ६।२१,२३:७।२६ १।१४ २४० १८६५ ३१४२ २०१:४१: ५।१:६।१७११:८११:६१.१०११ २।३३,३६:३।२६ ६।२०, २३७।२६ ७१२४ ६।२३ ६४२१,७१२३ ७१७८-८८ ५।४२-५२ ७।२५ १६० ठा० ३१३४८ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृत्ति अ० ३ वृति अ० ३ वृत्ति अ० ३ बसि अ० ३ ओ० सू० १५ २४० १/६४ १८७३ २।१ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ६१२० ६।२० ६।२० ६।२० ६।२० ६१२० ३।४२-५२ ३१४२-५२ Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३० ७।११,१८ ७/१० ८२७ ८.१८ ३१५०-५२ पा३५ पा१६ ८.१८ २१५३-५५ ११६४ ११६२ ६।३५.४१ २१५०-५६ ३१२७-३८ ३१४४ १९६६,८१३७ उप्पण्णणाणदसणधरे जाव तच्चकम्मसंपया उप्पण्णनाणदसणधरे जाव महियपूइए जाव तच्च० उरालाइं जाव भुंजमाणे उरालाइं जाव विहरित्तए उरालेणं जहा कामदेवे जाव सोहम्मे उरालेणं जाब किसे उरालेणं तवोकम्मेणं जहा आणंदो तहेव अपच्छिम० एक्कारसमजाव आराहेइ एवं एक्कारस उवासगपडिमाओ तहेव जाव सोहम्मे कप्पे अरुणज्झए विमाणे जाव अंत काहिइ एवं तहेव उच्चारेयव्वं सव्वं जाव कणीयसं जाव आईचइ । अहं तं उज्जलं जाद अहियासेमि एवं दक्षिणेणं पच्चत्थिमेणं च एवं देवो दोच्चं पि तच्चं पि भणइ जाव ववरोविज्जसि एवं मज्झिमयं, कणीयसं, एक्कक्के पंच सोल्लया ! तहेव करेइ, जहा चुलणीपियस्स, नवरं एक्केके पंच सोल्लया एवं वण्णगरहिया तिग्णि वि उवसग्गा तहेव पडिउच्चारेयव्वा जाव देवो पडिगओ ओहयमणसंकप्पा जाव झियाइ कज्जेसु य आघुच्छउ कदाइ जहा कामदेवो तहा जेट्टपुत्तं ठवेत्ता तहा पोसहसालाए जाव धम्मपणत्ति करएहि य जाव उट्टियाहि करगा य जाव उट्टियाओ करेइ । सेसं जहा चुलणीपियस्स तहा भद्दा भणइ । एवं सेसं जहा चुलणीपियस्स निरवसेस जाव सोहम्मे कल्लं जाव' जलते ४।४१ ४।३६ ४/२२-३८ ३।२२-३८ २।४५ ८।४२ १६५६ २।२४-४० रा० सू० ७६५ १११३ २।१८,१६ ওও ७७ ७।२२ ४।४५-५२ १५७,७११२ ३१४५.५२ ओ० सू० २२ Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २१४५ १६५७ २१२२ २।२२,२३ २३०,३१ २।३-६ ४.३६ १२११-१४ वृत्ति २।३.६ ८.१८ कल्लं विउलं कामदेवा जाव जीवियाओ कामदेवा तहेव जाव सो वि बिहरइ कामदेवे गाहावई । भद्दा भारिया । छ हिरणकोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वभिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्व्या दसगोसाहम्सिएणं वएणं कासे जाव कोढे कुंडकोलिए गाहावई । पूसा भारिया छ हिरण कोडीओ निहाणपउत्ताओ छ वडिपउत्ताओ छ पवित्थरपउत्ताओ छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं कुडुंब जाव इमेयारूवे कुडुबस्स जाव आधारे केगटेणं एवं कोडुबिय पुरिसा जाव पच्चप्पिणति गिहाओ जाव सोणिएण गिहाओ तहेव जाव आइंचइ गिहाओ तहेव जाव कणीय जाव आईचइ गिहिणो जाव समुप्पज्जइ गुण जाव भावेमाणस्स गुरु जाव ववरोविज्जसि घाएत्ता जहा कयं तपा विचितेइ जाव गायं घाएता जहा जेठ्ठपुत्तं तहेव भणइ, तहेव करेइ । एवं कणीयंसि पि जाव अहियासेइ चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेसं तहेव जाव सिज्झिहिति चुल्लसया गाहावई अड्ढे जाव छ हिरणकोडीओ जाव छ व्वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं । बहुला भारिया चेइए जहा संखे जाव पज्जुबासइ जहा आणंदो तहा निग्गच्छइ तहेव सावयधम्म पडिवज्जइ जाए जाव विहरइ ७१४६ ७.३४ ३१४२ ३।४२ ৮s ११४८ ३१४२ ३२४२ ३१४२ ११७६ २०१८ ३१४१ ३१२१ १७६,७७ ६१८ २४४ ३।४२ ३।२७-३८ ३२२१-२६ ५५२ २।५५,५६ ४।३-६ भ० १२११ २।४३ ८।१०-१५ है।१६,१७ १११६-२४ २११६,१७ Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३२ १:५६ ७।१४ ७.५० ४।४२ १६५७ ७।१५ ७.३५ ११५७ ७।१५ १९२० ७.३५ राय० सू० १२ ३१४२ ११५७ ओ० सू० ५२ ओ० सू० ५२ १२० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ओ० सू० २० ११५७ ५.४० ५४१ जाया जाव पडिलाभेमाणी जाव पज्जुवासइ जुगवं जाव निउण सिप्पोवगए जेट्टपुत्तं जाव कणीयसं जाव आइंचइ ठावेता जाव विहरित्तए । णमंस इ जाव पज्जुवासइ णमंसित्ता जाव पज्जुवासइ णाइटूरे जाव पंजलियडा पहाए जाव अप्पमहग्धा० बहाए जाव पायच्छित्ते ण्हाए सुद्धप्पावेस अप्प० बहाया जाब पाच्छित्ता तं मित्त जाव विउलेणं पुष्फ ५ सक्कारेइ सम्माणेइ, २त्ता तस्सेव मित्त जाव पुरओ तञ्च पि तहेव भणइ जाव ववरोविज्जसि तत्थ णं बाणारसीए चूलणी पिया नाम गाहावई परिवसई अड्डे सामा भारिया अट्ठ हिरण्णकोडीओ निहाणपउत्ताओ अट्ठ वडिप० अट्ठपवित्थरप० । अट्ठ वया दसगोसाहस्सिएणं वएणं जहा आणंदो ईसर जाव सव्वकज्जवड्डावए यावि होत्था तव जाव कणीयसं तिक्खुतो जाव वंद तीमे य जाव धम्मकहा सम्मत्ता तुम जाव ववरोविज्जसि दुहट्ट जाव ववरोविज्ज सि देवराया जाव सबकसि देवाणुप्पिए समग्रे भगवं महावीरे जाव समोसढे तं देवाणुधिया जाव महागोवे धम्मायरिएणं जाव महावीरेणं धम्मायरियस्स जाव महावीरस्स नाममुद्दगं च तहेव जाव पडिगए ३.३-६ ३२४५ ७१३५ २।४४ ३.४४ ७७५ २१४० २॥३-६ ३२४४ ११२० २०११ २।२२ २०२२ वृत्ति ११४५ ७.४४ ७.३१ ७.४६ ७.५० ७१५१ ७१५० ६०२०-२४ Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ११८५ वृत्ति ३१२१-३७ ३।२१-३८ २।२२ २।२२ ११६६ श६२,६३ निक्खेवो २।५७,३१५३:४।५३,५१५४% ६१४१७८६८।५४६२७ निक्खेवो पढमस्स १८५ नोमि एवं जहा चुलणीपिय, नवरं एक्केके सत्त मंसमोल्लया जाव कणीयसं जाव आइंचामि श२१-३७ नीलुप्पल एवं जहा चुलणीपियस्स तहेव देवो उवसरगं करेइ जाव कणीयसं घाएइ, २त्ता जाव आइंचइ ७।५७-७३ नीलुप्पल जाव असि २१४५,३।२१,४४,४२१ नीलुप्पल जाव असिणा रा२२,२६ पंचजोयणसयाई जाव लोलुयच्चुयं १९७६ पढम अहामुत्तं जाव एक्कारस वि .३३,३४ पढम उवासगपडिमं अहासुतं ४ जहा आणंदो जाद एक्कारस वि ३३४८,४६ पाउणित्ता जाव सोहम्मे १३५३ पाडिहारिएण जाव उवनिमंतिस्सामि ७.११ पावयणं जाव ज हेयं ७।३७ पीढ जाव ओगिरिहत्ता ७५२ पीढ़ जाव संधारएणं ७१५१ पीढ जाव संथारयं ७११८ पीढ-फलग जाव उवनिमतेत्तए ७११८ पुण्णे कयत्थे कयलक्खणे सलद्धे २०४० पुत्तं जाव आइंचइ ७७८ पुरिसे तहेव कहेइ जहा चुलणीपिया धन्ना वि पडिभाइ जाव कणीयसं ४।४४ पुवरत्ता जाव धम्मजागरियं ११६५ पुन्वरतावरत्तकाले जाव पोसहसालाए समणस्स ७.५४ पोसहिए. फग्गुणी भारिया। सामी समोसढे जहा आणंदो तहेव मिहिधम्म पडिवज्ज इ जहा कामदेवो तहा जेपत्तं ठवेत्ता पोसहसालाए। समणस्स भगवओ महावीरस्स धम्मपति उवसंपज्जित्ताणं श६२-६३ ११८४ ११४५ श२३ १।४५ २४५ ११४५ ११४५ २१४० ३१४२ ३.४४ ११५७ २०१८ ना० ११११५३ Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विहरद्द नवरं निश्वस एक्कारस्स वि उवास गपडिमाओ तहेब भाणियव्वाओ एवं कामदेवगमेणं नेयव्वं जाय सोहम्मे फलग जव ओगिव्हिला फलग जाव संथारयं बंभयारी जाव दग्भसंथारोव गए बंभवारी समणस्स बहूहि जाव भावेता बहूणं राईसर जहा वितियं जाव विहरितए बहूहि जाव भावेमाणस्स भविता जाव अह भारिया जाव सम० भोगा जाव पव्वइया मंसमुच्छिया जाव अझोववण्णा मत्ता जाव उत्तरिज्जयं मत्ता जाव विकमाणी महइ जाव धम्मका समता महावीरे जाव विहरद महावीरे जाव विहरइ महावीरे जाव समोसरिए महासतयं तहेव भणइ जाव दोच्चं पि तुच्च पि एवं वयासी हंभो तहेब मारणंतिय जाव कालं - मिल जाव मित्त जाव पुरओ मुंडे जाव पव्वइत्तए मोहम्माथ जाव एवं व्यासी तहेब जाव दोच्चं पि राईसर जाव सत्यवाहाणं राईसर जाव सदस्स लठ्ठे जहा कामदेवो तहा निम्मद जाव पज्जुवास | धम्मका वदणिजे जव जुवासविजे वंदामि जाव परजुवासामि ३४ १०।५-२५ ७।५१ ७१६ २४० ३।१६ २१५५ १८५७ ६/३३ ७।३७ ७/७८ ७३७ ८ २० ८३८ ८४६ ७१६ २४२ २४३७११५ ११७३७११२ ८३८-४० १/६५ १।५७ ११५६ ११२३.५३ ८४६ १।१३ १।५७ ६/२६,२७ ७।१० ७११५ २५-११.५०-५५ १।४५ ११४५ १/६० ११६० १९८४ १/५७ २१८ १।२३ ७७५ ओ० सू० ५२ वृत्ति ८२७ ८२७ २।११ १।१७ १/२० ओ० सू० ११-२२ ८।२७-२१ १।६५ १।५७ १।५७ १० सू० ५२ ओ० २७-२१ १/२३ १।१३ २२४३, ४४ ओ० सू० २ ओ० सू० ५२ Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वदाहि जाव पज्जुवासाहि ११४५:७।३१ ओ० सू० ५२ वंदिस्सामि जाव पज्जुवासिस्सामि ७११ ओ० सू० ५२ वंदेज्जाहि जाव पज्जुवासेज्जाहि ७।१० ओ० सू० ५२ वयासी जाव उववज्जिहिसि ८४६ ८.४१ वाताहतं वा जाव परिवेइ ७१२६ ७२५ विणस्स माणे जाव विलुप्पमाणे ७.४७,४६ विहरइ । तए गं २१५१-५४ ११६२-६५ वीइक्ताई तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ । धम्मपत्ति । वीसं वासाई परियाग नाणत अरुणगवे विमाणे उववाओ महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ ६।१८-२६ २११८,१६,५०-५६ वीइक्कता एवं तहेव जेट्टपुत्तं ठवेइ जाव पोसहसालाए धम्मपण्णत्ति पा२५,२६ २०१८,१६ संचाएइ जाव सणियं २१३४ २१२८ संताणं जाव भावाणं १७८ १७८ संतेहिं जाव वागरित्तए ८.४६ ८।४६ संतेहिं जाव वागरिया ८.४६ ८.४६ सखिखिणियाई जाव परिहिए २१४० सद्दहामि णं जाव से जहेयं १२३ रा० सू० ६६५ सद्दालपुत्ता तं चेव सव्वं जाव पज्जुवासिस्सामि ७१७ ७।१०,११ समएणं अज्जसहम्मे समोसरिए जाव जंबू पज्जुबासमाणे ११३-५ रा० सू० ६८६; ओ० स० ८२,८३ समणे जाव विहरइ तं महाफलं गच्छामि णं जाव पज्जुवासामि १।२० ओ० सू० ५२ समणोवासाए जाव अहियासेइ ५।३८ २०२७ समणोवासा जाव विहरइ ४।४०,५।३८ ३१२२ समणोवासया ! अप्पत्थियपत्थिया जाव न भंजेसि ३१४४,७७५ २१२२ समणोवासया ! जहा कामदेवो जाव न भंजेसि ३२१ २२२२ समणोवासया ! जाव न भंजेसि २।३४;५।२१,३६ २।२२ समणोवासया ! तं चेव भणइ ७७७ ७७४ समणोवासया ! तं चेव भणइ सो जाव विहरइ ३१२३,२४ ३१२१,२२ समणोवासया ! तहेव जाव गायं आइंचइ ३।२३-२५ ७.१० ३१४४ Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ३१३६ २०२२ ७७८ ३.४२ श१७-२३,५४-६० वृत्ति २।२७ २२७ भ० ३१०२ २१७-१६ समणोवासया ! तहेव जाव ववरोविज्जसि ३६४१ समणोवासया ! तहेव भणइ जाव न भंजेसि ॥२८ समुप्पज्जित्था एवं जहा चुलणीपिया तहेव चितेइ समोसरणं जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव सावयधम्म पडिबज्जइ । साचेव वत्तव्बया जाव जेट्टपुत्तं २१७-१६ सहइ जाव अहियासेइ २।२७ सहति जाव अहियाति २०४६ सहितए जाव अहिया सित्तए २०४६ साइमं जहा पुरणो जाव जेट्टपुत्तं - १५७ सामी समोसढे । चुलणी पिया वि जहा आणंदो तहा निग्गओ। तहेव गिहिधम्म पडिवज्जइ। गोयम पुच्छा । तहेव सेसं जहा कामदेवस्स जाव पोसहसालाए ३१७-१६ सामी समोसहे जहा आणंदो तहा गिहिधम्म पडिवज्जइ । सेसं जहा कामदेवो जाव धम्मपण्णत्ति ५॥७-१६ सामी समोसढे जहा कामदेवो तहा सावयधम्म पडिवज्जद्द । सा सव्वेव वत्तब्बया जाव पडिलाभेमाणी विहरइ ६१७-१७ साहस्सीण जाव अधणेसि २१४० सिंघाडग जाव पहेम ५१३६ सिंघाडग जाव विप्पइरित्तए ५१४२ सीलब्बय-गुणेहिं जाव भावेत्ता ८.५३ सील जाव भावमाणस्स सीलव्वय जाव भावेमाणस्स बा२५ सीलाई जाव न भंजेसि ४।२१ सीलाई जाव पोसहोववासाई २०२२ सीलाई वयाई न छई सि तो जीवियाओ रा२४ सुक्के जाव किसे ११६४ सुद्धप्पावेसाईजाव अप्पमहरघा ७.१५,३५ सुरादेवे गाहावइ अड्ढे छ हिरण्णकोडोओ जाव छ व्वया दस गोसाहस्सिएणं वएण २१७-१६ २१७-१७ वृत्ति ओ० सू० ५२ ५०३६ ११८४ ११५७ ११५७ ७१५४ २१२२ २।२२ २।२२ भ० २०६४ ११४६ Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३-१६ १।११-१४:२१७-१६ २।३६,३७ २३४,३५ तस्स धन्नाभारिया । सामी समोसढो जहा आणंदो तहेव पडि बज्जइ गिहिधम्म जहा कामदेवो जाव समणस्स सो वि दोच्चं पि तच्चं पि भणइ, कामदेवो वि जाव विहरइ हंभो ! तं चेव भणइ सो वि तहेव जाव अणाढायमाणे हट्टतुट्ठ जाब एवं वयासी हट्ठत? जाब गिहिधम्म हट्टतुट्ट जाव समण हट्टतुट्ठ जाव हियए हट्टतुट्ठ जाव हियए जहा आणदो तहा गिहिधम्म पडि दज्जइ, नवरं एगाहिरण्णकोडी निहाणपउत्ता एगाहिरण्णकोडी वडिपउत्ता एगाहिरण्णकोडी पवित्थरपउत्ता एगे वए दसगोसाहस्सिएणं जाव समणं हट्टतुट्ठा कोडुबियपुरिसे सहावेइ, २ सा एवं बयासी खिप्पामेव लहकरण जाव पज्जुवासइ पा२६,३० ११२३ ११५१,५२ २।४८ १७४८१४८ ८।२७,२८ ओ० सू० ८० ११२३,२४ ११२३ १२३ ११२३,२४ ११४६-४६ हट्टतुट्टा समणं हणेसि वा जाव अकाले हारविराइयवच्छ जाव दसदिसाओ हेऊहि य जाव वागरणेहि ७३७ ७।२६ २१४० ओ० सू० ८० भ० ६१४१-१४३; उवा०७।३३ ११५१ ७।२५ ओ० सू०४७ ६।२८ ७.५० अंतगडदसाओ अंतिए जाव पव्वइत्तए अज्जा जाब इच्छामि अणगारे जाए जाव विहरइ ८२० ६५२ ३१२० ८७ ना० १।५३५ Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ० अणुतरे जाय केवल अतुरियं जाय अनंति अपत्थिय जाव परिवज्जिए अपत्थियपत्थिए जाव परिवज्जिए अरहओ मुंडे आव पचाहि अरिनेमिस्स जाव पन्थइत्तए अहासुत्तं जाव आराहिया आघवणाहि ० आपुच्छामि देवाप्पियाणं आरुजाव सिद्धे आहेवच्च जाव विहरइ इच्छामि णं जाव उवसंपज्जिता ईसर जाव सत्यवाहाणं उच्च जाव अडइ उच्च जाव अडमाणं उच्च जाव अडमाणा उच्च जाव अडमाणे उच्च जाय अडामो उच्च जान पडिलाइ उज्जाणे जाव पज्जुवासइ उज्जला जाव दुरहियासा उत्तर० जम्मुक्त जाय अणुपते उराले जाव धमणिसंतया उवागए जाव पडिदसे इ उवागच्छित्ता जान बंदद ओहर जाव भिया ओह जाब वि करयल० करे जहा गोमसामी जान अट काए जान दो वि पाए कामा खेलासवा जाव विप्पजहिया कुमारस्स चउत्थ जाव अप्पाणं ३८ ३।१२ ३।२३ ३२५१ ३।१०२ રાજ ५१११ 515 ६१९५ १।१६ २३।१०१ १।१४ ३१०१ १।१४ ६७६ ६।५५ ३१२६,३० ६६७८ ६८० ३१२५, २६ ३०६१ ३॥६० ६।५२ ३१५० ८१३ ६८७ ३१६८ ५।१७ ३।४३ ५१२२६१३५,४१ ६।५४ शब्द ३७६ १११६ 디투 वृति भ० २२१०८ उवा० २१२२ शह ३१७० ३।७६ ठा० ७/१३ नाम १।१।११४ ना० ११५१८७ ३१६६-६२ ना० १५२६ १८७६६ ना० २।५।६ भ० २२१०६ भ० २२१०६ ३१२४ २०२४ ३।२३ ३२४, २५ ना० १ १/६६ ना० १।१।१६२ ५:२६ ना० १।१।२० भ० २/६४ ६/५७ ३/६१ ३०४३ ना० १|१|३४ ना० १।१।२६ भ० २।१०७,१०८ वृत्ति ना० १।१।१०६ राय० सू० ६६८ ५।२१ Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चस्थ जाय भावेमाणी चउत्थ जाव भावेमाणे उत्थस्स वग्गस्स निक्खेवम्रो घटुंट्टेणं जाव विहरति जद उसे अट्टमस्स जस्स उस्लेवओ नवरं सोलस जइ णं भंते अद्रुमस्स भग्गस्स उनसेवओ जाव दस अ णं मंते तेरस जइ णं भंते सत्तमस्स वग्गस्स उनसेवओ जान तेरस जई तच्चस्स उक्खेवओ जइ दस जइ दो चस्स वगरस उक्थेवओ जहा अभओ नवरं हरिणेगमेलिस्स अट्टमभत्तं पगेण्हइ जाव अंजलि जहा गोयम सामी तहा पडिदसेइ जहा गोयमो जाव इच्छामो जावज्जीवाए जाव विहरइ जाव संलेहणाकालं हाए जाव विभूसिए व्हाया जाय पाययिता तं महा जहा गोयमे तहा तीसे व धम्मकहा तीसे व धम्मकहा देहं जाव किलंत धारिणी सोहं सुमिणे नगंसामि जाव पज्जुवासामि नयरीए जाव अडिए नवमस्स उक्लेवओ निग्गया जाव पडिगया निक्खमणं जहा महम्बलस्स जाव तमाणाए वहा जाव संजमह ३६ चा३३ १२१ ४।७ ३:२१ ३.१७ ६१.२ ८०१७,१८ ७३ ७१.२ ३।१ 5188 २१,२ ३२४७-४९ ६५७ ३।२२ ६१५३ ८१३६ ३।४४ ३।३६ શ ३६२ ६१५०, ८६ ३२६५ ३।११६ ६/३५ ३।२२ ३।११२ १२ ३२७८-८५ ५।३१ ५।३१ १।२५ ३:२० ३।३ ११५.६ १।५, ६ १७ १।५, ६ १५. ११७ १५.६ ना० २।१२५३-५८ भ० २।११० भ० २।१०७ ६०५३ ८।१५ ओ० सू० ७० ओ० सू० २० १११६,२० राय० सू० ६१३ ना० १।१।१०० वृत्ति १।१७ ओ० सू० ५२ भ० २१०७ ३/३ ना० १।११५ भ०११ । १६० ना० १।१।११५-१५१ Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६१६४ ५८ ५२८ ८६ ६५१ ३।१०४ ३।३० ३१७७ ३।२६,२७ ६१९४ रायसू० ६६३ ना० १११११५० ८१८ ना० ११११०१ ३।९५ ३१२२,२३ ना० १११११४ ३१२४,२५ ना० १११६४ ५।१२ ५.१२ ५।१४ ५।१३ ६।२८ नेरइय जाव उववज्जति पउमावईए य धम्मकहा पव्वावेइ जाव संजमियब्वं पारेइ जाव आराहिया पाक्यणं जाव अब्भुट्टेमि पुरिसं पाससि जाव अणुपवेसिए पोरिसीए जाव अडमाणा बहुयाहिं अणु लोमाहि जाव आघवित्तए बारवईए उच्च जाव पडिविसज्जेइ भगवं जाव समोसढे विहरइ भूतं जाव पव्वइस्संति भूतं वा जाव पव्वइस्सति मालागारे जाव घाएमाणे मासियाए संलेहणाए बारस वासाई परियाए जाब सिद्ध मुडा जाव पव्वइया मुंडा जाव पव्वयामि मुडे जाव पव्वइए मुंडे जाव पव्वइत्तए मुंडे जाव पव्वइस्सइ रज्जे य जाद अंतेउरे रूवेणं जाव लावण्णेणं लहुकरणजाणपवरं जाव उवट्ठवेंति विण्णवणाहि जाव परूवेत्तए संजमेणं जाव भावेमाणे संलेहणा जाव विहरित्तए संलेहणाए जाव सिद्धे समणेणं जाव छ?स्स समाणा जाव अहासुहं समोसढे सिरिवणे उज्जाणे अहा जाब विहरइ सरिसया जाव नलकूबरसमाणा सरिसियाणं जाव बत्तीसाए सिंघाडग जाव उग्घोसेमाणा ना० १११८४ ३।२० ३१२० ३।२० ३१२० ३२० ना० १११११६ श२४ ३१३०,५।११ ५।२१,२२ ६१५३ ५।१६ ३१५० ५।११ ३१५७ ३१३१ ६.४५ ६।८४ ८.१४ ३३१३ ६.१०२ ना० १।१६।१३३ मा१४ श२४ ४१७ ३३२० ना० १।१० ३११६ ना० १२१२६० ३।१२ ३१३० ३३१० ५।१४ Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ६॥२८ ३।६२ ५।१६ वृत्ति सिंघाडग जाब महापहपहेसु सिद्धे जाव पहीणे सिरिवणे विहरइ सुद्धप्पावेसाइं जाव सरीरे सोच्चा सोच्चा जं नवरं अम्मापियरो आपुच्छामि जहा मेहो महेलियावज्जं जाव वत्रियकुले ६।३६ १११६ ओ० सू० ५३ ना० १।१६६ ३।६३-७३ ६।५१ ३।२५ ३।४२ ना० १११११०१-१०७:११०-११३ ना० ११०१०१ ओ०सू०२० ३२५ हट्ट जाव ह्यिया हट्टतुटु जाव हियया अणुत्तरोववाइयदसाओ अंबगठिया इ वा एवामेव ३।४५ ३।३१ वृत्ति अमुच्छिए जाव अणज्झोववणे अं०६।५७ आयंबिलं नो अणायंबिलं जाव नावकं खति ३२४ ३१२२ इमासि जाव साहस्सीणं ३१५५ इ वा जाव नो सोणियत्ताए ३२३३ ३।३१ इ वा जाव सोणियत्ताए ३३६ ३१३१ उच्च जाव अडमाणे ३१२४ भ०२।१०६ उण्हे जाव चिट्ठइ उरालेणं जहा खंदओ जाव सुहय चिट्ठइ ३।३० भ० २०६४ ऊरू जाव सोणियत्ताए ३१३५ एवं जाव सोणियत्ताए ३२३४ ३।३१ एवामेव ३३६-४४,४६,४७,४६,५० ३।३१ गोयमे जाव एवं १।१० भ० २०७१ चंदिम जाव नवय० ३१५६ श जहा खंधओ तहा जाव हुयासणे ३२५२ भ०२।६४; मा०१॥श२०२ जहा जमाली तहा निग्गओ। नवरं पायचारेणं । जाव जं नवरं अम्मयं भई सत्थवाहि आपुच्छामि । तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतिए पब्वयामि । Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भ०६।३३,११,११ना० १११,११५ ना० ११११९३ जाव जहा जमाली तहा आपुच्छइ । मुच्छिया । वुत्तपडिवुत्तया जहा महब्बले जाव जाहे नो संचाएइ जहा यावच्चापुत्तस्स जियसत्तुं आपुच्चइ। छत्त चामराओ । सयमेव जियसत्तू निक्खमणं करेति जहा थाबच्चापुत्तस्स कण्हो जाव पब्वइए अणगारे जाए--इरियासमिए जाव गुत्त बंभयारी ३।११-२१ जाव उप्पि पासा विहरइ तरुणए जाव चिट्ठइ ३२५१ तरुणिया एवामेव ३१४८ बिलामिव जाव आहारेइ ३२५७ मुंडावली इ वा मुंडे जाव पवइए सजमेणं जाव विहरइ ३६६ संजमेणं जाव विहरामि ३१५७ सुक्कं० सुक्काओ जाव सोणियत्ताए ३१३२ सुपुण्णे सुकयत्थे कयलक्खणे ३१५८ सोहम्मीसाण जाव आरणच्चुए १८ ३।२७ ३।३१ ३१२२ ३२७ ३१२७ ३।३१ ३१५८ ना०२१२११ पण्हावागरणाई १०।१४ १०११५ ५।१० ३१२६ ४१३ अंतरप्पा जाव चरेज्ज एवं जाब इमस्स एवं जाव चिरपरिगत० एवं जाव परियट्टति पत्थणिज्ज एवं चिरपरि० रूसियव्वं जाव चरेज्ज रूसियव्वं जाव न सज्जियव्वं जाव न सई सज्जियव्वं जाव न सति हीलियव्वं जाव पणिहिदिए ५८ ४|१५ १०११७ ४१ १०।१५ १०।१७ १०.१६ १०.१६ १०।१४ १०११४ १०.१४ १०११४ १०११४ Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४३ विवागसुयं ११८।१,२ १।४।२८ श२८ १।२।१,२ १।२१६४ वृत्ति वृति १७७ १।२।२४ १।३।१३ श२१२६ १२६२३ १.१४४७,१४३११६ १३।७ ११११७० ११११२ अं०६५७ ना० ११११३३ ११२।१४ श।२४ १।६।१६ वृत्ति वृत्ति वृत्ति ओ० सू० २२ अट्ठमस्स उक्वेवओ अट्रि जाव महियगतं अतुरिय जाव सोहेमाणे अद्धहार जाव पट्ट मउड़ अब्भणुण्णाए जाव बिलमिव अम्मयाओ जाव सुलद्धे जाओ अवओडय जाव उग्धोसिज्जमाणं अविणिज्जमाणंसि जाव भियामि असिपत्तेहि य जाव कलंबचीरपत्तेहि अहम्मिए जाव दुष्पडियाणंदे अहम्मिए जाव लोहियपाणी अहम्मिए जाव साहस्सिए अहापडिरूव जाव विहरइ अहिमडे इ वा जाव ततो वि अणिट्रतराए चेव जाव गंधे अहीण जाव जुवराया अहीण जाव सुरूवा अहीण जाव सुरूवे आसि जाव पच्चणुभवमाणे आसी जाव विहरइ आसुरुत्ते जाव मिसिमिसेमाणे आसुरुत्ते जाव साह? आहेवच्चं जाव विहर इंदमहे इ वा जाव निम्गच्छति इंदमहे इ वा जाव निरगच्छति इगुरूवे जाव सुरूवे इमेयारूवे जाव समुप्पज्जित्था इरियासमिए जाव बंभयारी इहमागच्छेज्जा जाव विहरेज्जा उबरदत्ते निच्छुढे जहा उज्झियए उक्किट्टि जाव करेमाणे उक्किट्टि जाव समुद्द० १।१।३६ ११६२ १।२७ १२।१० श।१६ ११३३१६ ११३१४१ ११६।३५ शरा७:१३१७ ११।१६ ११०२० २।१२१५ ना० ११८६४२ २०४ ओ० सू० १५ ओ० सू० १४३ १।११४२ ११११४२ १।२।६४ ११२१६४ वृत्ति ना० १११६६ ना० १११११७ २११११५ ११११४१ ओ० सू० २७ ओ०सू० २१ ११२६५६ १।३।२४ ओ०सू० ५२ १।१७० २।१।३१ २७३४ श३४३ १।३।२४ Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ १११७० ११२।१४ ११२।१,२ श२११,२ १।२।१४,१५ वृत्ति वृत्ति उक्कोस नेरइएसु उक्खित्त जाब सूले० १६ उक्खेवओ नवमस्स १।६।१,२ उक्खेवओ सत्त मस्स ११७५१,२ उग्छोसिज्जमाण जाव चिता १।४।१२,१३ उज्जला जाब दुरहियासा ११११५६ उम्मुक्क जाव जोवणग० १२११७० उम्मुक्कबालभावा जोवणेण स्वेण लावण्णण य जाव अईव १।६।३४ उम्मुक्कबालभावे जाव विहरइ ११६२६ उराले जाव लेस्से २।१२० उवगिज्जमाणे जाव विहरद ११९४८ उस्सुक्कं जाव दसरत्तं ११३१५२ एवं पस्समाणे भासमाणे गेण्हमाणे जाणमाणे ११११५० ओहय० १२।२७ पोह्य जाव झियाइ १२।२४;११६१६ ओहय जाव झियासि ११२।२५,१।६।१७ ओहह्य जाव पास १।२।२५१।६१७ करयल० ११३१४०,५५,५६११६।३८ करयल० १४३१५० करयल जाव एवं ११३१४४,१।४।२८ करयल जाव एवं ११३१५२,५३; १६६१३४ करयल जार पडिसुणेति १९३१५३,६२११६:३४,११६२०,४० करयल जाव वद्धावेइ १।९।४५ करेइ जाव सस्थोवाडिए कुमारे जाव विहरद १२६।३६ खुत्तो १४१०७० गंगदत्ता वि १७।३३ गामागर जाव सण्णिवेसा २।१।३१ गाहावई जाव तं धणे २१११२३ गिण्हावेइ जाव एएणं ११५२७ घाएति २ ११३।१४ चउत्थं छ? उत्तरेणं इमेयारूवे ११७।१०,११ चउत्थस्स उक्खेवओ ११४११,२ ११४१३६ १२४१३५ ओ० सू०८२ ना० १११६३ वृत्ति १४१२५० १०।२४ वृत्ति ११।२४ १।२।२४ ११३१४० ११३१४० १।११६६ ओ० सू० ५६ ११३१५५ वृत्ति १४११६६ १।१।७० १२२१५५ ओ० सू० ८६ वृत्ति १०२१६४ ११३।१४ श७१२।१५ १।२।१,२ Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४५ ओ० सू० ८३ छुटुंछद्रेणं जहा पण्णत्तीए पढम जाव जेणेव १४२११२-१४ भ० २११०६-१०८ छठुस्स उक्खेवओ १५६।१,२ १९२११,२ छिदइ जाव अप्पेगइयाणं शश२८ शरा२४ जणसह च जाव सुणेत्ता १११।१६ ओ० सू० ५२ जहा विजय मित्ते जाव कालमासे कालं किच्चा ११७।३१,३२ ११२१५०,५१ जातिअंधे जाव आगितिमेते १६११६४ ११।१४ जायसड्ढे जाव एवं ११११२५ जाव पुढवी ११३।६५१।४३६ ११११७० द्विइएसू जाव उववज्जिहिइ १११७० ११११५७ हाए जाव पायच्छित्ते ११३।४७,५५,१११।४५ शश६४ ण्हायाए जाव पायच्छित्ताए १।५० १५२।६४ हायाओ जाव पायच्छित्ताओ ११७।२० १॥२०६४ व्हाया जाव पायच्छित्ता १।३।२४ ११२१६४ तं चेव जाव से णं १३।१५ १।२।१५ तंतीहि य जाव सुत्तरुज्जुहि १६६०२३ ११६।१८ तं महया जहा पढम तहा २।११३२ २११:१२, भ० ६।१५८ तच्चस्स उक्खेवो ११३३१,२ श२।१,२ तह त्ति जाव पडिसुणति १।३१४६ शश६६ ताओ जाव फले १७।२३ १२७११६ तीसे य० १२१२२३ ना० १११११०० तेगिच्छियपुत्तो वा जाव उग्घोसेंति १६१०११३,१४ ११८।२१,२२ तो णं जाव' ओवाइणइ ११७।२१ ११७११६ दसमस्स उक्खेवओ १११०११,२ १२।१,२ दारगस्स जाव आगितिमित्ते शश२६ १११।१४ नगरगोरूवा जाव भीया १२।३४ १।२।३३ नगरगोरूवा जाव वसभा १२।३३ १।२।२४ नगरपोरूवाणं जाव वसभाण शरा२८ ११।२४ नगर जाव विणिज्जामि ११२।२४ ११।२४ निक्खेवओ ११३१६६ १११७१ निक्खेवो १।२१७४;११४१४०, ११५।३०।१।६।३८:१७४३६१।८।२८,१९६० १११७१ निच्छ्भेमाणे अन्नत्य कत्थइ सुई वा अलभ अण्णया कयाइ रहस्सियं सुदरिसणाए गिह १।४।२६,२७ ११२१६२,६३ नीय जाव अडइ १७७ १।२।१५ पंचमस्स अज्झयणस्स उवखेवओ ११५।१,२ ११२।१,२ पंच्चाणुव्वइयं जाव गिहिधम्म २।१।३१ सश१३ पज्जेइ जाव एलमुत्त ११६२३ १।६१४ Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४६ वृत्ति पम्हल० ११७२१ पावं जाव समज्जिणइ १४११७० ११११५१ पुढवीए संसारो तहेव पुढवी १।५।२६ १॥३॥६५ पुष्फ जाव गहाय १७२३ ११७२१ पुरा जाव विहर १११४१,४२,१४२१६५ ११११४१ पुरिसे जाव निरयपडिरूवियं १२१५ १५११४१ पुव्वभवपुच्छा वागरेइ ११७.१२,१३ १।११४२,४३ पूवभवे जाव अभिसमण्णागया २२१४१५ वृति पुवाणुपुब्धि जाव जेणेव २१२ ना० १११४ पुख्वाणपुटिव जाव दुइज्जमाणे २१११३२ २।१।३१ पोराणाणं जाव एवं २७।११ १२।१५ पोराणाणं जाव पच्चणुभवमाणे ११११६६ ११११४१ पोराणाणं जाव विहरइ ११३१६४।१।४।६१,११५।२८,१।७३७,१८१८,२६:१।९।५८ १।१०।१८ १।११४१ फलएहि जाव छिप्पत्रेणं १1३.४३ ११३१२४ फुट्ट माणेहिं जाव विहरइ २।१।११ ना० १६१६३ बहूणं गोरूवाणं ऊहे जाव लावणेहि १२२१२६ १।२।२४ बहहिं चूण्णप्पओगेहि य जाव आभिओगित्ता १११०१७ ११।७२ बहहिं जाव हाया १७४२५ ११७२३ भगवं जाव जओ णं १९३४ ११:३३ भगवं जाव पज्जुवासामो १६११२१ ओ०सू० ५२ भवित्ता जाव पब्वइस्लाइ २।१।३५ २१११३ भवित्ता जाव पवएज्जा २१११३१ २।१।१३ मज्झमझेणं जाव पडिदंसेइ ११२।१५ भ० २।११० महत्थं जाव पडिच्छइ ११३१५६ ११३१४० महत्थं जाव पाहुडं ११३०५५ १०३।४० महावीरे जाव समोसरिए १११११७ वृत्ति महिय जाव पडिसेहेति ११३१४६ मासाण जाव आगितिमेत्ते १४१०६४ मासाण जाव दारियं १।३१ १।२।३१ मासाण जाव पयाया १७२६ ११२१३१ मित्त ११३२६०,११५१७ १।२।३७ मित्त० १७२७ १७११६ मित्त जाव अण्णाहि ११३१२८ ११३।२४ मित्त जाब परियणं ११६४७ १२।३७ मित्त जाव परियणेण १६५७ ११२३७ वृत्ति Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वृत्ति वृत्ति मित्त जाव परिवुडा मित्त जाव परिवुडाओ मित्त जाव परिवूडे मित्त जाव महिलाओ मित्त जाव सद्धि मित्त जाव सद्धि मियादेवी जाव पडिजागरमाणी मुंडा जाव पव्वयंति रटुं च रट्रेय जाव अंतेउरे राईसर जाव नो खलु अहं राईसर जाव पभियो सईसर जाव प्पभियओ राईसर जाव सत्थवाह. राईसर जाव सत्थवाहाण राईसर जाव सत्थवाहेहि राया जाव जीईवयमाणे वेणुलयाहि य जाव वायरासीहि सगयगय० सणाहाण य जाव वसभाण सण्णद्ध जाव पहरणे सण्णद्धबद्ध जाव पहरणेहि सण्णद्धबद्ध जाव प्पहरणा० सत्थेहि य जाव नहच्छेयणेहि समणे जाव विहरइ समाणे सिंघाडग तहेव जाव सूदरिसणाए समुप्पणे जाव तहेव निग्गए सागरोवम० सिंघाडग जाव एवं सिंघाडग जाव पहेसु संदरथण सुबहुं जाव समज्जिगित्ता सुबाहुकुमारे जाव अलंभोगस मत्थं हट्ठतुहियया हय जाव पडिसेहिए ११२।५४ १॥२३७ ११७४२३ ११७११६ १।३१५५ २।३७ १७/२६ १७.१६ १७.२३ १।७।१६ ११६।४५ १।२।३७ १।१।२६ १२१११५ २११६३१ २।१।१३ ११११५७ १५११५७ ११११५७ २१११३ ११२१७२ ११५० १।१०१७ १.१५० १६५२२,२३ ११११५० ११११५० ओ०सू० ५२ १९५७ १।१३५० १।९।३७ १६६२३ श२४७ शरा२४ १।२।२० १२।२८ १२।१४ ११३।४७ १।२।१४ १२३।२४ ११२।१४ १२६१२२ १६१०२० ना० १११९ ११४१२२-२४ ११२।५७-५६ १।३।१५ १४२११५ १६१७० १।११५७ १११०।१३ १६११५३ १।२।५७,१८२१:२।११२३ ११११५३ १२।७ वृत्ति १८११३११६१२६७१।१०१८ शा५१ २।१११०,११ ओ०सू० १४८,१४६ १।१।२६ ओ०सू०२० ११३१५० ११३१४६ वृत्ति Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पृ० ८ ५७ ६० १७७ २०६ ३०६ ४२६ ४५५ ४६१ ५१६ ५५१ ५७५ ५६८ ६१६ ७३० ७३८ ७३६ १६ ૪; ५२२ 11 पंक्ति 2 x mm o w २० १२ २२ ३ १० १६ १६ १५ ७ १६ ७ १६ १२ ६ २० ७ १२ पा० ६ पा० ४ पा० २ २४ शुद्धि-पत्र मूलपाठ अशुद्ध • मणप्पते जहेसु हत्थ कट्ट विप्पइर-माण संकाणि वेरमणाइ पज्जुवा सण्णयाए देवसंस तुम ताइ • समुदणं सस्सिरीएण दसं खणमाणे अप्पेगइयाण दुप्पडियादे पाठान्तर पटसि पिणद्धति आसुरुत परिशिष्ट अभिगयजीवेजी णं शुद्ध • पत्ते ० जूहे हत्थी कट्टु विप्पइरमाण संकामणि वेरमणाई पज्जुवासणाए देवसंदेस तुमं ताई ● समुदण सस्सिरी एण दस खणमाणे अप्पेगइयाणं दुप्पडियाणंदे पट्टसि पिणद्धेति आसुरु अभिगयजीवाजीवेणं Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्परोपग्रही जीवानाम