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पंचमं अज्झयणं (चुल्लसयए) चुल्लसययस्स समाहिमरण-पदं ५२. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए बहुहिं सील-वय-गुण-वेरमण-पच्चक्खाण
पोसहोववासेहिं अप्पाणं भावेत्ता, वीसं वासाई समणोवासगपरियागं पाउणित्ता, एक्कारस य उवासगपडिमाओ सम्म कारणं फासित्ता, मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झूसित्ता, सद्धि भत्ताइं अणसणाए छेदेत्ता, आलोइय-पडिक्कते, समाहिपत्ते, कालमासे कालं किच्चा सोहम्मे कप्पे अरुणसिद्धे विमाणे देवत्ताए उववण्णे । "तत्थ णं प्रत्येगइयाणं देवाणं चत्तारि पलिग्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता।
चुल्लसयगस्स वि देवस्स चत्तारि पलिप्रोवमाइं ठिई पण्णत्ता ।। ५३. से णं भंते ! चुल्लसयए तारो देवलोगाओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइक्खएणं
अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गमिहिइ ? कहिं उववज्जिहिइ ? गोयमा ! महाविदेहे वासे ° सिज्झिहिइ बुझिहिइ मुच्चिहिइ सव्वदुक्खाणमंतं
काहिइ।। निक्खेव-पदं ५४. •एवं खलु जंबू ! समणेणं भगवया महावीरेण उवासगदसाणं पंचमस्स
अझयणस्स अयमढे पण्णत्ते ॥
१. सं० पा०-चत्तारि पलिओवमाई ठिई । सेस २. सं० पा०-निक्खेवो ।
तहेव जाब सिभिहिति)
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