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________________ ४७८ उवासगदसायो विउट्टइ विसोहेइ अकरणयाए अब्भुटेइ प्रहारिहं पायच्छित्तं तवोकम्म पडिवज्जइ॥ चुल्लसयगस्स उवासगपडिमा-पदं ४७. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढम उवासगपडिम उवसंपज्जित्ता णं विहरइ ।। ४८. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए पढमं उवासगपडिमं अहासुत्तं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्म काएणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ४६. तए णं से चुल्लसया समणोवासए दोच्चं उदासगपडिम, एवं तच्चं, चउत्थं, पंचम, छटुं, सत्तमं, अट्ठमं, नवम, दसम, एक्कारसमं उवासगपडिमं अहासुतं अहाकप्पं अहामग्गं अहातच्चं सम्मं कारणं फासेइ पालेइ सोहेइ तीरेइ कित्तेइ पाराहेइ ।। ५०. तए णं से चुल्लसयए समणोवासए तेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेणं पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मसे अट्ठिचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। चुल्लसयगस्स प्रणसण-पदं ५१. तए णं तस्स चुल्लसयगस्स समणोवासगस्स अण्णदा कदाइ पुव्वरत्तावरत्तकाल समयंसि धम्मजागरियं जागरमाणस्स अयं अज्झथिए चितिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था एवं खलु अहं इमेणं एयारूवेणं अोरालेणं विउलेणं पयत्तेण पग्गहिएणं तवोकम्मेणं सुक्के लुक्खे निम्मंसे अद्विचम्मावणद्धे किडिकिडियाभूए किसे धमणिसंतए जाए। तं अत्थि ता मे उढाणे कम्मे बले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, तं जावता मे अत्थि उहाणे कम्मे वले वीरिए पुरिसक्कार-परक्कमे सद्धा-धिइ-संवेगे, जाव य मे धम्मायरिए धम्मोवएसए समणे भगवं महावीरे जिणे सुहत्थी विहरइ, तावता मे सेयं कल्ला पाउप्पभायाए रयणीए जाव' उट्ठियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयस जलते अपच्छिममारणंतियसलेहणा-झूसणा-झूसियस्स भत्तपाण-पडियाइक्खियस्स कालं अणवकखमाणस्स विहरित्तए-एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं पाउप्पभायाए रयणीए जाव उद्वियम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिणयरे तेयसा जलते अपच्छिममारणंतियसंलेहणा-झूसणा-झूसिए भत्तपाण-पडियाइक्खिए काल अणवकखमाणे विहरइ ! १. उवा० ११५७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003563
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size4 MB
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