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________________ ख. ५. पण्हावागरणाई क. ताडपत्रीय (फोटो प्रिंट) मूलपाठ ---- पत्र संख्या २२० से २५६ ग. घ. च. क्व. की लम्बाई १० इंच तथा चौड़ाई ४१ इंच है | अक्षर बड़े तथा स्पष्ट हैं । प्रति शुद्ध तथा 'त' प्रधान है। अंत में लेखन-संवत् तथा लिपिकर्ता का नाम नहीं है केवल निम्नोक्त वाक्य हैं छ। अणुत्तरोववाइयदशांगं नवमं अंग समत्तं छ । श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः श्रीः छ छः प्रति का अनुमानित समय १६०० है । १८ पंचपाठी हस्तलिखित अनुमानित संवत् १२वीं सदी का उत्तराधे । यह प्रति गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर की है। इसके पत्र ८ हैं। प्रत्येक पत्र १० X ४ इंच है। मूलपाठ की पंक्तियां १ से १२ तथा पंक्ति में लगभग २३ से ३५ अक्षर हैं। चारों ओर वृत्ति तथा वीच में बावड़ी है । अन्तिम प्रशस्ति की जगह-ग्रंथा १२५० शुभं भवतु कल्याणमस्तु ॥ लिखा है। लेखन कर्ता तथा लिपि संवत् का उल्लेख नहीं है किन्तु अनुमानतः यह प्रति १३वीं शताब्दी की होनी चाहिए । त्रिपाठी (हस्तलिखित ) -- ↓ गधेया पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त इसके पत्र १११ हैं प्रत्येक पत्र १०४ इंच है। मूल पाठ की पंक्तियां १ सेप तथा प्रत्येक पंक्ति में ३६ से ४६ तक लगभग अक्षर हैं। ऊपर नीचे दोनों तरफ वृत्ति तथा बीच में कलात्मक बावड़ी है । प्रति के उत्तरार्ध के बीच चीन के कई पन्ने लुप्त हैं। अंत में सिर्फ ग्रंथाग्र १२५० छ।। श्री ।। छ|| || लिखा है । लिपि संवत् अनुमानतः १६वीं शताब्दी होना चाहिए । 1 Jain Education International मूलपाठ (सचित्र) - पूनमचंद दुधोड़िया, छापर द्वारा प्राप्त। इसके पत्र २७ हैं। प्रत्येक पत्र १२४५ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ५१ से ६० तक अक्षर हैं । बीच में बावड़ी है तथा प्रथम दो पत्रों में सुनहरी कार्य किए हुए भगवान् महावीर और गौतम स्वामी के चित्र है। लेखन संवत् नहीं है पर यह प्रति अनुमानतः १५७० के लगभग की होनी चाहिए। अशुद्धि बहुत है। मूलपाठ तथा टब्बा की प्रति मध्या पुस्तकालय, सरदारशहर से प्राप्त पत्र संख्या ८३ । यह प्रति वर्तमान में जैन विश्व भारती, लाडनूं में है। इसके पत्र १०३ तथा पृष्ठ २०६ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003563
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size4 MB
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