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________________ १६ है । बालावबोध पंचपाठी । पंक्तियां नीचे में १ ऊपर में ११ तक हैं । अक्षर २८ से ३५ तक हैं । लेखन संवत् १६६७ । लेखक सुदर्शन । प्रति काफी शुद्ध है। ६. विवागसुयंक. मदनचन्दजी मोठी सरदारशहर द्वारा प्राप्त (ताडपत्रीय फोटो प्रिंट) २६० से २८५ तक । (मुलपाठ) पंक्तियां ५ से ६ तक । कुछ पंक्तियां अधूरी तथा कुछ अस्पष्ट हैं। प्रति प्रायः शुद्ध है । लेखन संवत् ११८६ आश्विन मुदि ३ सोमवार। पुष्पिका काफी लम्बी है पर अस्पष्ट है। प्रति की लम्बाई १४ इंच तथा चौड़ाई १३ इंच है और तीन कोष्ठकों में लिखी हुई है ! मूलपाठ यह प्रति गधैया पुस्तकालय, सरदारशहर को है। इसके पत्र ३२ तथा पृष्ठ ६४ हैं। पत्रों की लम्बाई १०१ तथा चौड़ाई ४ इंच है। प्रत्येक पत्र में १५ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४० से ४५ तक अक्षर हैं। कहीं-कहीं भाषा का अर्थ लिखा हआ है। प्रति प्राय: शुद्ध है । अन्तिम प्रशस्ति में लिखा है:-- शुभं भवतु लेखकपाठकयोः ॥ संवत् १६३३ वर्षे आसो वदि ८ रवि लिखितं ।छ।।। मूलपाठ-- ___ यह प्रति हनूतमलजी मांगीलालजी गानी बीदासर से प्राप्त हुई। इसके पत्र ३५ तथा पष्ठ ७० हैं। प्रत्येक पत्र १११ इंच लम्बा तथा ४६ इंच चौड़ा है। प्रत्येक पत्र में १२ पंक्तियां तथा प्रत्येक पंक्ति में ४५ से ४६ तक अक्षर हैं। प्रति अशुद्धि बहुल है। अन्तिम प्रशस्ति में-- एक्कारसयं अंगं समत्तं ॥ ग्रंथान १२१६ ।। टीका ६०० एतस्या ॥ लिपि संवत् नहीं है, पर पत्रों की जीर्णता तथा अक्षरों की लिखावट से यह प्रति करीब ४०० वर्ष पुरानी होनी चाहिए। ७. एम. सी मोदी तथा वी० जी० चोकसी द्वारा सम्पादित तथा गुर्जरग्रंथरत्न कार्यालय, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित प्रथम संस्करण १६३५, 'विवागसय। सहयोगानुभूति जैन-परम्परा में वाचना का इतिहास बहुत प्राचीन है । आज से १५०० वर्ष पूर्व तक आगम की चार वाचनाएं हो चुकी हैं। देवद्धिगणी के बाद कोई सुनियोजित आगम-वाचना नहीं हुई। उनके वाचना-काल में जो आगम लिखे गए थे, वे इस लम्बी अवधि में बहुत ही अव्यवस्थित हो गए। उनकी पुनर्व्यवस्था के लिए आज फिर एक सुनियोजित वाचना की अपेक्षा थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003563
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Uvasagdasao Terapanth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1975
Total Pages242
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size4 MB
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